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सर अलेक्ज़ेंडर बर्न्स (जन्म- 16 मई 1805, मांट्रोस, फ़ोरफ़ारशायर, स्कॉटलैंड; मृत्यु- 2 नवंबर 1841, काबुल, अफ़ग़ानिस्तान), वर्तमान पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज़बेकिस्तान एवं ईरान में अभियानों के लिए प्रसिद्ध ब्रिटिश अन्वेषक एवं राजदूत थे।[1]

यात्रा

पश्चिमोत्तर भारतीय राज्य कच्छ में अधिकारी के रूप में सेवा (1823-29) के दौरान बर्न्स ने सिंध (पाकिस्तान) से सिंधु नदी के ऊपरी क्षेत्र की यात्रा की शुरुआत की, स्थानीय शासकों को उपहार देकर उनके क्षेत्र में अन्वेषण किया एवं अंत में लाहौर के पंजाब शहर पहुँचे, जो अब पाकिस्तान में है। इसके अगले वर्ष में उन्होंने यात्रा का आरंभ अफ़ग़ानिस्तान पार करके किया, हिंदुकुश पर्वतश्रेणी एवं रूस के तुर्किस्तान होते हुए बुख़ारा पहुँचे। ईरानी यात्राओं में उन्होंने मसहद (मशद), तेहरान और बुशायर का भ्रमण किया। उनकी साहसिक यात्राओं की प्रसिद्धि उनके लंदन (1833) लौटने से पहले ही पहुँच चुकी थी, जिसकी वजह से तत्कालीन शासक विलियम IV के साथ व्यक्तिगत मुलाक़ात सहित उन्हें कई सम्मानों से नवाज़ा गया।

प्रकाशन

1834 में उन्होंने मैट्स ऑफ़ एशिया एवं ट्रैवल्स इंदु बुख़ारा का प्रकाशन किया।

उपाधि

बर्न्स की इन उपलब्धियों के कारण उन्हें 1839 में नाइट की उपाधि मिली।

मुहम्मद ख़ां को समर्थन

क़ाबुल की एक राजनीतिक यात्रा (1836) के बाद उन्होंने भारत की ब्रिटिश सरकार को अफ़ग़ानिस्तान की गद्दी के लिए दोस्त मुहम्मद ख़ां को समर्थन देने के लिए प्रोत्साहित किया। जबकि सरकार ने अलोकप्रिय शाह शुजा को सत्तारूढ़ (1839) करना पसंद किया और इसके लिए उन्हें बर्न्स के सहयोग की आवश्यकता थी। इसके बाद हुए संघर्ष के दौरान बर्न्स की हत्या हो गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. प्रसिद्ध कवि रॉबर्ट बर्न्स के परिवार से संबंधित

बाहरी कड़ियाँ

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