"इंदिरा गाँधी" के अवतरणों में अंतर

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|अन्य जानकारी=इंदिरा गाँधी अपनी प्रतिभा और राजनीतिक दृढ़ता के लिए 'विश्व राजनीति' के इतिहास में जानी जाती हैं और इंदिरा गाँधी को 'लौह-महिला' के नाम से संबोधित किया जाता है। ये भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री थीं।
 
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'''इंदिरा गाँधी- भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री'''<br />
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'''इंदिरा प्रियदर्शनी गाँधी''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Indira Gandhi'', जन्म- [[19 नवम्बर]], [[1917]], [[इलाहाबाद]]; मृत्यु- [[31 अक्टूबर]], [[1984]], [[दिल्ली]]) न केवल भारतीय राजनीति पर छाई रहीं बल्कि विश्व राजनीति के क्षितिज पर भी वे एक प्रभाव छोड़ गईं। श्रीमती इंदिरा गाँधी का जन्म नेहरू ख़ानदान में हुआ था। इंदिरा गाँधी, [[भारत]] के प्रथम [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहरलाल नेहरू|पंडित जवाहरलाल नेहरू]] की इकलौती पुत्री थीं। आज इंदिरा गाँधी को सिर्फ़ इस कारण नहीं जाना जाता कि वह पंडित जवाहरलाल नेहरू की बेटी थीं बल्कि इंदिरा गाँधी अपनी प्रतिभा और राजनीतिक दृढ़ता के लिए 'विश्वराजनीति' के इतिहास में जानी जाती हैं और इंदिरा गाँधी को 'लौह-महिला' के नाम से संबोधित किया जाता है। ये भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री थीं।
 
जन्म-1917, मृत्यु-1984<br />
 
  
इन्दिरा गांधी ने न केवल [[भारत|भारतीय]] राजनीति को नये आयाम दिये बल्कि विश्व राजनीति के क्षितिज पर भी वे एक युग बनकर छाई रहीं। राष्ट्रप्रेम, राष्ट्र की अखण्डता, राजनीति और लोक कल्याण, आदि उन्हें अपने दादा [[पं. मोतीलाल नेहरू|पं मोतीलाल नेहरू]] और पिता [[जवाहरलाल नेहरू|पं जवाहर लाल नेहरू]] से विरासत में मिले थे। उन दिनों भारत ब्रिटिश दासता के चंगुल से मुक्त होने के लिए छटपटा रहा था।
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{{seealso|इंदिरा गाँधी का जीवन परिचय|इंदिरा गाँधी का प्रधानमंत्रित्व काल|इंदिरा गाँधी का विद्यार्थी जीवन|इंदिरा गाँधी का राजनीतिक जीवन}}
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
[[एशिया]] की इस लौह-महिला का जन्म 19 नवम्बर, 1917 को [[इलाहाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]] के एक सम्पन्न परिवार में हुआ। इनका पूरा नाम है- 'इन्दिरा प्रियदर्शनी गांधी'। वे राष्ट्रनायक तथा भारत के प्रथम पंधानमंत्री पं0 जवाहर नेहरू की इकलौती सन्तान थीं। उन्होंने [[पश्चिम बंगाल]] में विश्वभारती विश्वविद्यालय और [[इंग्लैंड]] की आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में शिक्षा प्राप्त की। 1942 में उनका विवाह [[फिरोज़ गाँधी]] से हुआ। उनके दो पुत्र हुए- [[राजीव गाँधी]] और [[संजय गाँधी]]। राजीव गांधी भी भारत के प्रधानमंत्री रहे हैं।
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इंदिरा जी का जन्म 19 नवम्बर, 1917 को [[इलाहाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]] के [[आनंद भवन]] में एक सम्पन्न [[परिवार]] में हुआ था। इनका पूरा नाम है- 'इंदिरा प्रियदर्शनी गाँधी'। इनके पिता का नाम जवाहरलाल नेहरू और दादा का नाम [[मोतीलाल नेहरू]] था। पिता एवं दादा दोनों वकालत के पेशे से संबंधित थे और देश की स्वाधीनता में इनका प्रबल योगदान था। इनकी माता का नाम [[कमला नेहरू]] था, जो [[दिल्ली]] के प्रतिष्ठित कौल परिवार की पुत्री थीं। इंदिरा जी का जन्म ऐसे परिवार में हुआ था, जो आर्थिक एवं बौद्धिक दोनों दृष्टि से काफ़ी संपन्न था। अत:  इन्हें आनंद भवन के रूप में महलनुमा आवास प्राप्त हुआ। इंदिरा जी का नाम इनके दादा पंडित मोतीलाल नेहरू ने रखा था। यह संस्कृतनिष्ठ शब्द है जिसका आशय है कांति, लक्ष्मी, एवं शोभा। इनके दादाजी को लगता था कि पौत्री के रूप में उन्हें माँ लक्ष्मी और दुर्गा की प्राप्ति हुई है। पंडित नेहरू ने अत्यंत प्रिय देखने के कारण अपनी पुत्री को प्रियदर्शिनी के नाम से संबोधित किया जाता था। चूंकि जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू स्वयं बेहद सुंदर तथा आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक थे, इस कारण सुंदरता के मामले में यह गुणसूत्र उन्हें अपने माता-पिता से प्राप्त हुए थे। इन्हें एक घरेलू नाम भी मिला जो इंदिरा का संक्षिप्त रूप 'इंदु' था।
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==योगदान==
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इंदिरा गांधी ने अपने बचपन से ही [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के कार्यों में योगदान आरंभ कर दिया था। आपके पैतृक निवास आनंद भवन का वातावरण राष्ट्रीय जीवन दर्शन और स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्रबिंदु था। आपने बचपन में ही बाल चरखा संघ की स्थापना की। 1930 में [[असहयोग आंदोलन]] के दौरान कांग्रेस पार्टी की सहायता करने के लिए बच्चों की एक वानरी सेना बनाई, जो पुलिस तथा अन्यान्य सरकारी गतिविधियों की सूचना कांग्रेस को देती रही। सन्‌ 1942 की [[अगस्त]] की महाक्रांति के आंदोलन में आपने जेलयात्रा की। भारत की आजादी के अवसर पर दिल्ली में जो भीषण '''हिंदू-मुस्लिम-दंगा''' हुआ, उसमें [[गांधी जी]] के निर्देशानुसार आपने सेवा और शांतिस्थापन का काम किया। देश की सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और समाजसेवी संस्थाओं से भी आपका निकट का संबंध रहा है, जिनमें से कुछ के नाम इस प्रकार है : अध्यक्ष, ट्रस्टीज बोर्ड, (1) कमला नेहरू मेमोरियल अस्पताल और (2) कस्तूरबा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट; संस्थापक ट्रस्टी और अध्यक्ष, बाल सहयोग, नई दिल्ली; अध्यक्ष, बाल भवन बोर्ड और बाल राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली; संस्थापक और अध्यक्ष, कमला नेहरू विद्यालय, इलाहाबाद; उपाध्यक्ष, केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड; आजीवन संरक्षक, भारतीय बाल कल्याण परिषद्; संरक्षक, नागरीप्रचारिणी सभा, [[काशी]]; उपाध्यक्ष, अंतरराष्ट्रीय बाल कल्याण परिषद्; मुख्य संरक्षक, इंडियन कौंसिल फॉर अफ्रीका ([[1960]]); पेट्रन, भारत में विदेशी छात्र संघ; सदस्य, कांग्रेस कार्यकारिणी समिति, केंद्रीय चुनाव समिति और केंद्रीय संसदीय बोर्ड; अध्यक्ष, अखिल भारतीय कोंग्रेस कमेटी की राष्ट्रीय एकता परिषद्; अध्यक्ष, अखिल भारतीय युवक कांग्रेस; अध्यक्ष, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1959-60); सदस्य, दिल्ली विश्वविद्यालय कोर्ट; [[यूनेस्को]] में भारतीय शिष्टमंडल ([[1960]]); यूनेस्को का कार्य कारिणी बोर्ड (1960-64); सदस्य, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् ([[1962]]); राष्ट्रीय सुरक्षा निधि की कार्यकारिणी समिति (1962); अध्यक्ष, केंद्रीय नागरिक परिषद् ([[1962]]); सदस्य, राष्ट्रीय एकता परिषद्, [[भारत सरकार]]; अध्यक्ष, [[संगीत नाटक अकादमी]] ([[1965]]) से आचार्य, विश्वभारती; चांसलर, [[जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय]]; अध्यक्ष, हिमालय पर्वतारोहण संस्था और दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा; पेट्रन, इंडियन सोसाइटी ऑव इंटरनैशनल ला; अध्यक्ष, नेहरू मेमोरियल संग्रहालय तथा लाइब्रेरी सोसाइटी; ट्रस्टी, गांधी स्मारक निधि; अध्यक्ष, स्वराज्य भवन ट्रस्ट; मदर्स एवार्ड, अमरीका ([[1953]]); कूटनीति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य के लिये इटली का इजावेला द-एस्ते एवार्ड और येल यूविर्सिटी, हालैंड मेमोरियल प्राइज प्राप्त किए।
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==उपाधियाँ==
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[[फ्रांस]] की जनमत संख्या द्वारा लिए गए अभिमत के अनुसार [[1967]] तथा [[1968]] लगातार दो वर्ष के लिए फ्रांसीसियों में सबसे अधिक विख्यात महिला, [[अमरीका]] में एक गेल्लप अभिमत सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष [[1971]] में विश्व का सबसे अधिक विख्यात व्यक्तित्व, 1971 में अर्जेंटीना सोसाइटी फार प्रोटेक्शन ऑव ऐनिमल्स द्वारा 1971 में डिप्लोमा ऑव आनर से विभूषित; आंध्र विश्वविद्यालय, आगरा विश्वविद्यालय, विक्रम विश्व विद्यालय, ब्यूनेस आयर्स के एलसैल्वाडोर विश्वविद्यालय, जापान के बासेटा विश्वविद्यालय, मास्को राज्य विश्वविद्यालय और [[ऑक्सफोर्ड|आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय]] से मानार्थ डाक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त हुई। सिटीज़न ऑव डिस्टिंक्शन, कोलंबिया विश्वविद्यालय; सदस्य, राज्य सभा (अगस्त [[1964]] से फरवरी, 1967)। [[1971]] में लोकसभा के लिये चुनी गई। सूचना और प्रसारण मंत्री, भारत सरकार, 1964-66; 1966 से भारत की प्रधान मंत्री-[[24 जनवरी]], [[1966]] को प्रथम बार, [[13 मार्च]], [[1967]] को दूसरी बार और [[18 मार्च]], [[1971]] को तीसरी बार शपथ ग्रहण; साथ ही, परमाणु ऊर्जा मंत्री; चेयरमैन, योजना आयोग; अध्यक्ष, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् तथा चेयरमैन, हिंदी समिति आदि के रूप में देश की महती सेवा की।
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==मुख्य बातें==
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श्रीमती इंदिरा गांधी के दादा स्वर्गीय [[पं. मोतीलाल नेहरू]] उस असेंबली भवन में उपस्थित थे जिसमें [[भगत सिंह|सरदार भगत सिंह]] और [[बटुकेश्वर दत्त]] ने देश की जनता की आवाज कान में तेल डाले बैठे ब्रिटिश अधिकारियों तक पहुँचाने के लिए बम फेंका था। [[पं. मोतीलाल नेहरू]] ने संभवत: वहीं से यह ठान लिया कि ऐसी निर्दयी और बेईमान सरकार से सहयोग करना महापाप है। सारे परिवार का जीवन देश को, राज्य को समर्पित हो गया। स्वर्गीय पं. मोतीलाल नेहरू, स्वर्गीय [[पं. जवाहरलाल नेहरू]], श्रीमती इंदिरा गांधी और अब हमारे युवा नेता श्री [[संजय गांधी]], सबका जीवन इसका साक्षी है। सारे संसार के लोकतंत्र के इतिहास में ऐसी बेमिसाल कुलपरंपरा देखने में नहीं आती जिसने किसी राष्ट्र के हृदय और मन पर इस गौरव एवं सहजता के साथ शासन किया हो और राष्ट्र ने भी अपनी पूरी हार्दिकता के साथ अपना प्रेम और अपनी श्रद्धा जिसके प्रति उड़ेल दी हो।
  
==वानर सेना का गठन==
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स्वर्गीय [[पं. जवाहरलाल नेहरू]] के प्रधान मंत्रित्वकाल में ही श्रीमती इंदिरा गांधी ने [[यूरोप]], [[एशिया]], [[अफ्रीका]] और [[अमरीका]] के विभिन्न देशों की अनेक यात्राएँ की थीं। इन यात्राओं में उन्हें अंतरराष्ट्रीय राजनीति की बारीकियों को गंभीरता से जानने समझने और उससे परिचित होने का पूरा मौका मिला था। राष्ट्रमंडलीय प्रधानमंत्री सम्मेलन के सिलसिले में [[ब्रिटेन]] की अनेक यात्राएँ, [[सोवियत संघ]] की यात्रा, [[चीन]] की यात्रा, [[पंचशील|पंचशील सिद्धांत]] के जनक बांडुंग संमेलन के लिये इंडोनेशिया की यात्रा आदि इन वैदेशिक यात्राओं में उल्लेखनीय हैं। अपने देश में भी श्रीमती इंदिरा गांधी को [[चीन]] के प्रधानमंत्री '''चाउ एन लाई''', [[रूस]] के प्रधानमंत्री बुल्गानिन और ख्राुश्चेव, अमरीकी राष्ट्रपति की पत्नी जैकलीन केनेडी, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो आदि विश्वप्रसिद्ध राजनीतिज्ञों का अतिथिसत्कार करने के अवसर मिले थे। इन सारे सुअवसरों ने श्रीमती गांधी को व्यावहारिक राजनीतिज्ञता में उसी समय परिपक्प कर दिया था जब वे नेपथ्य में थीं।
राजनेता और जनसाधारण, दोनों ही आज़ादी के आन्दोलनों में बराबर के भागीदार थे। नन्ही इन्दिरा के दिल पर इन सभी घटनाओं का अमिट प्रभाव पड़ा और 13 वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने 'वानर सेना' का गठन कर अपने इरादों को स्पष्ट कर दिया।
 
==कार्यकारी समिति की सदस्य==
 
1955 से वह सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी की कार्यकारी समिति की सदस्य रहीं और 1959 में पार्टी की अध्यक्ष चुनी गईं। नेहरू के बाद 1964 में प्रधानमंत्री बने लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें अपनी सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री बनाया।
 
  
==प्रथम महिला प्रधानमंत्री==
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सन्‌ 1956 में इंदिरा जी के सामने [[कांग्रेस]] की अध्यक्षता का प्रस्ताव आया। इससे पहले वे [[कांग्रेस]] की कार्यकारिणी की सदस्य रह चुकी थीं। खूब सोच विचार कर और अपनी शक्ति को तौल परखकर उन्होंने अध्यक्ष पद स्वीकार कर लिया। प्रगतिशील कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में इंदिरा जी अत्यंत सफल सिद्ध हुई। कांग्रेसी मठाधीशों के स्थान पर योग्य युवकों को, जब भी अवसर मिलता, लाने में वे कभी हिचके नहीं। उनकी कार्यशक्ति, सामर्थ्य, ओज और निष्ठा देखकर उनके पिता जी को भी कहना पड़ा था---इंदिरा पहले मेरी मित्र और सलाहकार थी, बाद में मेरी साथी बनी और अब तो वह मेरी नेता भी है।
इन्दिरा गांधी लगातार तीन बार (1966-77) और फिर चौथी बार (1980-84) भारत की प्रधानमंत्री बनी।
 
*भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री श्री [[लालबहादुर शास्त्री]] की मृत्यु के बाद श्रीमती इन्दिरा गांधी भारत की तृतीय और प्रथम महिला प्रधानमंत्री निर्वाचित हुई।
 
*1967 के चुनाव में वह बहुत ही कम बहुमत से जीत सकीं।
 
*1971 में पुनः भारी बहुमत से वे प्रधामंत्री बनी और 1977 तक निरन्तर इस गौरवशाली पद पर रहते हुए उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को एक नयी शक्ति के रूप में स्थापित किया।
 
*1977 के बाद ये 1980 में एक बार फिर प्रधानमंत्री बनी और 1984 तक प्रधानमंत्री के पद पर रही।
 
जनवरी 1966 में शास्त्रीजी की अचानक मृत्यु के बाद श्रीमती गांधी पार्टी की दक्षिण और वाम शाखाओं के बीच सुलह के तौर पर कांग्रेस पार्टी की नेता (और इस तरह प्रधानमंत्री भी) बन गईं, लेकिन उनके नेतृत्व को भूतपूर्व वित्त मंत्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व में पार्टी की दक्षिण शाखा से लगातार चुनौती मिलती रही। 1967 के चुनाव में वह बहुत ही कम बहुमत से जीत सकीं और उन्हें देसाई को उप-प्रधानमंत्री स्वीकार करना पड़ा। लेकिन 1971 में उन्होंने रूढ़िवादी पार्टियों के गठबंधन को भारी बहुमत से पराजित किया।
 
==बांग्लादेश का निर्माण==
 
श्रीमती गांधी ने 1971 के उत्तरार्द्ध में पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) द्वारा [[पाकिस्तान]] से अलग होने के संघर्ष का ज़ोरदार समर्थन किया और भारत की सशस्त्र सेनाओं ने पाकिस्तान पर त्वरित और निर्णायक जीत हासिल की। जिसके फलस्वरूप [[बांग्लादेश]] का निर्माण हुआ।
 
==आपातकाल==
 
मार्च 1972 में पाकिस्तान पर भारत की जीत के बाद श्रीमती गाँधी ने राष्ट्रीय चुनावों मे अपनी नई कांग्रेस पार्टी की ज़ोरदार जीत का नेतृत्व किया। कुछ ही समय बाद उनके पराजित समाजवादी प्रतिद्वन्दी ने उन पर चुनाव नियमों के उल्लघंन का आरोप लगाया। जून 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उनके ख़िलाफ़ फ़ैसला सुनाया। जिससे उनकी [[संसद]] की सदस्यता समाप्त हो जाती और उन्हें छः वर्ष के लिए राजनीति से अलग रहना पड़ता। प्रतिक्रियास्वरूप उन्होंने समूचे भारत में आपातकाल की घोषणा कर दी। अपने राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वियों को गिरफ़्तार करवा लिया और आपातकालीन शक्तियाँ हासिल करके व्यक्तिगत स्वतंत्रता सीमित करने सम्बन्धी कई क़ानून बनाए। इस काल में उन्होंने कई अलोकप्रिय नीतियाँ लागू कीं, जिनमें बड़े पैमाने पर नसबंदी (जन्म नियंत्रण का एक उपाय) कार्यक्रम भी शामिल था। जब लम्बे समय तक स्थगित राष्ट्रीय चुनाव 1977 में हुए तो, श्रीमती गांधी और उनकी पार्टी की करारी हार हुई, जिसके बाद उन्हें पद छोड़ना पड़ा। जनता पार्टी ने सरकार की बागडोर सम्भाली।
 
  
==कांग्रेस—इ पार्टी की स्थापना==
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कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में श्रीमती इंदिरा गांधी की अपने पिता प्रधानमंत्री [[पं. जवाहरलाल नेहरू]] से टक्कर भी हुई। प्रश्न [[केरल]] की बिगड़ती हुई राजनीतिक स्थिति का था। इंदिरा जी की राय थी कि [[केरल]] की इस स्थिति का सुधारने के लिए वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू कर देना चाहिए। सरकार ने ऐसा कदम पहले कभी उठाया नहीं था, इसलिए नेहरू जी द्विविधा में थे। पर परिस्थिति को जाँच परखकर अंतत: उन्हें इंदिरा जी की बात माननी पड़ी और केरल में देश का सबसे पहला राष्ट्रपति शासन लागू हुआ। कुछ ऐसी ही हालत [[उड़ीसा]] में भी थी। वे दिन दूर नहीं थे जब [[उड़ीसा]] के शासन से [[कांग्रेस]] को निकाल बाहर किया जाता और वहाँ हाय तोबा मच जाती। [[उड़ीसा]] जाकर वहाँ की परिस्थिति का अध्ययन करके इंदिरा जी ने वहाँ के नेताओं को सलाह दी कि कांग्रेस को तत्काल वहाँ की गणतंत्र परिषद् के साथ मिली जुली सरकार बना लेनी चाहिए। यह समयोचित परामर्श भी मान लिया गया और [[उड़ीसा]] का आसन्न संकट टल गया। मात्र ये दो घटनाएँ उनकी सूझबुझ और त्वरित-निर्णय-बुद्धि का परिचय देने के लिये आशा है, पर्याप्त होंगी।
1978 के आरम्भ में श्रीमती गांधी के समर्थक कांग्रेस पार्टी से अलग हो गए और कांग्रेस—इ (इ से इंदिरा) पार्टी की स्थापना की। सरकारी भ्रष्टाचार के आरोप में श्रीमती गांधी कुछ तक जेल (अक्टूबर 1977 और दिसम्बर 1978) में रहीं। इन झटकों के बावजूद नवम्बर 1978 में वह नई संसदीय सीट से चुनाव जीतने में कामयाब रहीं और उनकी कांग्रेस—इ पार्टी धीरे-धीरे फिर से मज़बूत होने लगी। सत्तारूढ़ जनता पार्टी में अंतर्कलह के कारण अगस्त 1979 में सरकार गिर गई। जब जनवरी 1980 में [[लोकसभा]] (संसद का निचला सदन) के लिए चुनाव हुए तो श्रीमती गांधी और उनकी पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में लौट आई। उनके प्रमुख राजनीतिक सलाहकार, उनके पुत्र संजय गांधी भी लोकसभा की सीट पर विजयी रहे। इंदिरा और उनके पुत्र के ख़िलाफ़ चल रहे सभी क़ानूनी मुक़दमे वापस ले लिए गए।
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==देश का विभाजन==
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[[चित्र:Indira-Gandhi-2.jpg|thumb|250px|left|इंदिरा गाँधी स्टाम्प]]
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उस समय देश विभाजन के किनारे पर था। [[मुहम्मद अली जिन्ना|जिन्ना]] के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की माँग की थी और अंग्रेज़ भी जिन्ना की माँग को स्पष्ट हवा दे रहे थे लेकिन गाँधीजी विभाजन के पक्ष में नहीं थे। लॉर्ड माउंटबेटन कूटनीति का खेल खेलने में लगे हुए थे। वह एक ओर महात्मा गाँधी को आश्वस्त कर रहे थे कि देश का विभाजन नहीं होगा तो दूसरी ओर पंडित नेहरू से कह रहे थे कि दो राष्ट्रों के विभाजन के फॉर्मूले पर ही आज़ादी प्रदान की जाएगी। पंडित नेहरू स्थिति की गंभीरता को समझ रहे थे जबकि महात्मा गाँधी इस भ्रम में थे कि अंग्रेज़ वायसराय विभाजन नहीं चाहता है। जिन्ना की अनुचित माँग के कारण हिन्दू और मुसलमानों में वैमनस्य पसर गया था। महत्त्वाकांक्षी जिन्ना पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने के लिए बहुत लालायित थे। महात्मा गाँधी ने जिन्ना को संपूर्ण और अखंड भारत का प्रधानमंत्री बनाने का आश्वासन दिया। लेकिन जिन्ना यह जानते थे कि पंडित नेहरू के कारण यह संभव नहीं है। हिन्दू किसी भी मुस्लिम को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे। ऐसे में देश सांप्रदायिक दंगों की आग में झुलसने लगा था। महात्मा गाँधी किसी तरह दंगों की आग शांत करना चाहते थे। दिल्ली में भी कई स्थानों पर इंसानियत शर्मसार हो रही थी। तब महात्मा गाँधी ने इंदिरा जी को यह मुहिम सौंपी कि वह दंगाग्रस्त क्षेत्रों में जाकर लोगों को समझाएँ और अमन लौटाने में मदद करें।
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====दंगाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा====
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इंदिरा गाँधी ने फिर [[महात्मा गाँधी]] के आदेश को शिरोधार्य किया और दंगाग्रस्त क्षेत्रों में दोनों समुदायों के लोगों को समझाने का प्रयास करने लगीं। वस्तुतः यह अत्यंत जोखिम कार्य था। पंडित नेहरू की बेटी होने के कारण अतिवादी उन्हें नुक़सान पहुँचा सकते थे परंतु निर्भिक इंदिरा ने दंगों की आग शांत करने के लिए पुरज़ोर प्रयास किए। लेकिन [[15 अगस्त]] के बाद सांप्रदायिकता अपने चरम पर पहुँच गई। दंगों में दोनों समुदायों के अनगिनत लोग मौत के घाट उतार दिए गए। [[पाकिस्तान]] से लाखों शरणार्थी [[दिल्ली]] आ गए थे। शरणार्थियों के पुनर्वास का सवाल भी उत्पन्न हो गया था। उन भूखे-प्यासे घर से भागे लोगों के लिए प्राथमिक आवश्यकताएँ भी ज़रूरी थीं। ऐसी स्थिति में दिल्ली के कई स्थानों पर शरणार्थी एवं दंगा पीड़ित शिविर लगाए गए थे। पंडित नेहरू ने 17, पार्क रोड के अपने बंगले पर भी शरणार्थी शिविर लगाए। शरणार्थियों के जीवन की बुनियादी सुविधाओं का ध्यान रखा जा रहा था। उस समय महात्मा गाँधी [[पश्चिम बंगाल]] के नोआख़ाली ज़िले में जहाँ मुस्लिमों की कई बस्तियों को जला दिया गया था। पाकिस्तान से आने वाली ट्रेनों में हज़ारों हिन्दुओं की लाशें भी आ रही थीं। इस कारण हिन्दू आक्रोशित होकर मुसलमानों पर हमला कर रहे थे।
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====घर में शरणार्थी शिविर====
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[[जवाहरलाल नेहरू|पंडित जवाहरलाल नेहरू]] के बंगले में जो शरणार्थी शिविर लगाए गए थे, उनकी देखरेख इंदिरा गाँधी ही कर रही थीं। सभी कमरे ख़ाली करके शरणार्थियों को उनमें ठहरा दिया गया था और प्रांगण आदि में भी तम्बू इत्यादि लगा दिए थे ताकि अधिकाधिक शरणार्थियों को वहाँ रखा जा सके। यहाँ की सभी व्यवस्था इंदिरा गाँधी द्वारा देखी जा रही थी। अंतरिम सरकार के गठन के साथ पंडित नेहरू [[कार्यवाहक प्रधानमंत्री]] बना दिए थे। [[26 जनवरी]], [[1950]] को [[भारत का संविधान]] भी लागू हो गया। भारत एक गणतांत्रिक देश बना और प्रधानमंत्री नेहरू की सक्रियता काफ़ी अधिक बढ़ गई। इस समय नेहरूजी का निवास त्रिमूर्ति भवन ही था। समय-समय पर विभिन्न देशों के आगंतुक त्रिमूर्ति भवन में ही नेहरूजी के पास आते थे। उनके स्वागत के सभी इंतज़ाम इंदिरा गाँधी द्वारा किए जाते थे। साथ ही साथ उम्रदराज़ हो रहे पिता की आवश्यकताओं को भी इंदिरा देखती थीं।
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[[चित्र:Radhakrishnan-Indira-Gandhi-Kamaraj.jpg|thumb|right|250px|[[सर्वपल्ली राधाकृष्णन|डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन]], इंदिरा गाँधी एवं [[कुमारास्वामी कामराज]]]]
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====कांग्रेस पार्टी की सरकार====
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अभी तीन वर्ष भी पूर्ण नहीं हुए थे कि जनता पार्टी में दरारें पड़ गईं और देश को मध्यावधि चुनाव का भार झेलना पड़ा। इंदिरा गाँधी ने देश में घूम-घूमकर चुनाव प्रचार के दौरान आपातकाल के लिए शर्मिंदगी का इजहार किया और काम करने वाली सुदृढ़ सरकार का नारा दिया। लोगों को यह नारा काफ़ी पसंद आया और चुनाव के बाद नतीजों ने यह प्रमाणित भी कर दिया। इंदिरा कांग्रेस को 592 में से 353 सीटें प्राप्त हुईं और स्पष्ट बहुमत के कारण केंद्र में इनकी सरकार बनी। इंदिरा गाँधी पुनः प्रधानमंत्री बन गईं। इस प्रकार 34 महीनों के बाद वह सत्ता पर दोबारा क़ाबिज हुईं। जनता पार्टी ने 1977 में सत्ता में आने के बाद कई राज्यों की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर दिया था। उस समय उसने यह तर्क दिया कि जनता का रुझान जनता पार्टी के साथ है, अतः नए चुनाव होने चाहिए। इंदिरा गाँधी ने सत्ता में आने के बाद जनता पार्टी द्वारा आरंभ की गई परिपाटी पर चलकर उन प्रदेशों की सरकारों को बर्खास्त कर दिया जहाँ जनता पार्टी तथा विपक्ष का शासन था। बाद में हुए इन राज्यों के चुनावों में कांग्रेस ने अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। 22 राज्यों में से 15 राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकार बन गई। यह चुनाव जून 1980 में संपन्न हुए थे।
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==मृत्यु==
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[[स्वर्ण मन्दिर]] पर हमले के प्रतिकार में पाँच महीने के बाद ही [[31 अक्टूबर]] [[1984]] को श्रीमती गाँधी के आवास पर तैनात उनके दो [[सिक्ख]] अंगरक्षकों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। [[भारत]] के जितने भी [[प्रधानमंत्री]] हुए हैं, उन सभी की अनेक विशेषताएँ हो सकती हैं, लेकिन इंदिरा गाँधी के रूप में जो प्रधानमंत्री भारत भूमि को प्राप्त हुआ, वैसा प्रधानमंत्री अभी तक दूसरा नहीं हुआ है क्योंकि एक प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने विभिन्न चुनौतियों का मुक़ाबला करने में सफलता प्राप्त की। युद्ध हो, विपक्ष की ग़लतियाँ हों, कूटनीति का अंतर्राष्ट्रीय मैदान हो अथवा देश की कोई समस्या हो- इंदिरा गाँधी ने अक्सर स्वयं को सफल साबित किया। इंदिरा गाँधी, नेहरू के द्वारा शुरू की गई औद्योगिक विकास की अर्द्ध समाजवादी नीतियों पर क़ायम रहीं। उन्होंने सोवियत संघ के साथ नज़दीकी सम्बन्ध क़ायम किए और पाकिस्तान-भारत विवाद के दौरान समर्थन के लिए उसी पर आश्रित रहीं। जिन्होंने इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल को देखा है, वे लोग यह मानते हैं कि इंदिरा गाँधी में अपार साहस, निर्णय शक्ति और धैर्य था।
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==उपलब्धियाँ==
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*बैंकों का राष्ट्रीयकरण
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*बाँग्ला देश को स्वतंत्र कराना
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*निर्धन लोगों के उत्थान के लिए आयोजित 20 सूत्रीय कार्यक्रम
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*गुट निरपेक्ष आन्दोलन की अध्यक्षा
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*प्रीवीपर्स समाप्ति 
  
==ऑपरेशन ब्लू स्टार और हत्या==
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<div align="center">'''[[इंदिरा गाँधी का जीवन परिचय|आगे जाएँ »]]'''</div>
जून 1980 में एक वायुयान दुर्घटना में संजय गांधी की मृत्यु ने भारत के राजनीतिक नेतृत्व के लिए इंदिरा गांधी के चुने हुए उत्तराधिकारी को समाप्त कर दिया। संजय की मृत्यु के बाद इंदिरा ने अपने दूसरे पुत्र राजीव गांधी को पार्टी के नेतृत्व के लिए तैयार किया। 1980 के दशक के आरम्भ में इंदिरा गांधी को भारत की राजनीतिक अखंडता के ख़तरों से झूझना पड़ा। कई राज्य केन्द्र सरकार से अधिक स्वतंत्रता की माँग करने लगे तथा [[पंजाब]] में सिक्ख आतंकवादियों ने स्वायत्त राज्य की माँग पर ज़ोर देने के लिए हिंसा का रास्ता अपना लिया। जवाब में श्रीमती गांधी ने जून 1984 में सिक्खों के पवित्रतम धर्मस्थल [[अमृतसर]] के [[स्वर्ण मन्दिर]] पर सेना के हमले के आदेश दिए, जिसके फलस्वरूप 450 से अधिक सिक्खों की मृत्यु हो गई। स्वर्ण मन्दिर पर हमले के प्रतिकार में पाँच महीने के बाद ही श्रीमती गांधी के आवास पर तैनात उनके दो सिक्ख अंगरक्षकों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।  श्रीमती गांधी के द्वारा शुरू की गई औद्योगिक विकास की अर्द्ध समाजवादी नीतियों पर क़ायम रहीं। उन्होंने सोवियत संघ के साथ नज़दीकी सम्बन्ध क़ायम किए और पाकिस्तान—भारत विवाद के दौरान समर्थन के लिए उसी पर आश्रित रहीं।
 
  
==उपलब्धियाँ==
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{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक3|पूर्णता=|शोध=}}
करोड़ों लोगों की प्रिय प्रधानमंत्री का जीवन-इतिहास उपलब्धियों से भरा पड़ा है। जिनमें प्रमुख हैं—
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
#बैंकों का राष्ट्रीयकरण,
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<references/>
#निर्धन लोगों के उत्थान के लिए आयोजित 20 सूत्रीय कार्यक्रम,
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==बाहरी कड़ियाँ==
#गुट निरपेक्ष आन्दोलन की अध्यक्षा, इत्यादि।
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*[http://purvanchalnews.com/index.php?option=com_content&view=article&id=47:2010-01-01-11-56-48&catid=1:2010-01-02-10-56-47&Itemid=78 इंदिरा गाँधी के दो चेहरे]
*1980 में वे विपक्षी दलों को करारी पराजय देकन पुनः प्रधानमंत्री चुनी गईं।
 
==निधन==
 
31 अक्टूबर, 1984 की मनहूस सुबह को उन्हीं के अंगरक्षकों ने गोलियों से उन्हें शहादत की बलिवेदी पर चढ़ा दिया।
 
 
 
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इंदिरा गाँधी विषय सूची
इंदिरा गाँधी
Indira-Gandhi.jpg
पूरा नाम इंदिरा प्रियदर्शनी गाँधी
अन्य नाम इन्दु
जन्म 19 नवम्बर, 1917
जन्म भूमि इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 31 अक्टूबर, 1984
मृत्यु स्थान दिल्ली
मृत्यु कारण हत्या
अभिभावक जवाहरलाल नेहरू, कमला नेहरू
पति/पत्नी फ़ीरोज़ गाँधी
संतान राजीव गाँधी और संजय गाँधी
स्मारक शक्ति स्थल, दिल्ली
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि 1971 के भारत -पाकिस्तान युद्ध में भारत की विजय
पार्टी काँग्रेस
पद भारत की तृतीय प्रधानमंत्री
कार्य काल 19 जनवरी, 1966 से 24 मार्च, 1977, 14 जनवरी, 1980 से 31 अक्टूबर, 1984
विद्यालय विश्वभारती विश्वविद्यालय बंगाल, इंग्लैंड की ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी, शांति निकेतन
भाषा हिन्दी, अंग्रेज़ी
जेल यात्रा अक्टूबर, 1977 और दिसम्बर, 1978
पुरस्कार-उपाधि भारत रत्न सम्मान
विशेष योगदान बैंकों का राष्ट्रीयकरण
अन्य जानकारी इंदिरा गाँधी अपनी प्रतिभा और राजनीतिक दृढ़ता के लिए 'विश्व राजनीति' के इतिहास में जानी जाती हैं और इंदिरा गाँधी को 'लौह-महिला' के नाम से संबोधित किया जाता है। ये भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री थीं।

इंदिरा प्रियदर्शनी गाँधी (अंग्रेज़ी:Indira Gandhi, जन्म- 19 नवम्बर, 1917, इलाहाबाद; मृत्यु- 31 अक्टूबर, 1984, दिल्ली) न केवल भारतीय राजनीति पर छाई रहीं बल्कि विश्व राजनीति के क्षितिज पर भी वे एक प्रभाव छोड़ गईं। श्रीमती इंदिरा गाँधी का जन्म नेहरू ख़ानदान में हुआ था। इंदिरा गाँधी, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की इकलौती पुत्री थीं। आज इंदिरा गाँधी को सिर्फ़ इस कारण नहीं जाना जाता कि वह पंडित जवाहरलाल नेहरू की बेटी थीं बल्कि इंदिरा गाँधी अपनी प्रतिभा और राजनीतिक दृढ़ता के लिए 'विश्वराजनीति' के इतिहास में जानी जाती हैं और इंदिरा गाँधी को 'लौह-महिला' के नाम से संबोधित किया जाता है। ये भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री थीं।

इन्हें भी देखें: इंदिरा गाँधी का जीवन परिचय, इंदिरा गाँधी का प्रधानमंत्रित्व काल, इंदिरा गाँधी का विद्यार्थी जीवन एवं इंदिरा गाँधी का राजनीतिक जीवन

जीवन परिचय

इंदिरा जी का जन्म 19 नवम्बर, 1917 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश के आनंद भवन में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। इनका पूरा नाम है- 'इंदिरा प्रियदर्शनी गाँधी'। इनके पिता का नाम जवाहरलाल नेहरू और दादा का नाम मोतीलाल नेहरू था। पिता एवं दादा दोनों वकालत के पेशे से संबंधित थे और देश की स्वाधीनता में इनका प्रबल योगदान था। इनकी माता का नाम कमला नेहरू था, जो दिल्ली के प्रतिष्ठित कौल परिवार की पुत्री थीं। इंदिरा जी का जन्म ऐसे परिवार में हुआ था, जो आर्थिक एवं बौद्धिक दोनों दृष्टि से काफ़ी संपन्न था। अत: इन्हें आनंद भवन के रूप में महलनुमा आवास प्राप्त हुआ। इंदिरा जी का नाम इनके दादा पंडित मोतीलाल नेहरू ने रखा था। यह संस्कृतनिष्ठ शब्द है जिसका आशय है कांति, लक्ष्मी, एवं शोभा। इनके दादाजी को लगता था कि पौत्री के रूप में उन्हें माँ लक्ष्मी और दुर्गा की प्राप्ति हुई है। पंडित नेहरू ने अत्यंत प्रिय देखने के कारण अपनी पुत्री को प्रियदर्शिनी के नाम से संबोधित किया जाता था। चूंकि जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू स्वयं बेहद सुंदर तथा आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक थे, इस कारण सुंदरता के मामले में यह गुणसूत्र उन्हें अपने माता-पिता से प्राप्त हुए थे। इन्हें एक घरेलू नाम भी मिला जो इंदिरा का संक्षिप्त रूप 'इंदु' था।

योगदान

इंदिरा गांधी ने अपने बचपन से ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यों में योगदान आरंभ कर दिया था। आपके पैतृक निवास आनंद भवन का वातावरण राष्ट्रीय जीवन दर्शन और स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्रबिंदु था। आपने बचपन में ही बाल चरखा संघ की स्थापना की। 1930 में असहयोग आंदोलन के दौरान कांग्रेस पार्टी की सहायता करने के लिए बच्चों की एक वानरी सेना बनाई, जो पुलिस तथा अन्यान्य सरकारी गतिविधियों की सूचना कांग्रेस को देती रही। सन्‌ 1942 की अगस्त की महाक्रांति के आंदोलन में आपने जेलयात्रा की। भारत की आजादी के अवसर पर दिल्ली में जो भीषण हिंदू-मुस्लिम-दंगा हुआ, उसमें गांधी जी के निर्देशानुसार आपने सेवा और शांतिस्थापन का काम किया। देश की सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और समाजसेवी संस्थाओं से भी आपका निकट का संबंध रहा है, जिनमें से कुछ के नाम इस प्रकार है : अध्यक्ष, ट्रस्टीज बोर्ड, (1) कमला नेहरू मेमोरियल अस्पताल और (2) कस्तूरबा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट; संस्थापक ट्रस्टी और अध्यक्ष, बाल सहयोग, नई दिल्ली; अध्यक्ष, बाल भवन बोर्ड और बाल राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली; संस्थापक और अध्यक्ष, कमला नेहरू विद्यालय, इलाहाबाद; उपाध्यक्ष, केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड; आजीवन संरक्षक, भारतीय बाल कल्याण परिषद्; संरक्षक, नागरीप्रचारिणी सभा, काशी; उपाध्यक्ष, अंतरराष्ट्रीय बाल कल्याण परिषद्; मुख्य संरक्षक, इंडियन कौंसिल फॉर अफ्रीका (1960); पेट्रन, भारत में विदेशी छात्र संघ; सदस्य, कांग्रेस कार्यकारिणी समिति, केंद्रीय चुनाव समिति और केंद्रीय संसदीय बोर्ड; अध्यक्ष, अखिल भारतीय कोंग्रेस कमेटी की राष्ट्रीय एकता परिषद्; अध्यक्ष, अखिल भारतीय युवक कांग्रेस; अध्यक्ष, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1959-60); सदस्य, दिल्ली विश्वविद्यालय कोर्ट; यूनेस्को में भारतीय शिष्टमंडल (1960); यूनेस्को का कार्य कारिणी बोर्ड (1960-64); सदस्य, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् (1962); राष्ट्रीय सुरक्षा निधि की कार्यकारिणी समिति (1962); अध्यक्ष, केंद्रीय नागरिक परिषद् (1962); सदस्य, राष्ट्रीय एकता परिषद्, भारत सरकार; अध्यक्ष, संगीत नाटक अकादमी (1965) से आचार्य, विश्वभारती; चांसलर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय; अध्यक्ष, हिमालय पर्वतारोहण संस्था और दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा; पेट्रन, इंडियन सोसाइटी ऑव इंटरनैशनल ला; अध्यक्ष, नेहरू मेमोरियल संग्रहालय तथा लाइब्रेरी सोसाइटी; ट्रस्टी, गांधी स्मारक निधि; अध्यक्ष, स्वराज्य भवन ट्रस्ट; मदर्स एवार्ड, अमरीका (1953); कूटनीति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य के लिये इटली का इजावेला द-एस्ते एवार्ड और येल यूविर्सिटी, हालैंड मेमोरियल प्राइज प्राप्त किए।

उपाधियाँ

फ्रांस की जनमत संख्या द्वारा लिए गए अभिमत के अनुसार 1967 तथा 1968 लगातार दो वर्ष के लिए फ्रांसीसियों में सबसे अधिक विख्यात महिला, अमरीका में एक गेल्लप अभिमत सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 1971 में विश्व का सबसे अधिक विख्यात व्यक्तित्व, 1971 में अर्जेंटीना सोसाइटी फार प्रोटेक्शन ऑव ऐनिमल्स द्वारा 1971 में डिप्लोमा ऑव आनर से विभूषित; आंध्र विश्वविद्यालय, आगरा विश्वविद्यालय, विक्रम विश्व विद्यालय, ब्यूनेस आयर्स के एलसैल्वाडोर विश्वविद्यालय, जापान के बासेटा विश्वविद्यालय, मास्को राज्य विश्वविद्यालय और आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से मानार्थ डाक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त हुई। सिटीज़न ऑव डिस्टिंक्शन, कोलंबिया विश्वविद्यालय; सदस्य, राज्य सभा (अगस्त 1964 से फरवरी, 1967)। 1971 में लोकसभा के लिये चुनी गई। सूचना और प्रसारण मंत्री, भारत सरकार, 1964-66; 1966 से भारत की प्रधान मंत्री-24 जनवरी, 1966 को प्रथम बार, 13 मार्च, 1967 को दूसरी बार और 18 मार्च, 1971 को तीसरी बार शपथ ग्रहण; साथ ही, परमाणु ऊर्जा मंत्री; चेयरमैन, योजना आयोग; अध्यक्ष, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् तथा चेयरमैन, हिंदी समिति आदि के रूप में देश की महती सेवा की।

मुख्य बातें

श्रीमती इंदिरा गांधी के दादा स्वर्गीय पं. मोतीलाल नेहरू उस असेंबली भवन में उपस्थित थे जिसमें सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने देश की जनता की आवाज कान में तेल डाले बैठे ब्रिटिश अधिकारियों तक पहुँचाने के लिए बम फेंका था। पं. मोतीलाल नेहरू ने संभवत: वहीं से यह ठान लिया कि ऐसी निर्दयी और बेईमान सरकार से सहयोग करना महापाप है। सारे परिवार का जीवन देश को, राज्य को समर्पित हो गया। स्वर्गीय पं. मोतीलाल नेहरू, स्वर्गीय पं. जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी और अब हमारे युवा नेता श्री संजय गांधी, सबका जीवन इसका साक्षी है। सारे संसार के लोकतंत्र के इतिहास में ऐसी बेमिसाल कुलपरंपरा देखने में नहीं आती जिसने किसी राष्ट्र के हृदय और मन पर इस गौरव एवं सहजता के साथ शासन किया हो और राष्ट्र ने भी अपनी पूरी हार्दिकता के साथ अपना प्रेम और अपनी श्रद्धा जिसके प्रति उड़ेल दी हो।

स्वर्गीय पं. जवाहरलाल नेहरू के प्रधान मंत्रित्वकाल में ही श्रीमती इंदिरा गांधी ने यूरोप, एशिया, अफ्रीका और अमरीका के विभिन्न देशों की अनेक यात्राएँ की थीं। इन यात्राओं में उन्हें अंतरराष्ट्रीय राजनीति की बारीकियों को गंभीरता से जानने समझने और उससे परिचित होने का पूरा मौका मिला था। राष्ट्रमंडलीय प्रधानमंत्री सम्मेलन के सिलसिले में ब्रिटेन की अनेक यात्राएँ, सोवियत संघ की यात्रा, चीन की यात्रा, पंचशील सिद्धांत के जनक बांडुंग संमेलन के लिये इंडोनेशिया की यात्रा आदि इन वैदेशिक यात्राओं में उल्लेखनीय हैं। अपने देश में भी श्रीमती इंदिरा गांधी को चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन लाई, रूस के प्रधानमंत्री बुल्गानिन और ख्राुश्चेव, अमरीकी राष्ट्रपति की पत्नी जैकलीन केनेडी, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो आदि विश्वप्रसिद्ध राजनीतिज्ञों का अतिथिसत्कार करने के अवसर मिले थे। इन सारे सुअवसरों ने श्रीमती गांधी को व्यावहारिक राजनीतिज्ञता में उसी समय परिपक्प कर दिया था जब वे नेपथ्य में थीं।

सन्‌ 1956 में इंदिरा जी के सामने कांग्रेस की अध्यक्षता का प्रस्ताव आया। इससे पहले वे कांग्रेस की कार्यकारिणी की सदस्य रह चुकी थीं। खूब सोच विचार कर और अपनी शक्ति को तौल परखकर उन्होंने अध्यक्ष पद स्वीकार कर लिया। प्रगतिशील कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में इंदिरा जी अत्यंत सफल सिद्ध हुई। कांग्रेसी मठाधीशों के स्थान पर योग्य युवकों को, जब भी अवसर मिलता, लाने में वे कभी हिचके नहीं। उनकी कार्यशक्ति, सामर्थ्य, ओज और निष्ठा देखकर उनके पिता जी को भी कहना पड़ा था---इंदिरा पहले मेरी मित्र और सलाहकार थी, बाद में मेरी साथी बनी और अब तो वह मेरी नेता भी है।

कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में श्रीमती इंदिरा गांधी की अपने पिता प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू से टक्कर भी हुई। प्रश्न केरल की बिगड़ती हुई राजनीतिक स्थिति का था। इंदिरा जी की राय थी कि केरल की इस स्थिति का सुधारने के लिए वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू कर देना चाहिए। सरकार ने ऐसा कदम पहले कभी उठाया नहीं था, इसलिए नेहरू जी द्विविधा में थे। पर परिस्थिति को जाँच परखकर अंतत: उन्हें इंदिरा जी की बात माननी पड़ी और केरल में देश का सबसे पहला राष्ट्रपति शासन लागू हुआ। कुछ ऐसी ही हालत उड़ीसा में भी थी। वे दिन दूर नहीं थे जब उड़ीसा के शासन से कांग्रेस को निकाल बाहर किया जाता और वहाँ हाय तोबा मच जाती। उड़ीसा जाकर वहाँ की परिस्थिति का अध्ययन करके इंदिरा जी ने वहाँ के नेताओं को सलाह दी कि कांग्रेस को तत्काल वहाँ की गणतंत्र परिषद् के साथ मिली जुली सरकार बना लेनी चाहिए। यह समयोचित परामर्श भी मान लिया गया और उड़ीसा का आसन्न संकट टल गया। मात्र ये दो घटनाएँ उनकी सूझबुझ और त्वरित-निर्णय-बुद्धि का परिचय देने के लिये आशा है, पर्याप्त होंगी।

देश का विभाजन

इंदिरा गाँधी स्टाम्प

उस समय देश विभाजन के किनारे पर था। जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की माँग की थी और अंग्रेज़ भी जिन्ना की माँग को स्पष्ट हवा दे रहे थे लेकिन गाँधीजी विभाजन के पक्ष में नहीं थे। लॉर्ड माउंटबेटन कूटनीति का खेल खेलने में लगे हुए थे। वह एक ओर महात्मा गाँधी को आश्वस्त कर रहे थे कि देश का विभाजन नहीं होगा तो दूसरी ओर पंडित नेहरू से कह रहे थे कि दो राष्ट्रों के विभाजन के फॉर्मूले पर ही आज़ादी प्रदान की जाएगी। पंडित नेहरू स्थिति की गंभीरता को समझ रहे थे जबकि महात्मा गाँधी इस भ्रम में थे कि अंग्रेज़ वायसराय विभाजन नहीं चाहता है। जिन्ना की अनुचित माँग के कारण हिन्दू और मुसलमानों में वैमनस्य पसर गया था। महत्त्वाकांक्षी जिन्ना पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने के लिए बहुत लालायित थे। महात्मा गाँधी ने जिन्ना को संपूर्ण और अखंड भारत का प्रधानमंत्री बनाने का आश्वासन दिया। लेकिन जिन्ना यह जानते थे कि पंडित नेहरू के कारण यह संभव नहीं है। हिन्दू किसी भी मुस्लिम को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे। ऐसे में देश सांप्रदायिक दंगों की आग में झुलसने लगा था। महात्मा गाँधी किसी तरह दंगों की आग शांत करना चाहते थे। दिल्ली में भी कई स्थानों पर इंसानियत शर्मसार हो रही थी। तब महात्मा गाँधी ने इंदिरा जी को यह मुहिम सौंपी कि वह दंगाग्रस्त क्षेत्रों में जाकर लोगों को समझाएँ और अमन लौटाने में मदद करें।

दंगाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा

इंदिरा गाँधी ने फिर महात्मा गाँधी के आदेश को शिरोधार्य किया और दंगाग्रस्त क्षेत्रों में दोनों समुदायों के लोगों को समझाने का प्रयास करने लगीं। वस्तुतः यह अत्यंत जोखिम कार्य था। पंडित नेहरू की बेटी होने के कारण अतिवादी उन्हें नुक़सान पहुँचा सकते थे परंतु निर्भिक इंदिरा ने दंगों की आग शांत करने के लिए पुरज़ोर प्रयास किए। लेकिन 15 अगस्त के बाद सांप्रदायिकता अपने चरम पर पहुँच गई। दंगों में दोनों समुदायों के अनगिनत लोग मौत के घाट उतार दिए गए। पाकिस्तान से लाखों शरणार्थी दिल्ली आ गए थे। शरणार्थियों के पुनर्वास का सवाल भी उत्पन्न हो गया था। उन भूखे-प्यासे घर से भागे लोगों के लिए प्राथमिक आवश्यकताएँ भी ज़रूरी थीं। ऐसी स्थिति में दिल्ली के कई स्थानों पर शरणार्थी एवं दंगा पीड़ित शिविर लगाए गए थे। पंडित नेहरू ने 17, पार्क रोड के अपने बंगले पर भी शरणार्थी शिविर लगाए। शरणार्थियों के जीवन की बुनियादी सुविधाओं का ध्यान रखा जा रहा था। उस समय महात्मा गाँधी पश्चिम बंगाल के नोआख़ाली ज़िले में जहाँ मुस्लिमों की कई बस्तियों को जला दिया गया था। पाकिस्तान से आने वाली ट्रेनों में हज़ारों हिन्दुओं की लाशें भी आ रही थीं। इस कारण हिन्दू आक्रोशित होकर मुसलमानों पर हमला कर रहे थे।

घर में शरणार्थी शिविर

पंडित जवाहरलाल नेहरू के बंगले में जो शरणार्थी शिविर लगाए गए थे, उनकी देखरेख इंदिरा गाँधी ही कर रही थीं। सभी कमरे ख़ाली करके शरणार्थियों को उनमें ठहरा दिया गया था और प्रांगण आदि में भी तम्बू इत्यादि लगा दिए थे ताकि अधिकाधिक शरणार्थियों को वहाँ रखा जा सके। यहाँ की सभी व्यवस्था इंदिरा गाँधी द्वारा देखी जा रही थी। अंतरिम सरकार के गठन के साथ पंडित नेहरू कार्यवाहक प्रधानमंत्री बना दिए थे। 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान भी लागू हो गया। भारत एक गणतांत्रिक देश बना और प्रधानमंत्री नेहरू की सक्रियता काफ़ी अधिक बढ़ गई। इस समय नेहरूजी का निवास त्रिमूर्ति भवन ही था। समय-समय पर विभिन्न देशों के आगंतुक त्रिमूर्ति भवन में ही नेहरूजी के पास आते थे। उनके स्वागत के सभी इंतज़ाम इंदिरा गाँधी द्वारा किए जाते थे। साथ ही साथ उम्रदराज़ हो रहे पिता की आवश्यकताओं को भी इंदिरा देखती थीं।

कांग्रेस पार्टी की सरकार

अभी तीन वर्ष भी पूर्ण नहीं हुए थे कि जनता पार्टी में दरारें पड़ गईं और देश को मध्यावधि चुनाव का भार झेलना पड़ा। इंदिरा गाँधी ने देश में घूम-घूमकर चुनाव प्रचार के दौरान आपातकाल के लिए शर्मिंदगी का इजहार किया और काम करने वाली सुदृढ़ सरकार का नारा दिया। लोगों को यह नारा काफ़ी पसंद आया और चुनाव के बाद नतीजों ने यह प्रमाणित भी कर दिया। इंदिरा कांग्रेस को 592 में से 353 सीटें प्राप्त हुईं और स्पष्ट बहुमत के कारण केंद्र में इनकी सरकार बनी। इंदिरा गाँधी पुनः प्रधानमंत्री बन गईं। इस प्रकार 34 महीनों के बाद वह सत्ता पर दोबारा क़ाबिज हुईं। जनता पार्टी ने 1977 में सत्ता में आने के बाद कई राज्यों की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर दिया था। उस समय उसने यह तर्क दिया कि जनता का रुझान जनता पार्टी के साथ है, अतः नए चुनाव होने चाहिए। इंदिरा गाँधी ने सत्ता में आने के बाद जनता पार्टी द्वारा आरंभ की गई परिपाटी पर चलकर उन प्रदेशों की सरकारों को बर्खास्त कर दिया जहाँ जनता पार्टी तथा विपक्ष का शासन था। बाद में हुए इन राज्यों के चुनावों में कांग्रेस ने अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। 22 राज्यों में से 15 राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकार बन गई। यह चुनाव जून 1980 में संपन्न हुए थे।

मृत्यु

स्वर्ण मन्दिर पर हमले के प्रतिकार में पाँच महीने के बाद ही 31 अक्टूबर 1984 को श्रीमती गाँधी के आवास पर तैनात उनके दो सिक्ख अंगरक्षकों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। भारत के जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं, उन सभी की अनेक विशेषताएँ हो सकती हैं, लेकिन इंदिरा गाँधी के रूप में जो प्रधानमंत्री भारत भूमि को प्राप्त हुआ, वैसा प्रधानमंत्री अभी तक दूसरा नहीं हुआ है क्योंकि एक प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने विभिन्न चुनौतियों का मुक़ाबला करने में सफलता प्राप्त की। युद्ध हो, विपक्ष की ग़लतियाँ हों, कूटनीति का अंतर्राष्ट्रीय मैदान हो अथवा देश की कोई समस्या हो- इंदिरा गाँधी ने अक्सर स्वयं को सफल साबित किया। इंदिरा गाँधी, नेहरू के द्वारा शुरू की गई औद्योगिक विकास की अर्द्ध समाजवादी नीतियों पर क़ायम रहीं। उन्होंने सोवियत संघ के साथ नज़दीकी सम्बन्ध क़ायम किए और पाकिस्तान-भारत विवाद के दौरान समर्थन के लिए उसी पर आश्रित रहीं। जिन्होंने इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल को देखा है, वे लोग यह मानते हैं कि इंदिरा गाँधी में अपार साहस, निर्णय शक्ति और धैर्य था।

उपलब्धियाँ

  • बैंकों का राष्ट्रीयकरण
  • बाँग्ला देश को स्वतंत्र कराना
  • निर्धन लोगों के उत्थान के लिए आयोजित 20 सूत्रीय कार्यक्रम
  • गुट निरपेक्ष आन्दोलन की अध्यक्षा
  • प्रीवीपर्स समाप्ति


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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