"साँचा:साप्ताहिक सम्पादकीय" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
| style="background:transparent;"|
 
| style="background:transparent;"|
 
{| style="background:transparent; width:100%"
 
{| style="background:transparent; width:100%"
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 27 मई 2014|भारतकोश सम्पादकीय <small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
+
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 30 जुलाई 2014|भारतकोश सम्पादकीय <small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
 
|-
 
|-
 
{{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}}
 
{{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}}
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
|- valign="top"
 
|- valign="top"
 
|  
 
|  
<center>[[भारतकोश सम्पादकीय 27 मई 2014|जनतंत्र की जाति]]</center>
+
<center>[[भारतकोश सम्पादकीय 30 जुलाई 2014|टोंटा गॅन्ग का सी.ई.ओ.]]</center>
[[चित्र:Jantantra-ki-jaati.JPG|right|120px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 27 मई 2014]]
+
[[चित्र:Hathkadi.jpg|right|120px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 30 जुलाई 2014]]
 
<poem>
 
<poem>
          खेल भावना से राजनीति करना एक स्वस्थ मस्तिष्क के विवेक पूर्ण होने की पहचान है लेकिन राजनीति को खेल समझना मस्तिष्क की अपरिपक्वता और विवेक हीनता का द्योतक है। राजनीति को खेल समझने वाला नेता मतदाता को खिलौना और लोकतंत्र को जुआ खेलने की मेज़ समझता है। [[भारतकोश सम्पादकीय 27 मई 2014|...पूरा पढ़ें]]
+
          अरे भाई पुलिस को पहले से पता होना चाहिए कि तुम कब, कहाँ और किस टाइम पर वारदात करने वाले हो... ये क्या कि चाहे जब मुँह उठाकर चल दिए वारदात करने..." टनकिया ने अफ़सोस ज़ाहिर किया और थोड़ा रुककर फिर दार्शनिक अंदाज़ में बोला- "अगर क्रिमनल, पुलिस को बता कर क्राइम करे तो भई हम भी बीस तरह की फ़ॅसेलिटी दे सकते लेकिन क्या करें समझ में ही नहीं आता आजकल के नए लड़कों को... देख लेना सरकार को ही एकदिन ऐसा क़ानून बनाना पड़ेगा... हमें भी तो राइट ऑफ़ इनफ़ॉरमेशन का फ़ायदा मिलना चाहिए। [[भारतकोश सम्पादकीय 30 जुलाई  2014|...पूरा पढ़ें]]
 
</poem>
 
</poem>
 
<center>
 
<center>
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
 
|-
 
|-
 
| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले सभी लेख]] →
 
| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले सभी लेख]] →
 +
| [[भारतकोश सम्पादकीय 27 मई 2014|जनतंत्र की जाति]] ·
 
| [[भारतकोश सम्पादकीय 1 मार्च 2014|असंसदीय संसद]] ·
 
| [[भारतकोश सम्पादकीय 1 मार्च 2014|असंसदीय संसद]] ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 28 जनवरी 2014|किसी देश का गणतंत्र दिवस]] ·
+
| [[भारतकोश सम्पादकीय 28 जनवरी 2014|किसी देश का गणतंत्र दिवस]]  
| [[भारतकोश सम्पादकीय 22 दिसम्बर 2013|ताऊ का इलाज]]  
 
 
|}</center>
 
|}</center>
 
|}  
 
|}  
 
|}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude>
 
|}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude>

15:20, 30 जुलाई 2014 का अवतरण

भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी
टोंटा गॅन्ग का सी.ई.ओ.
Hathkadi.jpg

           अरे भाई पुलिस को पहले से पता होना चाहिए कि तुम कब, कहाँ और किस टाइम पर वारदात करने वाले हो... ये क्या कि चाहे जब मुँह उठाकर चल दिए वारदात करने..." टनकिया ने अफ़सोस ज़ाहिर किया और थोड़ा रुककर फिर दार्शनिक अंदाज़ में बोला- "अगर क्रिमनल, पुलिस को बता कर क्राइम करे तो भई हम भी बीस तरह की फ़ॅसेलिटी दे सकते लेकिन क्या करें समझ में ही नहीं आता आजकल के नए लड़कों को... देख लेना सरकार को ही एकदिन ऐसा क़ानून बनाना पड़ेगा... हमें भी तो राइट ऑफ़ इनफ़ॉरमेशन का फ़ायदा मिलना चाहिए। ...पूरा पढ़ें

पिछले सभी लेख जनतंत्र की जाति · असंसदीय संसद · किसी देश का गणतंत्र दिवस