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*[[चित्तौड़]] की सहायता के लिए बूंदी, शोन गढ़ा, देवर तथा कई अन्य ठिकानों ने अपनी सेनाऐं भेजी थीं।
 
*युद्ध के मैदान में बहादुरशाह की फौजों के आगे तोपखाना लगा था, जिसका संचालन लाब्री ख़ाँ नामक गोलंदाज कर रहा था।
 
*युद्ध के मैदान में बहादुरशाह की फौजों के आगे तोपखाना लगा था, जिसका संचालन लाब्री ख़ाँ नामक गोलंदाज कर रहा था।
*गोलों की बौछार से [[राजपूत]] सेना की बड़ी क्षति हुई। तोपें न होने से राजपूत केवल धनुष बाण और तलवारों से ही लड़ते रहें।
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*राजपूत सरदानों ने तोपों की मार से बचने के लिए अपनी सेना को पीछे हटाया और संयोग पाकर दाहिने और बाएं से [[गुजरात]] की सेना पर बाण प्रहार करने का आदेश दिया। इसमें कुछ सफलता भी मिली, किंतु गोलों की बौछार के धुंए से अंधेरा हो जाने के कारण राजपूत सेना को बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ा।
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*राजपूत सरदानों ने तोपों की मार से बचने के लिए अपनी सेना को पीछे हटाया और संयोग पाकर दाहिने और बाएं से [[गुजरात]] की सेना पर [[बाण अस्त्र|बाण]] प्रहार करने का आदेश दिया। इसमें कुछ सफलता भी मिली, किंतु गोलों की बौछार के धुंए से अंधेरा हो जाने के कारण राजपूत सेना को बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ा।
*अंधकार की भीषणता में अचानक ही [[बहादुर शाह (गुजरात का सुल्तान)|बहादुरशाह]] की सेना ने गोलाबारी रोक कर राजपूतों पर तलवार से हमला कर दिया, जिससे उनकी सेना को भंयकर संहार हुआ; क्योंकि उन्हें अंधेरे में कुछ भी सूझ नहीं रहा था।
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*अंधकार की भीषणता में अचानक ही [[बहादुर शाह (गुजरात का सुल्तान)|बहादुरशाह]] की सेना ने गोलाबारी रोक कर राजपूतों पर तलवार से हमला कर दिया, जिससे उनकी सेना का भंयकर संहार हुआ; क्योंकि उन्हें अंधेरे में कुछ भी सूझ नहीं रहा था।
*राजपूतों का साहस टूट गया और वे युद्ध स्थल से तेजी के साथ पीछे हट आए।
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*लैचा के मैदान से भाग कर [[राजपूत]] सेना ने [[चित्तौड़]] की रक्षा पर अपनी शक्ति केन्द्रित कर दी।
 
*लैचा के मैदान से भाग कर [[राजपूत]] सेना ने [[चित्तौड़]] की रक्षा पर अपनी शक्ति केन्द्रित कर दी।
  

08:20, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

लैचा बूँदी ज़िला, राजस्थान का ऐतिहासिक स्थान है। 1533 ई. में इस स्थान पर चित्तौड़ नरेश विक्रमाजीत और गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह में भारी युद्ध हुआ था।[1]

  • चित्तौड़ की सहायता के लिए बूंदी, शोन गढ़ा, देवर तथा कई अन्य ठिकानों ने अपनी सेनाऐं भेजी थीं।
  • युद्ध के मैदान में बहादुरशाह की फौजों के आगे तोपखाना लगा था, जिसका संचालन लाब्री ख़ाँ नामक गोलंदाज कर रहा था।
  • गोलों की बौछार से राजपूत सेना की बड़ी क्षति हुई। तोपें न होने से राजपूत केवल धनुष बाण और तलवारों से ही लड़ते रहें।
  • राजपूत सरदानों ने तोपों की मार से बचने के लिए अपनी सेना को पीछे हटाया और संयोग पाकर दाहिने और बाएं से गुजरात की सेना पर बाण प्रहार करने का आदेश दिया। इसमें कुछ सफलता भी मिली, किंतु गोलों की बौछार के धुंए से अंधेरा हो जाने के कारण राजपूत सेना को बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ा।
  • अंधकार की भीषणता में अचानक ही बहादुरशाह की सेना ने गोलाबारी रोक कर राजपूतों पर तलवार से हमला कर दिया, जिससे उनकी सेना का भंयकर संहार हुआ; क्योंकि उन्हें अंधेरे में कुछ भी सूझ नहीं रहा था।
  • राजपूतों का साहस टूट गया और वे युद्ध स्थल से तेज़ीके साथ पीछे हट आए।
  • लैचा के मैदान से भाग कर राजपूत सेना ने चित्तौड़ की रक्षा पर अपनी शक्ति केन्द्रित कर दी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 821 |

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