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दिल्ली भारत की राजधानी, एक महानगरीय क्षेत्र है। तथा भारत का एक राज्य भी है। महान ऐतिहासिक महत्त्व वाला यह महानगरीय क्षेत्र महत्त्वपूर्ण व्यापारिक, परिवहन एव सांस्कृतिक हलचलों से भरा है। यह राज्य देश की राजनीति का स्नायु केंद्र है। वास्तव मे यहा दो शहर है पुरानी और नई दिल्ली राज्य इन दोनों के साथ–साथ आसपास के ग्रामीण क्षेत्रो से मिलकर बना है। जो 213 से 305 मीटर की भिन्न ऊंचाइयों पर करीब 1,485 वर्ग किमी फैला है। दिल्ली देश के उत्तरी मध्य भाग मे गगा की एक प्रमुख सहायक नदी यमुना के दोनों तरफ बसी है। इसकी पूर्वी सीमा पर उत्तर प्रदेश राज्य है यथा उत्तर पश्चिम तथा दक्षिण मे हरियाणा है। 1,37,82,976(2001) की जनसख्या वाली दिल्ली देश का तीसरा बड़ा शहर है। अनुश्रुति है कि इसका वर्तमान नाम राजा ढीलू के नाम पर पड़ा जिसका आधिपत्य ई.पू पहली शताब्दी मे इस क्षेत्र पर था । बहरहाल बिजोला अभिलेखों (1170ई.) मे उल्लिखित ढिल्ली या ढिल्लिका सबसे पहला लिखित उद्धरण है।
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=भौतिक एव मानव भूगोल =
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दिल्ली एक जलसंभर पर स्थित है। जो गगा तथा सिंध नदी प्रणालियों को विभाजित करता है। दिल्ली की सबसे महत्त्वपूर्ण स्थालाकृति विशेषता पर्वत स्कंध (रिज) है, जो राजस्थान प्रांत की प्राचीन अरावली पर्वत श्रेणियों का चरम बिंदु है। अरावली संभवत: दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत माला है, लेकिन अब यह पूरी तरह वृक्ष विहीन हो चुकी है। पश्चिमोत्तर पश्चिम तथा दक्षिण मे फैला और तिकोने परकोट की दो भुजाओं जैसा लगने वाला यह स्कंध क्षेत्र 180 वर्ग किमी क्षेत्र मे फैला है। कछारी मिटटी के मैदान को आकृति की विविधता देता है तथा दिल्ली को कुछ उत्कृष्ट जीव व वनस्पतियां उपलब्ध कराता है। यमुना नदी त्रिभुजाकार परकोटे का तीसरा किनारा बताती है। इसी त्रिकोण के भीतर दिल्ली के प्रसिद्ध सात शहरो की उत्पत्ति ई.पू.1000 से 17 वीं शताब्दी के बीच हुई ।
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=जलवायु=
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दिल्ली की जलवायु उपोष्ण है। जो इसके भीतर प्रदेश होने की भू- स्थिति से प्रभावित है। गर्मी के महीने (मई तथा जून) बेहद शुष्क और झुलसाने वाले होते है। दिन का तापमान कभी-कभी 43-45 तक पहुंच जाता है। मानसून जुलाई मे आता है। और तापमान को कम करता है। लेकिन सिंतंबर के अंत तक मौसम गर्म, उमस भरा और कष्टप्रद रहता है। यहां की वार्षिक औसत वर्षा लगभग 660 मिमी है। अक्टूबर से मार्च के बीच का मौसम काफी सुहावना रहता है। हालाकि दिसंबर तथा जनवरी के महीने खूब ठंडे व कोहरे से भरे होते है। और कभी-कभी वर्षा भी हो जाती है। शीतकाल में प्रतिदिन का औसत न्यूनतम तापमान 7 से के आसपास रहता है, लेकिन कुछ रातें अधिक सर्द होती है।
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=वनस्पति= दिल्ली की परिवर्तनशील जलवायु के कारण तीन वानस्पतिक काल होते है। वर्षा की कमी तथा भूमिगत जल –स्तर के नीचे से प्राकृतिक वनस्पति का प्रर्याप्त विकाश नही हो पाता । फूलों के करीब 1,000 प्रजातिया, जिनमे से अधिकाशं स्वदेशी मूल के है। यहां के वातावरण के अनुरुप ढल चुके है, और दिल्ली शहर तथा आसपास के वातावरण मे फलफूल रहे है। पहाड़ियों एव नदी के तटवर्ती भूभाग की वनस्पतियां स्पष्टत :भिन्न है। स्कंध क्षेत्र में पाई जाने वाली पर्वतीय वनस्पतियों मे बबूल, जगली खजूर तथा सघन झाड़ियां है। जिनमें कुछ फूलदार प्रजातियां भी शामिल है। यहा घास, बेले तथा लिपटने वाली अल्पायु लताए भी होती गै, जो केबल बरसात के मौसम मे पनपती है। दूसरी ओर नदी के तट के रेतीले एव क्षारीय भूभाग मे विशेषकर मानसून व ठंड के महीने में वनस्पतियां समृद्ध एंव भिन्न है।
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=प्राणीजीवन=
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दिल्ली में प्राणी जीवन खासा विपुल, विविध तथा देशज है तथा प्राणिविज्ञान की द्रष्टि से सिस – गंगा की श्रेणी में आता है। मांसाहारी जीव प्रमुख रुप से देशी स्तंनपायी है। लकड़बग्घे, भेड़िऐ,लोमड़ी,सियार तथा तेंदुए,जो पहले निचले जंगलों मे विचरण करते थे , अब दर्रो तथा शहर की सीमांत पहाड़ी चोटियों पर पाए जाते है। हिरन तथा वहार खुरदार प्राणियों का प्रतिनिधित्व करते है। ये अब अपनी प्राकृतिक प्रर्यावास में कम ही मिलते है। साही खरगोश, चूहे व गिलहरियां शहर के कृतंकजीव हैं तथा चमगादड़ कांटाचूहा और छछूंदर दिल्ली के कीट भक्षी प्राणी है। जो अक्सर मंदिरों तथा ऐतिहासिक खंडहरों के आसपास पाए जाते है।
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दिल्ली का पक्षी जीवन भी समृद्ध एव विविध है। घरेलू कबूतर,गौरैया, चीलें, कौवे, तोते जंगली बटेर, तीतर, पूरे साल पाए जाते है। दिल्ली के आसपास की झीलें शीतकाल में कई प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करती है।
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=प्रशासन एवं नियोजन=
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दिल्ली ने प्रशासनिक व्यवस्था मे कई फेरबदल देखे है। 2 अगस्त 1858 को ब्रिटिश संसद ने भारत सरकार अधिनियम पारित किया, जिसने भारत की अंग्रेजी सत्ता को ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश राज में स्थानांतरित कर दिया । 1876 में महारानी विक्टोरिया के शासनाधिकार में भारत की सम्राज्ञी पदवी शामिल हो गई । 1947 तक दिल्ली मुख्य आयुक्त की अध्यक्षता में ब्रिटिश प्रांत रही । आजादी के बाद 1952 में यह केद्र्शासित राज्य बनी लेकिन 1956 में इसका दर्जा बदल गया तथा यह केंद्र सरकार के अधीन केंद्र्शासित प्रदेश हो गई । 1958 में शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रो के लिए एक एकीकृत नियम की स्थापना की गई । दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था में अधिनियम 1966 के तहत फिर परिवर्तन किया गया तथा तीन स्तरीय प्रणाली लागू की गई, जो एक उपराज्य पाल और एक कार्यकारी परिषद, एक निर्वाचित महानगरीय परिषद तथा नगर को मिलाकर बनाई गई है। संविधान के 69 वें संशोधन द्वारा इसे 1991 में विशिष्ट राज्य का दर्जा एवं निर्वाचित विधान सभा दी गई। राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत उप –राज्यपाल दिल्ली का प्रमुख होता है और प्रशासन मुख्यमंत्री चलाता है, जो निर्वाचित दल द्वारा नियुक्त किया जाता है।
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दिल्ली राज्य प्रशासनिक एव नियोजन क्षेत्रों के कई स्तरों का समूह है। इसका दायरा 1,485 वर्ग किमी है, जिसमे शहरी संकेंद्रण तथा 209 गांवआते है। जो दिल्ली महरौली तहसीलों में बटे है। वृहद स्तर पर यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एन.सी.आर.) काही भाग है। जो नगर एव ग्रामीण संगठन (टी.सी.पी.ओ.) द्वारा 1971 में एक नियोजन क्षेत्र के रुप मे अलग किया गया, ताकि दिल्ली के इर्द –गिर्द भावी विकाश को दिशा दी जा सके। एन. सी. आर के अंतर्गत दिल्ली राज्य तथा हरियाणा, उत्तर प्रदेश व राजस्थान के सीमावर्ती जिले या तहसीलें आती है। यह क्षेत्र दिल्ली महानगरके आसपास लगभग 100 किमी अर्द्धव्यास में फैला है। तथा इसमे 30,242,वर्ग किमी क्षेत्र आता है। क्षेत्र के भावी संतुलित विकास के लिए एक समंवित मास्टर प्लान तैयार करने हेतु 1985 में एन.सी.आर.बोर्ड का गठन किया गया । दिल्ली महानगर क्षेत्र उपवृहद स्तर पर है। जिनमे दिल्ली तथा निकटवर्ती राज्यों के सटे हुए शहरी भाग आते है। जो 3,182 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले है। लघु स्तर पर दिल्ली का शहरी समूह आताहै, जिसका क्षेत्रफल 446 वर्ग किमी है। इसमे तीन नगरीय क्षेत्र आते है: नई दिल्ली नगर पालिका समिति(एन.डी.एम.सी.) नगर निगम दिल्ली (शहर), एम.सी.डी. (यू) तथा दिल्ली छावनी के साथ-साथ सेंसस द्वारा वर्गीकृत 23 उपनगर ।
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दिल्ली का महानगरीय अधिशासन मुख्य रुप से नई दिल्ली नगर पालिका, दिल्लीनगर निगम तथा छावनी परिषद के अधीन है। दिल्ली नगर निगम निर्वाचित निकाय है। नई दिल्ली नगरपालिका (एन.डी.एम. सी.) के सदस्य शासन द्वारा मनोनीत होते है। नगर निगम के दायरे में अनिवार्य नागरिक एव उचित कल्याणकारी कार्य आते है। गंदी बस्तियों को हटाकर एव सुधार इसके मुख्य कार्य है। यह अपना काम क्षेत्रीय समितियों के माध्यम से करती है। जो स्थानीय पार्षदो तथा एक या अधिक पौर – मुख्य से गठित है, नई दिल्ली नगर पालिका का गठन 1933 में हुआ यह केवल नई दिल्ली (इसेयह स्वरुप वास्तुविद एडविन लूटियंस ने दियाथा) तथा इससे लगे हुए क्षेत्रो के प्रति उत्तरदायी है
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। छावनी क्षेत्र के स्थानीय कार्य रक्षा मंत्रालय के प्रशासन में आते है।
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महानगरीय दिल्ली की योजना की जिम्मेदारी दिल्ली विकाश प्राधिकरण (डी.डी.ए.) के अधीन है, जिसका गठन 1957 के एक संसदीय अधिनियम के तहत हुआ । शहर के प्रथम 20 वर्षो की नगर योजना (मास्टर प्लान) टी.सी.पी.ओ.द्वारा तैयार की गईतथा इसे दिल्ली की बेतरतीब वृद्धि को नियंत्रित करने तथा आम लोगों की क्रय –क्षमता योग्य एव उपयुक्त आवास उपलब्ध कराने के उदेश्य से स्वीकृत आधारों पर डी.डी.ए. द्वारा 1962 में लागू किया गया । शासन द्वारा 24 हजार हेक्टेयर क्षेत्र का अधिकरण करके शहरी विकाश के लिए डी.डी.ए. को सौपा गया। इस तरह डी. डी.ए साम्यवादी विश्व से baahar बाहर राष्ट्रीयकृत भूमि का सबसे बड़ा विकासक बन गया । विलंबित दूसरी नगर योजना 1986 में प्रभाव में आई तथा यह उद्योगीकरण को धीमा करने, विकेंद्रीकरण, अनेक स्थानोंको जोड़ते लोक परिवहन के प्रावधान तथा कम ऊंचाई वाली किंतु घनी आवासीय व्यवस्था पर केंद्रित थी।
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=जनजीवन=
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अन्य राजधानियों की तरह दिल्ली महानगर की गतिविधियां भी अत्यंत सक्रिय है। 19 वी सदी के अंत मुगल शासन काल का वैभव समाप्त हो चुका था, दिल्ली की आबादी मुश्किल से पांचलाख थी, लेकिन धीरे धीरे यह किसी दानव की तरह बढती गई । वर्ष 2001 मे दिल्ली की शहरी आबादी 1करोड़ 28 लाख के लगभग पहुच चुकी है। और दिल्ली राज्य की कुल आबादी 1 करोड़ 37 लाख के लगभग पहुच गई है। जनसांख्यिकीय विश्लेषण के अनुसार 90 प्रतिशत आवादी शहरी है। इनमे भी 85 प्रतिशत लोग तीन स्थायी नगरो मे बसते है।
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2001 की जनगणना के अनुसार, दिल्ली की आबादी में लिंग अनुपात (प्रति1,000 पुरुषो पर महिलाएं) शहरी क्षेत्र मे 821 है, जिसमे 1991 के 827के मुकाबले कमी आई है। यह इस बात का सूचक है कि पुरुषोंका शहरो की तरफ पलायन अधिक है। दिल्ली में साक्षरता का प्रतिशत 81.82 है, जो राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है।
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अगर हम दिल्ली के जनसांख्यिकी इतिहास पर नजर डाले, तो 1947 का कालखंड एक संक्रांति काल की तरह हमारे सामने खड़ा दिखाई देता है। इस काल मे हजारों शरणार्थी पाकिस्तान से दिल्ली आए । इनकी वजय से न केबल यहां का जनसांख्यिकी ढांचा बदला, वल्कि दिल्ली के सामाजिक – सांस्कृति और आर्थिक स्वरुप में भी परिर्वतन आया । तब से शहर प्रवासियों की वजय से फैलता गया। हाल के दशकों मे यहा जन्म दर गिरी है, लेकिन प्रवासियों की आवादी का एक – तिहाई से अधिक हिस्सा प्रवासियों का है।
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शहर के मुख्य धार्मिक समूहों में (1991 की जनगणना के अनुसार) हिंदू (लगभग 83 प्रतिशत) , सिक्ख (लगभग नौ प्रतिशत ) है। जनसंख्या के शेष चार प्रतिशत का निर्माण जैन, ईसाई, बौद्ध और अन्य लोग करते है। अधिकाश लोग हिंदी या उसका परिवर्वित रुप हिंदुस्तानी बोलते है। पंजाबीभाषा पंजाबियों द्वारा बोली जाती है। तथा उर्दू मुसलमानों प्रातों से आए आप्रवासी अपनी-अपनी भाषा बोलते है, लेकिन कामचलाऊ हिंदी सीखने की कोशिश करते है। शिक्षित वर्ग द्वारा अंग्रेजी समझी व बोली जाती है।
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=अर्थव्यवस्था=
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किसी भी ऐतिहासिक राजधानी की तरह दिल्ली भी वैविध्यपूर्ण केंद्र है, जिसमे प्रशासन, सेवाएं और निर्माण अच्छी तरह मिले –जुले है। दिल्ली कला एव हस्तकौशल की प्रचुर विविधता का केंद्र रहा है। मुगल काल में दिल्ली रत्न और आभूषण, धातु पच्चीकारी, कसीदाकारी, सोने की पच्चीकारी, रेशम और जरी का काम, मीनाकारी और शिल्प, मूर्तिकला और चित्रकला के लिए विख्यात थी। एक महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक केंद्र के रुप मे भी इसकी पहचान थी
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दिल्ली का वर्तमान प्रशासकीय महत्व उस समय से है, जब भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी से लेकर महारानी विक्टोरिया को सौंप दिया गया और ब्रिटिश साम्राज्य की राजधानी, वाणिज्यिक और सेवा के6द्र के रुप में विकशित हो गई । यहा की लगभग तीन – चौथाई आबादी व्यापार लोक प्रशासन, सामुदायिक, सामाजिक और निजी सेवाओं में संलग्न है। 20 वीं सदी के प्रारंभ में यहां आधुनिक उद्योगों का प्रवेश हुआ । यहा के बड़े उद्योगों मे कपास की ओटाई, कताई और बुनाई; आटा एव मैदा की मिलें पैकिंग; गन्ने व तेल का प्रसंस्करण प्रमुख थे । लघु उद्योगों में मुद्रण, जूता निर्माण, कसीदाकारी, बेकरी , शराब निर्माण लोहा तथा पीतल का काम होता है। 1980 के दशक से औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि शुरु हुई । 1981 में 50 हजार पंजीकृत औद्योगिक इकाइयों की संख्या बढकर 1990 में 81 हजार हो गई । इस कालखंड में औद्योगिक निवेश, उत्पादन और रोजगार मे भी लगभग दुगुनी वृद्धि हुई । 1990 के दशक मे इस शहर के आर्थिक स्वरुप मे महत्त्वपूर्ण स्थान बन गया और पुरानी दिल्ली ने उत्तर भारत के थोक वाणिज्यिक केंद्र के रुप में अपनी पहचान को और अधिक सुद्र्ढ बना लिया ।
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=इतिहास=
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का दिल्ली पुरातात्विक परिद्र्श्य अत्यत दिलचस्प है सहस्राब्दियों पुराने स्मारक कदम कदम पर खड़े नजर आते है। नए या पुराने किलेबंद स्थान पर निर्मित 13 शहरों ने दिल्ली –अरावती त्रिकोण के लगभग 180 वर्ग किमी के एक सीमित क्षेत्र है। मे अपनी मौजूदगी के निशान छोड़े है। दिल्ली के बारे मे यह किंवदंती प्रचलित है कि जिसने भी यहा नया शहर बनाया, उसे इसे खोना पड़ा । सबसे पुराना नगर इंद्रप्रस्थ, करीब 1400 ई.पू निर्मित किया गया था और वेद व्यास रचित महाकाव्य महाभारत में इसका वर्णन पांडंवो की राजधानी के रुप में मिलता है।
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इस त्रिकोण मे निर्मित दिल्ली का दूसरा शहर है। अनंगपुर या आंनदपुर, जिसकी स्थापना लगभग 1020 ई. मे तोमर राजपूत नरेश अनंग पाल ने राजनिवास के रुप मे की थी । यह शहर अर्द्धवृत्ताकार निर्मित तालाब सूरजकुंड के आसपास बसा था। अनल पाल ने बाद मे इसे 10 किमी पश्चिम की ओर लालकोट पर स्थापित एक दुर्ग मे स्थानातरित किया ।
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संभवत: एक चौहान राजपूत विशाल देव द्वारा 1153 मे इसे लीतने के पूर्व लाल कोट पर लगभग एक शताब्दी तक तोमर राजाओं का आधिपत्य रहा । विशाल देव के पौत्र पृथ्वीराज या राय पिथोरा ने 1164 ई.मे लाल कोट के चारो और विशाल परकोट बनाकर इसका विस्तार किया । यह दिल्ली का तीसरा शहर कहलाता है। और किला राय पिथोरा के नाम से जाना गया। कई इतिहासकार इसे दिल्ली के सात शहरो में प्रथम मानते है। 1192 की लड़ाई मे मुस्लिम आक्रमणकारी मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज की हत्या कर दी । गोरी यहा से दौलत लूटकर चले गए और अपने गुलाम कुतुबुदीन ऐबक को यह उपासक नियुक्त कर गए । 1206 मे गोरी की मृत्यु के बाद कुतुबुदीन ऐबक ने स्वंय को भारत का सुल्तान घोषित कर दिया और लालकोट को अपने साम्राज्य की राजधानी बनाया ।अगली तीन शताब्दियों तक यहा छोटे अंतंरालोंके साथ सुल्तान वंश का शासन रहा । कुतुबुdeenदीन ऐबक ने लाल कोट को एक
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और महत्त्वपूर्ण स्मारक कुतुब मीनार दिया । यह विजय का स्मारक था और संभवत : एक मस्जिद की मीनार थी लेकिन कुतुबुमीनार के वर्तमान स्वरुप का निर्माण फिरोज शाह ने पूरा करवाया, जिसमे उन्होने संगमरमर के अलंकरण के काम के साथ –साथ दो और मंजिलें बनवाई जिसमे उसकी ऊंचाई 74 मीटर हो गई । एक तरफ से यह भारत मे सुल्तान वंश के गौरवपूर्ण व विजयी आगमन का प्रतीक थी।
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खलजी शासन (1290-1321) के दौरान दिल्ली पर मंगोल लुटेरो ने आक्रमण कर इसके असुरक्षित उपनगरो को ध्वस्त कर दिया । 1303 में अलाउदीन ने इसके चारों ओर 1.7 वर्ग किमी क्षेत्र में एक नया वृत्ताकार किलाबंद शहर बनवाया ताकि मंगोल पुन आक्रमण कर उपनगरों व बगीचों को ध्वस्त न कर सकें ।
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कुतुब-लाल कोट संकुल के विपरीत जो शहर देहली-ए-कुहना(पुरानी दिल्ली) कहलाता था, प्रारंभ मे लश्कर या लश्करगाह (सैनिक छावनी) के नाम से जाना गया। लाल कोट के साथ जुड़ी इस चारदीवारी से घिरी नगरी को बाद मे सिरी नाम दिया गया तथा इसे खजली राजधानी (दारुल खिलाफ) के रुप में जाना गया । इसकी परिधि की दीवार लगभग 1.5 किमी लंबी थी और उसमे कई मीनार व दरवाजे बने हुए थे । सिरी की गणना आमतौर पर दिल्ली के दूसरे शहर के रुप मे होती है, किंतु यह मुस्लिम विजेताओं द्वारा भारत में स्थापित पहला पूर्णत: नया शहर था।
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इस प्रकार 14 वीं शताब्दी की दिल्ली में कुतुबु-लाल कोट संकुल स्थित देहली-ए-कुहना या पुरानी दिल्ली; गयासपुर – किलोखड़ी स्थित शहर-ए-नउ या नया शहर;और सिरी स्थित दारुल खिलाफ या राजधानी सम्मिलित थे। 1321 मे दिल्ली तुगलकों के हाथों में चली गई, क्योंकि खजली वंश के अंतिम शासक की मृत्यु बिना पुरुष उत्तराधिकारी केहो गई थी । 11 तुगलक शासकों ने दिल्ली पर शासन की किया लेकिन वास्तुशिल्प में केवल तीन ने रुचि दिखाई उनमे से प्रत्येक ने दिल्ली त्रिकोण में स्थित वर्तमान शहरी समूह में एक नए शहर का राजधानी के रुप मे निर्माण किया । यह शहर सुल्तानों की सैन्य प्रकृतिऔर सुरक्षा के प्रति तुगलकों की दीवानगी को दर्शाते है। पहले एक दुर्ग तथा बाद मे एक शहर के रुप मे विकसित इन राजधानियों मे पहला गयासुदीन तुगलक द्वारा निर्मित किलाबंद नगर – दुर्ग तुगलकाबाद (1321-25)था।
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मुहम्मद विन तुगलक (शासनकाल 1325-51) ने एक ऐसी राजधानी की कल्पना की थी, जो साम्राज्य की इनकी योजन को प्रतिविंबित करे। यह योजन विस्तार की अपेक्षा उसे सुद्र्ढ बनाने के लिए थी। सीमा पर आक्रमण अभी रुके नही थे, इसलिए उन्होने कुतुबुदिल्ली, सिरी तथा तुगलकाबाद के चारों ओर एक रक्षा दीवार बनाई और जहापनाह नामक एक नये शहर का निर्माण करवाया । अपने निर्मान के शीघ्र बाद ही यह शहर अव्यवस्था का शिकार हो गया । अचानक मुहम्मद तुगलक ने दक्कन में हाल ही में विजित क्षेत्र पर निगरानी रखने के लिए अपनी राजधानी देवगिरी ले जाने का निश्चय किया, जिसक नाम उन्होने दौलताबाद रखा। 1338 में जहांपनाह की आबादी को नई राजधानी के लिए कूच करने के आदेश मिले । उजाड़ दिल्ली छोटे – छोटे टुकड़ो में बंट गई और इसके खंडहर नए शहर फिरोजाबाद के लिए ईटों के भडार साबित है। जो तीसरा और अंतिम तुगलककालीन शहर था। 1354 में यमुना के किनारे स्थापित यह शहर, सिरी से लगभग 8 किमी पूर्वोत्तर मे स्थित था। यह शहर यानी पांचवीं दिल्ली फिरोज शाह,(1351-88) द्वारा बसाई गई और उन्ही के नाम से जानी गई ।
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कहा जताहै कि 14 वीं सदी की दिल्ली मे तुगलकाबाद सैन्य प्रतिष्ठान था, निजामुदीन फकीरों का इलाका था और उपनगर हौजखास विद्वानों की बस्ती थी। मंगोल विजय के बाद समरकंद और मध्य एशिया के विश्वविद्यालयों से शिक्षित है। शरणार्थी दिल्ली मे आ बसे । उच्च शिक्षा
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के लिए हौजखास के मदरसे की ख्याति पूरी सल्तनत में फैली हुई थी।
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तुगलकों के परवर्ती सैयद (1414-1444) और लोदी (1451-1526) शासकों ने स्वयं को फिरोजाबाद तक सीमित रखा । उनके शासन काल के दौरान लगातार उपद्रव चलते रहे और उन्हे नएअ शहर बसाने का समय नही मिला । 1526 में भारत के पहले मुगल शासक बाबार का प्रवेश हुआ और उन्होंने आगरा को अपनी राजधानी बनाया। 1530में उनके बेटे हुमायूं गद्दी पर बैठेऔर उन्होने 10 संघर्षमय वर्षो तक दिल्ली पर राज किया । 1553 में उन्होने अपने शासन की स्थापना के उपलक्ष्य में नए शहर दीनपनाह का निर्माण किया इसके लिए बड़ी सावधानी से यमुना के किनारे एक स्थान चुना गया। अब इस शहर का नामोनिशान नही है। क्योंकि शेरशाह सूरी ने इसे पूरी तरह ध्वस्त कर दिया था।
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अगले दो मुगल शासकों अकबर और जहांगीर ने आगरा को राजधानी बनाकर भारत पर शासन करना पसंद किया लेकिन दिल्ली के महत्त्व को समझकर वे बीच – बीच मे दिल्ली आते रहे । 1636 में शाहजहां ने अभियंताओं, वास्तुविदों तथा ज्योतिषियों को आगरा व लाहौर के बीच अच्छे जलवायु वाले स्थान के चयन का निर्देश दिया । यमुना के पश्चिमी किनारे पर पुराने किले के उत्तर में सुल्तानों की हजरत दिल्ली का चयन किया गया । शाहजहां ने यहां उर्दू –ए-मौला नामक एक किले को केंद्र में रखकर नई राजधानी का निर्माण शुरु करवाया। लाल किले के नाम से विख्यात यह किला आठ वर्षो में पूर्ण हुआ और 19 अप्रैल 1648 को शाहजहां ने अपनी इस नई राजधानी शाहजहांनाबाद के किले में नदी के सामने वाले द्वार से प्रवेश किया ।
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लाहौर गेट किले का भव्य प्रवेशद्वार है। यहां से शहर की प्रमुख सड़क शुरु होकर फतेहपुरी मस्जिद तक जाती है। 36 मीटर चौड़ी यह सड़क शहर की मुख्य धुरी थी रात को बीच के जलाशय पर पड़ती है। चंद्रमा की रुपहरी रोशनी ने इस स्थान को चांदनी चौक नाम दिया। यह सड़क दिल्ली का सामारोह स्थल थी। शाहजहां और औरंगजेब यहा अपना शाही जुलूस निकालते थे, नादिरशाह और अहमद शाह अब्दाली विद्रोही घुड़सवार के रुप में निकले थे और मराठा व रोहिल्लाओं ने विजय उल्लास मनाया था। ब्रिटिश शासनकाल में जब दिल्ली को ब्रिटिश भारत की राजधानी बनाया गया, तो लॉर्ड हार्डिग का जुलूस भी इसी मार्ग से निकला था। जामा मस्जिद का निर्माण 1644 में प्रारंभ हुआ और नगर प्राचीर का निर्माण 1651 से 1658 के बीच हुआ ये शहर में बनने वाले अगले महत्त्वपूर्ण स्मारक थे। अर्द्धचंद्राकार आकृति की यह दीवार 8 मीटर ऊंची,3.5 मीटर चौड़ी व 6 किमी लंबीथी और यह लगभग 6.4 वर्ग किमी के क्षेत्र को घेरे हुए थी। इस में सात विशाल दरवाजे थे (कश्मीरी, मोरी,काबुनी, लाहौरी, अजमेरी, तुर्कमानी और अकबराबादी) नदी की ओर की दीवार में भी तीन दरवाजे (राजघाट किलाघाट और निगमबोधघाट) थे। शहर के प्रमुखमार्ग इन द्वारों तक जाते थे। छोटी पहाड़ी पर स्थित शाहजहांनाबाद की जामा मस्जिद जो बादशाही मस्जिद के नाम से भी जानी जाती थी। भारत की सबसे बड़ी मस्जिद थी। 1662 में दिल्ली में हुए एक भीषण अग्निकांड में 60 हजार और 1716 में भारी वर्षा के कारण मकान ध्वस्त हिने से 23 हजार लोग मारे गए थे।
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शाहजहांनाबाद के निर्माण के 10 वर्ष बाद ही शाहजहां के पुत्र औरंगजेब ने शहर पर कब्जा करके उन्हे आगरा के किले में नजरबंदकर दिया और जुलाई 1658 में स्वय को बादशाह घोषित कर दिया। औरंगजेब को विरासत में एक सघन और समृद्ध राजधानी मिली थी। लेकिन धीरे – धीरे इस शहर की अवनति शुरु हो गई, क्योकि इसका नया शासक इसके संस्थापक के विपरीत एकदम भिन्न स्वभाव वाला था। शाहजहां ने कला को बढावा दिया और जिंदगी का लुत्फ उठाया औरंगजेब इन दोनों से दूर रहते थे । उन्हे शहर को सुदंर बनाने में न तो दिलचस्पी थी। न ही उन्हे इसका अवसर मिला । वह स्थायी रुप से शाहजहांनाबाद में रहे ही नही । उनके उत्तराधिकारियों को एक विभाजित और निर्बल राज्य शासन करने को मिला । फारस के लुटेरे नादिरशाह के जघन्य आक्रमण ने इस शहर पर अंतिम प्रहार किया।
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1803में अग्रेज शासकों ने जब दिल्ली पर कब्जा किया तब यह वाणिज्य एव व्यवसाय का प्रमुख केद्र थी, यद्यपि किलाबंद शहर भव्य कितु जीर्ण – शीर्ण गंदी बस्ती में बदल चुका था। चारदीवार क्षेत्र में लगभग एक लाख तीस हजार और उपनगरों में लगभग 20 हजार लोग रहते है। सुरक्षा और स्थान की द्दष्टि से ब्रिटिश कमांडरों ने ईस्ट इंडिया कपनी के कार्यालय लाल किले के आसपास के क्षेत्र में स्थापित किए जो घनी आबादी वाला नही था।
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*[[महाभारत]] काल में [[पाण्डव|पाण्डवों]] द्वारा बसाया गया [[इन्द्रप्रस्थ]] नगर, दिल्ली आज हमारे देश का हृदय कहलाता है।  
 
*[[महाभारत]] काल में [[पाण्डव|पाण्डवों]] द्वारा बसाया गया [[इन्द्रप्रस्थ]] नगर, दिल्ली आज हमारे देश का हृदय कहलाता है।  
 
*पर्यटकों के आकर्षण के साथ-साथ यह हमारे देश का मुख्य राजनीतिक केन्द्र भी है।  
 
*पर्यटकों के आकर्षण के साथ-साथ यह हमारे देश का मुख्य राजनीतिक केन्द्र भी है।  

07:23, 8 नवम्बर 2010 का अवतरण

दिल्ली के विभिन्न द्रश्य

दिल्ली भारत की राजधानी, एक महानगरीय क्षेत्र है। तथा भारत का एक राज्य भी है। महान ऐतिहासिक महत्त्व वाला यह महानगरीय क्षेत्र महत्त्वपूर्ण व्यापारिक, परिवहन एव सांस्कृतिक हलचलों से भरा है। यह राज्य देश की राजनीति का स्नायु केंद्र है। वास्तव मे यहा दो शहर है पुरानी और नई दिल्ली राज्य इन दोनों के साथ–साथ आसपास के ग्रामीण क्षेत्रो से मिलकर बना है। जो 213 से 305 मीटर की भिन्न ऊंचाइयों पर करीब 1,485 वर्ग किमी फैला है। दिल्ली देश के उत्तरी मध्य भाग मे गगा की एक प्रमुख सहायक नदी यमुना के दोनों तरफ बसी है। इसकी पूर्वी सीमा पर उत्तर प्रदेश राज्य है यथा उत्तर पश्चिम तथा दक्षिण मे हरियाणा है। 1,37,82,976(2001) की जनसख्या वाली दिल्ली देश का तीसरा बड़ा शहर है। अनुश्रुति है कि इसका वर्तमान नाम राजा ढीलू के नाम पर पड़ा जिसका आधिपत्य ई.पू पहली शताब्दी मे इस क्षेत्र पर था । बहरहाल बिजोला अभिलेखों (1170ई.) मे उल्लिखित ढिल्ली या ढिल्लिका सबसे पहला लिखित उद्धरण है।

भौतिक एव मानव भूगोल

दिल्ली एक जलसंभर पर स्थित है। जो गगा तथा सिंध नदी प्रणालियों को विभाजित करता है। दिल्ली की सबसे महत्त्वपूर्ण स्थालाकृति विशेषता पर्वत स्कंध (रिज) है, जो राजस्थान प्रांत की प्राचीन अरावली पर्वत श्रेणियों का चरम बिंदु है। अरावली संभवत: दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत माला है, लेकिन अब यह पूरी तरह वृक्ष विहीन हो चुकी है। पश्चिमोत्तर पश्चिम तथा दक्षिण मे फैला और तिकोने परकोट की दो भुजाओं जैसा लगने वाला यह स्कंध क्षेत्र 180 वर्ग किमी क्षेत्र मे फैला है। कछारी मिटटी के मैदान को आकृति की विविधता देता है तथा दिल्ली को कुछ उत्कृष्ट जीव व वनस्पतियां उपलब्ध कराता है। यमुना नदी त्रिभुजाकार परकोटे का तीसरा किनारा बताती है। इसी त्रिकोण के भीतर दिल्ली के प्रसिद्ध सात शहरो की उत्पत्ति ई.पू.1000 से 17 वीं शताब्दी के बीच हुई ।

जलवायु

दिल्ली की जलवायु उपोष्ण है। जो इसके भीतर प्रदेश होने की भू- स्थिति से प्रभावित है। गर्मी के महीने (मई तथा जून) बेहद शुष्क और झुलसाने वाले होते है। दिन का तापमान कभी-कभी 43-45 तक पहुंच जाता है। मानसून जुलाई मे आता है। और तापमान को कम करता है। लेकिन सिंतंबर के अंत तक मौसम गर्म, उमस भरा और कष्टप्रद रहता है। यहां की वार्षिक औसत वर्षा लगभग 660 मिमी है। अक्टूबर से मार्च के बीच का मौसम काफी सुहावना रहता है। हालाकि दिसंबर तथा जनवरी के महीने खूब ठंडे व कोहरे से भरे होते है। और कभी-कभी वर्षा भी हो जाती है। शीतकाल में प्रतिदिन का औसत न्यूनतम तापमान 7 से के आसपास रहता है, लेकिन कुछ रातें अधिक सर्द होती है। =वनस्पति= दिल्ली की परिवर्तनशील जलवायु के कारण तीन वानस्पतिक काल होते है। वर्षा की कमी तथा भूमिगत जल –स्तर के नीचे से प्राकृतिक वनस्पति का प्रर्याप्त विकाश नही हो पाता । फूलों के करीब 1,000 प्रजातिया, जिनमे से अधिकाशं स्वदेशी मूल के है। यहां के वातावरण के अनुरुप ढल चुके है, और दिल्ली शहर तथा आसपास के वातावरण मे फलफूल रहे है। पहाड़ियों एव नदी के तटवर्ती भूभाग की वनस्पतियां स्पष्टत :भिन्न है। स्कंध क्षेत्र में पाई जाने वाली पर्वतीय वनस्पतियों मे बबूल, जगली खजूर तथा सघन झाड़ियां है। जिनमें कुछ फूलदार प्रजातियां भी शामिल है। यहा घास, बेले तथा लिपटने वाली अल्पायु लताए भी होती गै, जो केबल बरसात के मौसम मे पनपती है। दूसरी ओर नदी के तट के रेतीले एव क्षारीय भूभाग मे विशेषकर मानसून व ठंड के महीने में वनस्पतियां समृद्ध एंव भिन्न है।

प्राणीजीवन

दिल्ली में प्राणी जीवन खासा विपुल, विविध तथा देशज है तथा प्राणिविज्ञान की द्रष्टि से सिस – गंगा की श्रेणी में आता है। मांसाहारी जीव प्रमुख रुप से देशी स्तंनपायी है। लकड़बग्घे, भेड़िऐ,लोमड़ी,सियार तथा तेंदुए,जो पहले निचले जंगलों मे विचरण करते थे , अब दर्रो तथा शहर की सीमांत पहाड़ी चोटियों पर पाए जाते है। हिरन तथा वहार खुरदार प्राणियों का प्रतिनिधित्व करते है। ये अब अपनी प्राकृतिक प्रर्यावास में कम ही मिलते है। साही खरगोश, चूहे व गिलहरियां शहर के कृतंकजीव हैं तथा चमगादड़ कांटाचूहा और छछूंदर दिल्ली के कीट भक्षी प्राणी है। जो अक्सर मंदिरों तथा ऐतिहासिक खंडहरों के आसपास पाए जाते है। दिल्ली का पक्षी जीवन भी समृद्ध एव विविध है। घरेलू कबूतर,गौरैया, चीलें, कौवे, तोते जंगली बटेर, तीतर, पूरे साल पाए जाते है। दिल्ली के आसपास की झीलें शीतकाल में कई प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करती है।

प्रशासन एवं नियोजन

दिल्ली ने प्रशासनिक व्यवस्था मे कई फेरबदल देखे है। 2 अगस्त 1858 को ब्रिटिश संसद ने भारत सरकार अधिनियम पारित किया, जिसने भारत की अंग्रेजी सत्ता को ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश राज में स्थानांतरित कर दिया । 1876 में महारानी विक्टोरिया के शासनाधिकार में भारत की सम्राज्ञी पदवी शामिल हो गई । 1947 तक दिल्ली मुख्य आयुक्त की अध्यक्षता में ब्रिटिश प्रांत रही । आजादी के बाद 1952 में यह केद्र्शासित राज्य बनी लेकिन 1956 में इसका दर्जा बदल गया तथा यह केंद्र सरकार के अधीन केंद्र्शासित प्रदेश हो गई । 1958 में शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रो के लिए एक एकीकृत नियम की स्थापना की गई । दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था में अधिनियम 1966 के तहत फिर परिवर्तन किया गया तथा तीन स्तरीय प्रणाली लागू की गई, जो एक उपराज्य पाल और एक कार्यकारी परिषद, एक निर्वाचित महानगरीय परिषद तथा नगर को मिलाकर बनाई गई है। संविधान के 69 वें संशोधन द्वारा इसे 1991 में विशिष्ट राज्य का दर्जा एवं निर्वाचित विधान सभा दी गई। राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत उप –राज्यपाल दिल्ली का प्रमुख होता है और प्रशासन मुख्यमंत्री चलाता है, जो निर्वाचित दल द्वारा नियुक्त किया जाता है। दिल्ली राज्य प्रशासनिक एव नियोजन क्षेत्रों के कई स्तरों का समूह है। इसका दायरा 1,485 वर्ग किमी है, जिसमे शहरी संकेंद्रण तथा 209 गांवआते है। जो दिल्ली महरौली तहसीलों में बटे है। वृहद स्तर पर यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एन.सी.आर.) काही भाग है। जो नगर एव ग्रामीण संगठन (टी.सी.पी.ओ.) द्वारा 1971 में एक नियोजन क्षेत्र के रुप मे अलग किया गया, ताकि दिल्ली के इर्द –गिर्द भावी विकाश को दिशा दी जा सके। एन. सी. आर के अंतर्गत दिल्ली राज्य तथा हरियाणा, उत्तर प्रदेश व राजस्थान के सीमावर्ती जिले या तहसीलें आती है। यह क्षेत्र दिल्ली महानगरके आसपास लगभग 100 किमी अर्द्धव्यास में फैला है। तथा इसमे 30,242,वर्ग किमी क्षेत्र आता है। क्षेत्र के भावी संतुलित विकास के लिए एक समंवित मास्टर प्लान तैयार करने हेतु 1985 में एन.सी.आर.बोर्ड का गठन किया गया । दिल्ली महानगर क्षेत्र उपवृहद स्तर पर है। जिनमे दिल्ली तथा निकटवर्ती राज्यों के सटे हुए शहरी भाग आते है। जो 3,182 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले है। लघु स्तर पर दिल्ली का शहरी समूह आताहै, जिसका क्षेत्रफल 446 वर्ग किमी है। इसमे तीन नगरीय क्षेत्र आते है: नई दिल्ली नगर पालिका समिति(एन.डी.एम.सी.) नगर निगम दिल्ली (शहर), एम.सी.डी. (यू) तथा दिल्ली छावनी के साथ-साथ सेंसस द्वारा वर्गीकृत 23 उपनगर । दिल्ली का महानगरीय अधिशासन मुख्य रुप से नई दिल्ली नगर पालिका, दिल्लीनगर निगम तथा छावनी परिषद के अधीन है। दिल्ली नगर निगम निर्वाचित निकाय है। नई दिल्ली नगरपालिका (एन.डी.एम. सी.) के सदस्य शासन द्वारा मनोनीत होते है। नगर निगम के दायरे में अनिवार्य नागरिक एव उचित कल्याणकारी कार्य आते है। गंदी बस्तियों को हटाकर एव सुधार इसके मुख्य कार्य है। यह अपना काम क्षेत्रीय समितियों के माध्यम से करती है। जो स्थानीय पार्षदो तथा एक या अधिक पौर – मुख्य से गठित है, नई दिल्ली नगर पालिका का गठन 1933 में हुआ यह केवल नई दिल्ली (इसेयह स्वरुप वास्तुविद एडविन लूटियंस ने दियाथा) तथा इससे लगे हुए क्षेत्रो के प्रति उत्तरदायी है । छावनी क्षेत्र के स्थानीय कार्य रक्षा मंत्रालय के प्रशासन में आते है। महानगरीय दिल्ली की योजना की जिम्मेदारी दिल्ली विकाश प्राधिकरण (डी.डी.ए.) के अधीन है, जिसका गठन 1957 के एक संसदीय अधिनियम के तहत हुआ । शहर के प्रथम 20 वर्षो की नगर योजना (मास्टर प्लान) टी.सी.पी.ओ.द्वारा तैयार की गईतथा इसे दिल्ली की बेतरतीब वृद्धि को नियंत्रित करने तथा आम लोगों की क्रय –क्षमता योग्य एव उपयुक्त आवास उपलब्ध कराने के उदेश्य से स्वीकृत आधारों पर डी.डी.ए. द्वारा 1962 में लागू किया गया । शासन द्वारा 24 हजार हेक्टेयर क्षेत्र का अधिकरण करके शहरी विकाश के लिए डी.डी.ए. को सौपा गया। इस तरह डी. डी.ए साम्यवादी विश्व से baahar बाहर राष्ट्रीयकृत भूमि का सबसे बड़ा विकासक बन गया । विलंबित दूसरी नगर योजना 1986 में प्रभाव में आई तथा यह उद्योगीकरण को धीमा करने, विकेंद्रीकरण, अनेक स्थानोंको जोड़ते लोक परिवहन के प्रावधान तथा कम ऊंचाई वाली किंतु घनी आवासीय व्यवस्था पर केंद्रित थी।

जनजीवन

अन्य राजधानियों की तरह दिल्ली महानगर की गतिविधियां भी अत्यंत सक्रिय है। 19 वी सदी के अंत मुगल शासन काल का वैभव समाप्त हो चुका था, दिल्ली की आबादी मुश्किल से पांचलाख थी, लेकिन धीरे धीरे यह किसी दानव की तरह बढती गई । वर्ष 2001 मे दिल्ली की शहरी आबादी 1करोड़ 28 लाख के लगभग पहुच चुकी है। और दिल्ली राज्य की कुल आबादी 1 करोड़ 37 लाख के लगभग पहुच गई है। जनसांख्यिकीय विश्लेषण के अनुसार 90 प्रतिशत आवादी शहरी है। इनमे भी 85 प्रतिशत लोग तीन स्थायी नगरो मे बसते है। 2001 की जनगणना के अनुसार, दिल्ली की आबादी में लिंग अनुपात (प्रति1,000 पुरुषो पर महिलाएं) शहरी क्षेत्र मे 821 है, जिसमे 1991 के 827के मुकाबले कमी आई है। यह इस बात का सूचक है कि पुरुषोंका शहरो की तरफ पलायन अधिक है। दिल्ली में साक्षरता का प्रतिशत 81.82 है, जो राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है। अगर हम दिल्ली के जनसांख्यिकी इतिहास पर नजर डाले, तो 1947 का कालखंड एक संक्रांति काल की तरह हमारे सामने खड़ा दिखाई देता है। इस काल मे हजारों शरणार्थी पाकिस्तान से दिल्ली आए । इनकी वजय से न केबल यहां का जनसांख्यिकी ढांचा बदला, वल्कि दिल्ली के सामाजिक – सांस्कृति और आर्थिक स्वरुप में भी परिर्वतन आया । तब से शहर प्रवासियों की वजय से फैलता गया। हाल के दशकों मे यहा जन्म दर गिरी है, लेकिन प्रवासियों की आवादी का एक – तिहाई से अधिक हिस्सा प्रवासियों का है। शहर के मुख्य धार्मिक समूहों में (1991 की जनगणना के अनुसार) हिंदू (लगभग 83 प्रतिशत) , सिक्ख (लगभग नौ प्रतिशत ) है। जनसंख्या के शेष चार प्रतिशत का निर्माण जैन, ईसाई, बौद्ध और अन्य लोग करते है। अधिकाश लोग हिंदी या उसका परिवर्वित रुप हिंदुस्तानी बोलते है। पंजाबीभाषा पंजाबियों द्वारा बोली जाती है। तथा उर्दू मुसलमानों प्रातों से आए आप्रवासी अपनी-अपनी भाषा बोलते है, लेकिन कामचलाऊ हिंदी सीखने की कोशिश करते है। शिक्षित वर्ग द्वारा अंग्रेजी समझी व बोली जाती है।

अर्थव्यवस्था

किसी भी ऐतिहासिक राजधानी की तरह दिल्ली भी वैविध्यपूर्ण केंद्र है, जिसमे प्रशासन, सेवाएं और निर्माण अच्छी तरह मिले –जुले है। दिल्ली कला एव हस्तकौशल की प्रचुर विविधता का केंद्र रहा है। मुगल काल में दिल्ली रत्न और आभूषण, धातु पच्चीकारी, कसीदाकारी, सोने की पच्चीकारी, रेशम और जरी का काम, मीनाकारी और शिल्प, मूर्तिकला और चित्रकला के लिए विख्यात थी। एक महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक केंद्र के रुप मे भी इसकी पहचान थी दिल्ली का वर्तमान प्रशासकीय महत्व उस समय से है, जब भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी से लेकर महारानी विक्टोरिया को सौंप दिया गया और ब्रिटिश साम्राज्य की राजधानी, वाणिज्यिक और सेवा के6द्र के रुप में विकशित हो गई । यहा की लगभग तीन – चौथाई आबादी व्यापार लोक प्रशासन, सामुदायिक, सामाजिक और निजी सेवाओं में संलग्न है। 20 वीं सदी के प्रारंभ में यहां आधुनिक उद्योगों का प्रवेश हुआ । यहा के बड़े उद्योगों मे कपास की ओटाई, कताई और बुनाई; आटा एव मैदा की मिलें पैकिंग; गन्ने व तेल का प्रसंस्करण प्रमुख थे । लघु उद्योगों में मुद्रण, जूता निर्माण, कसीदाकारी, बेकरी , शराब निर्माण लोहा तथा पीतल का काम होता है। 1980 के दशक से औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि शुरु हुई । 1981 में 50 हजार पंजीकृत औद्योगिक इकाइयों की संख्या बढकर 1990 में 81 हजार हो गई । इस कालखंड में औद्योगिक निवेश, उत्पादन और रोजगार मे भी लगभग दुगुनी वृद्धि हुई । 1990 के दशक मे इस शहर के आर्थिक स्वरुप मे महत्त्वपूर्ण स्थान बन गया और पुरानी दिल्ली ने उत्तर भारत के थोक वाणिज्यिक केंद्र के रुप में अपनी पहचान को और अधिक सुद्र्ढ बना लिया ।

इतिहास

का दिल्ली पुरातात्विक परिद्र्श्य अत्यत दिलचस्प है सहस्राब्दियों पुराने स्मारक कदम कदम पर खड़े नजर आते है। नए या पुराने किलेबंद स्थान पर निर्मित 13 शहरों ने दिल्ली –अरावती त्रिकोण के लगभग 180 वर्ग किमी के एक सीमित क्षेत्र है। मे अपनी मौजूदगी के निशान छोड़े है। दिल्ली के बारे मे यह किंवदंती प्रचलित है कि जिसने भी यहा नया शहर बनाया, उसे इसे खोना पड़ा । सबसे पुराना नगर इंद्रप्रस्थ, करीब 1400 ई.पू निर्मित किया गया था और वेद व्यास रचित महाकाव्य महाभारत में इसका वर्णन पांडंवो की राजधानी के रुप में मिलता है। इस त्रिकोण मे निर्मित दिल्ली का दूसरा शहर है। अनंगपुर या आंनदपुर, जिसकी स्थापना लगभग 1020 ई. मे तोमर राजपूत नरेश अनंग पाल ने राजनिवास के रुप मे की थी । यह शहर अर्द्धवृत्ताकार निर्मित तालाब सूरजकुंड के आसपास बसा था। अनल पाल ने बाद मे इसे 10 किमी पश्चिम की ओर लालकोट पर स्थापित एक दुर्ग मे स्थानातरित किया । संभवत: एक चौहान राजपूत विशाल देव द्वारा 1153 मे इसे लीतने के पूर्व लाल कोट पर लगभग एक शताब्दी तक तोमर राजाओं का आधिपत्य रहा । विशाल देव के पौत्र पृथ्वीराज या राय पिथोरा ने 1164 ई.मे लाल कोट के चारो और विशाल परकोट बनाकर इसका विस्तार किया । यह दिल्ली का तीसरा शहर कहलाता है। और किला राय पिथोरा के नाम से जाना गया। कई इतिहासकार इसे दिल्ली के सात शहरो में प्रथम मानते है। 1192 की लड़ाई मे मुस्लिम आक्रमणकारी मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज की हत्या कर दी । गोरी यहा से दौलत लूटकर चले गए और अपने गुलाम कुतुबुदीन ऐबक को यह उपासक नियुक्त कर गए । 1206 मे गोरी की मृत्यु के बाद कुतुबुदीन ऐबक ने स्वंय को भारत का सुल्तान घोषित कर दिया और लालकोट को अपने साम्राज्य की राजधानी बनाया ।अगली तीन शताब्दियों तक यहा छोटे अंतंरालोंके साथ सुल्तान वंश का शासन रहा । कुतुबुdeenदीन ऐबक ने लाल कोट को एक और महत्त्वपूर्ण स्मारक कुतुब मीनार दिया । यह विजय का स्मारक था और संभवत : एक मस्जिद की मीनार थी लेकिन कुतुबुमीनार के वर्तमान स्वरुप का निर्माण फिरोज शाह ने पूरा करवाया, जिसमे उन्होने संगमरमर के अलंकरण के काम के साथ –साथ दो और मंजिलें बनवाई जिसमे उसकी ऊंचाई 74 मीटर हो गई । एक तरफ से यह भारत मे सुल्तान वंश के गौरवपूर्ण व विजयी आगमन का प्रतीक थी। खलजी शासन (1290-1321) के दौरान दिल्ली पर मंगोल लुटेरो ने आक्रमण कर इसके असुरक्षित उपनगरो को ध्वस्त कर दिया । 1303 में अलाउदीन ने इसके चारों ओर 1.7 वर्ग किमी क्षेत्र में एक नया वृत्ताकार किलाबंद शहर बनवाया ताकि मंगोल पुन आक्रमण कर उपनगरों व बगीचों को ध्वस्त न कर सकें । कुतुब-लाल कोट संकुल के विपरीत जो शहर देहली-ए-कुहना(पुरानी दिल्ली) कहलाता था, प्रारंभ मे लश्कर या लश्करगाह (सैनिक छावनी) के नाम से जाना गया। लाल कोट के साथ जुड़ी इस चारदीवारी से घिरी नगरी को बाद मे सिरी नाम दिया गया तथा इसे खजली राजधानी (दारुल खिलाफ) के रुप में जाना गया । इसकी परिधि की दीवार लगभग 1.5 किमी लंबी थी और उसमे कई मीनार व दरवाजे बने हुए थे । सिरी की गणना आमतौर पर दिल्ली के दूसरे शहर के रुप मे होती है, किंतु यह मुस्लिम विजेताओं द्वारा भारत में स्थापित पहला पूर्णत: नया शहर था। इस प्रकार 14 वीं शताब्दी की दिल्ली में कुतुबु-लाल कोट संकुल स्थित देहली-ए-कुहना या पुरानी दिल्ली; गयासपुर – किलोखड़ी स्थित शहर-ए-नउ या नया शहर;और सिरी स्थित दारुल खिलाफ या राजधानी सम्मिलित थे। 1321 मे दिल्ली तुगलकों के हाथों में चली गई, क्योंकि खजली वंश के अंतिम शासक की मृत्यु बिना पुरुष उत्तराधिकारी केहो गई थी । 11 तुगलक शासकों ने दिल्ली पर शासन की किया लेकिन वास्तुशिल्प में केवल तीन ने रुचि दिखाई उनमे से प्रत्येक ने दिल्ली त्रिकोण में स्थित वर्तमान शहरी समूह में एक नए शहर का राजधानी के रुप मे निर्माण किया । यह शहर सुल्तानों की सैन्य प्रकृतिऔर सुरक्षा के प्रति तुगलकों की दीवानगी को दर्शाते है। पहले एक दुर्ग तथा बाद मे एक शहर के रुप मे विकसित इन राजधानियों मे पहला गयासुदीन तुगलक द्वारा निर्मित किलाबंद नगर – दुर्ग तुगलकाबाद (1321-25)था। मुहम्मद विन तुगलक (शासनकाल 1325-51) ने एक ऐसी राजधानी की कल्पना की थी, जो साम्राज्य की इनकी योजन को प्रतिविंबित करे। यह योजन विस्तार की अपेक्षा उसे सुद्र्ढ बनाने के लिए थी। सीमा पर आक्रमण अभी रुके नही थे, इसलिए उन्होने कुतुबुदिल्ली, सिरी तथा तुगलकाबाद के चारों ओर एक रक्षा दीवार बनाई और जहापनाह नामक एक नये शहर का निर्माण करवाया । अपने निर्मान के शीघ्र बाद ही यह शहर अव्यवस्था का शिकार हो गया । अचानक मुहम्मद तुगलक ने दक्कन में हाल ही में विजित क्षेत्र पर निगरानी रखने के लिए अपनी राजधानी देवगिरी ले जाने का निश्चय किया, जिसक नाम उन्होने दौलताबाद रखा। 1338 में जहांपनाह की आबादी को नई राजधानी के लिए कूच करने के आदेश मिले । उजाड़ दिल्ली छोटे – छोटे टुकड़ो में बंट गई और इसके खंडहर नए शहर फिरोजाबाद के लिए ईटों के भडार साबित है। जो तीसरा और अंतिम तुगलककालीन शहर था। 1354 में यमुना के किनारे स्थापित यह शहर, सिरी से लगभग 8 किमी पूर्वोत्तर मे स्थित था। यह शहर यानी पांचवीं दिल्ली फिरोज शाह,(1351-88) द्वारा बसाई गई और उन्ही के नाम से जानी गई । कहा जताहै कि 14 वीं सदी की दिल्ली मे तुगलकाबाद सैन्य प्रतिष्ठान था, निजामुदीन फकीरों का इलाका था और उपनगर हौजखास विद्वानों की बस्ती थी। मंगोल विजय के बाद समरकंद और मध्य एशिया के विश्वविद्यालयों से शिक्षित है। शरणार्थी दिल्ली मे आ बसे । उच्च शिक्षा के लिए हौजखास के मदरसे की ख्याति पूरी सल्तनत में फैली हुई थी। तुगलकों के परवर्ती सैयद (1414-1444) और लोदी (1451-1526) शासकों ने स्वयं को फिरोजाबाद तक सीमित रखा । उनके शासन काल के दौरान लगातार उपद्रव चलते रहे और उन्हे नएअ शहर बसाने का समय नही मिला । 1526 में भारत के पहले मुगल शासक बाबार का प्रवेश हुआ और उन्होंने आगरा को अपनी राजधानी बनाया। 1530में उनके बेटे हुमायूं गद्दी पर बैठेऔर उन्होने 10 संघर्षमय वर्षो तक दिल्ली पर राज किया । 1553 में उन्होने अपने शासन की स्थापना के उपलक्ष्य में नए शहर दीनपनाह का निर्माण किया इसके लिए बड़ी सावधानी से यमुना के किनारे एक स्थान चुना गया। अब इस शहर का नामोनिशान नही है। क्योंकि शेरशाह सूरी ने इसे पूरी तरह ध्वस्त कर दिया था। अगले दो मुगल शासकों अकबर और जहांगीर ने आगरा को राजधानी बनाकर भारत पर शासन करना पसंद किया लेकिन दिल्ली के महत्त्व को समझकर वे बीच – बीच मे दिल्ली आते रहे । 1636 में शाहजहां ने अभियंताओं, वास्तुविदों तथा ज्योतिषियों को आगरा व लाहौर के बीच अच्छे जलवायु वाले स्थान के चयन का निर्देश दिया । यमुना के पश्चिमी किनारे पर पुराने किले के उत्तर में सुल्तानों की हजरत दिल्ली का चयन किया गया । शाहजहां ने यहां उर्दू –ए-मौला नामक एक किले को केंद्र में रखकर नई राजधानी का निर्माण शुरु करवाया। लाल किले के नाम से विख्यात यह किला आठ वर्षो में पूर्ण हुआ और 19 अप्रैल 1648 को शाहजहां ने अपनी इस नई राजधानी शाहजहांनाबाद के किले में नदी के सामने वाले द्वार से प्रवेश किया । लाहौर गेट किले का भव्य प्रवेशद्वार है। यहां से शहर की प्रमुख सड़क शुरु होकर फतेहपुरी मस्जिद तक जाती है। 36 मीटर चौड़ी यह सड़क शहर की मुख्य धुरी थी रात को बीच के जलाशय पर पड़ती है। चंद्रमा की रुपहरी रोशनी ने इस स्थान को चांदनी चौक नाम दिया। यह सड़क दिल्ली का सामारोह स्थल थी। शाहजहां और औरंगजेब यहा अपना शाही जुलूस निकालते थे, नादिरशाह और अहमद शाह अब्दाली विद्रोही घुड़सवार के रुप में निकले थे और मराठा व रोहिल्लाओं ने विजय उल्लास मनाया था। ब्रिटिश शासनकाल में जब दिल्ली को ब्रिटिश भारत की राजधानी बनाया गया, तो लॉर्ड हार्डिग का जुलूस भी इसी मार्ग से निकला था। जामा मस्जिद का निर्माण 1644 में प्रारंभ हुआ और नगर प्राचीर का निर्माण 1651 से 1658 के बीच हुआ ये शहर में बनने वाले अगले महत्त्वपूर्ण स्मारक थे। अर्द्धचंद्राकार आकृति की यह दीवार 8 मीटर ऊंची,3.5 मीटर चौड़ी व 6 किमी लंबीथी और यह लगभग 6.4 वर्ग किमी के क्षेत्र को घेरे हुए थी। इस में सात विशाल दरवाजे थे (कश्मीरी, मोरी,काबुनी, लाहौरी, अजमेरी, तुर्कमानी और अकबराबादी) नदी की ओर की दीवार में भी तीन दरवाजे (राजघाट किलाघाट और निगमबोधघाट) थे। शहर के प्रमुखमार्ग इन द्वारों तक जाते थे। छोटी पहाड़ी पर स्थित शाहजहांनाबाद की जामा मस्जिद जो बादशाही मस्जिद के नाम से भी जानी जाती थी। भारत की सबसे बड़ी मस्जिद थी। 1662 में दिल्ली में हुए एक भीषण अग्निकांड में 60 हजार और 1716 में भारी वर्षा के कारण मकान ध्वस्त हिने से 23 हजार लोग मारे गए थे। शाहजहांनाबाद के निर्माण के 10 वर्ष बाद ही शाहजहां के पुत्र औरंगजेब ने शहर पर कब्जा करके उन्हे आगरा के किले में नजरबंदकर दिया और जुलाई 1658 में स्वय को बादशाह घोषित कर दिया। औरंगजेब को विरासत में एक सघन और समृद्ध राजधानी मिली थी। लेकिन धीरे – धीरे इस शहर की अवनति शुरु हो गई, क्योकि इसका नया शासक इसके संस्थापक के विपरीत एकदम भिन्न स्वभाव वाला था। शाहजहां ने कला को बढावा दिया और जिंदगी का लुत्फ उठाया औरंगजेब इन दोनों से दूर रहते थे । उन्हे शहर को सुदंर बनाने में न तो दिलचस्पी थी। न ही उन्हे इसका अवसर मिला । वह स्थायी रुप से शाहजहांनाबाद में रहे ही नही । उनके उत्तराधिकारियों को एक विभाजित और निर्बल राज्य शासन करने को मिला । फारस के लुटेरे नादिरशाह के जघन्य आक्रमण ने इस शहर पर अंतिम प्रहार किया। 1803में अग्रेज शासकों ने जब दिल्ली पर कब्जा किया तब यह वाणिज्य एव व्यवसाय का प्रमुख केद्र थी, यद्यपि किलाबंद शहर भव्य कितु जीर्ण – शीर्ण गंदी बस्ती में बदल चुका था। चारदीवार क्षेत्र में लगभग एक लाख तीस हजार और उपनगरों में लगभग 20 हजार लोग रहते है। सुरक्षा और स्थान की द्दष्टि से ब्रिटिश कमांडरों ने ईस्ट इंडिया कपनी के कार्यालय लाल किले के आसपास के क्षेत्र में स्थापित किए जो घनी आबादी वाला नही था।


  • महाभारत काल में पाण्डवों द्वारा बसाया गया इन्द्रप्रस्थ नगर, दिल्ली आज हमारे देश का हृदय कहलाता है।
  • पर्यटकों के आकर्षण के साथ-साथ यह हमारे देश का मुख्य राजनीतिक केन्द्र भी है।
  • समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 230 मीटर तथा फैलाव 1483 वर्ग कि.मी. क्षेत्र है।
  • यहाँ के ऐतिहासिक स्थल तथा रमणीय स्थल अपने आप में विशेष हैं।
  • पर्यटन विकास के उद्वेश्य से यह आगरा और जयपुर से जुडा है।
  • इसकी सीमाएं उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब और चंडीगढ़ से मिलती हैं।
  • दिल्ली भारत की राष्ट्रीय राजधानी है। इसमें नई दिल्ली सम्मिलित है जो कि ऐतिहासिक पुरानी दिल्ली के बाद बसी थी। यहाँ केन्द्र सरकार की कई प्रशासन संस्थायें हैं। औपचारिक रूप से नई दिल्ली भारत की राजधानी है।
  • 1483 वर्ग किलोमीटर (572 वर्ग मील) में फैली दिल्ली भारत का दूसरा तथा दुनिया का आठवां सबसे बड़ा महानगर है। यहाँ की जनसंख्या लगभग 1.4 करोड है। यहाँ बोली जाने वाली मुख्य भाषायें है: हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, और अंग्रेज़ी।

इतिहास से

  • इतिहास के अनुसार दिल्ली को तत्कालीन शासकों ने इसके स्वरूप में कई बार परिवर्तन किया। पुरानी दिल्ली की स्थापना 17 वीं शताब्दी में मुग़ल बादशाह शाहजहाँ द्वारा की गई थी, वहीं नई दिल्ली जिसका निर्माण अंग्रेज़ों द्वारा करवाया गया था। प्राचीनकाल से पुरानी दिल्ली पर अनेक राजाओं एवं सम्राटों ने राज्य किया हैं तथा समय-समय पर इसका नाम भी परिवर्तित किया जाता रहा था। दिल्ली में कई राजाओं/सम्राटों के साम्राज्य के उदय तथा पतन के साक्ष्य आज भी विद्यमान हैं। सही मायने में दिल्ली हमारे देश के भविष्य, भूतकाल एवं वर्तमान परिस्थितियों का मेल है।
  • भारत की राजधानी दिल्ली के संबंध विद्वानों का विश्वास है कि यहीं पर महाभारत काल में पांडवों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी।
  • ऐतिहासिक दिल्ली का निर्माण तोमर नरेश अनंगपाल ने 11वीं शताब्दी में कराया था। उसने जहां इस समय कुतुबमीनार हे वहां पर एक लाल क़िला भी बनवाया था। बाद में अजमेर के चौहान राजाओं ने इस पर क़ब्ज़ा किया। लेकिन 1193 ई. में मौहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान से इसे छीनकर दिल्ली में हिन्दू शासन का अंत कर दिया।
क़ुतुब मीनार, दिल्‍ली
Qutub Minar, Delhi
  • 1193 ई. से 1857 ई. के थोड़े से अंतराल को छोड़कर मुस्लिम शासक यहाँ से राज्य करते रहे। कुछ समय के लिए बाबर, अकबर और जहाँगीर ने आगरा को अपनी राजधानी बनाया था। इस लंबी अवधि में दिल्ली लूटी भी गई।
  • 1398 ई. में तैमूरलंग ने, 1739 ई. में नादिरशाह ने और 1757 ई. में अहमदशाह अब्दाली ने आक्रमण किया, शहर को ख़ूब लूटा और हज़ारों व्यक्तियों को क़त्ल कर डाला।
  • 1803 ई. में दिल्ली पर अंगेजों का अधिकार हो गया और मुग़ल बादशाह नाम के शासक रह गए। 1858 ई. में बहादुरशाह के रंगून में कैद हो जाने के बाद नाममात्र की यह बादशाहत भी जाती रही। अंगेजों ने पहले अपने भारतीय साम्राज्य की राजधानी कलकत्ता को बनाया था। 1911 ई. में वे राजधानी दिल्ली ले आए। अब इस राजधानी क्षेत्र का शासन प्रबंध केंद्र-शासित प्रदेश के रूप में उपराज्यपाल के अधीन होता है। दिल्ली का बराबर विस्तार हो रहा है।

भौगोलिक स्थिति

इंडिया गेट, दिल्ली
India Gate, Delhi
  • इसके दक्षिण पश्चिम में अरावली पहाड़ियां और पूर्व में यमुना नदी है, जिसके किनारे यह बसा है।
  • यह प्राचीन समय में गंगा के मैदान से होकर जानेवाले वाणिज्य पथों के रास्ते में पड़ने वाला मुख्य पड़ाव था।
  • यमुना नदी के किनारे स्थित इस नगर का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है। यह भारत का अति प्राचीन नगर है। इसके इतिहास की शुरुआत सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़ी हुई है।
  • हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में हुई खुदाई से इस बात के प्रमाण मिले हैं। महाभारत काल में इसका नाम इन्द्रप्रस्थ था।
  • दिल्ली सल्तनत के उत्थान के साथ ही दिल्ली एक प्रमुख राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक शहर के रूप में उभरी। यहाँ कई प्राचीन एवं मध्यकालीन इमारतों तथा उनके अवशेषों को देखा जा सकता है।
  • 1639 में मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने दिल्ली में ही एक चाहरदीवारी से घिरे शहर का निर्माण करवाया जो कि 1679 से 1857 तक मुग़ल साम्राज्य की राजधानी रही।
  • 18वीं एवं 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने लगभग पूरे भारत को अपने कब्जे में ले लिया था। इन लोगों ने कोलकाता को अपनी राजधानी बनाया।
  • 1911 में अंग्रेज़ी सरकार ने फैसला किया कि राजधानी को वापस दिल्ली लाया जाए। इसके लिए पुरानी दिल्ली के दक्षिण में एक नए नगर नई दिल्ली का निर्माण प्रारम्भ हुआ।
  • अंग्रेज़ों से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त कर नई दिल्ली को भारत की राजधानी घोषित किया गया ।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात दिल्ली में विभिन्न क्षेत्रों के लोगों का प्रवास हुआ इससे दिल्ली के स्वरूप में आमूल परिवर्तन हुआ। विभिन्न प्रान्तों, धर्मों एवं जातियों के लोगों के दिल्ली में बसने के कारण दिल्ली का शहरीकरण तो हुआ ही यहाँ एक मिश्रित संस्कृति ने भी जन्म लिया।
  • आज दिल्ली भारत का एक प्रमुख राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक केन्द्र है।
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