"बात का घाव -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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13:35, 10 मार्च 2012 का अवतरण
बात का घाव
ये कहानी ठीक वैसे ही शुरू होती है जैसे कि एक ज़माने में चंदामामा, नंदन और पराग में हुआ करती थी। एक गाँव में एक रघु नाम का लकड़हारा रहता था। जंगल से लकड़ियाँ काट कर लाता और गाँव में बेच कर अपने परिवार का पालन-पोषण करता। एक दिन जंगल में उसे किसी के कराहने की आवाज़ सुनाई दी, देखा तो एक बहुत तगड़ा शेर पैर में कील चुभ जाने के कारण दर्द से कराह रहा था। रघु तो लगभग रोज़ाना ही जंगल में लकड़ियाँ लेने जाता था। तीन-चार दिन बाद उसे शेर मिला और उसके सामने दो हिरन मारकर डाल दिए और कहा- "इन हिरनों को बाज़ार में बेचकर तुमको अच्छे पैसे मिल जाएंगे।" बस फिर क्या था, ये एक सिलसिला ही बन गया, रघु जंगल में जाता और शेर उसे कई जानवर मारकर दे देता। रघु ने जानवर ढोने के लिए एक बैलगाड़ी भी ख़रीद ली और अपने परिवार के साथ बहुत आनंद से दिन गुज़ारने लगा। -आदित्य चौधरी प्रशासक एवं प्रधान सम्पादक |
टीका टिप्पणी और संदर्भ