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*स्नातकोत्तर जीवन, विवाह का समय होता है, अर्थात् विद्याध्ययन के पश्चात विवाह करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश करना होता है।
 
*स्नातकोत्तर जीवन, विवाह का समय होता है, अर्थात् विद्याध्ययन के पश्चात विवाह करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश करना होता है।
 
*यह संस्कार पितृ-ऋण से उऋण होने के लिए किया जाता है।  
 
*यह संस्कार पितृ-ऋण से उऋण होने के लिए किया जाता है।  

08:29, 20 सितम्बर 2010 का अवतरण

  • हिन्दू धर्म संस्कारों में विवाह संस्कार त्रयोदश संस्कार है।
  • स्नातकोत्तर जीवन, विवाह का समय होता है, अर्थात् विद्याध्ययन के पश्चात विवाह करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश करना होता है।
  • यह संस्कार पितृ-ऋण से उऋण होने के लिए किया जाता है।
  • मनुष्य जन्म से ही तीन ऋणों से बनकर जन्म लेता है। देव-ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण।
  • इनमें से अग्रिहोत्र अर्थात यज्ञादिक कार्यों से देव-ऋण।
  • वेदादिक शास्त्रों के अध्ययन से ऋषि-ऋण।
  • विवाहित पत्नी से पुत्रोत्पत्ति आदि के द्वारा पितृ-ऋण से उऋण हुआ जाता है।

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