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आज से लगभग 70 वर्ष पूर्व [[पाकिस्तान]] के पश्चिमी [[पंजाब]] प्रांत के [[माण्टगोमरी ज़िला|माण्टगोमरी ज़िले]] में स्थित [[हड़प्पा]] के निवासियों को शायद इस बात का किंचित्मात्र भी आभास नहीं था कि वे अपने आस-पास की ज़मीन में दबी जिन ईटों का प्रयोग इतने धड़ल्ले से अपने मकानों के निर्माण में कर रहे हैं, वह कोई साधारण ईंटें नहीं, बल्कि लगभग 5000 वर्ष पुरानी और पूरी तरह विकसित एक सभ्यता के अवशेष हैं। इसका आभास उन्हें तब हुआ जब 1856 ई. में जॉन विलियम ब्रन्टन ने [[करांची]] से [[लाहौर]] तक रेलवे लाइन बिछवाने हेतु ईंटों की आपूर्ति के लिए इन खण्डहरों की खुदाई प्रारम्भ करवायी। खुदाई के दौरान ही इस सभ्यता के प्रथम अवशेष प्राप्त हुए, जिसे '''हड़प्पा सभ्यता''' का नाम दिया गया।  
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आज से लगभग 70 वर्ष पूर्व [[पाकिस्तान]] के 'पश्चिमी पंजाब प्रांत' के 'माण्टगोमरी ज़िले' में स्थित 'हरियाणा' के निवासियों को शायद इस बात का किंचित्मात्र भी आभास नहीं था कि वे अपने आस-पास की जमीन में दबी जिन ईटों का प्रयोग इतने धड़ल्ले से अपने मकानों का निर्माण में कर रहे हैं, वह कोई साधारण ईटें नहीं, बल्कि लगभग 5,000 वर्ष पुरानी और पूरी तरह विकसित सभ्यता के अवशेष हैं। इसका आभास उन्हे तब हुआ जब 1856 ई. में 'जॉन विलियम ब्रन्टम' ने कराची से [[लाहौर]] तक रेलवे लाइन बिछवाने हेतु ईटों की आपूर्ति के इन खण्डहरों की खुदाई प्रारम्भ करवायी। खुदाई के दौरान ही इस सभ्यता के प्रथम अवशेष प्राप्त हुए, जिसे इस सभ्यता का नाम ‘हड़प्पा सभ्यता‘ का नाम दिया गया।
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इस अज्ञात सभ्यता की खोज का श्रेय 'रायबहादुर दयाराम साहनी' को जाता है। उन्होंने ही पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक 'सर जॉन मार्शल' के निर्देशन में 1921 में इस स्थान की खुदाई करवायी। लगभग एक वर्ष बाद 1922 में 'श्री राखल दास बनर्जी' के नेतृत्व में पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के 'लरकाना' ज़िले के [[मोहन जोदड़ों]] में स्थित एक [[बौद्ध]] [[स्तूप]] की खुदाई के समय एक और स्थान का पता चला। इस नवीनतम स्थान के प्रकाश में आने क उपरान्त यह मान लिया गया कि संभवतः यह सभ्यता [[सिंधु नदी]] की घाटी तक ही सीमित है, अतः इस सभ्यता का नाम ‘सिधु घाटी की सभ्यता‘ (indus Valley Civilaction) रखा गया । सबसे पहले 1927 में 'हड़प्पा' नामक स्थल पर उत्खनन होने के कारण 'सिन्धु सभ्यता' का नाम 'हड़प्पा सभ्यता' पड़ा। पर कालान्तर में 'पिग्गट' ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ों को ‘एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानियां‘ बतलाया।   
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अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस सभ्यता के लगभग 1000 स्थानों का पता चला है जिनमें कुछ ही परिपक्व अवस्था में प्राप्त हुए हैं। इन स्थानों के केवल 6 को ही नगर की संज्ञा दी जाती है। ये हैं -
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#[[हड़प्पा]],
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#[[मोहनजोदाड़ों]],
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#[[चन्हूदड़ों]],
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#[[लोथल]],
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#[[कालीबंगा]],
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#[[हिसार]]
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#[[बणावली (हरियाणा)|बणावली]]।
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==सभ्यता का विस्तार==
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अब तक इस सभ्यता के अवशेष पाकिस्तान और भारत के [[पंजाब]], [[सिंध]], [[बलूचिस्तान]], [[गुजरात]], [[राजस्थान]], [[हरियाणा]], पश्यिमी उत्तर प्रदेश, [[जम्मू और कश्मीर|जम्मू-कश्मीर]] के भागों में पाये जा चुके हैं। इस सभ्यता का फैलाव उत्तर में 'जम्मू' के 'मांदा' से लेकर दक्षिण में [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] के मुहाने 'भगतराव' तक और पश्चिमी में 'मकरान' समुद्र तट पर 'सुत्कागेनडोर' से लेकर पूर्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में [[मेरठ]] तक है।
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इस सभ्यता का सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल 'सुत्कागेनडोर', पूर्वी पुरास्थल 'आलमगीर', उत्तरी पुरास्थल 'मांडा' तथा दक्षिणी पुरास्थल 'दायमाबाद' है। लगभग त्रिभुजाकार वाला यह भाग कुल करीब 12,99,600 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। सिन्धु सभ्यता का विस्तार का पूर्व से पश्चिमी तक 1600 किमी. तथा उत्तर से दक्षिण तक 1400 किमी. था। इस प्रकार सिंधु सभ्यता समकालीन [[मिस्र]] या 'सुमेरियन सभ्यता' से अधिक विस्तृत क्षेत्र में फैली थी।
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सिंधु सभ्यता के स्थल अब निम्नलिखित क्षेत्रों में मिलते हैं -
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====बलुचिस्तान====
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उत्तरी बलुचिस्तान में स्थित 'क्वेटा' तथा 'जांब' की धारियों में सैंधव सभ्यता से सम्बन्धित कोई भी स्थल नहीं है। किन्तु दक्षिणी बलूचिस्तान में सैंधव सभ्यता के कई पुरास्थल स्थित हैं जिसमें अति महत्वपूर्ण है 'मकरान तट'। मकरान तट प्रदेश पर मिलने वाले अनेक स्थलों में से पुरातात्विक दृष्टि से केवल तीन स्थल महत्वपूर्ण हैं-
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#सुत्कागेनडोर (दश्क नदी के मुहाने पर),
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#सुत्काकोह (शादीकौर के मुहाने पर) और
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#बालाकोट (विंदार नदी के मुहाने पर), डावरकोट (सोन मियानी खाड़ी के पूर्व में विदर नदी के मुहाने पर)।
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====उत्तर पश्चिमी सीमांत====
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यहां सारी सामग्री, 'गोमल घाटी' में केन्द्रित प्रतीत होती है जो [[अफ़ग़ानिस्तान]] जाने का एक अत्यंत महत्वपूर्ण मार्ग है। 'गुमला' जैसे स्थलों पर सिंधु पूर्व सभ्यता के निक्षेपों के ऊपर सिंधु सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
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====सिंधु====
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इनमें कुछ स्थल प्रसिद्ध हैं जैसे - 'मोहनजोदड़ों', 'चन्हूदड़ों', 'जूडीरोजोदड़ों', (कच्छी मैदान में जो कि सीबी और जैकोबाबाद के बीच सिंधु की बाढ़ की मिट्टी का विस्तार है) 'आमरी' (जिसमें सिंधु पूर्व सभ्यता के निक्षेप के ऊपर सिंधु सभ्यता के निक्षेप मिलते हैं) 'कोटदीजी', 'अलीमुराद', 'रहमानढेरी', 'राणाधुडई' इत्यादि।
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====पश्चिमी पंजाब====
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इस क्षेत्र में बहुत ज्यादा स्थल नहीं है। इसका कारण समझ में नही आता। हो सकता है [[पंजाब]] की नदियों ने अपना मार्ग बदलते-बदलते कुछ स्थलों का नष्ट कर दिया हो। इसके अतिरिक्त 'डेरा इस्माइलखाना', 'जलीलपुर', 'रहमानढेरी', 'गुमला', 'चक-पुरवानस्याल' आदि महत्वपूर्ण पुरास्थल है।
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====बहावलपुर====
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यहां के स्थल सूखी हुई [[सरस्वती नदी]] के मार्ग पर स्थित हैं। इस मार्ग का स्थानीय नाम का ‘हकरा‘ है । 'घग्घर हमरा' अर्थात [[सरस्वती नदी|सरस्वती]] [[दृषद्वती नदी|दृशद्वती]] नदियों की घाटियों में हड़प्पा संस्कृति के स्थलों का सर्वाधिक संकेन्द्रण (सर्वाधिक स्थल) प्राप्त हुआ है। किन्तु इस क्षेत्र में अभी तक किसी स्थल का उत्खनन नहीं हुआ है। इस स्थल का नाम 'कुडावाला थेर' है जो प्रकटतः बहुत बड़ा है।
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====राजस्थान====
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यहां के स्थल 'बहाबलपुर' के स्थलों के निरंतर क्रम में हैं जो प्राचीन सरस्वती नदी के सूखे हुए मार्ग पर स्थित है। इस क्षेत्र में सरस्वती नदी को 'घघ्घर' कहा जाता है। कुछ प्राचीन दृषद्वती नदी के सूखे हुए मार्ग के साथ- साथ भी है जिसे अब 'चैतग नदी' कहा जाता है। इस क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण स्थल 'कालीबंगा' है। कालीबंगा नामक पुरास्थल पर भी पश्चिमी से गढ़ी और पूर्व में नगर के दो टीले, हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ों, की भांति विद्यमान है। राजस्थान के समस्त सिंधु सभ्यता के स्थल आधुनिक [[गंगानगर ज़िले]] में आते है।
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====हरियाणा====
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[[हरियाणा]] का महत्वपूर्ण सिंधु सभ्यता स्थल [[हिसार ज़िले]] में स्थित 'बनवाली' है। इसके अतिरिक्त 'मिथातल', 'सिसवल', 'वणावली', 'राखीगढ़', 'वाड़ा तथा 'वालू' नामक स्थलों का भी उत्खनन किया जा चुका है।
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====पूर्वी पंजाब====
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इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण स्थल 'रोपड़ संधोल' है। हाल ही में [[चंडीगढ़]] नगर में भी हड़प्पा संस्कृति के निक्षेप पाये गये हैं। इसके अतिरिक्त 'कोटलानिहंग ख़ान', 'चक 86 वाड़ा', 'ढेर-मजरा' आदि पुरास्थलों से सैंधव सभ्यता से सम्बद्ध पुरावशेष प्राप्त हुए है।
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====गंगा-यमुना दोआब====
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यहां के स्थल [[मेरठ ज़िला|मेरठ ज़िले]] के 'आलमगीर' तक फैले हुए हैं। एक अन्य स्थल [[सहारनपुर ज़िला|सहारनपुर ज़िले]] में स्थित 'हुलास' तथा 'बाड़गांव' है। हुलास तथा बाड़गांव की गणना पश्वर्ती सिन्धु सभ्यता के पुरास्थलों में की जाती है।
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====जम्मू====
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इस क्षेत्र के मात्र एक स्थल का पता लगा है, जो 'अखनूर' के निकट 'भांडा' में है। यह स्थल भी सिन्धु सभ्यता के परवर्ती चरण से सम्बन्घित है।
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{| width=90% class="wikitable"
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|+हड़प्पा सभ्यता के पुरास्थल
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!पुरास्थल
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!स्थान
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| 1- हड़प्पा सभ्यता का सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल
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| सत्कागेन्डोर (बलूचिस्तान)
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|2- सर्वाधिक पूर्वी पुरास्थल
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आलमगीरपुर (मेरठ)
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|3- सर्वाधिक उत्तर पूरास्थल 
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मांडा (जम्मू कश्मीर)
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|4- सर्वाधिक दक्षिणी पुरास्थल
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दायमाबाद (महाराष्ट्र)
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====गुजरात====
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1947 के बाद [[गुजरात]] में सैंधव स्थलों की खोज के लिए व्यापक स्तर पर उत्खनन किया गया । गुजरात के 'कच्छ', 'सौराष्ट्र' तथा गुजरात के मैदानी भागों में सैंधव सभ्यता से सम्बन्घित 22 पुरास्थल है, जिसमें से 14 कच्छ क्षेत्र में तथा शेष अन्य भागों में स्थित है। गुजरात प्रदेश में ये पाए गए प्रमुख पुरास्थलों में 'रंगपुर', 'लापेथल', 'पाडरी', 'प्रभास-पाटन', 'राझदी', 'देशलपुर', 'मेघम', 'वेतेलोद', 'भगवतराव', 'सुरकोटदा', 'नागेश्वर', 'कुन्तासी', 'शिकारपुर' तथा 'धौलावीरा' आदि है।
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====महाराष्ट्र====
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प्रदेश के 'दायमाबाद' नामक पुरास्थल से मिट्टी के ठीकरे प्राप्त हुए है जिन पर चिरपरिचित सैंधव लिपि में कुछ लिखा मिला है, किन्तु पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में सैंधव सभ्यता का विस्तार [[महाराष्ट्र]] तक नहीं माना जा सकता है। ताम्र मूर्तियों का एक निधान, जिसे प्रायः हडप्पा संस्कृति से सम्बद्ध किया जाता है, वह महाराष्ट्र और दायमादाबद नामक स्थान से प्राप्त हुआ है - इसमें 'रथ चलाते मनुष्य', 'सांड', 'गैंडा', और 'हाथी' की आकृति प्रमुख है। यह सभी ठोस धातु की है और वजन कई किलो है, इसकी तिथि के विषय में विद्धानों में मतभेद है।
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====अफ़ग़ानिस्तान====
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हिन्दुकश के उत्तर में [[अफ़ग़ानिस्तान]] में स्थित 'मुंडीगाक' और 'सोर्तगोई' दो पुरास्थल है। मुंडीगाक का उत्खनन 'जे.एम. कैसल' द्वारा किया गया था तथा सोर्तगोई की खोज एवं उत्खनन 'हेनरी फ्रैंकफर्ट' द्वारा कराया गया था। सोर्तगोई लाजवर्द की प्राप्ति के लिए बसायी गयी व्यापारिक बस्ती थी।
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==काल निर्धारण==
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सैंधव सभ्यता के काल को निर्धारित करना निःसंदेह बड़ा ही कठिन काम है, फिर भी विभिन्न विद्धानों ने इस विवादास्पद विषय पर अपने विचार व्यक्त किये हैं। 1920 ई.पू. के दशक में सर्वप्रथम हड़प्पाई सभ्यता का ज्ञान हुआ।
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*हड़प्पाई सभ्यता का काल निर्धारण मुख्य रूप से 'मेसोपोटामिया' में 'उर' और 'किश' स्थलों पर पाए गए हड़प्पाई मुद्राओं के आधार पर किया गया। इस क्षेत्र में सर्वप्रथम प्रयास 'जॉन मार्शल' का रहा। उन्होंने 1931 ई. में इस सभ्यता का काल 3250 ई.पू. 2750 ई.पू. निर्धारित किया।
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*ह्वीलर ने इसका काल 2500 - 1500 ई.पू. माना है। बाद के समय में काल निर्धारण की रेडियो विधि का अविष्कार हुआ और इस विधि से इस सभ्यता का काल निर्धारण इस प्रकार है-
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#पूर्व हड़प्पाई चरण: लगभग 3500-2600 ई.पू.
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#परिपक्व हड़प्पाई चरण - लगभग 2600-1900 ई.पू.
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#उत्तर हड़प्पाई चरण: लगभग 1900-1300 ई.पू.
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*रेडियो कार्बन ‘सी-14‘ जैसी नवीन विश्लेषण पद्धति के द्वारा हड़प्पा सभ्यता का सर्वमान्य काल 2500 ई.पू. से 1750 ई.पू. को माना गया है।
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*विभिन्न विद्धानों द्वारा सिंधु सभ्यता का काल निर्धारण
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{| width=90% class="wikitable"
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|+विभिन्न विद्धानों द्वारा सिंधु सभ्यता का काल निर्धारण
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!काल       
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!विद्धान
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| 1- 3,500 - 2,700 ई.पू.   
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| माधोस्वरूप वत्स
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|2- 3,250 - 2,750 ई.पू.   
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|
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जॉन मार्शल
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|3- 2,900 - 1,900 ई.पू.   
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डेल्स
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|4- 2,800 - 1,500 ई.पू.    .
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अर्नेस्ट मैके
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|5- 2,500 - 1,500 ई.पू.     
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मार्टीमर ह्यीलर 
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|6- 2,350 - 1,700 ई.पू.       
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सी.जे. गैड
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|7- 2,350 - 1,750 ई.पू.     
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डी.पी. अग्रवाल 
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|8- 2,000 - 1,500 ई.पू.         
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फेयर सर्विस.
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|} 
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==सिधु सभ्यता के निर्माता और निवासी==
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यह अत्यन्त ही विवादाग्रस्त विषय है। इस विवाद में कुछ विद्धानों के प्रकार हैं-
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*'डॉ. लक्ष्मण स्वरूप' और 'रामचन्द्र' सिंधु सभ्यता एवं वैदिक सभ्यता दोनों के निर्माता के रूप में [[आर्य|आर्यो]] को मानते हैं।
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*'गार्डन चाइल्ड' सिंधु सभ्यता के निर्माता के रूप में 'सुमेरियन' लोगों को मानते हैं।
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*'राखाल दास बनर्जी' इस सभ्यता के निर्माता के रूप में [[द्रविड़|द्रविड़ों]] को मानते हैं
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*ह्वीलर का मानना है कि [[ऋग्वेद]] में वर्णित दस्यु एवं ‘दास‘ सिंधु सभ्यता के निर्माता थे।
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*इन समस्त विवादों का अवलोकन करके 'डॉ. रमा शंकर त्रिपाठी' का कहना है कि 'ऐतिहासिक ज्ञान की इस सीमा पर खड़े होकर अभी इस विषय पर हमारा मौन ही सराह्य और उचित है।'
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==मुख्य स्थल==
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====हड़प्पा====
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{{main|हड़प्पा}}
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हड़प्पा 6000-2600 ईसा पूर्व की एक सुव्यवस्थित नगरीय सभ्यता थी। [[मोहनजोदड़ो]], मेहरगढ़ और लोथल की ही श्रृंखला में हड़प्पा में भी पुर्रात्तव उत्खनन किया गया। यहाँ मिस्त्र और मैसोपोटामिया जैसी ही प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिले है। इसकी खोज 1920 में की गई। वर्तमान में यह पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित है। सन 1857 में लाहौर मुल्तान रेलमार्ग बनाने में हड़प्पा नगर की ईटों का इस्तेमाल किया गया जिससे इसे बहुत नुक़सान पहुँचा।
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====मोहनजोदड़ों====
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{{main|मोहनजोदाड़ो}}
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*मोहन जोदड़ो, जिसका कि अर्थ मुर्दो का टीला है 2600 ईसा पूर्व की एक सुव्यवस्थित नगरीय सभ्यता थी।
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*[[हड़प्पा]], मेहरगढ़ और लोथल की ही श्रृंखला में मोहन जोदड़ो में भी पुर्रात्तव उत्खनन किया गया।
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*यहाँ [[मिस्र]] और [[मैसोपोटामिया]] जैसी ही प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिले है।
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इस सभ्यता के ध्वंसावशेष [[पाकिस्तान]] के सिन्ध प्रान्त के 'लरकाना ज़िले' में [[सिंधु नदी]] के दाहिने किनारे पर प्राप्त हुए हैं। यह नगर करीब 5 कि.मी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। मोहनजोदड़ों के टीलो का 1922 ई. में खोजने का श्रेय 'राखालदास बनर्जी' को प्राप्त हुआ।
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====चन्हूदड़ों====
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{{main|चन्हूदड़ों}}
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[[मोहनजोदाड़ो]] के दक्षिण में स्थित चन्हूदड़ों नामक स्थान पर मुहर एवं गुड़ियों के निर्माण के साथ-साथ हड्डियों से भी अनेक वस्तुओं का निर्माण होता था। इस नगर की खोज सर्वप्रथम 1931 में 'एन.गोपाल मजूमदार' ने किया तथा 1943 ई. में 'मैके' द्वारा यहां उत्खनन करवाया गया। सबसे निचले स्तर से 'सैंधव संस्कृति' के साक्ष्य मिलते हैं।
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====लोथल====
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{{main|लोथल}}
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यह [[गुजरात]] के [[अहमदाबाद ज़िले]] में 'भोगावा नदी' के किनारे 'सरगवाला' नामक ग्राम के समीप स्थित है। खुदाई 1954-55 ई. में 'रंगनाथ राव' के नेतृत्व में की गई। इस स्थल से समकालीन सभ्यता के पांच स्तर पाए गए हैं। यहां पर दो भिन्न-भिन्न टीले नहीं मिले हैं, बल्कि पूरी बस्ती एक ही दीवार से घिरी थी।
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====रोपड़====
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{{main|रोपड़}}
 +
[[पंजाब]] प्रदेश के 'रोपड़ ज़िले' में [[सतलुज नदी]] के बांए तट पर स्थित है। यहां स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सर्वप्रथम उत्खनन किया गया था। इसका आधुनिक नाम 'रूप नगर' था। 1950 में इसकी खोज 'बी.बी.लाल' ने की थी।
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====कालीबंगा (काले रंग की चूड़ियां)====
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{{main|कालीबंगा}}
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यह स्थल [[राजस्थान]] के [[गंगानगर ज़िले]] में [[घग्घर नदी]] के बाएं तट पर स्थित है। खुदाई 1953 में 'बी.बी. लाल' एवं 'बी. के. थापड़' द्वारा करायी गयी। यहां पर प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं।
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====सूरकोटदा====
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{{main|सूरकोटदा}} 
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*यह स्थल [[गुजरात]] के [[कच्छ ज़िले]] में स्थित है।
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*इसकी खोज 1964 में 'जगपति जोशी' ने की थी इस स्थल से 'सिंधु सभ्यता के पतन' के अवशेष परिलक्षित होते हैं।
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====आलमगीरपुर (मेरठ)====
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{{main|आलमगीरपुर (मेरठ)}} 
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पश्चिम [[उत्तर प्रदेश]] के [[मेरठ ज़िले]] में [[यमुना नदी|यमुना]] की सहायक [[हिण्डन नदी]] पर स्थित इस पुरास्थल की खोज 1958 में 'यज्ञ दत्त शर्मा' द्वारा की गयी।
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====रंगपुर (गुजरात)====
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*[[गुजरात]] के [[कठियावाड़]] प्राय:द्वीप में [[भादर नदी]] के समीप स्थित इस स्थल की खुदाई 1953-54 में 'ए. रंगनाथ राव' द्वारा की गई।
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*यहाँ पर पूर्व हडप्पा कालीन सस्कृति के अवशेष मिले हैं।
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*यहां मिले कच्ची ईटों के दुर्ग, नालियां, मृदभांड, बांट, पत्थर के फलक आदि महत्वपूर्ण हैं।
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*यहां धान की भूसी के ढेर मिले हैं।
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*यहां उत्तरोत्तर [[हड़प्पा संस्कृति]] के साक्ष्य मिलते हैं।
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{| width=90% class="wikitable"
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|+हड़प्पाकालीन नदियों के किनारे बसे नगर
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!नगर
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!नदी/सागर तट
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| 1- [[मोहनजोदाड़ो]]       
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| [[सिंधु नदी]]
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|2- [[हड़प्पा]]       
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[[रावी नदी]]
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|3- [[रोपड़]]         
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[[सतलुज नदी]]
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|4- [[कालीबंगा]]       
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घग्घर नदी
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|5- [[लोथल]]             
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भोगवा नदी 
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|6- सुत्कागेनडोर               
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दाश्त नदी
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|7- वालाकोट             
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अरब सागर 
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|8- सोत्काकोह               
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अरब सागर
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|9- [[आलमगीरपुर (मेरठ)|आलमगीरपुर]]                 
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हिन्डन नदी 
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|10- [[रंगपुर (गुजरात)|रंगपुर]]                           
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मदर नदी
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|10- कोटदीजी                                   
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[[सिंधु नदी]]
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|} 
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====बणावली (हरियाणा)====
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{{main|बणावली (हरियाणा)}}
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*[[हरियाणा]] के [[हिसार ज़िले]] में स्थित दो सांस्कृतिक अवस्थाओं के अवषेश मिले हैं।
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*हड़प्पा पूर्व एवं [[हड़प्पा]]कालीन इस स्थल की खुदाई 1973-74 ई. में 'रवीन्द्र सिंह विष्ट' के नेतृत्व में की गयी।
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====अलीमुराद (सिंध प्रांत)====
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{{main|अलीमुराद (सिंध प्रांत)}}
 +
*सिंध प्रांत में स्थित इस नगर से कुआं, मिट्टी के बर्तन, कार्निलियन के मनके एवं पत्थरों से निर्मित एक विशाल दुर्ग के अवशेष मिले हैं।
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*इसके अतिरिक्त इस स्थल से बैल की लघु मृण्मूर्ति एवं कांसे की कुल्हाड़ी भी मिली है।
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====सुत्कागेनडोर (दक्षिण बलूचिस्तान)====
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{{main|सुत्कागेनडोर (दक्षिण बलूचिस्तान)}}
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*यह स्थल दक्षिण [[बलूचिस्तान]] में दाश्त नदी के किनारे स्थित है।
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==हड़प्पाकालीन सभ्यता से सम्बन्धित कुछ नवीन क्षेत्र==
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====खर्वी (अहमदाबाद)====
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{{main|खर्वी (अहमदाबाद)}}
 +
*अहमदाबाद से 114 किमी. की दूरी पर स्थित इस स्थान से हड़प्पाकालीन मृदभांड एवं ताम्र आभूषण के अवशेष मिले है।
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====कुनुतासी (गुजरात)====
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{{main|कुनुतासी (गुजरात)}}
 +
*[[गुजरात]] के [[राजकोट ज़िले]] में स्थित इस स्थल की खुदाई 'एम.के. धावलिकर', 'एम.आर.आर. रावल' तथा 'वाई.एम. चितलवास' द्वारा करवाई गई।
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{| width=90% class="wikitable"
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|+सिधु सभ्यता के प्रमुख स्थल एवं उसके खोजकर्ता
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!प्रमुख स्थल
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!खोजकर्ता
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!वर्ष
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| 1- [[हड़प्पा]]                         
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| माधो स्वरूप वत्स, दयाराम साहनी
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राखाल दास बनर्जी
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यज्ञदत्त शर्मा
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|4- [[कालीबंगा]]                   
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ब्रजवासी लाल, अमलानन्द घोष
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1953
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|5- [[लोथल]]                                             
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ए. रंगनाथ राव
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|6- [[चन्हूदड़ों]]                                         
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एन.गोपाल मजूमदार
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1931
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|7- [[सुरकोटदा]]                                     
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जगपति जोशी
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1964
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|8- [[बणावली (हरियाणा)|बणावली]]                                         
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रवीन्द्र सिंह विष्ट
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|9- [[आलमगीरपुर (मेरठ)|आलमगीरपुर]]                                               
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यज्ञदत्त शर्मा
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|10- [[रंगपुर (गुजरात)|रंगपुर]]                                       
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माधोस्वरूप वत्स, रंगनाथ राव
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1931.-1953
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फज़ल अहमद
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|11- [[सुत्कागेनडोर (दक्षिण बलूचिस्तान)|सुत्कागेनडोर]]                                                                 
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ऑरेल स्टाइन, जार्ज एफ. डेल्स
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1927
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====धौलावीरा====
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{{main|कुनुतासी (गुजरात)}}
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*इस स्थल की खुदाई से विशाल सैन्धव कालीन नगर के अवशेष का पता चलता है।
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====कोटदीजी (सिंध प्रांत)====
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{{main|कोटदीजी (सिंध प्रांत)}}
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*[[सिंध प्रांत]] के 'खैरपुर' नामक स्थान पर यह स्थल स्थित है।
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*सर्वप्रथम इसकी खोज 'धुर्ये' ने 1935 ई. में की ।
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*नियमित खुदाई 1953 ई. में फज़ल अहमद खान द्वारा सम्पन्न करायी गयी।
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====बालाकोट (बलूचिस्तान)====
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{{main|बालाकोट (बलूचिस्तान)}}
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*नालाकोट से लगभग 90 कि.मी. की दूरी पर [[बलूचिस्तान]] के दक्षिणी तटवर्ती पर बालाकोट स्थित था।
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*इसका उत्खनन 1963-1970 के बीच 'जॉर्ज एफ.डेल्स' द्वारा किया गया ।
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====अल्लाहदीनों (अरब महासागर)====
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{{main|अल्लाहदीनों (अरब महासागर)}} 
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*अल्लाहदीनों [[सिंधु नदी|सिन्धु]] और [[अरब सागर|अरब महासागर]] के संगम से लगभग 16 किमी. उत्तर-पूर्व तथा कराची से पूर्व में स्थित है।
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*1982 में 'फेयर सर्विस' ने यहां पर उत्खनन करवाया था।
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====माण्डा====
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{{main|माण्डा}}
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*[[चिनाब नदी|चेनाब नदी]] के दक्षिणी किनारे पर स्थित यह विकसित [[हड़प्पा]] संस्कृति का सबसे उत्तरी स्थल है।
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*इसका उत्खनन 1982 में 'जे.पी. जोशी' तथा 'मधुबाला' द्वारा करवाया गया था।
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*उत्खनन से प्राप्त यहां से तीन सांस्कृतिक स्तर
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#प्राक् सैन्धव,
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#विकसित सैंधव, तथा
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#उत्तर कालीन सैंधव प्रकाश में आए।
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*यहां विशेष प्रकार के मृदभांड (मिट्टी के बर्तन), गैर हड़प्पा से सम्बद्ध कुछ ठीकरा पक्की मिट्टी की पिण्डिकाएं (टेराकोटा केक) आदि प्राप्त हुए है।
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====भगवानपुरा (हरियाणा)====
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{{main|भगवानपुरा (हरियाणा)}}
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*भगवानपुरा [[हरियाणा]] के [[कुरूक्षेत्र]] ज़िले में [[सरस्वती नदी]] के दक्षिणी किनारे पर स्थित है।
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*जी.पी. जोशी ने इसका उत्खनन करवाया था।
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*यहां के प्रमुख अवशेषों में सफेद, काले तथा आसमानी रंग की कांच की चूड़ियां, तांबे की चूड़ियां प्रमुख है।
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====देसलपुर (गुजरात)====
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{{main|देसलपुर (गुजरात)}}
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*[[गुजरात]] के भुज ज़िले में स्थित 'देसलपुर' की खुदाई 'पी.पी. पाण्ड्या' और 'एक. के. ढाके' द्वारा किया गया ।
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*बाद में 'सौनदरराजन' द्वारा भी उत्खनन किया गया।  
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====रोजदी (गुजरात)====
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{{main|रोजदी (गुजरात)}}
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*रोजदी [[गुजरात]] के [[सौराष्ट्र]] ज़िले में स्थित था।
  
इस अज्ञात सभ्यता की खोज का श्रेय रायबहादुर दयाराम साहनी को जाता है। उन्होंने ही पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्शन के निर्देशन में 1921 में इस स्थान की खुदाई करवायी। लगभग एक वर्ष बाद 1922 में श्री राखल दास बनर्जी के नेतृत्व में पाकिस्तान के संध प्रान्त के लरकाना जिले के [[मोहन जोदड़ो]] में स्थित एक बौद्ध स्तूप की खुदाई के समय एक और स्थान का पता चला। इस नवीनतम स्थान के प्रकाश में आने के उपरान्त यह मान लिया गया कि संभवत: यह सभ्यता सिंधु नदी की घाटी तक ही सीमित हैं, अत: इस सभ्यता का नाम '''सिंधु घाटी की सभ्यता''' रखा गया। सबसे पहले 1921 में हड़प्पा नामक स्थल पर उत्खनन होने के कारण सिन्धु सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता पड़ा। पर कालान्तर में पिग्गट ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ों को 'एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानियाँ' बतलाया। अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस सभ्यता के लगभग 1000 स्थानों का पता चला है जिनमें कुछ ही परिपक्व अवस्था में प्राप्त हुए हैं। इन स्थानों में केवल 6 को ही नगर की संज्ञा दी जाती है। ये हैं- हड़प्पा, मोहनजोदड़ों, [[चन्हूदड़ों]], [[लोथल]], [[कालीबंगा]], [[हिसार]] एवं [[बनवाली]]।
 
==सभ्यता का विस्तार==
 
इस सभ्यता के अवशेष पाकिस्तान और [[भारत]] के पंजाब, [[सिंध]], [[बलूचिस्तान]], [[गुजरात]], [[राजस्थान]], [[हरियाणा]], पश्चिमी [[उत्तर प्रदेश]], [[जम्मू और कश्मीर|जम्मू-कश्मीर]] के भागों में पाये जा चुके हैं। इस सभ्यता का फैलाव उत्तर में जम्मू के मांदा से लेकर दक्षिण में [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] के मुहाने भगतराव तक और पश्चिम में मकरान समुद्र तट पर सुत्कागेनडोर से लेकर पूर्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में [[मेरठ]] तक है। इस सभ्यता का सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल सुत्कागेनडोर, पूर्वी पुरास्थल आलमगीरपुर, उत्तरी पुरास्थल मांडा तथा दक्षिण पुरास्थल दायमाबाद है। लगभग त्रिभुजाकार वाला यह भाग कुल क़रीब 12,99,600 वर्ग किसी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। सिन्धु सभ्यता का विस्तार पूर्व से पश्चिम तक 1600 किमी. तथा उत्तर से दक्षिण तक 1400 किमी. था। इस प्रकार सिंधु सभ्यता समकालीन मिस्त्र या सुमेरियन सभ्यता से अधिक विस्तृत क्षेत्र में फैली थी।
 
  
 
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13:21, 23 सितम्बर 2010 का अवतरण

आज से लगभग 70 वर्ष पूर्व पाकिस्तान के 'पश्चिमी पंजाब प्रांत' के 'माण्टगोमरी ज़िले' में स्थित 'हरियाणा' के निवासियों को शायद इस बात का किंचित्मात्र भी आभास नहीं था कि वे अपने आस-पास की जमीन में दबी जिन ईटों का प्रयोग इतने धड़ल्ले से अपने मकानों का निर्माण में कर रहे हैं, वह कोई साधारण ईटें नहीं, बल्कि लगभग 5,000 वर्ष पुरानी और पूरी तरह विकसित सभ्यता के अवशेष हैं। इसका आभास उन्हे तब हुआ जब 1856 ई. में 'जॉन विलियम ब्रन्टम' ने कराची से लाहौर तक रेलवे लाइन बिछवाने हेतु ईटों की आपूर्ति के इन खण्डहरों की खुदाई प्रारम्भ करवायी। खुदाई के दौरान ही इस सभ्यता के प्रथम अवशेष प्राप्त हुए, जिसे इस सभ्यता का नाम ‘हड़प्पा सभ्यता‘ का नाम दिया गया।

इस अज्ञात सभ्यता की खोज का श्रेय 'रायबहादुर दयाराम साहनी' को जाता है। उन्होंने ही पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक 'सर जॉन मार्शल' के निर्देशन में 1921 में इस स्थान की खुदाई करवायी। लगभग एक वर्ष बाद 1922 में 'श्री राखल दास बनर्जी' के नेतृत्व में पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के 'लरकाना' ज़िले के मोहन जोदड़ों में स्थित एक बौद्ध स्तूप की खुदाई के समय एक और स्थान का पता चला। इस नवीनतम स्थान के प्रकाश में आने क उपरान्त यह मान लिया गया कि संभवतः यह सभ्यता सिंधु नदी की घाटी तक ही सीमित है, अतः इस सभ्यता का नाम ‘सिधु घाटी की सभ्यता‘ (indus Valley Civilaction) रखा गया । सबसे पहले 1927 में 'हड़प्पा' नामक स्थल पर उत्खनन होने के कारण 'सिन्धु सभ्यता' का नाम 'हड़प्पा सभ्यता' पड़ा। पर कालान्तर में 'पिग्गट' ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ों को ‘एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानियां‘ बतलाया।

अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस सभ्यता के लगभग 1000 स्थानों का पता चला है जिनमें कुछ ही परिपक्व अवस्था में प्राप्त हुए हैं। इन स्थानों के केवल 6 को ही नगर की संज्ञा दी जाती है। ये हैं -

  1. हड़प्पा,
  2. मोहनजोदाड़ों,
  3. चन्हूदड़ों,
  4. लोथल,
  5. कालीबंगा,
  6. हिसार
  7. बणावली

सभ्यता का विस्तार

अब तक इस सभ्यता के अवशेष पाकिस्तान और भारत के पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पश्यिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के भागों में पाये जा चुके हैं। इस सभ्यता का फैलाव उत्तर में 'जम्मू' के 'मांदा' से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने 'भगतराव' तक और पश्चिमी में 'मकरान' समुद्र तट पर 'सुत्कागेनडोर' से लेकर पूर्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ तक है।

इस सभ्यता का सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल 'सुत्कागेनडोर', पूर्वी पुरास्थल 'आलमगीर', उत्तरी पुरास्थल 'मांडा' तथा दक्षिणी पुरास्थल 'दायमाबाद' है। लगभग त्रिभुजाकार वाला यह भाग कुल करीब 12,99,600 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। सिन्धु सभ्यता का विस्तार का पूर्व से पश्चिमी तक 1600 किमी. तथा उत्तर से दक्षिण तक 1400 किमी. था। इस प्रकार सिंधु सभ्यता समकालीन मिस्र या 'सुमेरियन सभ्यता' से अधिक विस्तृत क्षेत्र में फैली थी।

सिंधु सभ्यता के स्थल अब निम्नलिखित क्षेत्रों में मिलते हैं -

बलुचिस्तान

उत्तरी बलुचिस्तान में स्थित 'क्वेटा' तथा 'जांब' की धारियों में सैंधव सभ्यता से सम्बन्धित कोई भी स्थल नहीं है। किन्तु दक्षिणी बलूचिस्तान में सैंधव सभ्यता के कई पुरास्थल स्थित हैं जिसमें अति महत्वपूर्ण है 'मकरान तट'। मकरान तट प्रदेश पर मिलने वाले अनेक स्थलों में से पुरातात्विक दृष्टि से केवल तीन स्थल महत्वपूर्ण हैं-

  1. सुत्कागेनडोर (दश्क नदी के मुहाने पर),
  2. सुत्काकोह (शादीकौर के मुहाने पर) और
  3. बालाकोट (विंदार नदी के मुहाने पर), डावरकोट (सोन मियानी खाड़ी के पूर्व में विदर नदी के मुहाने पर)।

उत्तर पश्चिमी सीमांत

यहां सारी सामग्री, 'गोमल घाटी' में केन्द्रित प्रतीत होती है जो अफ़ग़ानिस्तान जाने का एक अत्यंत महत्वपूर्ण मार्ग है। 'गुमला' जैसे स्थलों पर सिंधु पूर्व सभ्यता के निक्षेपों के ऊपर सिंधु सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं।

सिंधु

इनमें कुछ स्थल प्रसिद्ध हैं जैसे - 'मोहनजोदड़ों', 'चन्हूदड़ों', 'जूडीरोजोदड़ों', (कच्छी मैदान में जो कि सीबी और जैकोबाबाद के बीच सिंधु की बाढ़ की मिट्टी का विस्तार है) 'आमरी' (जिसमें सिंधु पूर्व सभ्यता के निक्षेप के ऊपर सिंधु सभ्यता के निक्षेप मिलते हैं) 'कोटदीजी', 'अलीमुराद', 'रहमानढेरी', 'राणाधुडई' इत्यादि।

पश्चिमी पंजाब

इस क्षेत्र में बहुत ज्यादा स्थल नहीं है। इसका कारण समझ में नही आता। हो सकता है पंजाब की नदियों ने अपना मार्ग बदलते-बदलते कुछ स्थलों का नष्ट कर दिया हो। इसके अतिरिक्त 'डेरा इस्माइलखाना', 'जलीलपुर', 'रहमानढेरी', 'गुमला', 'चक-पुरवानस्याल' आदि महत्वपूर्ण पुरास्थल है।

बहावलपुर

यहां के स्थल सूखी हुई सरस्वती नदी के मार्ग पर स्थित हैं। इस मार्ग का स्थानीय नाम का ‘हकरा‘ है । 'घग्घर हमरा' अर्थात सरस्वती दृशद्वती नदियों की घाटियों में हड़प्पा संस्कृति के स्थलों का सर्वाधिक संकेन्द्रण (सर्वाधिक स्थल) प्राप्त हुआ है। किन्तु इस क्षेत्र में अभी तक किसी स्थल का उत्खनन नहीं हुआ है। इस स्थल का नाम 'कुडावाला थेर' है जो प्रकटतः बहुत बड़ा है।

राजस्थान

यहां के स्थल 'बहाबलपुर' के स्थलों के निरंतर क्रम में हैं जो प्राचीन सरस्वती नदी के सूखे हुए मार्ग पर स्थित है। इस क्षेत्र में सरस्वती नदी को 'घघ्घर' कहा जाता है। कुछ प्राचीन दृषद्वती नदी के सूखे हुए मार्ग के साथ- साथ भी है जिसे अब 'चैतग नदी' कहा जाता है। इस क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण स्थल 'कालीबंगा' है। कालीबंगा नामक पुरास्थल पर भी पश्चिमी से गढ़ी और पूर्व में नगर के दो टीले, हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ों, की भांति विद्यमान है। राजस्थान के समस्त सिंधु सभ्यता के स्थल आधुनिक गंगानगर ज़िले में आते है।

हरियाणा

हरियाणा का महत्वपूर्ण सिंधु सभ्यता स्थल हिसार ज़िले में स्थित 'बनवाली' है। इसके अतिरिक्त 'मिथातल', 'सिसवल', 'वणावली', 'राखीगढ़', 'वाड़ा तथा 'वालू' नामक स्थलों का भी उत्खनन किया जा चुका है।

पूर्वी पंजाब

इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण स्थल 'रोपड़ संधोल' है। हाल ही में चंडीगढ़ नगर में भी हड़प्पा संस्कृति के निक्षेप पाये गये हैं। इसके अतिरिक्त 'कोटलानिहंग ख़ान', 'चक 86 वाड़ा', 'ढेर-मजरा' आदि पुरास्थलों से सैंधव सभ्यता से सम्बद्ध पुरावशेष प्राप्त हुए है।

गंगा-यमुना दोआब

यहां के स्थल मेरठ ज़िले के 'आलमगीर' तक फैले हुए हैं। एक अन्य स्थल सहारनपुर ज़िले में स्थित 'हुलास' तथा 'बाड़गांव' है। हुलास तथा बाड़गांव की गणना पश्वर्ती सिन्धु सभ्यता के पुरास्थलों में की जाती है।

जम्मू

इस क्षेत्र के मात्र एक स्थल का पता लगा है, जो 'अखनूर' के निकट 'भांडा' में है। यह स्थल भी सिन्धु सभ्यता के परवर्ती चरण से सम्बन्घित है।

हड़प्पा सभ्यता के पुरास्थल
पुरास्थल स्थान
1- हड़प्पा सभ्यता का सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल सत्कागेन्डोर (बलूचिस्तान)
2- सर्वाधिक पूर्वी पुरास्थल

आलमगीरपुर (मेरठ)

3- सर्वाधिक उत्तर पूरास्थल

मांडा (जम्मू कश्मीर)

4- सर्वाधिक दक्षिणी पुरास्थल

दायमाबाद (महाराष्ट्र)

गुजरात

1947 के बाद गुजरात में सैंधव स्थलों की खोज के लिए व्यापक स्तर पर उत्खनन किया गया । गुजरात के 'कच्छ', 'सौराष्ट्र' तथा गुजरात के मैदानी भागों में सैंधव सभ्यता से सम्बन्घित 22 पुरास्थल है, जिसमें से 14 कच्छ क्षेत्र में तथा शेष अन्य भागों में स्थित है। गुजरात प्रदेश में ये पाए गए प्रमुख पुरास्थलों में 'रंगपुर', 'लापेथल', 'पाडरी', 'प्रभास-पाटन', 'राझदी', 'देशलपुर', 'मेघम', 'वेतेलोद', 'भगवतराव', 'सुरकोटदा', 'नागेश्वर', 'कुन्तासी', 'शिकारपुर' तथा 'धौलावीरा' आदि है।

महाराष्ट्र

प्रदेश के 'दायमाबाद' नामक पुरास्थल से मिट्टी के ठीकरे प्राप्त हुए है जिन पर चिरपरिचित सैंधव लिपि में कुछ लिखा मिला है, किन्तु पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में सैंधव सभ्यता का विस्तार महाराष्ट्र तक नहीं माना जा सकता है। ताम्र मूर्तियों का एक निधान, जिसे प्रायः हडप्पा संस्कृति से सम्बद्ध किया जाता है, वह महाराष्ट्र और दायमादाबद नामक स्थान से प्राप्त हुआ है - इसमें 'रथ चलाते मनुष्य', 'सांड', 'गैंडा', और 'हाथी' की आकृति प्रमुख है। यह सभी ठोस धातु की है और वजन कई किलो है, इसकी तिथि के विषय में विद्धानों में मतभेद है।

अफ़ग़ानिस्तान

हिन्दुकश के उत्तर में अफ़ग़ानिस्तान में स्थित 'मुंडीगाक' और 'सोर्तगोई' दो पुरास्थल है। मुंडीगाक का उत्खनन 'जे.एम. कैसल' द्वारा किया गया था तथा सोर्तगोई की खोज एवं उत्खनन 'हेनरी फ्रैंकफर्ट' द्वारा कराया गया था। सोर्तगोई लाजवर्द की प्राप्ति के लिए बसायी गयी व्यापारिक बस्ती थी।

काल निर्धारण

सैंधव सभ्यता के काल को निर्धारित करना निःसंदेह बड़ा ही कठिन काम है, फिर भी विभिन्न विद्धानों ने इस विवादास्पद विषय पर अपने विचार व्यक्त किये हैं। 1920 ई.पू. के दशक में सर्वप्रथम हड़प्पाई सभ्यता का ज्ञान हुआ।

  • हड़प्पाई सभ्यता का काल निर्धारण मुख्य रूप से 'मेसोपोटामिया' में 'उर' और 'किश' स्थलों पर पाए गए हड़प्पाई मुद्राओं के आधार पर किया गया। इस क्षेत्र में सर्वप्रथम प्रयास 'जॉन मार्शल' का रहा। उन्होंने 1931 ई. में इस सभ्यता का काल 3250 ई.पू. 2750 ई.पू. निर्धारित किया।
  • ह्वीलर ने इसका काल 2500 - 1500 ई.पू. माना है। बाद के समय में काल निर्धारण की रेडियो विधि का अविष्कार हुआ और इस विधि से इस सभ्यता का काल निर्धारण इस प्रकार है-
  1. पूर्व हड़प्पाई चरण: लगभग 3500-2600 ई.पू.
  2. परिपक्व हड़प्पाई चरण - लगभग 2600-1900 ई.पू.
  3. उत्तर हड़प्पाई चरण: लगभग 1900-1300 ई.पू.
  • रेडियो कार्बन ‘सी-14‘ जैसी नवीन विश्लेषण पद्धति के द्वारा हड़प्पा सभ्यता का सर्वमान्य काल 2500 ई.पू. से 1750 ई.पू. को माना गया है।
  • विभिन्न विद्धानों द्वारा सिंधु सभ्यता का काल निर्धारण
विभिन्न विद्धानों द्वारा सिंधु सभ्यता का काल निर्धारण
काल विद्धान
1- 3,500 - 2,700 ई.पू. माधोस्वरूप वत्स
2- 3,250 - 2,750 ई.पू.

जॉन मार्शल

3- 2,900 - 1,900 ई.पू.

डेल्स

4- 2,800 - 1,500 ई.पू. .

अर्नेस्ट मैके

5- 2,500 - 1,500 ई.पू.

मार्टीमर ह्यीलर

6- 2,350 - 1,700 ई.पू.

सी.जे. गैड

7- 2,350 - 1,750 ई.पू.

डी.पी. अग्रवाल

8- 2,000 - 1,500 ई.पू.

फेयर सर्विस.

सिधु सभ्यता के निर्माता और निवासी

यह अत्यन्त ही विवादाग्रस्त विषय है। इस विवाद में कुछ विद्धानों के प्रकार हैं-

  • 'डॉ. लक्ष्मण स्वरूप' और 'रामचन्द्र' सिंधु सभ्यता एवं वैदिक सभ्यता दोनों के निर्माता के रूप में आर्यो को मानते हैं।
  • 'गार्डन चाइल्ड' सिंधु सभ्यता के निर्माता के रूप में 'सुमेरियन' लोगों को मानते हैं।
  • 'राखाल दास बनर्जी' इस सभ्यता के निर्माता के रूप में द्रविड़ों को मानते हैं
  • ह्वीलर का मानना है कि ऋग्वेद में वर्णित दस्यु एवं ‘दास‘ सिंधु सभ्यता के निर्माता थे।
  • इन समस्त विवादों का अवलोकन करके 'डॉ. रमा शंकर त्रिपाठी' का कहना है कि 'ऐतिहासिक ज्ञान की इस सीमा पर खड़े होकर अभी इस विषय पर हमारा मौन ही सराह्य और उचित है।'

मुख्य स्थल

हड़प्पा

हड़प्पा 6000-2600 ईसा पूर्व की एक सुव्यवस्थित नगरीय सभ्यता थी। मोहनजोदड़ो, मेहरगढ़ और लोथल की ही श्रृंखला में हड़प्पा में भी पुर्रात्तव उत्खनन किया गया। यहाँ मिस्त्र और मैसोपोटामिया जैसी ही प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिले है। इसकी खोज 1920 में की गई। वर्तमान में यह पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित है। सन 1857 में लाहौर मुल्तान रेलमार्ग बनाने में हड़प्पा नगर की ईटों का इस्तेमाल किया गया जिससे इसे बहुत नुक़सान पहुँचा।

मोहनजोदड़ों

  • मोहन जोदड़ो, जिसका कि अर्थ मुर्दो का टीला है 2600 ईसा पूर्व की एक सुव्यवस्थित नगरीय सभ्यता थी।
  • हड़प्पा, मेहरगढ़ और लोथल की ही श्रृंखला में मोहन जोदड़ो में भी पुर्रात्तव उत्खनन किया गया।
  • यहाँ मिस्र और मैसोपोटामिया जैसी ही प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिले है।

इस सभ्यता के ध्वंसावशेष पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त के 'लरकाना ज़िले' में सिंधु नदी के दाहिने किनारे पर प्राप्त हुए हैं। यह नगर करीब 5 कि.मी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। मोहनजोदड़ों के टीलो का 1922 ई. में खोजने का श्रेय 'राखालदास बनर्जी' को प्राप्त हुआ।

चन्हूदड़ों

मोहनजोदाड़ो के दक्षिण में स्थित चन्हूदड़ों नामक स्थान पर मुहर एवं गुड़ियों के निर्माण के साथ-साथ हड्डियों से भी अनेक वस्तुओं का निर्माण होता था। इस नगर की खोज सर्वप्रथम 1931 में 'एन.गोपाल मजूमदार' ने किया तथा 1943 ई. में 'मैके' द्वारा यहां उत्खनन करवाया गया। सबसे निचले स्तर से 'सैंधव संस्कृति' के साक्ष्य मिलते हैं।

लोथल

यह गुजरात के अहमदाबाद ज़िले में 'भोगावा नदी' के किनारे 'सरगवाला' नामक ग्राम के समीप स्थित है। खुदाई 1954-55 ई. में 'रंगनाथ राव' के नेतृत्व में की गई। इस स्थल से समकालीन सभ्यता के पांच स्तर पाए गए हैं। यहां पर दो भिन्न-भिन्न टीले नहीं मिले हैं, बल्कि पूरी बस्ती एक ही दीवार से घिरी थी।

रोपड़

पंजाब प्रदेश के 'रोपड़ ज़िले' में सतलुज नदी के बांए तट पर स्थित है। यहां स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सर्वप्रथम उत्खनन किया गया था। इसका आधुनिक नाम 'रूप नगर' था। 1950 में इसकी खोज 'बी.बी.लाल' ने की थी।

कालीबंगा (काले रंग की चूड़ियां)

यह स्थल राजस्थान के गंगानगर ज़िले में घग्घर नदी के बाएं तट पर स्थित है। खुदाई 1953 में 'बी.बी. लाल' एवं 'बी. के. थापड़' द्वारा करायी गयी। यहां पर प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं।

सूरकोटदा

  • यह स्थल गुजरात के कच्छ ज़िले में स्थित है।
  • इसकी खोज 1964 में 'जगपति जोशी' ने की थी इस स्थल से 'सिंधु सभ्यता के पतन' के अवशेष परिलक्षित होते हैं।

आलमगीरपुर (मेरठ)

पश्चिम उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले में यमुना की सहायक हिण्डन नदी पर स्थित इस पुरास्थल की खोज 1958 में 'यज्ञ दत्त शर्मा' द्वारा की गयी।

रंगपुर (गुजरात)

  • गुजरात के कठियावाड़ प्राय:द्वीप में भादर नदी के समीप स्थित इस स्थल की खुदाई 1953-54 में 'ए. रंगनाथ राव' द्वारा की गई।
  • यहाँ पर पूर्व हडप्पा कालीन सस्कृति के अवशेष मिले हैं।
  • यहां मिले कच्ची ईटों के दुर्ग, नालियां, मृदभांड, बांट, पत्थर के फलक आदि महत्वपूर्ण हैं।
  • यहां धान की भूसी के ढेर मिले हैं।
  • यहां उत्तरोत्तर हड़प्पा संस्कृति के साक्ष्य मिलते हैं।
हड़प्पाकालीन नदियों के किनारे बसे नगर
नगर नदी/सागर तट
1- मोहनजोदाड़ो सिंधु नदी
2- हड़प्पा

रावी नदी

3- रोपड़

सतलुज नदी

4- कालीबंगा

घग्घर नदी

5- लोथल

भोगवा नदी

6- सुत्कागेनडोर

दाश्त नदी

7- वालाकोट

अरब सागर

8- सोत्काकोह

अरब सागर

9- आलमगीरपुर

हिन्डन नदी

10- रंगपुर

मदर नदी

10- कोटदीजी

सिंधु नदी

बणावली (हरियाणा)

  • हरियाणा के हिसार ज़िले में स्थित दो सांस्कृतिक अवस्थाओं के अवषेश मिले हैं।
  • हड़प्पा पूर्व एवं हड़प्पाकालीन इस स्थल की खुदाई 1973-74 ई. में 'रवीन्द्र सिंह विष्ट' के नेतृत्व में की गयी।

अलीमुराद (सिंध प्रांत)

  • सिंध प्रांत में स्थित इस नगर से कुआं, मिट्टी के बर्तन, कार्निलियन के मनके एवं पत्थरों से निर्मित एक विशाल दुर्ग के अवशेष मिले हैं।
  • इसके अतिरिक्त इस स्थल से बैल की लघु मृण्मूर्ति एवं कांसे की कुल्हाड़ी भी मिली है।

सुत्कागेनडोर (दक्षिण बलूचिस्तान)

  • यह स्थल दक्षिण बलूचिस्तान में दाश्त नदी के किनारे स्थित है।

हड़प्पाकालीन सभ्यता से सम्बन्धित कुछ नवीन क्षेत्र

खर्वी (अहमदाबाद)

  • अहमदाबाद से 114 किमी. की दूरी पर स्थित इस स्थान से हड़प्पाकालीन मृदभांड एवं ताम्र आभूषण के अवशेष मिले है।

कुनुतासी (गुजरात)

  • गुजरात के राजकोट ज़िले में स्थित इस स्थल की खुदाई 'एम.के. धावलिकर', 'एम.आर.आर. रावल' तथा 'वाई.एम. चितलवास' द्वारा करवाई गई।
सिधु सभ्यता के प्रमुख स्थल एवं उसके खोजकर्ता
प्रमुख स्थल खोजकर्ता वर्ष
1- हड़प्पा माधो स्वरूप वत्स, दयाराम साहनी 1921
2- मोहनजोदाड़ो

राखाल दास बनर्जी

1922

3- रोपड़

यज्ञदत्त शर्मा

1953

4- कालीबंगा

ब्रजवासी लाल, अमलानन्द घोष

1953

5- लोथल

ए. रंगनाथ राव

1954

6- चन्हूदड़ों

एन.गोपाल मजूमदार

1931

7- सुरकोटदा

जगपति जोशी

1964

8- बणावली

रवीन्द्र सिंह विष्ट

1973

9- आलमगीरपुर

यज्ञदत्त शर्मा

1958

10- रंगपुर

माधोस्वरूप वत्स, रंगनाथ राव

1931.-1953

10- कोटदीजी

फज़ल अहमद

1953

11- सुत्कागेनडोर

ऑरेल स्टाइन, जार्ज एफ. डेल्स

1927

धौलावीरा

  • इस स्थल की खुदाई से विशाल सैन्धव कालीन नगर के अवशेष का पता चलता है।

कोटदीजी (सिंध प्रांत)

  • सिंध प्रांत के 'खैरपुर' नामक स्थान पर यह स्थल स्थित है।
  • सर्वप्रथम इसकी खोज 'धुर्ये' ने 1935 ई. में की ।
  • नियमित खुदाई 1953 ई. में फज़ल अहमद खान द्वारा सम्पन्न करायी गयी।

बालाकोट (बलूचिस्तान)

  • नालाकोट से लगभग 90 कि.मी. की दूरी पर बलूचिस्तान के दक्षिणी तटवर्ती पर बालाकोट स्थित था।
  • इसका उत्खनन 1963-1970 के बीच 'जॉर्ज एफ.डेल्स' द्वारा किया गया ।

अल्लाहदीनों (अरब महासागर)

  • अल्लाहदीनों सिन्धु और अरब महासागर के संगम से लगभग 16 किमी. उत्तर-पूर्व तथा कराची से पूर्व में स्थित है।
  • 1982 में 'फेयर सर्विस' ने यहां पर उत्खनन करवाया था।

माण्डा

  • चेनाब नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित यह विकसित हड़प्पा संस्कृति का सबसे उत्तरी स्थल है।
  • इसका उत्खनन 1982 में 'जे.पी. जोशी' तथा 'मधुबाला' द्वारा करवाया गया था।
  • उत्खनन से प्राप्त यहां से तीन सांस्कृतिक स्तर
  1. प्राक् सैन्धव,
  2. विकसित सैंधव, तथा
  3. उत्तर कालीन सैंधव प्रकाश में आए।
  • यहां विशेष प्रकार के मृदभांड (मिट्टी के बर्तन), गैर हड़प्पा से सम्बद्ध कुछ ठीकरा पक्की मिट्टी की पिण्डिकाएं (टेराकोटा केक) आदि प्राप्त हुए है।

भगवानपुरा (हरियाणा)

  • भगवानपुरा हरियाणा के कुरूक्षेत्र ज़िले में सरस्वती नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है।
  • जी.पी. जोशी ने इसका उत्खनन करवाया था।
  • यहां के प्रमुख अवशेषों में सफेद, काले तथा आसमानी रंग की कांच की चूड़ियां, तांबे की चूड़ियां प्रमुख है।

देसलपुर (गुजरात)

  • गुजरात के भुज ज़िले में स्थित 'देसलपुर' की खुदाई 'पी.पी. पाण्ड्या' और 'एक. के. ढाके' द्वारा किया गया ।
  • बाद में 'सौनदरराजन' द्वारा भी उत्खनन किया गया।

रोजदी (गुजरात)


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