"मां, हर्पीज़ और आदिम चांदनी -अजेय" के अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) छो (मां,हर्पीज़ और आदिम चांदनी -अजेय का नाम बदलकर मां, हर्पीज़ और आदिम चांदनी -अजेय कर दिया गया है) |
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) छो (Text replace - " कायम" to " क़ायम") |
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चाँदनी रात का चलता जादू रूक गया है | चाँदनी रात का चलता जादू रूक गया है | ||
बन्जारों का डेरा तिरोहित हो गया है | बन्जारों का डेरा तिरोहित हो गया है | ||
− | मृग शावकों के ताज़ा लहू की गंध | + | मृग शावकों के ताज़ा लहू की गंध क़ायम है |
गीले अखबार से भुने गोश्त की महक अभी उठ रही है | गीले अखबार से भुने गोश्त की महक अभी उठ रही है | ||
और माँ की तप्त आकांक्षाओं से छनते हुए आ रहे हैं | और माँ की तप्त आकांक्षाओं से छनते हुए आ रहे हैं |
14:16, 29 जनवरी 2013 का अवतरण
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यह कोई आदिम युग ही होगा |