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<h4>[[कौऔं का वायरस -आदित्य चौधरी|भारतकोश सम्पादकीय <small>-आदित्य चौधरी</small>]]</h4>
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<center>[[कौऔं का वायरस -आदित्य चौधरी|कौऔं का वायरस]]</center>
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[[चित्र:Yamuna-Mathura-2.jpg|right|100px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 25 जनवरी 2013]]
 
<center>[[भारतकोश सम्पादकीय 25 जनवरी 2013|अहम का वहम]]</center>
 
 
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              हमारे आस-पास अक्सर ऐसे लोग मिल जाते हैं जिनमें कोई न कोई विशेष प्रतिभा होती है लेकिन वे सफल नहीं होते और भाग्य को दोष देते मिलते हैं। जबकि वे यह नहीं जान पाते कि उनकी सफलता का रास्ता रोकने के लिए अहंकार हर समय उनके मस्तिष्क पर शासन करता है। प्रतिभा को निखारने के लिए अपने ऊपर से ध्यान हटाना पड़ता है। उसके बाद ही हमारा ध्यान प्रतिभा को निखारने में लगता है। कोई जन्म से 'रहमान' या 'गुलज़ार' नहीं होता [[भारतकोश सम्पादकीय 25 जनवरी 2013|...पूरा पढ़ें]]
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        यह एक तरह की ध्यानावस्था ही है। यह एक ऐसा ध्यान है जो किया नहीं जाता या धारण नहीं करना होता बल्कि स्वत: ही धारित हो जाता है... बस लग जाता है। मनोविश्लेषण की पुरानी अवधारणा के अनुसार कहें तो अवचेतन मस्तिष्क (सब कॉन्शस) में कहीं स्थापित हो जाता है। दिमाग़ में बादाम जितने आकार के दो हिस्से, जिन्हें ऍमिग्डाला (Amygdala) कहते हैं, कुछ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। ये दोनों कभी-कभी दिमाग़ को अनदेखा कर शरीर के किसी भी हिस्से को सक्रिय कर देते हैं। असल में इनकी मुख्य भूमिका संवेदनात्मक आपातकालिक संदेश देने की होती है। इस तरह की ही कोई प्रणाली संभवत: अवचेतन के संदेशों के निगमन को संचालित करती है। ऍमिग्डाला की प्रक्रिया को 'डेनियल गोलमॅन' ने अपनी किताब इमोशनल इंटेलीजेन्स में बहुत अच्छी तरह समझाया है। [[कौऔं का वायरस -आदित्य चौधरी|...पूरा पढ़ें]]
 
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| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले लेख]] →
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| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले सभी लेख]] →
| [[भारतकोश सम्पादकीय 31 दिसम्बर 2012|यमलोक में एक निर्भय अमानत 'दामिनी']] ·
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| [[सफलता का शॉर्ट-कट -आदित्य चौधरी]]
| [[भारतकोश सम्पादकीय 30 अक्टूबर 2012|उसके सुख का दु:ख]]
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| [[शहीद मुकुल द्विवेदी के नाम पत्र -आदित्य चौधरी|शहीद मुकुल द्विवेदी के नाम पत्र]]
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| [[शर्मदार की मौत -आदित्य चौधरी|शर्मदार की मौत]]
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|}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude>
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* [http://adityachaudhary.org अधिक जानकारी के लिए देखें- adityachaudhary.org]
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<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]][[Category:सम्पादकीय (अद्यतन)]]</noinclude>
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13:56, 6 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण

भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी

4-crow-meeting.jpg
कौऔं का वायरस

         यह एक तरह की ध्यानावस्था ही है। यह एक ऐसा ध्यान है जो किया नहीं जाता या धारण नहीं करना होता बल्कि स्वत: ही धारित हो जाता है... बस लग जाता है। मनोविश्लेषण की पुरानी अवधारणा के अनुसार कहें तो अवचेतन मस्तिष्क (सब कॉन्शस) में कहीं स्थापित हो जाता है। दिमाग़ में बादाम जितने आकार के दो हिस्से, जिन्हें ऍमिग्डाला (Amygdala) कहते हैं, कुछ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। ये दोनों कभी-कभी दिमाग़ को अनदेखा कर शरीर के किसी भी हिस्से को सक्रिय कर देते हैं। असल में इनकी मुख्य भूमिका संवेदनात्मक आपातकालिक संदेश देने की होती है। इस तरह की ही कोई प्रणाली संभवत: अवचेतन के संदेशों के निगमन को संचालित करती है। ऍमिग्डाला की प्रक्रिया को 'डेनियल गोलमॅन' ने अपनी किताब इमोशनल इंटेलीजेन्स में बहुत अच्छी तरह समझाया है। ...पूरा पढ़ें

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