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'''राजेन्द्र केशवलाल शाह''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Rajendra Keshavlal Shah'', जन्म: [[28 जनवरी]], [[1913]] – मृत्यु: [[2 जनवरी]], [[2010]]) एक [[गुजराती भाषा]] साहित्यकार थे। इन्हें [[2001]] में [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया था।
 
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* भारतीय भाषा परिषद पुरस्कार (1985)
 
* भारतीय भाषा परिषद पुरस्कार (1985)

14:33, 30 दिसम्बर 2015 का अवतरण

राजेन्द्र शाह
रघुवीर चौधरी
पूरा नाम रघुवीर चौधरी
जन्म 28 जनवरी, 1913
जन्म भूमि कपद्वनाज, कैरा ज़िला, गुजरात
मृत्यु 2 जनवरी, 2010
मुख्य रचनाएँ ध्वनि, आंदोलन, श्रृति, शांत कोलाहल, क्षण जे चिरंतन, विषादने साद, चित्रणा, मध्यमा, विभावना, पत्रलेखा, प्रसंग सप्तक, पंचपर्वा आदि
भाषा गुजराती
शिक्षा बी.ए.
पुरस्कार-उपाधि साहित्य अकादमी पुरस्कार (1964), ज्ञानपीठ पुरस्कार (2001)
नागरिकता भारतीय
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इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

राजेन्द्र केशवलाल शाह (अंग्रेज़ी:Rajendra Keshavlal Shah, जन्म: 28 जनवरी, 1913 – मृत्यु: 2 जनवरी, 2010) एक गुजराती भाषा साहित्यकार थे। इन्हें 2001 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

जीवन परिचय

राजेंद्र केशव लाल शाह का जन्म 28 जनवरी, 1913 में गुजरात के कैरा जिले के कपद्वनाज नामक स्थान पर हुआ। जब वे मात्र दो वर्ष के थे, उनके पिता का निधन हो गया। उनकी मां ने परिवार की कठोर धार्मिक परम्परा में उनका पालन-पोषण किया। मैट्रिक तक की शिक्षा उन्होंने अपने गृह नगर में ही प्राप्त की। बाद में आगे की शिक्षा के लिए उन्होंने मुम्बई के विलसन कॉलेज में प्रवेश लिया। उन्होंने एम.एस. विश्वविद्यालय, बड़ौदा से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। एक अध्यापक, दुकानदार, व्यावसायिक फर्म के साझीदार और मुद्रणालय के मालिक के रूप में राजेन्द्र शाह जी ने जीवन के विविध क्षेत्रों का अनुभव प्राप्त किया।

साहित्यिक परिचय

राजेन्द्र शाह की साहित्य यात्रा 1933 में मुम्बई के विल्सन कॉलेज की पत्रिका ' विलसोनियन ' में प्रकाशित एक कविता के साथ शुरू हुई, लेकिन उनका पहला कविता संग्रह 'ध्वनि' इस पहली कविता के प्रकाशन के लगभग 18 वर्ष बाद प्रकाशित हुआ। इस पहले संग्रह ने ही गुजराती साहित्य की दुनिया में भारी हलचल पैदा कर दी। गेयता उनके काव्य शिल्प का प्रमुख गुण है और प्रेम, प्रकृति, ईश्वर, आधुनिक सभ्यता, राजनीति और ग्राम जीवन तक की सारी चिन्ताएं समाज के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की गवाही देते हैं। उनकी कविताओं में रहस्यवाद के स्वर का उत्स विद्वत जन नरसी मेहता, कबीर और अखा जैसे महान मध्यकालीन रचनाकारों में मानते हैं। सौंदर्य के अन्वेषी और उसके गायक शाह के अब तक 21 काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। रचनाकार राजेन्द्र शाह ने जयदेव, विद्यापति, जीवनानंद दास और बुद्धदेव बसु की अनेक कृतियों का गुजराती में अनुवाद भी किया है।

प्रमुख कृतियाँ

राजेन्द्र शाह के 21 कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें ध्वनि (1951), आंदोलन (1951), श्रुति (1957), मोरपिच्छ (1959), शांत कोलाहल (1962), चित्रणा (1967), क्षण जे चिरंतन (1968), विषादने साद (1969), मध्यमा (1978), उद्गीति (1979), ईक्षणा (1979), पत्रलेखा (1981), प्रसन सप्तक (1982), पंच पर्व (1983), विभावन (1983), द्वासुपर्णा (1983), चंदन भीनी अनामिका (1987), आरण्यक (1992), अंबलाव्या मोर (1988), रुमझुम (1989) काफी चर्चित रहे।

सौन्दर्य के अन्वेषी और गायक

राजेन्द्र शाह की कविताएं समाज के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को उजागर करती हैं। वे सौंदर्य के अन्वेषी और उसके गायक रहे हैं। उनकी कविता में गेयता का गुण प्रमुख रूप से उभरकर आता है। उनकी कविताओं का उत्कर्ष- प्रेम, प्रकृति, ईश्वर, मृत्यु, आधुनिक सभ्यता, मिथों, राजनीति और ग्राम जीवन के सहज सौंदर्य-चित्रण में देखा जा सकता है। भावावेगों की तीव्रता और रूप व अभिव्यक्ति के अभिनव प्रयोग उनको एक महत्वपूर्ण कवि के रूप में स्थापित करते हैं।[1]

सम्मान एवं पुरस्कार

  • 'कुमार चंदक' (1947)
  • रणजित राम सुवर्ण चंदक (1956)
  • साहित्य अकादमी पुरस्कार (1964)
  • महाकवि नाना लाल पुरस्कार (1968)
  • नर्मद चंदक (1977)
  • गुजरात साहित्य परिषद के अरविंद सुवर्ण चंदक (1980)
  • भारतीय भाषा परिषद पुरस्कार (1985)
  • धानाजी कानाजी सुवर्ण चंदक (1980)
  • गुजरात साहित्य अकादमी के मूर्धन्य साहित्यकार सम्मान (1993)
  • गुजरात सरकार का नरसिंह मेहता पुरस्कार (1997)
  • ज्ञानपीठ पुरस्कार (2001)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गुजराती कवि राजेन्द्र शाह को वर्ष 2001 का ज्ञानपीठ पुरस्कार (हिन्दी) (html) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 30 दिसम्बर, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

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