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<div style="padding:3px">[[चित्र:Vasudev-Krishna.jpg|right|80px|link=कृष्ण जन्माष्टमी|border]]</div>
 
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        '''[[कृष्ण जन्माष्टमी]]''' [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] का जन्मोत्सव है। योगेश्वर कृष्ण के [[गीता|भगवद्गीता]] के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी को [[भारत]] में ही नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपना [[अवतार]] [[भाद्रपद]] माह की [[कृष्ण पक्ष]] की [[अष्टमी]] को मध्यरात्रि में [[कंस]] का विनाश करने के लिए [[मथुरा]] में लिया। [[कृष्ण जन्मभूमि]] पर देश–विदेश से लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और पूरे दिन [[व्रत]] रखकर नर-नारी तथा बच्चे रात्रि 12 बजे मन्दिरों में [[अभिषेक]] होने पर [[पंचामृत]] ग्रहण कर व्रत खोलते हैं। कृष्ण जन्मभूमि के अलावा [[द्वारिकाधीश मन्दिर मथुरा|द्वारिकाधीश]], [[बांके बिहारी मन्दिर|बिहारीजी]] एवं अन्य सभी मन्दिरों में इसका भव्य आयोजन होता है, जिनमें भारी भीड़ होती है। [[कृष्ण जन्माष्टमी|... और पढ़ें]]
 
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| [[एक त्योहार|पिछले लेख]] →
 
| [[कृष्ण जन्माष्टमी]]
 
| [[रक्षाबन्धन]]
 
| [[नवरात्र]]
 
| [[होली]]
 
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|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">एक खेल</font>
 
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<div style="padding:3px">[[चित्र:Olympics-flag.jpg|right|90px|link=ओलम्पिक खेल]]</div>
 
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        '''[[ओलम्पिक खेल]]''' अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली बहु-खेल प्रतियोगिता है। वर्ष [[1896]] में पहली बार आधुनिक ओलम्पिक खेलों का आयोजन ग्रीस ([[यूनान]]) की राजधानी एथेंस में हुआ था। प्राचीन काल में शांति के समय योद्धाओं के बीच प्रतिस्पर्धा के साथ खेलों का विकास हुआ। दौड़, मुक्केबाज़ी, [[कुश्ती]] और रथों की दौड़ सैनिक प्रशिक्षण का हिस्सा हुआ करते थे। इनमें से सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाले योद्धा प्रतिस्पर्धी खेलों में अपना दमखम दिखाते थे। समाचार एजेंसी ‘आरआईए नोवोस्ती’ के अनुसार प्राचीन ओलम्पिक खेलों का आयोजन 1200 साल पूर्व योद्धा-खिलाड़ियों के बीच हुआ था। ओलम्पिक खेलों में [[भारत]] स्वर्ण पदक भी जीत चुका है। [[ओलम्पिक खेल|...और पढ़ें]]</poem>
 
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==मुखपृष्ठ पर चयनित एक व्यक्तित्व के लेखों की सूची==
 
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<center>'''[[नज़ीर अकबराबादी]]'''</center>
 
[[चित्र:Nazeer-Akbarabadi.jpg|right|80px|नज़ीर अकबराबादी|link=नज़ीर अकबराबादी|border]]
 
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        '''[[नज़ीर अकबराबादी]]''' [[उर्दू]] में नज़्म लिखने वाले पहले कवि माने जाते हैं। समाज की हर छोटी-बड़ी ख़ूबी को नज़ीर साहब ने कविता में तब्दील कर दिया। ककड़ी, [[जलेबी]] और तिल के लड्डू जैसी वस्तुओं पर लिखी गई कविताओं को आलोचक कविता मानने से इनकार करते रहे। बाद में नज़ीर साहब की 'उत्कृष्ट शायरी' को पहचाना गया और आज वे [[उर्दू साहित्य]] के शिखर पर विराजमान चन्द नामों के साथ बाइज़्ज़त गिने जाते हैं। लगभग सौ वर्ष की आयु पाने पर भी इस शायर को जीते जी उतनी ख्याति नहीं प्राप्त हुई जितनी कि उन्हें आज मिल रही है। नज़ीर की शायरी से पता चलता है कि उन्होंने जीवन-रूपी पुस्तक का अध्ययन बहुत अच्छी तरह किया है। भाषा के क्षेत्र में भी वे उदार हैं, उन्होंने अपनी शायरी में जन-संस्कृति का, जिसमें हिन्दू संस्कृति भी शामिल है, दिग्दर्शन कराया है और हिन्दी के शब्दों से परहेज़ नहीं किया है। उनकी शैली सीधी असर डालने वाली है और [[अलंकार|अलंकारों]] से मुक्त है। शायद इसीलिए वे बहुत लोकप्रिय भी हुए। [[नज़ीर अकबराबादी|... और पढ़ें]]
 
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<center>'''[[पांडुरंग वामन काणे]]'''</center>
 
[[चित्र:Vaaman-Kaane.jpg|right|100px|link=पांडुरंग वामन काणे|border]]
 
<poem>
 
        '''[[पांडुरंग वामन काणे]]''' [[संस्कृत]] के एक विद्वान एवं प्राच्यविद्या विशारद थे। पांडुरंग वामन काणे का सबसे बड़ा योगदान उनका विपुल [[साहित्य]] है, जिसकी रचना में उन्होंने अपना महत्त्वपूर्ण जीवन लगाया। वे अपने महान ग्रंथों- 'साहित्यशास्त्र' और 'धर्मशास्त्र' पर [[1906]] ई. से कार्य कर रहे थे। इनमें 'धर्मशास्त्र का इतिहास' सबसे महत्त्वपूर्ण और प्रसिद्ध है। पाँच भागों में प्रकाशित बड़े आकार के 6500 पृष्ठों का यह ग्रंथ, भारतीय धर्मशास्त्र का विश्वकोश है। इसमें ईस्वी पूर्व 600 से लेकर 1800 ई. तक की [[भारत]] की विभिन्न धार्मिक प्रवृत्तियों का प्रामाणिक विवेचन प्रस्तुत किया गया है। हिन्दू विधि और आचार विचार संबंधी पांडुरंग वामन काणे का कुल प्रकाशित साहित्य 20,000 पृष्ठों से अधिक का है। डॉ. पांडुरंग वामन काणे की महान उपलब्धियों के लिए [[भारत सरकार]] द्वारा सन् [[1963]] में उन्हें '[[भारत रत्न]]' से सम्मानित किया गया। [[पांडुरंग वामन काणे|... और पढ़ें]]
 
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<center>'''[[बिस्मिल्लाह ख़ाँ]]'''</center>
 
[[चित्र:Ustad-Bismillah-khan.jpg|right|100px|link=बिस्मिल्लाह ख़ाँ|border]]
 
<poem>
 
        '''[[बिस्मिल्लाह ख़ाँ|उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ]]''' '[[भारत रत्न]]' से सम्मानित प्रख्यात शहनाई वादक थे। सन 1969 में 'एशियाई संगीत सम्मेलन' के 'रोस्टम पुरस्कार' से सम्मानित बिस्मिल्लाह खाँ ने [[शहनाई]] को [[भारत]] के बाहर एक विशिष्ट पहचान दिलवाने में मुख्य योगदान दिया। 1947 में आज़ादी की पूर्व संध्या पर जब [[लाल क़िला|लाल क़िले]] पर देश का झंडा [[तिरंगा]] फहरा रहा था, तब बिस्मिल्लाह ख़ाँ की शहनाई भी वहाँ आज़ादी का संदेश बाँट रही थी। बिस्मिल्ला ख़ाँ ने 'बजरी', 'चैती' और 'झूला' जैसी लोकधुनों में बाजे को अपनी तपस्या और रियाज़ से ख़ूब सँवारा और क्लासिकल मौसिक़ी में शहनाई को सम्मानजनक स्थान दिलाया। [[बिस्मिल्लाह ख़ाँ|... और पढ़ें]]
 
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<center>'''[[लाला लाजपत राय]]'''</center>
 
[[चित्र:Lala-Lajpat-Rai.jpg|right|100px|link=लाला लाजपत राय|border]]
 
<poem>
 
        '''[[लाला लाजपत राय]]''' को [[भारत]] के महान क्रांतिकारियों में गिना जाता है। आजीवन ब्रिटिश राजशक्ति का सामना करते हुए अपने प्राणों की परवाह न करने वाले लाला लाजपत राय को 'पंजाब केसरी' भी कहा जाता है। लालाजी [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के [[गरम दल]] के प्रमुख नेता तथा पूरे पंजाब के प्रतिनिधि थे। उन्हें 'पंजाब के शेर' की उपाधि भी मिली थी। उन्होंने क़ानून की शिक्षा प्राप्त कर [[हिसार]] में वकालत प्रारम्भ की थी, किन्तु बाद में [[दयानंद सरस्वती|स्वामी दयानंद]] के सम्पर्क में आने के कारण वे [[आर्य समाज]] के प्रबल समर्थक बन गये। यहीं से उनमें उग्र राष्ट्रीयता की भावना जागृत हुई। लालाजी ने [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]], [[अशोक]], [[शिवाजी]], [[दयानंद सरस्वती|स्वामी दयानंद सरस्वती]], [[पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी]], मेत्सिनी और गैरीबाल्डी की संक्षिप्त जीवनियाँ भी लिखीं। 'नेशनल एजुकेशन', 'अनहैप्पी इंडिया' और 'द स्टोरी ऑफ़ माई डिपोर्डेशन' उनकी अन्य महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं।  [[लाला लाजपत राय|... और पढ़ें]]
 
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<center>'''[[कवि प्रदीप]]'''</center>
 
[[चित्र:Pradeep.jpg|right|100px|link=कवि प्रदीप|border]]
 
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        '''[[कवि प्रदीप]]''' का मूल नाम 'रामचंद्र नारायण द्विवेदी' था। कवि सम्मेलनों में [[सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला']] जैसे महान साहित्यकार को प्रभावित कर सकने की क्षमता रामचंद्र द्विवेदी में थी। उन्हीं के आशीर्वाद से रामचंद्र 'प्रदीप' कहलाने लगे। कवि प्रदीप '[[ऐ मेरे वतन के लोगों]]' सरीखे देशभक्ति गीतों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने [[1962]] के '[[भारत-चीन युद्ध (1962)|भारत-चीन युद्ध]]' के दौरान शहीद हुए सैनिकों की श्रद्धांजलि में ये गीत लिखा था। [[लता मंगेशकर]] द्वारा गाए इस गीत का तत्कालीन [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहरलाल नेहरू|पंडित जवाहरलाल नेहरू]] की उपस्थिति में [[26 जनवरी]], [[1963]] को [[दिल्ली]] के रामलीला मैदान से सीधा प्रसारण किया गया था। कवि प्रदीप अपनी रचनाएं गाकर ही सुनाते थे और उनकी मधुर आवाज़ का सदुपयोग अनेक संगीत निर्देशकों ने अलग-अलग समय पर किया। [[कवि प्रदीप|... और पढ़ें]]
 
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<center>'''[[गजानन माधव 'मुक्तिबोध']]'''</center>
 
[[चित्र:Gajanan-Madhav-Muktibodh.jpg|right|100px|link=गजानन माधव 'मुक्तिबोध'|border]]
 
<poem>
 
        '''[[गजानन माधव 'मुक्तिबोध']]''' की प्रसिद्धि प्रगतिशील कवि के रूप में है। मुक्तिबोध [[हिन्दी साहित्य]] की स्वातंत्र्योत्तर प्रगतिशील काव्यधारा के शीर्ष व्यक्तित्व थे। उन्हें प्रगतिशील कविता और नयी कविता के बीच का एक सेतु भी माना जाता है। मुक्तिबोध हिन्दी संसार की एक घटना बन गए। कुछ ऐसी घटना जिसकी ओर से आँखें मूंद लेना असम्भव था। उनका एकनिष्ठ संघर्ष, उनकी अटूट सच्चाई, उनका पूरा जीवन, सभी एक साथ हमारी भावनाओं के केंद्रीय मंच पर सामने आए और सभी ने उनके कवि होने को नई दृष्टि से देखा। कैसा जीवन था वह और ऐसे उसका अंत क्यों हुआ। और वह समुचित ख्याति से अब तक वंचित क्यों रहे? [[गजानन माधव 'मुक्तिबोध'|... और पढ़ें]]
 
</poem>
 
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<center>'''[[जयशंकर प्रसाद]]'''</center>
 
[[चित्र:Jaishankar-Prasad.jpg|right|100px|link=जयशंकर प्रसाद|border]]
 
<poem>
 
        '''[[जयशंकर प्रसाद]]''' [[हिंदी|हिन्दी]] नाट्य जगत और कथा साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। भावना-प्रधान कहानी लिखने वालों में जयशंकर प्रसाद अनुपम थे। [[कविता]], [[नाटक]], [[कहानी]], [[उपन्यास]] सभी क्षेत्रों में प्रसाद जी एक नवीन 'स्कूल' और नवीन जीवन-दर्शन की स्थापना करने में सफल हुए। वे 'छायावाद' के संस्थापकों और उन्नायकों में से एक हैं। कहा जाता है कि नौ वर्ष की अवस्था में ही जयशंकर प्रसाद ने 'कलाधर' उपनाम से [[ब्रजभाषा]] में एक [[सवैया]] लिखकर अपने गुरु रसमयसिद्ध को दिखाया था।  [[जयशंकर प्रसाद|... और पढ़ें]]
 
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<center>'''[[रामधारी सिंह 'दिनकर']]'''</center>
 
[[चित्र:Dinkar.jpg|right|100px|link=रामधारी सिंह 'दिनकर'|border]]
 
<poem>
 
        '''[[रामधारी सिंह 'दिनकर']]''' [[हिन्दी]] के प्रसिद्ध कवि, लेखक एवं निबंधकार हैं। 'दिनकर' आधुनिक युग के श्रेष्ठ [[वीर रस]] के कवि के रूप में स्थापित हैं। 'दिनकर' [[पद्म भूषण]] के अतिरिक्त अपनी गद्य रचना '[[संस्कृति के चार अध्याय]]' के लिये [[साहित्य अकादमी पुरस्कार]] तथा काव्य-नाटक [[उर्वशी -रामधारी सिंह दिनकर|उर्वशी]] के लिये [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] से सम्मानित हैं।  'दिनकर' [[भारत]] की प्रथम [[संसद]] में [[राज्यसभा]] के सदस्य भी चुने गये। 12 वर्ष तक संसद सदस्य रहने के बाद इन्हें 'भागलपुर विश्वविद्यालय' का कुलपति नियुक्त किया गया लेकिन अगले ही वर्ष [[भारत सरकार]] ने इन्हें अपना 'हिन्दी सलाहकार' नियुक्त किया। [[रामधारी सिंह 'दिनकर'|... और पढ़ें]]
 
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<center>'''[[सूरदास]]'''</center>
 
[[चित्र:Surdas.jpg|right|100px|link=सूरदास|border]]
 
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        '''[[सूरदास]]''' [[हिन्दी साहित्य]] के [[भक्तिकाल]] में कृष्ण भक्ति के भक्त कवियों में अग्रणी है। महाकवि सूरदास जी [[वात्सल्य रस]] के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने [[शृंगार रस|शृंगार]] और [[शान्त रस|शान्त रसों]] का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। सूरदास जी के जन्मांध होने के विषय में भी मतभेद हैं। [[आगरा]] के समीप गऊघाट पर उनकी भेंट [[वल्लभाचार्य]] से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षा दे कर कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। सूरदास जी [[अष्टछाप कवि|अष्टछाप कवियों]] में एक थे। सूरदास की सर्वसम्मत प्रामाणिक रचना '[[सूरसागर]]' है। [[सूरदास|... और पढ़ें]]
 
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<center>'''[[सरदार पटेल]]'''</center>
 
[[चित्र:Sardar-Vallabh-Bhai-Patel.jpg|right|100px|link=सरदार पटेल|border]]
 
<poem>
 
        '''[[सरदार पटेल|सरदार वल्लभभाई पटेल]]''' [[भारत]] के [[भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन|स्वाधीनता संग्राम]] के दौरान '[[काँग्रेस|भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' के प्रमुख नेताओं में से वे एक थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद पहले तीन वर्ष वे उप प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, सूचना मंत्री और राज्य मंत्री रहे थे। कुशल कूटनीति और जरूरत पड़ने पर सैन्य हस्तक्षेप द्वारा उन्होंने अधिकांश रियासतों को [[तिरंगा|तिरंगे]] के तले लाने में सफलता प्राप्त की। नीतिगत दृढ़ता के लिए राष्ट्रपिता [[महात्मा गाँधी]] ने उन्हें 'सरदार' और 'लौह पुरुष' की उपाधि दी। सरदार पटेल को मरणोपरांत वर्ष 1991 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान '[[भारत रत्न]]' दिया गया। सरदार पटेल के ऐतिहासिक कार्यों में [[सोमनाथ|सोमनाथ मंदिर]] का पुनर्निमाण, गांधी स्मारक निधि की स्थापना, कमला नेहरू अस्पताल की रूपरेखा आदि कार्य सदैव स्मरणीय रहेंगे। [[सरदार पटेल|... और पढ़ें]]
 
</poem>
 
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<center>'''[[अब्दुल कलाम]]'''</center>
 
[[चित्र:Abdul-Kalam.jpg|right|120px|link=अब्दुल कलाम|border]]
 
<poem>
 
        '''[[अब्दुल कलाम|अवुल पकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम]]''' [[भारत]] के पूर्व राष्ट्रपति, प्रसिद्ध वैज्ञानिक और अभियंता के रूप में विख्यात हैं। इन्हें '''मिसाइल मैन''' के नाम से भी जाना जाता है। चमत्कारिक प्रतिभा के धनी अब्दुल कलाम का व्यक्तित्व इतना उन्नत है कि वह सभी धर्म, जाति एवं सम्प्रदायों के व्यक्ति नज़र आते हैं। यह एक ऐसे स्वीकार्य भारतीय हैं, जो सभी के लिए 'एक महान आदर्श' बन चुके हैं। ये भारत के विशिष्ट वैज्ञानिक हैं, जिन्हें 30 विश्वविद्यालयों और संस्थानों से डॉक्टरेट की मानद उपाधि के अतिरिक्त भारत के नागरिक सम्मान के रूप में [[पद्म भूषण]], [[पद्म विभूषण]] एवं [[भारत रत्न]] से सम्मानित किया जा चुका है। [[अब्दुल कलाम|... और पढ़ें]]
 
</poem>
 
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<center>'''[[देवकीनन्दन खत्री]]'''</center>
 
[[चित्र:Devkinandan-Khatri.jpg|right|100px|link=देवकीनन्दन खत्री|border]]
 
<poem>
 
        '''[[देवकीनन्दन खत्री]]''' [[हिन्दी]] के प्रथम तिलिस्मी लेखक थे। उन्होंने '[[चन्द्रकान्ता (उपन्यास)|चन्द्रकान्ता ]]', '[[चंद्रकांता संतति]]', 'काजर की कोठरी', 'नरेंद्र-मोहिनी', 'कुसुम कुमारी', 'वीरेंद्र वीर', 'गुप्त गोंडा', 'कटोरा भर' और '[[भूतनाथ -देवकीनन्दन खत्री|भूतनाथ]]' जैसी रचनाएँ कीं। हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में उनके उपन्यास 'चन्द्रकान्ता' का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस उपन्यास का रसास्वादन करने के लिए कई गैर-हिन्दीभाषियों ने हिन्दी भाषा सीखी। बाबू देवकीनन्दन खत्री ने 'तिलिस्म', 'ऐय्यार' और 'ऐय्यारी' जैसे शब्दों को हिन्दीभाषियों के बीच लोकप्रिय बना दिया। [[देवकीनन्दन खत्री|... और पढ़ें]]
 
</poem>
 
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<center>'''[[तुलसीदास]]'''</center>
 
[[चित्र:Tulsidas.jpg|right|100px|link=तुलसीदास|border]]
 
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        '''[[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]]''' [[हिन्दी साहित्य]] के आकाश के परम नक्षत्र, [[भक्तिकाल]] की सगुण धारा की रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि है। तुलसीदास एक साथ कवि, भक्त तथा समाज सुधारक तीनों रूपों में मान्य है। [[राम|श्रीराम]] को समर्पित विश्वविख्यात ग्रन्थ [[रामचरितमानस|श्रीरामचरितमानस]] को समस्त [[उत्तर भारत]] में बड़े भक्तिभाव से पढ़ा जाता है। अपनी पत्नी 'रत्नावली' से अत्याधिक प्रेम के कारण तुलसीदास को रत्नावली की फटकार "लाज न आई आपको दौरे आएहु नाथ" सुननी पड़ी जिससे इनका जीवन ही परिवर्तित हो गया। [[तुलसीदास|... और पढ़ें]]
 
</poem>
 
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<center>'''[[सुमित्रानंदन पंत]]'''</center>
 
[[चित्र:Sumitranandan-Pant.jpg|right|100px|link=सुमित्रानंदन पंत|border]]
 
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        '''[[सुमित्रानंदन पंत]]''' [[हिंदी साहित्य]] में [[छायावादी युग]] के चार स्तंभों में से एक हैं। सुमित्रानंदन पंत ऐसे साहित्यकारों में गिने जाते हैं जिनका प्रकृति चित्रण समकालीन कवियों में सबसे बेहतरीन था। हिंदी साहित्य के ‘विलियम वर्ड्सवर्थ’ कहे जाने वाले इस कवि ने महानायक [[अमिताभ बच्चन]] को ‘अमिताभ’ नाम दिया था। आधी सदी से भी अधिक लंबे उनके रचनाकाल में आधुनिक हिंदी कविता का एक पूरा युग समाया हुआ है। [[सुमित्रानंदन पंत|... और पढ़ें]]
 
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<center>'''[[सुभाष चंद्र बोस]]'''</center>
 
[[चित्र:Subhash-Chandra-Bose-2.jpg|right|100px|link=सुभाष चंद्र बोस|border]]
 
<poem>
 
        '''[[सुभाष चंद्र बोस]]''' के अतिरिक्त [[भारत]] के [[भारत का इतिहास|इतिहास]] में ऐसा कोई व्यक्तित्व नहीं हुआ, जो एक साथ महान सेनापति, वीर सैनिक, राजनीति का अद्भुत खिलाड़ी और अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुरुषों, नेताओं के समकक्ष साधिकार बैठकर कूटनीति तथा चर्चा करने वाला हो। [[महात्मा गाँधी|गाँधीजी]] ने भी उनकी देश की आज़ादी के प्रति लड़ने की भावना देखकर ही उन्हें 'देशभक्तों का देशभक्त' कहा था। नेताजी उस समय भारतीयता की पहचान ही बन गए थे और भारतीय युवक आज भी उनसे प्रेरणा ग्रहण करते हैं। वे भारत की अमूल्य निधि थे। 'जयहिन्द' का नारा और अभिवादन उन्हीं की देन है। [[सुभाष चंद्र बोस|... और पढ़ें]]
 
</poem>
 
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<center>'''[[स्वामी विवेकानन्द]]'''</center>
 
[[चित्र:Swami Vivekanand.jpg|right|100px|link=स्वामी विवेकानन्द|border]]
 
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        '''[[स्वामी विवेकानन्द]]''' एक युवा सन्न्यासी के रूप में [[भारतीय संस्कृति]] की सुगन्ध विदेशों में बिखरने वाले [[साहित्य]], [[दर्शन]] और [[इतिहास]] के प्रकाण्ड विद्वान थे। विवेकानन्द जी का मूल नाम 'नरेंद्रनाथ दत्त' था। इन्होंने [[हिन्दू धर्म]] को गतिशील तथा व्यवहारिक बनाया और सुदृढ़ सभ्यता के निर्माण के लिए आधुनिक मानव से पश्चिमी विज्ञान व भौतिकवाद को [[भारत]] की आध्यात्मिक संस्कृति से जोड़ने का आग्रह किया।  [[भारत]] में स्वामी विवेकानन्द के जन्म दिवस को [[राष्ट्रीय युवा दिवस]] के रूप में मनाया जाता है। [[स्वामी विवेकानन्द|... और पढ़ें]]
 
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<center>'''[[महाराणा प्रताप]]'''</center>
 
[[चित्र:Maharana-Pratap.jpg|right|100px|link=महाराणा प्रताप|border]]
 
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        '''‌‌‌‌‌‌‌[[महाराणा प्रताप]]''' की वीरता और स्वार्थ-त्याग का वृत्तान्त [[मेवाड़ का इतिहास|मेवाड़ के इतिहास]] में अत्यन्त गौरवमय समझा जाता है। वह तिथि धन्य है, जब [[मेवाड़]] की शौर्य-भूमि पर मेवाड़-मुकुट मणि राणा प्रताप का जन्म हुआ। इन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि वह 'माता के पवित्र दूध को कभी कलंकित नहीं करेंगे' और इस प्रतिज्ञा का पालन इन्होंने पूरी तरह से किया। महाराणा प्रताप प्रजा के हृदय पर शासन करने वाले राजा थे।  महाराणा प्रताप ने एक प्रतिष्ठित कुल के मान-सम्मान और उसकी उपाधि को प्राप्त किया। महाराणा प्रताप की जयंती [[विक्रमी संवत|विक्रमी सम्वत्]] कॅलण्डर के अनुसार प्रतिवर्ष [[ज्येष्ठ]], [[शुक्ल पक्ष]] [[तृतीया]] को मनाई जाती है।  [[महाराणा प्रताप|... और पढ़ें]]
 
</poem>
 
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<center>'''[[मीरां|मीरांबाई]]'''</center>
 
[[चित्र:Meerabai-1.jpg|right|80px|link=मीरां|border]]
 
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        '''[[मीरां|मीरांबाई]]''' अथवा '''मीराबाई''' [[हिन्दू]] आध्यात्मिक कवयित्री थीं, जिनके [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के प्रति समर्पित भजन [[उत्तर भारत]] में बहुत लोकप्रिय हैं। मीरा का सम्बन्ध एक [[राजपूत]] [[परिवार]] से था। एक [[साधु]] द्वारा बचपन में उन्हें कृष्ण की मूर्ति दिए जाने के साथ ही उनकी आजन्म कृष्णभक्ति की शुरुआत हुई, जिनकी वह दिव्य प्रेमी के रूप में आराधना करती थीं। [[मीरां|... और पढ़ें]]
 
</poem>
 
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<center>'''[[हरिवंश राय बच्चन]]'''</center>
 
[[चित्र:Harivanshrai-Bachchan.jpg|right|80px|हरिवंश राय बच्चन|link=हरिवंश राय बच्चन|border]]
 
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        '''[[हरिवंश राय बच्चन]]''' के काव्य की विलक्षणता उनकी लोकप्रियता है। यह नि:संकोच कहा जा सकता है कि आज भी [[हिन्दी]] के ही नहीं, सारे [[भारत]] के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में 'बच्चन' का स्थान सुरक्षित है। हिन्दी में 'हालावाद' के जनक 'बच्चन' की मुख्य कृतियाँ '[[मधुशाला]]', 'मधुबाला' और 'मधुकलश' ने हिंदी काव्य पर अमिट छाप छोड़ी। हरिवंश राय बच्चन के पुत्र [[अमिताभ बच्चन]] [[भारतीय सिनेमा]] जगत के प्रसिद्ध सितारे हैं। [[हरिवंश राय बच्चन|... और पढ़ें]]
 
</poem>
 
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<center>'''[[नज़ीर अकबराबादी]]'''</center>
 
[[चित्र:Nazeer-Akbarabadi.jpg|right|80px|नज़ीर अकबराबादी|link=नज़ीर अकबराबादी|border]]
 
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        '''[[नज़ीर अकबराबादी]]''' [[उर्दू]] में नज़्म लिखने वाले पहले कवि माने जाते हैं। समाज की हर छोटी-बड़ी ख़ूबी को नज़ीर साहब ने कविता में तब्दील कर दिया। ककड़ी, [[जलेबी]] और तिल के लड्डू जैसी वस्तुओं पर लिखी गई कविताओं को आलोचक कविता मानने से इन्कार करते रहे। बाद में नज़ीर साहब की 'उत्कृष्ट शायरी' को पहचाना गया और आज वे उर्दू साहित्य के शिखर पर विराजमान चन्द नामों के साथ बाइज़्ज़त गिने जाते हैं। [[नज़ीर अकबराबादी|... और पढ़ें]]
 
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<center>'''[[राहुल सांकृत्यायन]]'''</center>
 
[[चित्र:Rahul Sankrityayan.JPG|right|80px|राहुल सांकृत्यायन|link=राहुल सांकृत्यायन|border]]
 
* '''[[राहुल सांकृत्यायन]]''' को [[हिन्दी]] यात्रा साहित्य का जनक माना जाता है। वे एक प्रतिष्ठित बहुभाषाविद थे और 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में उन्होंने यात्रा वृतांत तथा विश्व-दर्शन के क्षेत्र में साहित्यिक योगदान किए।
 
* सन् 1930 ई. में [[लंका]] में [[बौद्ध]] होने पर उनका नाम 'राहुल' पड़ा। बौद्ध होने के पूर्व राहुल जी 'दामोदर स्वामी' के नाम से भी पुकारे जाते थे।
 
* "कमर बाँध लो भावी घुमक्कड़ों, संसार तुम्हारे स्वागत के लिए बेकरार है" -राहुल सांकृत्यायन [[राहुल सांकृत्यायन|... और पढ़ें]]
 
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<center>'''[[महादेवी वर्मा]]'''</center>
 
[[चित्र:Mahadevi-verma.png|right|100px|महादेवी वर्मा|link=महादेवी वर्मा|border]]
 
* [[महादेवी वर्मा]] की गिनती [[हिन्दी]] [[कविता]] के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभ [[सुमित्रानन्दन पन्त]], [[जयशंकर प्रसाद]] और [[सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला]] के साथ की जाती है।
 
* महादेवी वर्मा ने [[खड़ी बोली]] हिन्दी को कोमलता और मधुरता से संसिक्त कर सहज मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति का द्वार खोला, विरह को दीपशिखा का गौरव दिया। 
 
* महादेवी वर्मा के गीतों का नाद-सौंदर्य, पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। [[महादेवी वर्मा|... और पढ़ें]]
 
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<center>'''[[कबीर]]'''</center>
 
[[चित्र:Sant-Kabirdas.jpg|right|100px|कबीर|link=कबीर|border]]
 
*'''[[कबीर|कबीरदास]]''' [[हिन्दी साहित्य]] के [[भक्ति काल]] के इकलौते ऐसे कवि हैं, जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे।
 
*[[हज़ारी प्रसाद द्विवेदी]] के अनुसार, "[[भाषा]] पर कबीर का ज़बरदस्त अधिकार था। वे वाणी के डिक्टेटर थे। जिस बात को उन्होंने जिस रूप में प्रकट करना चाहा है, उसे उसी रूप में कहलवा लिया- बन गया है तो सीधे–सीधे, नहीं दरेरा देकर।" [[कबीर|... और पढ़ें]]
 
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<center>'''[[ग़ालिब]]'''</center>
 
[[चित्र:Mirza-Ghalib.jpg|right|100px|मिर्ज़ा ग़ालिब|link=ग़ालिब|border]]
 
*'''[[मिर्ज़ा ग़ालिब|मिर्ज़ा असदउल्ला बेग़ ख़ान]]''' जिन्हें सारी दुनिया 'मिर्ज़ा ग़ालिब' के नाम से जानती है, [[उर्दू]]-[[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] के प्रख्यात कवि रहे हैं।
 
*ग़ालिब सदा किराये के मकानों में रहे, अपना मकान न बनवा सके। वे ऐसा मकान ज़्यादा पसंद करते थे, जिसमें बैठकख़ाना और अन्त:पुर अलग-अलग हों और उनके दरवाज़े भी अलग हों, जिससे यार-दोस्त बेझिझक आ-जा सकें।
 
*“हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे<br />
 
:कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़े-बयाँ और”      [[ग़ालिब|... और पढ़ें]]
 
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<center>'''[[सत्यजित राय]]'''</center>
 
<div id="rollnone">[[चित्र:Satyajit-Ray.jpg|right|100px|सत्यजित राय|link=सत्यजित राय|border]]</div>
 
* '''[[सत्यजित राय]]''' मानद ऑस्कर अवॉर्ड, [[भारत रत्न]] के अतिरिक्त [[पद्म श्री]] (1958), [[पद्म भूषण]] (1965), [[पद्म विभूषण]] (1976) और रमन मैगसेसे पुरस्कार (1967) से सम्मानित हैं।
 
*विश्व सिनेमा के पितामह माने जाने वाले महान निर्देशक अकीरा कुरोसावा ने राय के लिए कहा था "सत्यजित राय के बिना सिनेमा जगत वैसा ही है जैसे सूरज-चाँद के बिना आसमान" [[सत्यजित राय|... और पढ़ें]]
 
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<center>'''[[सरोजिनी नायडू]]'''</center>
 
<div id="rollnone"> [[चित्र:Sarojini-Naidu.jpg|right|100px|सरोजिनी नायडू|border|link=सरोजिनी नायडू]] </div>
 
*सरोजिनी नायडू सुप्रसिद्ध कवयित्री और [[भारत]] के राष्ट्रीय नेताओं में से एक थीं।
 
*सरोजिनी नायडू का जन्म [[13 फ़रवरी]], सन् 1879 को [[हैदराबाद]] में हुआ था। श्री '''अघोरनाथ चट्टोपाध्याय''' और '''वरदासुन्दरी''' की आठ संतानों में वह सबसे बड़ी थीं।
 
*'''सरोजिनी नायडू बहुभाषाविद थीं'''। वह क्षेत्रानुसार अपना भाषण [[अंग्रेज़ी]], [[हिन्दी]], [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]] या [[गुजराती भाषा]] में देती थीं।
 
*13 वर्ष की आयु में सरोजिनी नायडू ने '''1300 पदों की 'झील की रानी'''' नामक लंबी [[कविता]] और लगभग '''2000 पंक्तियों का एक विस्तृत नाटक''' लिखकर [[अंग्रेज़ी भाषा]] पर अपना अधिकार सिद्ध कर दिया था।
 
*सरोजिनी नायडू को विशेषत: ''''भारत कोकिला', 'राष्ट्रीय नेता' और 'नारी मुक्ति आन्दोलन की समर्थक'''' के रूप में सदैव याद किया जाता रहेगा।
 
*[[2 मार्च]] सन् 1949 को मृत्यु के समय सरोजिनी नायडू '''[[उत्तर प्रदेश]] के राज्यपाल पद पर''' थीं। '''[[सरोजिनी नायडू|.... और पढ़ें]]'''
 
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<center>'''[[प्रेमचंद|मुंशी प्रेमचंद]]'''</center>
 
[[चित्र:Premchand.jpg|right|100px|border|प्रेमचंद|link=प्रेमचंद]]
 
*[[भारत]] के '''उपन्यास सम्राट''' मुंशी प्रेमचंद के युग का विस्तार सन् 1880 से 1936 तक है। यह कालखण्ड भारत के इतिहास में बहुत महत्त्व का है।
 
*प्रेमचंद का वास्तविक नाम '''धनपत राय श्रीवास्तव''' था। वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे।
 
*प्रेमचंद का जन्म [[वाराणसी]] से लगभग चार मील दूर, लमही नाम के गाँव में [[31 जुलाई]], 1880 को हुआ। प्रेमचंद के पिताजी '''मुंशी अजायब लाल''' और माता '''आनन्दी देवी''' थीं।
 
*प्रेमचंद का कुल दरिद्र कायस्थों का था, जिनके पास क़रीब छ: बीघे ज़मीन थी और जिनका परिवार बड़ा था। प्रेमचंद के पितामह, '''मुंशी गुरुसहाय लाल''', पटवारी थे।
 
*प्रेमचंद ने कुल '''15 उपन्यास''', '''300 से कुछ अधिक कहानियाँ''', 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हज़ारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की है।
 
*अंतिम दिनों के एक वर्ष को छोड़कर, उनका पूरा समय वाराणसी और [[लखनऊ]] में गुज़रा, जहाँ उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया और [[8 अक्टूबर]], [[1936]] को जलोदर रोग से उनका देहावसान हो गया ।  '''[[प्रेमचंद|.... और पढ़ें]]'''
 
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<center>'''[[शिवाजी|छत्रपति शिवाजी महाराज]]'''</center>
 
[[चित्र:Chatrapati Shivaji-2.jpg|right|100px|border|शिवाजी|link=शिवाजी]]
 
*शिवाजी महाराज का पूरा नाम '''शिवाजी राजे भोंसले''' था। [[शाहजी भोंसले]] की पहली पत्नी [[जीजाबाई]] ने शिवाजी को 19 फ़रवरी, 1630 को [[महाराष्ट्र]]  के शिवनेरी दुर्ग में जन्म दिया।
 
*शाहजी भोंसले ने शिवाजी के जन्म के उपरान्त ही अपनी पत्नी को त्याग दिया था। इसलिये उनका बचपन बहुत उपेक्षित रहा और वे सौतेली माँ के कारण बहुत दिनों तक पिता के संरक्षण से वंचित रहे। 
 
*बालक शिवाजी का लालन-पालन उनके स्थानीय संरक्षक दादाजी '''कोणदेव''' तथा जीजाबाई के [[समर्थ रामदास|समर्थ गुरु रामदास]] की देखरेख में हुआ।
 
*शिवाजी का विवाह '''साइबाईं निम्बालकर''' के साथ सन् 1641 में [[बंगलौर]] में हुआ था। शिवाजी के दो पुत्र '''सम्भाजी राजे भोंसले''', '''राजाराम छत्रपति''' और छ: पुत्रियाँ थीं।
 
*ये [[भारत]] में मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे। सेनानायक के रूप में शिवाजी की महानता निर्विवाद रही है। शिवाजी ने भू-राजस्व एवं प्रशासन के क्षेत्र में अनेक क़दम उठाए। शिवाजी ने अनेक क़िलों का निर्माण और पुनरुद्धार करवाया।  शिवाजी के निर्देशानुसार सन् 1679 ई. में अन्नाजी दत्तों ने एक विस्तृत भू-सर्वेक्षण करवाया जिसके परिणामस्वरूप एक नया राजस्व निर्धारण हुआ।
 
*मैकाले द्वारा 'शिवाजी महान' कहे जाने वाले शिवाजी की 1680 में कुछ समय बीमार रहने के बाद अपनी राजधानी पहाड़ी दुर्ग राजगढ़ में 3 अप्रॅल को मृत्यु हो गई।  [[शिवाजी|.... और पढ़ें]]
 
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<center>'''[[जवाहरलाल नेहरू|भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू]]'''</center>
 
[[चित्र:Jawahar-Lal-Nehru.jpg|right|100px|border|जवाहरलाल नेहरू|link=जवाहरलाल नेहरू]]
 
*नेहरू जी का जन्म [[इलाहाबाद]] में [[14 नवम्बर]] 1889 ई॰ को हुआ।
 
*नेहरू जी [[पं॰ मोतीलाल नेहरू]] और [[स्वरूप रानी नेहरू|श्रीमती स्वरूप रानी]] के एकमात्र पुत्र थे।
 
*नेहरू जी शिक्षा के लिए [[इंग्लैण्ड]] के हैरो स्कूल के बाद वह केंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज गए, जहाँ उन्होंने तीन वर्ष तक अध्ययन करके प्रकृति विज्ञान में स्नातक उपाधि प्राप्त की।
 
*मार्च 1916 में नेहरू जी का विवाह कमला कौल के साथ हुआ, जो [[दिल्ली]] में बसे कश्मीरी परिवार की थीं।
 
*उनकी अकेली संतान '''इंदिरा प्रियदर्शिनी''' थीं, जो विवाहोपरांत [[इंदिरा गाँधी]], नाम से [[भारत]] की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनीं।
 
*1916 ई॰ के [[लखनऊ]] अधिवेशन में वे सर्वप्रथम [[महात्मा गाँधी]] के सम्पर्क में आये। गाँधी जी उनसे 20 साल बड़े थे। दोनों में से किसी ने भी आरंभ में एक-दूसरे को बहुत प्रभावित नहीं किया।
 
*1928 ई॰ में वे [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के महामंत्री बने और 1929 के लाहौर अधिवेशन के बाद नेहरू जी देश के बुद्धिजीवियों और युवाओं के नेता के रूप में उभरे।
 
*पंडित नेहरू एक महान राजनीतिज्ञ और प्रभावशाली वक्ता ही नहीं, ख्यातिलब्ध लेखक भी थे। उनकी आत्मकथा 1936 ई॰ में प्रकाशित हुई और संसार के सभी देशों में उसका आदर हुआ।
 
*27 मई, 1964 को दिल्ली में दिल का दौरा पड़ जाने के कारण नेहरू जी मृत्यु हुई।  [[जवाहरलाल नेहरू|.... और पढ़ें]]
 
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<center>'''[[महात्मा गाँधी|राष्ट्रपिता मोहन दास करमचंद गाँधी]]'''</center>
 
[[चित्र:Mahatma-Gandhi-1.jpg|right|100px|महात्मा गाँधी|border|link=महात्मा गाँधी]]
 
* महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्तूबर 1869 ई. को [[गुजरात]] के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ था।
 
* इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी था। मोहनदास की माता का नाम पुतलीबाई था जो करमचंद गांधी जी की चौथी पत्नी थीं।
 
* मोहनदास एक औसत विद्यार्थी थे। एक सत्रांत-परीक्षा में उनके परिणाम में अंग्रेज़ी में अच्छा, अंकगणित में ठीक-ठाक भूगोल में ख़राब, चाल-चलन बहुत अच्छा, लिखावट ख़राब की टिप्पणी की गई थी।
 
* गाँधी जी का संदेश बहुत सरल था। "अंग्रेज़ों की बंदूक़ों ने नहीं, बल्कि भारतवासियों की अपनी कमियों ने [[भारत]] को ग़ुलाम बनाया हुआ है"।
 
* महात्‍मा गाँधी ने भारतीय स्‍वतंत्रता के लिए 'असहयोग आंदोलन', 'सविनय अवज्ञा आंदोलन', 'दांडी यात्रा' तथा 'भारत छोड़ो आंदोलन' जैसे अभियान जारी रखे।
 
* गाँधी जी के अथक प्रयासों से अंत में [[भारत]] को 15 अगस्‍त 1947 को स्‍वतंत्रता मिली।
 
*30 जनवरी 1948 की शाम को एक युवा हिन्दू कट्टरपंथी नाथूराम गोड्से ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी।  [[महात्मा गाँधी|.... और पढ़ें]]
 
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<center>'''[[चंद्रशेखर वेंकट रामन]]'''</center>
 
[[चित्र:C.V Raman.jpg|right|100px|चंद्रशेखर वेंकट रामन|border|link=चंद्रशेखर वेंकट रामन]]
 
* चंद्रशेखर वेंकट रामन का जन्म तिरुचिरापल्ली शहर में 7 नवम्बर 1888 को हुआ था ।
 
* इनके पिता चंद्रशेखर अय्यर और माँ पार्वती अम्माल थीं।
 
* वेंकटरामन ब्रिटेन के प्रतिष्ठित कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की 'एम॰ आर॰ सी॰ लेबोरेट्रीज़ ऑफ़ म्यलूकुलर बायोलोजी' के स्ट्रकचरल स्टडीज़ विभाग के प्रमुख वैज्ञानिक थे।
 
* 'रामन प्रभाव' की खोज 28 फ़रवरी 1928 को हुई थी। इस महान खोज की याद में 28 फ़रवरी का दिन हम 'राष्ट्रीय विज्ञान दिवस' के रूप में मनाते हैं। इस महान खोज 'रामन प्रभाव' के लिये 1930 में श्री रामन को 'भौतिकी का नोबेल पुरस्कार' प्रदान किया गया और रामन भौतिक विज्ञान में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले एशिया के पहले व्यक्ति बने।
 
* डॉ.रामन का देश-विदेश की प्रख्यात वैज्ञानिक संस्थाओं ने सम्मान किया। [[भारत]] सरकार ने 'भारत रत्न' की सर्वोच्च उपाधि देकर सम्मानित किया।
 
* सोवियत रूस ने उन्हें 1958 में 'लेनिन पुरस्कार' प्रदान किया।
 
* 21 नवम्बर 1970 को 82 वर्ष की आयु में वैज्ञानिक डॉ. रामन की मृत्यु हुई।      [[चंद्रशेखर वेंकट रामन|.... और पढ़ें]]
 
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[[Category:एक व्यक्तित्व]]
 
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08:08, 23 मार्च 2018 के समय का अवतरण