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*काले और लाल रंगों से कंस और कृष्ण के पक्ष के अभिनेताओं को मंच पर बतलाया जाता था।  
 
*काले और लाल रंगों से कंस और कृष्ण के पक्ष के अभिनेताओं को मंच पर बतलाया जाता था।  
 
*भाष्य के अनुसार स्त्रियों की भूमिका पुरुष ही करते थे जिन्हें [[भूकंस]] कहते थे। भूकंस अर्थात् स्त्री की भूमिका में आया हुआ पुरुष।  
 
*भाष्य के अनुसार स्त्रियों की भूमिका पुरुष ही करते थे जिन्हें [[भूकंस]] कहते थे। भूकंस अर्थात् स्त्री की भूमिका में आया हुआ पुरुष।  
*[[भरत मुनि]] ने अपने नाट्यशास्त्र के द्वितीय अध्याय में [[रंगशाला]] के निर्माण के बारे में भी बताया है। उनकी रंगशाला के [[नेपथ्यगृह]] से निकलने के दो द्वार होते हैं जिनसे निकल कर अभिनेता आगे बढ़ता है।  
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*[[भरत मुनि]] ने अपने नाट्यशास्त्र के द्वितीय अध्याय में [[रंगशाला]] के निर्माण के बारे में भी बताया है। उनकी रंगशाला के [[नेपथ्यगृह]] से निकलने के दो द्वार होते हैं जिनसे निकल कर अभिनेता आगे बढ़ता है। इनमें से एक द्वार पर नियति के देवता का वास होता है और दूसरे पर मृत्यु के देवता का।  
*इनमें से एक द्वार पर नियति के देवता का वास होता है और दूसरे पर मृत्यु के देवता का।  
 
 
*भरत मुनि सम्भवतः कहना चाहते हैं कि मृत्यु के बाद ही या बाद भी अभिनेता एक दूसरा जीवन धारण करता है जिसका कि उसे [[अभिनय]] करना होता है।  
 
*भरत मुनि सम्भवतः कहना चाहते हैं कि मृत्यु के बाद ही या बाद भी अभिनेता एक दूसरा जीवन धारण करता है जिसका कि उसे [[अभिनय]] करना होता है।  
 
   
 
   

11:15, 29 जुलाई 2010 का अवतरण

  • भारतीय नाटय परंपरा में वस्तु (कथानक), अभिनेता-अभिनेत्री, रस और संवाद चारों उपकरणों का महत्त्व है। रस की सृष्टि ही भारत में नाट्य-रचना का मुख्य उद्देश्य है।
  • ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी के मध्य से संस्कृत काल में भी नाट्य प्रदर्शन, मात्र मनोरंजनार्थ बतलाया गया है।
  • संस्कृतकाल के नाट्य समीक्षकों में पतंजलि का नाम प्रमुख है जिन्होंने अपने महाकाव्य में दो प्रकार के अभिनयों का उल्लेख किया है।
  • काले और लाल रंगों से कंस और कृष्ण के पक्ष के अभिनेताओं को मंच पर बतलाया जाता था।
  • भाष्य के अनुसार स्त्रियों की भूमिका पुरुष ही करते थे जिन्हें भूकंस कहते थे। भूकंस अर्थात् स्त्री की भूमिका में आया हुआ पुरुष।
  • भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र के द्वितीय अध्याय में रंगशाला के निर्माण के बारे में भी बताया है। उनकी रंगशाला के नेपथ्यगृह से निकलने के दो द्वार होते हैं जिनसे निकल कर अभिनेता आगे बढ़ता है। इनमें से एक द्वार पर नियति के देवता का वास होता है और दूसरे पर मृत्यु के देवता का।
  • भरत मुनि सम्भवतः कहना चाहते हैं कि मृत्यु के बाद ही या बाद भी अभिनेता एक दूसरा जीवन धारण करता है जिसका कि उसे अभिनय करना होता है।

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