"बात का घाव -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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ये कहानी ठीक वैसे ही शुरू होती है जैसे कि एक ज़माने में चंदामामा, नंदन और पराग में हुआ करती थी। | ये कहानी ठीक वैसे ही शुरू होती है जैसे कि एक ज़माने में चंदामामा, नंदन और पराग में हुआ करती थी। | ||
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शेर ने रघु को कृतज्ञता भरी दृष्टि से देखा और लंगड़ाता हुआ घने जंगल की ओर चला गया। | शेर ने रघु को कृतज्ञता भरी दृष्टि से देखा और लंगड़ाता हुआ घने जंगल की ओर चला गया। | ||
रघु तो लगभग रोज़ाना ही जंगल में लकड़ियाँ लेने जाता था। तीन-चार दिन बाद उसे शेर मिला और उसके सामने दो हिरन मारकर डाल दिए और कहा- | रघु तो लगभग रोज़ाना ही जंगल में लकड़ियाँ लेने जाता था। तीन-चार दिन बाद उसे शेर मिला और उसके सामने दो हिरन मारकर डाल दिए और कहा- | ||
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बस यही बात मुझे चुभ गयी और भारतकोश का काम शुरू हो गया... | बस यही बात मुझे चुभ गयी और भारतकोश का काम शुरू हो गया... | ||
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14:34, 25 फ़रवरी 2012 का अवतरण
बात का घाव
ये कहानी ठीक वैसे ही शुरू होती है जैसे कि एक ज़माने में चंदामामा, नंदन और पराग में हुआ करती थी। शेर ने रघु को कृतज्ञता भरी दृष्टि से देखा और लंगड़ाता हुआ घने जंगल की ओर चला गया। -आदित्य चौधरी प्रशासक एवं प्रधान सम्पादक |
टीका टिप्पणी और संदर्भ