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'''हार्मोन''' [[मानव शरीर]] की अंत:स्रावी ग्रंथियाँ विभिन्न प्रकार के उद्दीपन में ऐसे [[पदार्थ|पदार्थों]] का स्राव करती हैं जिनसे शरीर में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। ये स्राव [[रुधिर वाहिनियाँ|रुधिर वाहिनियों]] द्वारा अंतकोंशिका [[ऊतक]] [[द्रव]] से बहकर लक्ष्य अंगों तक पहुँचते है। अत: इन ग्रंथियों को वाहिनी ग्रंथि कहते हैं। सर्वप्रथम 1905 ई. में स्टलिंग ने सेक्रेटिंग स्राव के संबंध में हार्मोन शब्द का प्रयोग किया था। हार्मोन शब्द का अर्थ होता है उद्दीपन करने वाला अथवा गति का प्रारंभ करने वाला। शरीर में अम्लकृत भोजन जब [[आमाशय]] से आगे पहुँचता है तब ड्युओडिनल श्लेष्मकला की [[कोशिका|कोशिकाओं]] से सेक्रेटिन का स्राव होता है। [[रुधिर]] परिवहन द्वारा यह पदार्थ [[अग्न्याशय]] में पहुंचकर अग्न्याशयी वाहिनी से मुक्त होने वाले अग्न्याशयी रस के स्राव का उद्दीपन करता है। इससे यह निश्चित हो गया कि [[तन्त्रिका तन्त्र]] के सहयोग बिना भी शरीर में रासायनिक साम्यावस्था संभव है। हार्मोन के प्रभाव से शरीर में उद्दीपन एवं अवरोध दोनों ही होते हैं। हार्मोन के प्रभाव से शरीर में आधारभूत उपापचयी रूपांतरण का प्रारंभ नहीं किया जा सकता पर उपापचयी रूपांतरण की गति में परिवर्तन लाया जा सकता है। आधुनिक परिभाषा के अनुसार वाहिनी अथवा अंत:स्रावी ग्रंथियों द्वारा उन्मुक्त स्राव को हार्मोन कहते हैं। ये स्राव शरीर में विभिन्न क्रियाओं के बीच रासायनिक साम्यवास्था स्थापित करते हैं, अत: सीमित अर्थ में रासायनिक संतुलन के स्थान में योगदान करते हैं। वनस्पतिजगत्‌ में ऐसे अनेक रासायनिक संतुलनकारी पदार्थ पाए जाते हैं। उन्हें हार्मोन माना जाए या नहीं यह विवादस्पद है। इससे हार्मोन की परिभाषा बहुत व्यापक हो जाती है।   
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'''हॉर्मोन''' [[मानव शरीर]] की अंत:स्रावी ग्रंथियाँ विभिन्न प्रकार के उद्दीपन में ऐसे [[पदार्थ|पदार्थों]] का स्राव करती हैं जिनसे शरीर में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। ये स्राव [[रुधिर वाहिनियाँ|रुधिर वाहिनियों]] द्वारा अंतकोंशिका [[ऊतक]] [[द्रव]] से बहकर लक्ष्य अंगों तक पहुँचते है। अत: इन ग्रंथियों को वाहिनी ग्रंथि कहते हैं। सर्वप्रथम 1905 ई. में स्टलिंग ने सेक्रेटिंग स्राव के संबंध में हॉर्मोन शब्द का प्रयोग किया था। हॉर्मोन शब्द का अर्थ होता है उद्दीपन करने वाला अथवा गति का प्रारंभ करने वाला। शरीर में अम्लकृत भोजन जब [[आमाशय]] से आगे पहुँचता है तब ड्युओडिनल श्लेष्मकला की [[कोशिका|कोशिकाओं]] से सेक्रेटिन का स्राव होता है। [[रुधिर]] परिवहन द्वारा यह पदार्थ [[अग्न्याशय]] में पहुंचकर अग्न्याशयी वाहिनी से मुक्त होने वाले अग्न्याशयी रस के स्राव का उद्दीपन करता है। इससे यह निश्चित हो गया कि [[तन्त्रिका तन्त्र]] के सहयोग बिना भी शरीर में रासायनिक साम्यावस्था संभव है। हॉर्मोन के प्रभाव से शरीर में उद्दीपन एवं अवरोध दोनों ही होते हैं। हॉर्मोन के प्रभाव से शरीर में आधारभूत उपापचयी रूपांतरण का प्रारंभ नहीं किया जा सकता पर उपापचयी रूपांतरण की गति में परिवर्तन लाया जा सकता है। आधुनिक परिभाषा के अनुसार वाहिनी अथवा अंत:स्रावी ग्रंथियों द्वारा उन्मुक्त स्राव को हॉर्मोन कहते हैं। ये स्राव शरीर में विभिन्न क्रियाओं के बीच रासायनिक साम्यवास्था स्थापित करते हैं, अत: सीमित अर्थ में रासायनिक संतुलन के स्थान में योगदान करते हैं। वनस्पतिजगत्‌ में ऐसे अनेक रासायनिक संतुलनकारी पदार्थ पाए जाते हैं। उन्हें हॉर्मोन माना जाए या नहीं यह विवादस्पद है। इससे हॉर्मोन की परिभाषा बहुत व्यापक हो जाती है।   
  
 
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हॉर्मोन मानव शरीर की अंत:स्रावी ग्रंथियाँ विभिन्न प्रकार के उद्दीपन में ऐसे पदार्थों का स्राव करती हैं जिनसे शरीर में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। ये स्राव रुधिर वाहिनियों द्वारा अंतकोंशिका ऊतक द्रव से बहकर लक्ष्य अंगों तक पहुँचते है। अत: इन ग्रंथियों को वाहिनी ग्रंथि कहते हैं। सर्वप्रथम 1905 ई. में स्टलिंग ने सेक्रेटिंग स्राव के संबंध में हॉर्मोन शब्द का प्रयोग किया था। हॉर्मोन शब्द का अर्थ होता है उद्दीपन करने वाला अथवा गति का प्रारंभ करने वाला। शरीर में अम्लकृत भोजन जब आमाशय से आगे पहुँचता है तब ड्युओडिनल श्लेष्मकला की कोशिकाओं से सेक्रेटिन का स्राव होता है। रुधिर परिवहन द्वारा यह पदार्थ अग्न्याशय में पहुंचकर अग्न्याशयी वाहिनी से मुक्त होने वाले अग्न्याशयी रस के स्राव का उद्दीपन करता है। इससे यह निश्चित हो गया कि तन्त्रिका तन्त्र के सहयोग बिना भी शरीर में रासायनिक साम्यावस्था संभव है। हॉर्मोन के प्रभाव से शरीर में उद्दीपन एवं अवरोध दोनों ही होते हैं। हॉर्मोन के प्रभाव से शरीर में आधारभूत उपापचयी रूपांतरण का प्रारंभ नहीं किया जा सकता पर उपापचयी रूपांतरण की गति में परिवर्तन लाया जा सकता है। आधुनिक परिभाषा के अनुसार वाहिनी अथवा अंत:स्रावी ग्रंथियों द्वारा उन्मुक्त स्राव को हॉर्मोन कहते हैं। ये स्राव शरीर में विभिन्न क्रियाओं के बीच रासायनिक साम्यवास्था स्थापित करते हैं, अत: सीमित अर्थ में रासायनिक संतुलन के स्थान में योगदान करते हैं। वनस्पतिजगत्‌ में ऐसे अनेक रासायनिक संतुलनकारी पदार्थ पाए जाते हैं। उन्हें हॉर्मोन माना जाए या नहीं यह विवादस्पद है। इससे हॉर्मोन की परिभाषा बहुत व्यापक हो जाती है।


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