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'''बीना दास''' (जन्म- [[24 अगस्त]], [[1911]] ई.; मृत्यु- [[1986]], [[ऋषिकेश]]) [[भारत]] की महिला क्रांतिकारियों में से एक हैं। इनका रुझान प्रारम्भ से ही सार्वजनिक कार्यों की रहा था। 'पुण्याश्रम' संस्था की स्थापना इन्होंने की थी, जो निराश्रित महिलाओं को आश्रय प्रदान करती थी। बीना दास का सम्पर्क 'युगांतर दल' के क्रांतिकारियों से हो गया था। एक दीक्षांत समारोह में इन्होंने [[अंग्रेज़]] गवर्नर स्टनली जैक्सन पर गोली चला दी, लेकिन इस कार्य में गवर्नर बाल-बाल बच गया और बीना गिरफ़्तार कर ली गई। [[1937]] में [[कांग्रेस]] की सरकार बनने के बाद कई राजबंदियों के साथ बीना दास को भी रिहा कर दिया गया।
*बीना दास का जन्म सन् 1912 में हुआ था।
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==परिचय==
*बीना दास [[बंगाल]] के एक उच्च घराने की लड़की थीं।
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क्रान्तिकारी बीना दास का जन्म 1911 ई. को कृष्णा नगर, [[बंगाल]] में हुआ था। उनके [[पिता]] बेनी माधव दास बहुत प्रसिद्ध अध्यापक थे और नेताजी [[सुभाषचन्द्र बोस]] भी उनके छात्र रह चुके थे। बीना की [[माता]] सरला दास भी सार्वजनिक कार्यों में बहुत रुचि लेती थीं और निराश्रित महिलाओं के लिए उन्होंने 'पुण्याश्रम' नामक संस्था भी बनाई थी। [[ब्रह्म समाज]] का अनुयायी यह परिवार शुरू से ही देशभक्ति से ओत-प्रोत था। इसका प्रभाव बीना दास और उनकी बड़ी बहन कल्याणी दास पर भी पड़ा। साथ ही [[बंकिम चन्द्र चटर्जी]] और मेजिनी, गेरी वाल्डी जैसे लेखकों की रचनाओं ने उनके विचारों को नई दिशा दी।
*[[कलकत्ता]] के बैथुन कॉलेज में पढ़ते हुए वे क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आई।
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====क्रांतिकारी गतिविधि====
*[[6 फ़रवरी]] 1932 ई. को [[बंगाल]] के गवर्नर को विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को दीशांत समारोह में उपाधियाँ बाँटनी थीं।  
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[[कलकत्ता]] के 'बैथुन कॉलेज' में पढ़ते हुए [[1928]] में [[साइमन कमीशन]] के बहिष्कार के समय बीना ने कक्षा की कुछ अन्य छात्राओं के साथ अपने कॉलेज के फाटक पर धरना दिया। वे स्वयं सेवक के रूप में कांग्रेस अधिवेशन में भी सम्मिलित हुईं। इसके बाद वे 'युगांतर' दल के क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आईं। उन दिनों क्रान्तिकारियों का एक काम बड़े [[अंग्रेज़]] अधिकारियों को गोली का निशाना बनाकर यह दिखाना था कि [[भारत]] के निवासी उनसे कितनी नफरत करते हैं। [[6 फ़रवरी]], [[1932]] ई. को बंगाल के गवर्नर स्टेनली जैक्सन को विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को दीक्षांत समारोह में उपाधियाँ बाँटनी थीं। बीना दास को बी.ए. की परीक्षा पूरी करके दीक्षांत समारोह में अपनी डिग्री लेनी थी। उन्होंने अपने साथियों से परामर्श करके तय किया कि डिग्री लेते समय वे दीक्षांत भाषण देने वाले [[बंगाल]] के गवर्नर स्टेनली जैक्सन को अपनी गोली का निशाना बनाएंगी।
*बीना ने गवर्नर को मारने का बीड़ा उठाया। जैसे ही गवर्नर भाषण पढ़ने के लिए खड़े हुए, बीना ने विद्यार्थियों की पंक्ति में से खड़े होकर गवर्नर पर गोली चला दी, परंतु दुर्भाग्य से निशाना चूक गया और वे गिरफ्तार कर ली गई।  
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==गिरफ़्तारी==
*1939 ई. में उन्हें आम क्षमादान के तहत रिहाई मिली।
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[[6 जनवरी]], [[1932]] को दीक्षांत समारोह में जैसे ही गवर्नर ने भाषण देने प्रारम्भ किया, बीना दास अपनी सीट पर से उठीं और तेजी से गवर्नर के सामने जाकर रिवाल्वर से गोली चला दी। उन्हें अपनी ओर आता हुआ देखकर गवर्नर थोड़ा-सा असहज होकर यहाँ-वहाँ हिला, जिससे निशाना चूक गया और वह बच गया। बीना दास को वहीं पर पकड़ लिया गया। उन पर मुकदमा चलाया गया, जिसकी सारी कार्यवाई एक ही दिन में पूरी करके बीना को नौ वर्ष की कड़ी क़ैद की सज़ा दे दी गई। अपने अन्य साथियों के नाम बताने के लिए पुलिस ने उन्हें बहुत सताया, लेकिन बीना ने मुंह नहीं खोला।
*इसके बाद वे राष्ट्रवादी आन्दोलन में शामिल हो गई और विधान सभा की सदस्या भी बनीं।
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====रिहाई====
*1946 ई. में वे साम्प्रादायिक दंगे के समय नोआखाली यात्रा में [[महात्मा गाँधी]] के साथ गईं।
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[[1937]] में प्रान्तों में [[कांग्रेस]] सरकार बनने के बाद अन्य राजबंदियों के साथ बीना भी जेल से बाहर आईं। '[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]' के समय उन्हें तीन वर्ष के लिये नज़रबन्द कर लिया गया था। [[1946]] से [[1951]] तक वे बंगाल विधान सभा की सदस्य रहीं। [[गांधी जी]] की नौआखाली यात्रा के समय लोगों के पुनर्वास के काम में बीना ने भी आगे बढ़कर हिस्सा लिया था।
*1986 ई. में [[ऋषिकेश]] में उनका देहावसान हुआ।  
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==देहावसान==
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08:02, 21 मार्च 2012 का अवतरण

बीना दास (जन्म- 24 अगस्त, 1911 ई.; मृत्यु- 1986, ऋषिकेश) भारत की महिला क्रांतिकारियों में से एक हैं। इनका रुझान प्रारम्भ से ही सार्वजनिक कार्यों की रहा था। 'पुण्याश्रम' संस्था की स्थापना इन्होंने की थी, जो निराश्रित महिलाओं को आश्रय प्रदान करती थी। बीना दास का सम्पर्क 'युगांतर दल' के क्रांतिकारियों से हो गया था। एक दीक्षांत समारोह में इन्होंने अंग्रेज़ गवर्नर स्टनली जैक्सन पर गोली चला दी, लेकिन इस कार्य में गवर्नर बाल-बाल बच गया और बीना गिरफ़्तार कर ली गई। 1937 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद कई राजबंदियों के साथ बीना दास को भी रिहा कर दिया गया।

परिचय

क्रान्तिकारी बीना दास का जन्म 1911 ई. को कृष्णा नगर, बंगाल में हुआ था। उनके पिता बेनी माधव दास बहुत प्रसिद्ध अध्यापक थे और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस भी उनके छात्र रह चुके थे। बीना की माता सरला दास भी सार्वजनिक कार्यों में बहुत रुचि लेती थीं और निराश्रित महिलाओं के लिए उन्होंने 'पुण्याश्रम' नामक संस्था भी बनाई थी। ब्रह्म समाज का अनुयायी यह परिवार शुरू से ही देशभक्ति से ओत-प्रोत था। इसका प्रभाव बीना दास और उनकी बड़ी बहन कल्याणी दास पर भी पड़ा। साथ ही बंकिम चन्द्र चटर्जी और मेजिनी, गेरी वाल्डी जैसे लेखकों की रचनाओं ने उनके विचारों को नई दिशा दी।

क्रांतिकारी गतिविधि

कलकत्ता के 'बैथुन कॉलेज' में पढ़ते हुए 1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार के समय बीना ने कक्षा की कुछ अन्य छात्राओं के साथ अपने कॉलेज के फाटक पर धरना दिया। वे स्वयं सेवक के रूप में कांग्रेस अधिवेशन में भी सम्मिलित हुईं। इसके बाद वे 'युगांतर' दल के क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आईं। उन दिनों क्रान्तिकारियों का एक काम बड़े अंग्रेज़ अधिकारियों को गोली का निशाना बनाकर यह दिखाना था कि भारत के निवासी उनसे कितनी नफरत करते हैं। 6 फ़रवरी, 1932 ई. को बंगाल के गवर्नर स्टेनली जैक्सन को विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को दीक्षांत समारोह में उपाधियाँ बाँटनी थीं। बीना दास को बी.ए. की परीक्षा पूरी करके दीक्षांत समारोह में अपनी डिग्री लेनी थी। उन्होंने अपने साथियों से परामर्श करके तय किया कि डिग्री लेते समय वे दीक्षांत भाषण देने वाले बंगाल के गवर्नर स्टेनली जैक्सन को अपनी गोली का निशाना बनाएंगी।

गिरफ़्तारी

6 जनवरी, 1932 को दीक्षांत समारोह में जैसे ही गवर्नर ने भाषण देने प्रारम्भ किया, बीना दास अपनी सीट पर से उठीं और तेजी से गवर्नर के सामने जाकर रिवाल्वर से गोली चला दी। उन्हें अपनी ओर आता हुआ देखकर गवर्नर थोड़ा-सा असहज होकर यहाँ-वहाँ हिला, जिससे निशाना चूक गया और वह बच गया। बीना दास को वहीं पर पकड़ लिया गया। उन पर मुकदमा चलाया गया, जिसकी सारी कार्यवाई एक ही दिन में पूरी करके बीना को नौ वर्ष की कड़ी क़ैद की सज़ा दे दी गई। अपने अन्य साथियों के नाम बताने के लिए पुलिस ने उन्हें बहुत सताया, लेकिन बीना ने मुंह नहीं खोला।

रिहाई

1937 में प्रान्तों में कांग्रेस सरकार बनने के बाद अन्य राजबंदियों के साथ बीना भी जेल से बाहर आईं। 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के समय उन्हें तीन वर्ष के लिये नज़रबन्द कर लिया गया था। 1946 से 1951 तक वे बंगाल विधान सभा की सदस्य रहीं। गांधी जी की नौआखाली यात्रा के समय लोगों के पुनर्वास के काम में बीना ने भी आगे बढ़कर हिस्सा लिया था।

देहावसान

देश को आज़ादी दिलाने वाली और वीर क्रांतिकारियों में गिनी जाने वाली बीना दास का 1986 ई. में ऋषिकेश में देहावसान हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 548 |


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