"प्रयोग:रिंकू3" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
|
 
|
 
<quiz display=simple>
 
<quiz display=simple>
{निम्नलिखित में से कौन [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के नाना थे?
+
{[[महाभारत]] में [[कीचक वध]] किस पर्व के अंतर्गत आता है?
 
|type="()"}
 
|type="()"}
-[[उग्रसेन]]
+
+[[विराट पर्व महाभारत|विराट पर्व]]
-[[शूरसेन]]
+
-[[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन पर्व]]
-[[अंधक]]
+
-[[आदि पर्व महाभारत |आदि पर्व]]
+[[देवक]]
+
-[[वन पर्व महाभारत|वन पर्व]]
||[[कंस]] के चाचा और [[उग्रसेन]] के भाई का नाम 'देवक' था। उन्होंने अपनी सात पुत्रियों का विवाह [[वासुदेव]] से कर दिया था, जिनमें [[देवकी]] भी एक थी। [[कृष्ण]] देवकी के गर्भ से उत्पन्न आठवें पुत्र थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[देवक]]
+
||[[विराट पर्व महाभारत|विराट पर्व]] में [[अज्ञातवास]] की अवधि में [[विराट नगर]] में रहने के लिए गुप्तमन्त्रणा, धौम्य द्वारा उचित आचरण का निर्देश, [[युधिष्ठिर]] द्वारा भावी कार्यक्रम का निर्देश, विभिन्न नाम और रूप से विराट के यहाँ निवास, [[भीमसेन]] द्वारा जीमूत नामक मल्ल तथा [[कीचक]] और उपकीचकों का वध, [[दुर्योधन]] के गुप्तचरों द्वारा [[पाण्डव|पाण्डवों]] की खोज तथा लौटकर [[कीचक वध]] की जानकारी देना, त्रिगर्तों और [[कौरव|कौरवों]]  द्वारा [[मत्स्य]] देश पर आक्रमण, कौरवों द्वारा [[विराट]] की गायों  का हरण, पाण्डवों का कौरव-सेना से युद्ध, [[अर्जुन]] द्वारा विशेष रूप से युद्ध और कौरवों की पराजय, अर्जुन और कुमार उत्तर का लौटकर विराट की सभा में  आना, विराट का युधिष्ठिरादि पाण्डवों से परिचय तथा अर्जुन द्वारा [[उत्तरा]] को पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करना वर्णित है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[विराट पर्व महाभारत]], [[कीचक वध]]
  
{[[सरस्वती नदी|सरस्वती]] और [[दृषद्वती नदी|दृषद्वती]] नदियों के बीच का भाग क्या कहलाता था?
+
{[[महाभारत]] युद्ध में कौन-से दिन [[श्रीकृष्ण]] ने [[शस्त्र]] न उठाने की अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ा?
 
|type="()"}
 
|type="()"}
+[[ब्रह्मावर्त]]
+
-[[महाभारत युद्ध आठवाँ दिन|आठवें दिन]]
-[[अन्तचार]]
+
-[[महाभारत युद्ध दसवाँ दिन|दसवें दिन]]
-[[दीपवती]]
+
-[[महाभारत युद्ध ग्यारहवाँ दिन|ग्यारहवें दिन]]
-[[कुशप्लव]]
+
+[[महाभारत युद्ध नौवाँ दिन|नौवें दिन]]
||[[यमुना नदी]] की पावन धारा के तट का वह भू-भाग, जिसे आजकल [[ब्रजमंडल]] या [[मथुरा]] मंडल कहते हैं पहले मध्य देश अथवा ब्रह्मर्षि देश के अन्तर्गत [[शूरसेन]] जनपद के नाम से प्रसिद्ध था, [[भारतवर्ष]] का अत्यन्त प्राचीन और महत्त्वपूर्ण प्रदेश माना गया है, अत्यन्त प्राचीन काल से ही इसी गौरव-गाथा के सूत्र मिलते हैं। हिन्दू , [[जैन]], और बौद्धों की धार्मिक अनुश्रुतियों तथा [[संस्कृत]], [[पालि]], प्राकृत के प्राचीन ग्रन्थों में इस पवित्र भू-खण्ड का विशद वर्णन वर्णित है । ब्रह्मावर्त, ब्रह्मदेश, ब्रह्मर्षिदेश और आर्यावर्त आदि नामों से विख्यात उत्तरांचल प्रदेश वेद भूमि है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[ब्रह्मावर्त]]
+
||[[महाभारत युद्ध नौवाँ दिन|नौवें दिन]] के युद्ध में [[भीष्म]] के [[बाण अस्त्र|बाणों]] से [[अर्जुन]] घायल हो गए। भीष्म की भीषण बाण-वर्षा से [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के अंग भी जर्जर हो गए। तब श्रीकृष्ण अपनी प्रतिज्ञा भूलकर रथ का एक चक्र उठाकर भीष्म को मारने के लिए दौड़े। अर्जुन भी रथ से कूदे और कृष्ण के पैरों से लिपट पड़े। वे श्रीकृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण दिलाते हैं कि वे युद्ध में [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र-शस्त्र]] नहीं उठायेंगे।
  
{[[द्रोणाचार्य]] के पिता कौन थे?
 
|type="()"}
 
-[[अत्रि]]
 
+[[भारद्वाज]]
 
-[[फेनप ऋषि]]
 
-[[कर्दम]]
 
||[[भारद्वाज|महर्षि भारद्वाज]] [[ऋग्वेद]] के छठे मण्डल के द्रष्टा कह गये हैं। इस मण्डल में भारद्वाज के 765 [[मन्त्र]] हैं। [[अथर्ववेद]] में भी भारद्वाज के 23 मन्त्र मिलते हैं। वैदिक ऋषियों में भारद्वाज-ऋषि का अति उच्च स्थान है। भारद्वाज के पिता [[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]] और माता ममता थीं। इनके पुत्र गुरु [[द्रोणाचार्य]] थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[भारद्वाज]], [[द्रोणाचार्य]]
 
 
{[[हरिवंश पुराण]] तीनों पर्वों में कुल कितने अध्याय हैं?
 
|type="()"}
 
+318
 
-316
 
-315
 
-317
 
||[[हरिवंश पुराण]] में तीन पर्व हैं, जो इस प्रकार हैं- हरिवंशपर्व, विष्णुपर्व तथा भविष्यपर्व। इन तीनों पर्वों में कुल 318 अध्याय हैं।
 
 
{[[वभ्रुवाहन]] किसका पुत्र था?
 
|type="()"}
 
-[[भीम]]
 
-[[कृष्ण]]
 
+[[अर्जुन]]
 
-[[युधिष्ठिर]]
 
||[[वभ्रुवाहन]] [[अर्जुन]] के पुत्र का नाम था। यह [[मणिपुर]] के राजा [[चित्रवाहन]] की राजकुमारी [[चित्रांगदा]] के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। जब वनवासी अर्जुन मणिपुर पहुंचे तो वे राजकुमारी चित्रांगदा के रूप पर मुग्ध हो गये। उन्होंने नरेश से उसकी कन्या मांगी। तब चित्रांगदा के गर्भ से अर्जुन का वभ्रुवाहन नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[वभ्रुवाहन]]
 
 
 
 
 
{[[कुरुक्षेत्र]] में किस स्थान पर [[कृष्ण]] ने [[अर्जुन]] को [[गीता]] का उपदेश दिया था?
 
|type="()"}
 
+[[ज्योतिसर]]
 
-[[गदावसान]]
 
-[[पंचकर्पट]]
 
-[[शंखतीर्थ]]
 
||[[ज्योतिसर]] [[हरियाणा]] के [[कुरुक्षेत्र]] में स्थित एक कस्बा है। यह माना जाता है कि [[महाभारत]] का युद्ध इसी स्थान पर हुआ था। यहाँ एक [[बरगद]] का [[वृक्ष]] है। उसी वृक्ष के नीचे [[श्रीकृष्ण]] ने [[अर्जुन]] को '[[गीता]]' का उपदेश दिया और यहीं पर अर्जुन को अपना विराट रूप भी दिखाया था। ज्योतिसर का अर्थ है- 'ज्योति' अर्थात 'प्रकाश' तथा 'सर' अर्थात 'तालाब'।
 
 
{निम्नलिखित में किस स्थान को [[ब्रह्मा]] की यज्ञीय वेदी कहा जाता है?
 
|type="()"}
 
-[[अग्निज्वाल]]
 
+[[कुरुक्षेत्र]]
 
-[[पुष्कर]]
 
-[[क्रौंचारण्य]]
 
||आरम्भिक रूप में कुरुक्षेत्र [[ब्रह्मा]] की यज्ञीय वेदी कहा जाता था, आगे चलकर इसे [[समन्तपंचक|समन्तपञ्चक]] कहा गया, जबकि [[परशुराम]] ने अपने पिता की हत्या के प्रतिशोध में क्षत्रियों के रक्त से पाँच कुण्ड बना डाले, जो पितरों के आशीर्वचनों से कालान्तर में पाँच पवित्र जलाशयों में परिवर्तित हो गये। आगे चलकर यह भूमि कुरुक्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध हुई जबकि [[संवरण]] के पुत्र राजा [[कुरु]] ने सोने के हल से सात कोस की भूमि जोत डाली।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कुरुक्षेत्र]]
 
 
{[[शिखंडी]] के गुरु का नाम क्या था?
 
|type="()"}
 
-[[भारद्वाज]]
 
-[[परशुराम]]
 
-[[कृपाचार्य]]
 
+[[द्रोणाचार्य]]
 
||कालांतर में हिरण्यवर्मा की पुत्री से [[शिखंडी]] का विवाह कर दिया गया। पुत्री ने पिता के पास शिखंडी के नारी होने का समाचार भेजा तो वह अत्यंत क्रुद्ध हुआ तथा [[द्रुपद]] से युद्ध करने की तैयारी करने लगा। इधर सब लोग बहुत व्याकुल थे। शिखंडिनी ने वन में जाकर तपस्या की। यक्ष स्थूलाकर्ण ने भावी युद्ध के संकट का विमोचन करने के निमित्त कुछ समय के लिए अपना पुरुषत्व उसके स्त्रीत्व से बदल लिया। शिखंडी ने यह समाचार माता-पिता को दिया। हिरण्यवर्मा को जब यह विदित हुआ कि शिखंडी पुरुष है- युद्ध-विद्या में [[द्रोणाचार्य]] का शिष्य है, तब उसने शिखंडी की निरीक्षण-परीक्षण कर द्रुपद के प्रति पुन: मित्रता का हाथ बढ़ाया तथा अपनी कन्या को मिथ्या वाचन के लिए डांटकर राजा द्रुपद के घर से ससम्मान प्रस्थान किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[शिखंडी]]
 
 
{[[युधिष्ठिर]] के लिए सभा-भवन का निर्माण किसने किया था?
 
|type="()"}
 
+[[मय दानव]]
 
-[[विश्वकर्मा]]
 
-[[कृष्ण]]
 
-[[इंद्र]]
 
||[[मय दानव]] का उल्लेख [[महाभारत]] में [[खाण्डव वन]] दहन के प्रसंग में हुआ है। उसे [[देवता|देवताओं]] का शिल्पकार भी कहा गया है। [[मत्स्यपुराण]] में अठारह वास्तुशिल्पियों के नाम दिए गए हैं, जिनमें [[विश्वकर्मा]] और मय दानव का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। मय दानव बड़ा होशियार शिल्पकार था। [[अर्जुन]] द्वारा जीवन दान दिये जाने के कारण उसकी अर्जुन से मित्रता हो गई थी। अर्जुन के कहने से ही मय दानव ने [[युधिष्ठिर]] के लिए राजधानी [[इन्द्रप्रस्थ]] में बड़ा सुन्दर सभा भवन बनाया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[मय दानव]], [[युधिष्ठिर]]
 
 
{[[भीम]] द्वारा मारा गया ‘[[अश्वत्थामा हाथी|अश्वत्थामा]]’ नाम का हाथी किस राजा का था?
 
|type="()"}
 
-[[सुकेतु]]
 
+[[इन्द्रवर्मा]]
 
-[[वृषसेन (कर्ण पुत्र)|वृषसेन]]
 
-[[अतिबाहु]]
 
||[[इन्द्रवर्मा]] [[हिन्दू]] मान्यताओं और पौराणिक [[महाकाव्य]] [[महाभारत]] के उल्लेखानुसार [[मालव|मालव देश]] के राजा थे। [[महाभारत]] में मालव नरेश इन्द्रवर्मा के हाथी का नाम [[अश्वत्थामा हाथी|अश्वत्थामा]] था। राजा इन्द्रवर्मा और उनके हाथी का वध [[भीम|भीमसेन]] ने किया था।
 
 
{यह ज्ञात हो जाने पर कि [[कर्ण]] पाण्डवों का भाई था, [[युधिष्ठिर]] ने किसे शाप दिया?
 
|type="()"}
 
-[[कुन्ती]]
 
-[[कर्ण]]
 
-[[सूर्य देवता|सूर्य]]
 
+इनमें से कोई नहीं
 
||[महाभारत]] युद्ध की समाप्ति पर बचे हुए कौरवपक्षीय नर-नारी, जिनमें [[धृतराष्ट्र]] तथा [[गांधारी]] प्रमुख थे, तथा [[श्रीकृष्ण]], [[सात्यकि]] और [[पांडव|पांडवों]] सहित [[द्रौपदी]], [[कुन्ती]] तथा [[पांचाल]] विधवाएं [[कुरुक्षेत्र]] पहुंचे। वहां [[युधिष्ठिर]] ने मृत सैनिकों का (चाहे वे शत्रु वर्ग के हों अथवा मित्रवर्ग के) दाह-संस्कार एवं तर्पण किया। कर्ण को याद कर युधिष्ठिर बहुत विचलित हो उठे। माँ से बार-बार कहते रहे- "काश, कि तुमने हमें पहले बता दिया होता कि कर्ण हमारे भाई हैं।" अंत में हताश, निराश और दुखी होकर उन्होंने नारी-जाति को शाप दिया कि वे भविष्य में कभी भी कोई गुह्य रहस्य नहीं छिपा पायेंगी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[युधिष्ठिर]]
 
 
</quiz>
 
</quiz>
 
|}
 
|}
 
|}
 
|}

12:40, 7 जनवरी 2018 के समय का अवतरण

2 महाभारत युद्ध में कौन-से दिन श्रीकृष्ण ने शस्त्र न उठाने की अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ा?

आठवें दिन
दसवें दिन
ग्यारहवें दिन
नौवें दिन