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ऑटिज्म का विस्तृत दायरा है। इसके लक्षणों की गंभीरता सीखने और सामाजिक अनुकूलता के क्षेत्र में साधारण कमी से लेकर गंभीर क्षति तक हो सकती है, क्योंकि एक या अनेक समस्याएँ और अत्यधिक असामान्य व्यवहार स्थिति को गंभीर बना सकता है। ऑटिज्म के साथ अन्य समस्या भी हो सकती है, जैसे- मानसिक विकलांगता, मिर्गी, बोलने व सुनने में कठिनाई आदि। यह बहुत कम होने वाली समस्या नहीं है, बल्कि विकास संबंधी विकारों में इसका तीसरा स्थान है।  
 
ऑटिज्म का विस्तृत दायरा है। इसके लक्षणों की गंभीरता सीखने और सामाजिक अनुकूलता के क्षेत्र में साधारण कमी से लेकर गंभीर क्षति तक हो सकती है, क्योंकि एक या अनेक समस्याएँ और अत्यधिक असामान्य व्यवहार स्थिति को गंभीर बना सकता है। ऑटिज्म के साथ अन्य समस्या भी हो सकती है, जैसे- मानसिक विकलांगता, मिर्गी, बोलने व सुनने में कठिनाई आदि। यह बहुत कम होने वाली समस्या नहीं है, बल्कि विकास संबंधी विकारों में इसका तीसरा स्थान है।  
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==संख्या==
 
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यहाँ तक कि इससे प्रभावित होने वाले व्यक्तियों की संख्या डाउन सिन्ड्रोम की अपेक्षा अधिक है। प्रति 10,000 में से 20 व्यक्ति इससे प्रभावित होते हैं और इससे प्रभावित व्यक्तियों में से 80 प्रतिशत लड़के होते हैं। यह समस्या विश्वभर में सभी वर्गों के लोगों में पाई जाती है। भारत में ऑटिज्म से ग्रस्त व्यक्तियों की संख्या लगभग 1 करोड़ 70 लाख है। 1980 से ऑटिज़्म के मामलों मे नाटकीय ढंग से वृद्धि हुई है जिसका एक कारण चिकित्सीय निदान के क्षेत्र मे हुआ विकास है लेकिन क्या असल मे ये मामले बढे़ है यह एक उनुत्तरित प्रश्न है।
 
यहाँ तक कि इससे प्रभावित होने वाले व्यक्तियों की संख्या डाउन सिन्ड्रोम की अपेक्षा अधिक है। प्रति 10,000 में से 20 व्यक्ति इससे प्रभावित होते हैं और इससे प्रभावित व्यक्तियों में से 80 प्रतिशत लड़के होते हैं। यह समस्या विश्वभर में सभी वर्गों के लोगों में पाई जाती है। भारत में ऑटिज्म से ग्रस्त व्यक्तियों की संख्या लगभग 1 करोड़ 70 लाख है। 1980 से ऑटिज़्म के मामलों मे नाटकीय ढंग से वृद्धि हुई है जिसका एक कारण चिकित्सीय निदान के क्षेत्र मे हुआ विकास है लेकिन क्या असल मे ये मामले बढे़ है यह एक उनुत्तरित प्रश्न है।
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==ऑटिज्म के लक्षण==
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ऑटिज़्म को एक लक्षण के बजाय एक विशिष्ट लक्षणों के समूह द्वारा बेहतर समझा जा सकता है। मुख्य लक्षणों में शामिल हैं -----
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* सामाजिक संपर्क मे असमर्थता  -----  ऑटिज्म से ग्रस्त व्यक्ति परस्पर संबंध स्थापित नहीं कर पाते हैं तथा सामाजिक व्यवहार मे असमर्थ होने के साथ ही दूसरे लोगों के मंतव्यों को समझने मे भी असमर्थ होते हैं इस कारण लोग अक्सर इन्हें गंभीरता से नहीं लेते। सामाजिक असमर्थतायें बचपन से शुरु हो कर व्यस्क होने तक चलती हैं। ऑटिस्टिक बच्चे सामाजिक गतिविधियों के प्रति उदासीन होते है, वो लोगो की ओर ना देखते हैं, ना मुस्कुराते हैं और ज्यादातर अपना नाम पुकारे जाने पर भी सामान्य: कोई प्रतिक्रिया नहीं करते हैं। ऑटिस्टिक शिशुओं का व्यवहार तो और चौंकाने वाला होता है, वो आँख नहीं मिलाते हैं, और अपनी बात कहने के लिये वो अक्सर दूसरे व्यक्ति का हाथ छूते और हिलाते हैं। तीन से पाँच साल के बच्चे आमतौर पर सामाजिक समझ नहीं प्रदर्शित करते है, बुलाने पर एकदम से प्रतिकिया नहीं देते, भावनाओं के प्रति असंवेदनशील, मूक व्यवहारी और दूसरों के साथ मुड़ जाते हैं। इसके बावजूद वो अपनी प्राथमिक देखभाल करने वाले व्यक्ति से जुडे होते है।
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* बातचीत करने मे असमर्थता  -----  उनकी संप्रेषण क्षमता अत्यधिक प्रभावित होती है। लगभग 50% बच्चों में भाषा का विकास नहीं हो पाता है।
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* सीमित शौक और दोहराव युक्त व्यवहार  -----  वे एक ही क्रिया, व्यवहार को दोहराते हैं, जैसे- हाथ हिलाना, शरीर हिलाना और बिना मतलब की आवाजें करना आदि।
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* वे प्रकाश, ध्वनि, स्पर्श और दर्द जैसे संवेदनों के प्रति असामान्य प्रतिक्रिया दर्शाते हैं।
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* खेलने का उनका अपना असामान्य तरीका होता है।
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14:04, 1 दिसम्बर 2010 का अवतरण

क्या है ऑटिज्म

ऑटिज्म एक मानसिक रोग है जिसके लक्षण जन्म से या बाल्यावस्था (प्रथम तीन वर्षों में) में ही नज़र आने लगते है और व्यक्ति की सामाजिक कुशलता और संप्रेषण क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालता है। जिन बच्चो में यह रोग होता है उनका विकास अन्य बच्चो से असामान्य होता है । इससे प्रभावित व्यक्ति, सीमित और दोहराव युक्त व्यवहार करता है जैसे एक ही काम को बार-बार दोहराना। यह जीवनपर्यंत बना रहने वाला विकार है। ऑटिज्मग्रस्त व्यक्ति संवेदनों के प्रति असामान्य व्यवहार दर्शाते हैं, क्योंकि उनके एक या अधिक संवेदन प्रभावित होते हैं। इन सब समस्याओं का प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार में दिखाई देता है, जैसे व्यक्तियों, वस्तुओं और घटनाओं से असामान्य तरीके से जुड़ना।

ऑटिज्म का विस्तृत दायरा है। इसके लक्षणों की गंभीरता सीखने और सामाजिक अनुकूलता के क्षेत्र में साधारण कमी से लेकर गंभीर क्षति तक हो सकती है, क्योंकि एक या अनेक समस्याएँ और अत्यधिक असामान्य व्यवहार स्थिति को गंभीर बना सकता है। ऑटिज्म के साथ अन्य समस्या भी हो सकती है, जैसे- मानसिक विकलांगता, मिर्गी, बोलने व सुनने में कठिनाई आदि। यह बहुत कम होने वाली समस्या नहीं है, बल्कि विकास संबंधी विकारों में इसका तीसरा स्थान है।

संख्या

यहाँ तक कि इससे प्रभावित होने वाले व्यक्तियों की संख्या डाउन सिन्ड्रोम की अपेक्षा अधिक है। प्रति 10,000 में से 20 व्यक्ति इससे प्रभावित होते हैं और इससे प्रभावित व्यक्तियों में से 80 प्रतिशत लड़के होते हैं। यह समस्या विश्वभर में सभी वर्गों के लोगों में पाई जाती है। भारत में ऑटिज्म से ग्रस्त व्यक्तियों की संख्या लगभग 1 करोड़ 70 लाख है। 1980 से ऑटिज़्म के मामलों मे नाटकीय ढंग से वृद्धि हुई है जिसका एक कारण चिकित्सीय निदान के क्षेत्र मे हुआ विकास है लेकिन क्या असल मे ये मामले बढे़ है यह एक उनुत्तरित प्रश्न है।

ऑटिज्म के लक्षण

ऑटिज़्म को एक लक्षण के बजाय एक विशिष्ट लक्षणों के समूह द्वारा बेहतर समझा जा सकता है। मुख्य लक्षणों में शामिल हैं -----

  • सामाजिक संपर्क मे असमर्थता ----- ऑटिज्म से ग्रस्त व्यक्ति परस्पर संबंध स्थापित नहीं कर पाते हैं तथा सामाजिक व्यवहार मे असमर्थ होने के साथ ही दूसरे लोगों के मंतव्यों को समझने मे भी असमर्थ होते हैं इस कारण लोग अक्सर इन्हें गंभीरता से नहीं लेते। सामाजिक असमर्थतायें बचपन से शुरु हो कर व्यस्क होने तक चलती हैं। ऑटिस्टिक बच्चे सामाजिक गतिविधियों के प्रति उदासीन होते है, वो लोगो की ओर ना देखते हैं, ना मुस्कुराते हैं और ज्यादातर अपना नाम पुकारे जाने पर भी सामान्य: कोई प्रतिक्रिया नहीं करते हैं। ऑटिस्टिक शिशुओं का व्यवहार तो और चौंकाने वाला होता है, वो आँख नहीं मिलाते हैं, और अपनी बात कहने के लिये वो अक्सर दूसरे व्यक्ति का हाथ छूते और हिलाते हैं। तीन से पाँच साल के बच्चे आमतौर पर सामाजिक समझ नहीं प्रदर्शित करते है, बुलाने पर एकदम से प्रतिकिया नहीं देते, भावनाओं के प्रति असंवेदनशील, मूक व्यवहारी और दूसरों के साथ मुड़ जाते हैं। इसके बावजूद वो अपनी प्राथमिक देखभाल करने वाले व्यक्ति से जुडे होते है।
  • बातचीत करने मे असमर्थता ----- उनकी संप्रेषण क्षमता अत्यधिक प्रभावित होती है। लगभग 50% बच्चों में भाषा का विकास नहीं हो पाता है।
  • सीमित शौक और दोहराव युक्त व्यवहार ----- वे एक ही क्रिया, व्यवहार को दोहराते हैं, जैसे- हाथ हिलाना, शरीर हिलाना और बिना मतलब की आवाजें करना आदि।
  • वे प्रकाश, ध्वनि, स्पर्श और दर्द जैसे संवेदनों के प्रति असामान्य प्रतिक्रिया दर्शाते हैं।
  • खेलने का उनका अपना असामान्य तरीका होता है।



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