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'''डॉ. सुकमा आचार्य''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Dr. Sukama Acharya'', जन्म- [[1 अक्टूबर]], [[1961]]) रोहतक जिले के रुड़की गांव के 'विश्ववारा कन्या गुरुकुल' की प्राचार्या हैं। उन्हें [[भारत सरकार]] की ओर से [[राष्ट्रपति]] [[द्रौपदी मुर्मू]] ने [[पद्म श्री]], [[2023]] से सम्मानित किया है। डॉ. सुकमा आचार्य को महिला सशक्तिकरण और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए यह सम्मान प्रदान किया गया है।
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==परिचय==
 
==परिचय==
 
डॉ. सुकमा आचार्य का जन्म झज्जर के गांव आकपुर में 1 अक्टूबर, 1961 को हुआ था। इनकी [[माता]] का नाम वेदकौर और [[पिता]] का नाम राजेंद्र देव सिंह है।
 
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07:56, 16 जुलाई 2023 के समय का अवतरण

डॉ. सुकमा आचार्य
डॉ. सुकमा आचार्य
पूरा नाम डॉ. सुकमा आचार्य
जन्म 1 अक्टूबर, 1961
जन्म भूमि गांव आकपुर, झज्जर
अभिभावक माता- वेदकौर

पिता- राजेंद्र देव सिंह

कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र शिक्षण
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री, 2023
प्रसिद्धि महिला सशक्तिकरण और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी डॉ. सुकमा आचार्य ने युवा पीढ़ी को संदेश दिया कि हर किसी में शुभ-अशुभ का मिश्रण होता है। युवा में वह शक्ति होती है यदि उन्हें अशुभ का पता लग जाए तो वह सुधर सकता है।
अद्यतन‎

डॉ. सुकमा आचार्य (अंग्रेज़ी: Dr. Sukama Acharya, जन्म- 1 अक्टूबर, 1961) रोहतक जिले के रुड़की गांव के 'विश्ववारा कन्या गुरुकुल' की प्राचार्या हैं। उन्हें भारत सरकार की ओर से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद्म श्री, 2023 से सम्मानित किया है। डॉ. सुकमा आचार्य को महिला सशक्तिकरण और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए यह सम्मान प्रदान किया गया है।

परिचय

डॉ. सुकमा आचार्य का जन्म झज्जर के गांव आकपुर में 1 अक्टूबर, 1961 को हुआ था। इनकी माता का नाम वेदकौर और पिता का नाम राजेंद्र देव सिंह है।

शिक्षा

डॉ. सुकमा आचार्य की शैक्षणिक उपलब्धी सूची काफी लंबी है। इसमें शास्त्री से लेकर पीएचडी तक की पढ़ाई शामिल है। श्रीमद दयानंदार्थ विद्यापीठ झज्जर से वर्ष 1978 में शास्त्री, 1980 में व्याकरणाचार्य, 1982 में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार से संस्कृत में स्नातकोत्तर, 1984 में श्रीमद दयानंदार्थ विद्यापीठ, झज्जर से वोदाचार्य, 1987 में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार से वैदिक इंद्र देवता महर्षि दयानंद के वेदभाष्य के परिप्रेक्ष्य में पीएचडी करने के अलावा वर्ष 1999 में कुसुमलता आर्य प्रतिष्ठान, साहिबाबाद का प्रकाशन किया।[1]

व्यक्तित्व

प्राचीन गुरुकुल परंपरा में उच्च शिक्षा प्राप्त करके डॉ. सुकमा आचार्य ने ब्रह्मचर्य दीक्षा ली और गुरुकुल पद्धति से कन्याओं को शिक्षित और संस्कारवार बना रही हैं। कर्मशील, परोपकारी एवं कर्तव्यपरायण जीवन, आपकी सादगी, सहनशीलता, विनम्रता, उदारता, समर्पण, उत्तम शिक्षण, कला का गुण इन्हें उच्च व्यक्तित्व के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं। भारतीय संस्कृति के प्रचार, गुरुकुल पद्धति की प्राचीन परंपरा के प्रसार, नारी उत्थान व यज्ञीय जीवन के आदर्श को निर्वहन करने का पवित्र संकल्प धारण किया है।

गुरुकुल संचालन

वर्ष 1988 में डॉ. सुकमा आचार्य ने उत्तर प्रदेश के अमरोहा जनपद में आचार्य डॉ. सुमेधा के साथ श्रीमद दयानंद कन्या गुरुकुल महाविद्यालय चोटीपुरा की स्थापना की। वर्ष 2017 (30 वर्ष) तक इसकी संचालन किया। वर्ष 2018 में रोहतक के रुड़की में विश्ववारा कन्या गुरुकुल का शुभारंभ किया।

युवाओं में खुद को सुधारने की शक्ति

डॉ. सुकमा आचार्य ने युवा पीढ़ी को संदेश दिया कि हर किसी में शुभ-अशुभ का मिश्रण होता है। युवा में वह शक्ति होती है यदि उन्हें अशुभ का पता लग जाए तो वह सुधर सकता है। युवा में वह ताकत होती है। जब बाद में युवा को पता लगता है तब तक उसका समय निकल चुका होता है। इसलिए युवा अपने माता-पिता व समाज के आदर्श व्यक्तियों को अनुकरण करें।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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