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*महाकवि विद्यापति ठाकुर ने बड़े ही चतुरता से महाराजा शिवसिंह का यशोवर्णन किया है।  
 
*महाकवि विद्यापति ठाकुर ने बड़े ही चतुरता से महाराजा शिवसिंह का यशोवर्णन किया है।  
*इस ग्रन्थ की रचना दोहा और [[छन्द]] में की गयी है।  
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*इस ग्रन्थ की रचना दोहा और [[छन्द]] में की गयी है। कहीं-कहीं पर [[संस्कृत]] के श्लोकों का भी प्रयोग किया गया है।  
*कहीं-कहीं पर [[संस्कृत]] के श्लोकों का भी प्रयोग किया गया है।  
 
 
*कीर्ति पताका ग्रन्थ की खण्डित प्रति ही उपलब्ध है, जिसके बीच में 9 से 29 तक के 21 पृष्ठ अप्राप्त हैं।  
 
*कीर्ति पताका ग्रन्थ की खण्डित प्रति ही उपलब्ध है, जिसके बीच में 9 से 29 तक के 21 पृष्ठ अप्राप्त हैं।  
 
*ग्रन्थ के प्रारंभ में 'अर्द्धनारीश्वर', 'चन्द्रचूड़' [[शिव]] और [[गणेश]] की वन्दना है।  
 
*ग्रन्थ के प्रारंभ में 'अर्द्धनारीश्वर', 'चन्द्रचूड़' [[शिव]] और [[गणेश]] की वन्दना है।  
 
*कीर्तिपताका ग्रन्थ के 30 वें पृष्ठ से अन्त तक शिवसिंह के युद्ध पराक्रम का वर्णन है।  
 
*कीर्तिपताका ग्रन्थ के 30 वें पृष्ठ से अन्त तक शिवसिंह के युद्ध पराक्रम का वर्णन है।  
*डॉ. वीरेन्द्र श्रीवास्तव अपना वक्तव्य कुछ इस तरह लिखते हैं कि 'अत: निर्विवाद रुप से पिछले अंश को विद्यापति-विरचित कीर्तिपताका कहा जा सकता है, जो वीरगाथा के अनुरुप वीररस की औजस्विता से पूर्ण है।'<ref>विद्यापति-अनुशीलन एवं मूल्यांकन खण्ड-1, पृ.30)</ref>।<ref>{{cite web |url=http://vimisahitya.wordpress.com/2007/10/29/vidyapati/|title=विद्यापति|accessmonthday=2जून|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
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*डॉ. वीरेन्द्र श्रीवास्तव अपना वक्तव्य कुछ इस तरह लिखते हैं कि 'अत: निर्विवाद रुप से पिछले अंश को विद्यापति-विरचित कीर्तिपताका कहा जा सकता है, जो वीरगाथा के अनुरुप वीररस की औजस्विता से पूर्ण है।'<ref>विद्यापति-अनुशीलन एवं मूल्यांकन खण्ड-1, पृ.30</ref>।<ref>{{cite web |url=http://vimisahitya.wordpress.com/2007/10/29/vidyapati/|title=विद्यापति|accessmonthday=2जून|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
  
  
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14:52, 24 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

कीर्ति पताका महाकवि विद्यापति द्वारा रचित काव्य है।

  • महाकवि विद्यापति ठाकुर ने बड़े ही चतुरता से महाराजा शिवसिंह का यशोवर्णन किया है।
  • इस ग्रन्थ की रचना दोहा और छन्द में की गयी है। कहीं-कहीं पर संस्कृत के श्लोकों का भी प्रयोग किया गया है।
  • कीर्ति पताका ग्रन्थ की खण्डित प्रति ही उपलब्ध है, जिसके बीच में 9 से 29 तक के 21 पृष्ठ अप्राप्त हैं।
  • ग्रन्थ के प्रारंभ में 'अर्द्धनारीश्वर', 'चन्द्रचूड़' शिव और गणेश की वन्दना है।
  • कीर्तिपताका ग्रन्थ के 30 वें पृष्ठ से अन्त तक शिवसिंह के युद्ध पराक्रम का वर्णन है।
  • डॉ. वीरेन्द्र श्रीवास्तव अपना वक्तव्य कुछ इस तरह लिखते हैं कि 'अत: निर्विवाद रुप से पिछले अंश को विद्यापति-विरचित कीर्तिपताका कहा जा सकता है, जो वीरगाथा के अनुरुप वीररस की औजस्विता से पूर्ण है।'[1][2]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विद्यापति-अनुशीलन एवं मूल्यांकन खण्ड-1, पृ.30
  2. विद्यापति (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 2जून, 2011।

बाहरी कड़ियाँ

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