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11:44, 4 दिसम्बर 2021 का अवतरण
दमयंती बेशरा
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पूरा नाम | दमयंती बेशरा |
जन्म | 18 फ़रवरी, 1962 |
जन्म भूमि | बोबीजोडा, मयूरभंज जिले |
अभिभावक | पिता- राजमल मांझी माता- पुंगी मांझी |
पति/पत्नी | गंगाधर हांसदा |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | संथाली साहित्य |
पुरस्कार-उपाधि | साहित्य अकादमी पुरस्कार, 2009 |
प्रसिद्धि | साहित्यकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | साल 2009 में दमयंती बेशरा को उनकी रचना 'शाय साहेद' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। |
अद्यतन | 17:14, 4 दिसम्बर 2021 (IST)
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दमयंती बेशरा (अंग्रेज़ी: Damayanti Beshra, जन्म- 18 फ़रवरी, 1962) महिला सशक्तिकरण के लिए आवाज उठाने वाली वह महिला हैं, जिन्होंने संथाली भाषा के साहित्य और शिक्षा में बहुत काम किया है। उनके अमूल्य योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें साल 2020 में पद्म श्री' पुरस्कार से सम्मानित किया है।
परिचय
दमयंती बेशरा का जन्म 18 फरवरी, 1962 को मयूरभंज जिले के बोबीजोडा में हुआ था। उनके पिता का नाम राजमल मांझी और माता का नाम पुंगी मांझी था। साल 1988 में वे गंगाधर हांसदा के साथ विवाह के बंधन में बंधी। साल 2009 में दमयंती बेशरा को उनकी रचना 'शाय साहेद' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। फिर 2011 से वे पहली महिला संथाली मैगजीन 'करम डार' प्रकाशित कर रही हैं।[1]
परिवार का साथ
एक साक्षात्कार में दमयंती बेशरा ने अपने सफर, सफलता और महिलाओं के विषय पर खुलकर बात की थी। उन्होंने बताया था कि 'पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने लिखना शुरू कर दिया था। नौकरी और शादी के बाद उनकी किताब प्रकाशित हुई'। उस वक्त संथाली में लिखने वाली ज्यादा लेखिकाएं नहीं थीं, इसलिए उन्हें बहुत पसंद, सराहा और प्रोत्साहित किया'। वह कहती हैं कि 'यही वजह है कि वह यहां तक पहुंची'।
परिवार का उन्हें कैसे सपोर्ट मिला, इस पर दमयंती बेशरा ने बताया था कि 'उन्हें परिवार से पूरा सपोर्ट मिला। उनके माता-पिता ने पढ़ाई नहीं की थी लेकिन उन्हें बहुत पढ़ाया। नौकरी की छूट दी। शादी के बाद उन्हें पति और ससुराल का भरपूर सहयोग मिला। सास, ससुर और ननद उनके साथ हमेशा खड़े रहे। नौकरी के साथ काम करते वक्त भी परिवार साथ रहा। खाना बनाने से लेकर बच्चों को संभालने तक फैमिली उनके साथ खड़ रही। उनका परिवार और पति हमेशा उनके साथ खड़े रहे'।
संघर्ष
दमयंती बेशरा का कहना था कि 'वह जिस समाज से आती हैं, बस वहां उन्हें संघर्ष करना पड़ा। संथाली भाषा में पब्लिशर न होने की वजह से उन्हें परेशानियां झेलनी पड़ीं। घर, परिवार और काम महिलाओं को सम्भालना करना पड़ता है। इसलिए सक्रिय रहें, अपना समय प्रबंध सही करें'। उनका कहना था कि 'महिलाएं आत्मविश्वास के साथ काम करेंगी तो सफल होंगी। जो काम पुरुष कर सकते हैं, वह महिलाएं भी कर सकती हैं। महिलाओं को पढ़ाई जरूर करनी चाहिए'। आदिवासी महिलाओं की स्थिति पर ध्यान कैसे आकृष्ट हो, इसे दमयंती बेशरा ने बहुत मुश्किल सवाल बताया था। उनका कहना था कि 'लोगों की मानसिकता और उनकी सोच बदलनी होगी। आदिवासी महिलाओं को शिक्षित करके उनकी स्थिति बदली जा सकती है'।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 कहानी उस महिला की जिसकी लेखनी संथाली भाषा में रोशनी भर रही है (हिंदी) etvbharat.com। अभिगमन तिथि: 04 दिसम्बर, 2021।