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रिंकू बघेल (चर्चा | योगदान) |
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<quiz display=simple> | <quiz display=simple> | ||
+ | {एक सीधी रेखा वाले मांग वक्र के मध्य मांग की लोच बराबर है- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-34,प्रश्न-123 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -2 | ||
+ | -1/2 | ||
+ | +1 | ||
+ | -4 | ||
+ | ||एक सामान्य मांग वक्र जो बांये से दांये नीचे के ओर गिरती हुई होती है के मध्य, मांग की लोच इकाई के बराबर होती है। | ||
+ | नोट: मांग के वक्र के अन्य रूपों पर मांग की लोच अलग-अलग हो सकती है लेकिन वह विशेष परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। | ||
+ | {निम्न में कौन सही है? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-34,प्रश्न-124 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +सामान्य वस्तुओं के संबंध में आय प्रभाव धनात्मक होता है। | ||
+ | -निम्न वस्तुओं के संबंध में आय प्रभाव ऋणात्मक होता है। | ||
+ | -श्रेष्ठ वस्तुओं के संबंध में आय प्रभाव शून्य होता है। | ||
+ | -गिफिन वस्तुओं के संबंध में आय प्रभाव धनात्मक होता है। | ||
+ | ||उपभोक्ता की आय बढ़ने पर सामान्य वस्तुओं के संबंध में आय प्रभाव धनात्मक होता है लेकिन यदि मूल्य में कमी होने के फलस्वरूप आय बढ़े, तब गिफिन वस्तुओं के संबंध में आय प्रभाव धनात्मक होगा। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | हिक्सीयन विधि के अनुसार, मूल्य जन्यआय प्रभाव होने पर- मूल्य प्रभाव=आय प्रकाश+प्रतिस्थापन प्रभाव | ||
+ | .सामान्य वस्तुओं के संदर्भ में आय प्रभाव ऋणात्मक होते हैं जिसके कारण मूल्य प्रभाव भी ऋणात्मक होता है। | ||
+ | .निकृष्ट कोटि की वस्तुओं में आय प्रभाव तथा कीमत प्रभाव एवं प्रतिस्थान प्रभाव ऋणात्मक होते हैं। | ||
+ | .गिफिन वस्तुओं के संबंध में आय प्रभाव तथा मूल्य प्रभाव धनात्मक एवं प्रतिस्थापन प्रभाव ऋणात्मक होता है। | ||
+ | |||
+ | {मांग की आड़ी लोच होती है- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-34,प्रश्न-125 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -सदैव धनात्मक | ||
+ | -सदैव ऋणात्मक | ||
+ | -स्थापानापन्न | ||
+ | +संयुक्त मांग वाली वस्तुओं में ऋणात्मक | ||
+ | ||मांग की आड़ी लोच: एक वस्तु की मांग में जो परिवर्तन दूसरी के मूल्य में परिवर्तन के परिणामस्वरूप होता है उसे मांग की आड़ी लोच कहा जाता है। | ||
+ | मांग की आड़ी लोच= A वस्तु की मांग में % परिवर्तन/A वस्तु की मांग में % परिवर्तन | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .स्थानापन्न वस्तुओं के संबंध में मांग की आड़ी लोच धनात्मक होती है। पूरक वस्तुओं (संयुक्त मांग) के संबंध में मांग की आड़ी लोच ऋणात्मक होती है। | ||
+ | .मांग की आड़ी लोच बाजार विश्लेषण में प्रयुक्त होने वाली 4 लोचों में से एक है। शेष हैं- मांग की कीमत लोच, पूर्ति की कीमत लोच और मांग की आय लोच। | ||
+ | |||
+ | {जब मांग वक्र X-अक्ष के समानांतर एक सीधी रेखा के रूप में होता है, तो यह बताता है कि मांग की लोच- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-34,प्रश्न-126 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -शून्य है | ||
+ | -इकाई से कम है | ||
+ | -इकाई से अधिक है | ||
+ | +अनंत है | ||
+ | ||जब मांग वक्र X-अक्ष के समानांतर एक सीधी रेखा के रूप में होता है, तो मांग की लोच अनंत (पूर्णतया लोचदार मांग) होती है। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .जब मांग वक्र Y-अक्ष के समानांतर एक सीधी रेखा हो तो पूर्णतया बेलोचदार मांग होती है। | ||
+ | .जब मांग उसी अनुपात में परिवर्तित होती है जिसे अनुपात में मूल्य परिवर्तन होता है तो इसे 'समलोचदार या लोचदार मांग' कहते है। | ||
+ | |||
+ | {तिरछी मांग से अभिप्राय एक वस्तु की मांग में परिवर्तन निम्न कारण के होने से होता है- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-34,प्रश्न-127 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -दूसरी वस्तु की उपयोगिता में अंतर। | ||
+ | +दूसरी वस्तु की कीमत में परिवर्तन। | ||
+ | -दूसरी वस्तु के स्वभाव में परिवर्तन। | ||
+ | -दूसरी वस्तु के आकार में परिवर्तन | ||
+ | ||'तिरछी मांग' से अभिप्राय एक वस्तु की मांग में परिवर्तन दूसरी वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने से होता है। ऐसा प्राय: स्थानापन्न और पूरक वस्तुओं के संबंध में होता है। | ||
+ | |||
+ | {एक व्यक्तिगत मांग वक्र इस मान्यता पर आधारित होता है कि निम्न तत्व को छोड़कर बाकी सब निर्धारक तत्व स्थिर रहते हैं- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-34,प्रश्न-128 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -उपभोक्ता की आय | ||
+ | -संबंधित वस्तुओं की कीमत | ||
+ | +वस्तु की कीमत | ||
+ | -उपभोक्ता की रुचि | ||
+ | ||एक व्यक्तिगत मांग वक्र इस मान्यता पर आधारित होता है कि वस्तु की कीमत को छोड़कर शेष सभी निर्धारक तत्व स्थित रहते हैं, क्योंकि मांग वक्र का विश्लेषण वस्तु की कीमत और उसकी मात्रा द्वारा किया जाता है। | ||
+ | |||
+ | {मांग वक्र प्रदर्शित है- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-35,प्रश्न-129 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -उत्पादन लागत और वस्तु की मांग के विपरीत संबंध को। | ||
+ | +वस्तु की कीमत और वस्तु की मांग के विपरीत संबंध को। | ||
+ | -वस्तु की कीमत और वस्तु की मांग के प्रत्यक्ष संबंध को। | ||
+ | -मांग की मात्रा में परिवर्तन के विपरीत संबंध को। | ||
+ | ||किसी वस्तु के मांग वक्र की सामान्य प्रकृति बाएं से दाएं नीचे की ओर ढाल के रूप में होती है और यह किसी वस्तु की कीमत और उस वस्तु की मांग मात्रा के बीच विपरीत संबंध को व्यक्त करता है। इसका अर्थ है कि किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से उस वस्तु की मांग घट जाएगी। | ||
+ | |||
+ | {जब मांग की रेखा सदैव आधार रेखा के समानांतर रहती है, ऐसी स्थिति में मांग की लोच होगी- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-35,प्रश्न-130 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -शून्य | ||
+ | +अनंत | ||
+ | -इकाई से कम | ||
+ | -इकाई से अधिक | ||
+ | ||जब मांग की रेखा सदैव आधार रेखा (X-अक्ष) के समानांतर रहती है तो ऐसी स्थिति में मांग की लोच अनंत होती है। इसका अर्थ है कि किसे वस्तु की मांग मात्रा पर्याप्त परिवर्तन होने के बावजूद उस वस्तु की कीमत अपरिवर्तित रहती है। | ||
+ | |||
+ | {सैम्युएल्सन के अनुसार मांग के तार्किक सिद्धांत का तीसरा सूत्र है- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-35,प्रश्न-132 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -तटस्थ वक्र विश्लेषण | ||
+ | -मांग की लोच | ||
+ | +उद्घाटित अधिमान सिद्धांत | ||
+ | -उपयोगिता विश्लेषण | ||
+ | ||सैम्युएल्सन के अनुसार मांग के तार्किक सिद्धांत का तीसरा सूत्र उद्घाटित अधिमान सिद्धांत है, जिसे सैम्युएल्सन ने वर्ष 1958 में अपनी पुस्तक 'Economics' में प्रस्तुत किया था। यह बाजार में उपभोक्ता के अवलोकित व्यवहार के आधार पर दो वस्तुओं के एक संयोग के लिए उपभोक्ता के अधिमान का विश्लेषण करता है। | ||
+ | |||
+ | {एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप जब दोनों वस्तुओं की मांग घटती या बढ़ती है तो मांग की तिरछी लोच होगी- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-35,प्रश्न-133 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +ऋणात्मक | ||
+ | -धनात्मक | ||
+ | -शून्य | ||
+ | -इकाई के बराबर | ||
+ | |||
+ | ||एक वस्तु की मांग-मात्रा में प्रकाशित परिवर्तन का एक संबंधित वस्तु की कीमत में प्रतिशत परिवर्तन का आनुपारिक संबंध मांग की तिरछी लोच होती है। ऐसा दो प्रकार की वस्तुओं स्थानापन्न और पूरक के संबंध में होता है। जब एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप दोनों वस्तुओं की मांग घटती या बढ़ती है तो मांग की तिरछी लोच ऋणात्मक होती हैं, क्योंकि ऐसी वस्तुएं पूरक होती हैं। | ||
+ | |||
+ | |||
+ | |||
+ | |||
+ | {निम्न में से अल्पाधिकार की स्थिति कौन-सी है? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-68,प्रश्न-101 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -अनेक क्रेता तथा अनेक विक्रेता | ||
+ | -एक क्रेता तथा अनेक विक्रेता | ||
+ | -एक विक्रेता तथा अनेक क्रेता | ||
+ | +कुछ विक्रेता तथा अनेक क्रेता | ||
+ | ||अल्पाधिकार की स्थिति में कुछ विक्रेता तथा अनेक क्रेता होते हैं। | ||
+ | |||
+ | {'कार्टेल' किस बाजार का भाग है? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-68,प्रश्न-102 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -एकाधिकार | ||
+ | -पूर्ण प्रतियोगिता | ||
+ | +अल्पाधिकार | ||
+ | -एकाधिकारीकृत प्रतियोगिता | ||
+ | ||कार्टेल अल्पाधिकार बाजार का एक भाग है। जब एक उद्योग की विभिन्न अल्पाधिकारी फर्में कीमत-युद्ध अथवा गला-काट प्रतियोगिता से बचने तथा एक साथ मिलकर अपने हितों की रक्षा के लिए आपस में एक औपचारिक समझौता करती हैं तो उसे 'कार्टेल' कहा जाता है। | ||
+ | |||
+ | {निम्नलिखित में से किस संदर्भ में पूर्ण प्रतियोगिता निश्चय ही एकाधिकार से श्रेष्ठतर होगी? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-68,प्रश्न-104 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -प्रवैशिक कुशलता | ||
+ | +आवंटन कुशलता | ||
+ | -प्रौद्योगिकीय कुशलता | ||
+ | -स्थैतिक कुशलता | ||
+ | ||पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत संसाधनों का आवंटन सबसे बेहतर ढंग से होता है, जिससे समाज में अधिकतम संतुष्टि अथवा कल्याण की प्राप्ति होती है। | ||
+ | आवंटन कुशलता का तात्पर्य यह है कि संसाधनों का आवंटन इस प्रकार से हो जिससे उत्पन्न उत्पादन का ढांचा (अर्थात विभिन्न वस्तुओं की मात्रा) ऐसा हो जो उपभोक्ताओं के अधिमानों के अनुकूल हो ताकि उनकों अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो सके। | ||
+ | |||
+ | {निम्न में से कौन एक पूर्ण प्रतियोगिता की आवश्यक शर्त नहीं है? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-68,प्रश्न-105 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -वस्तु विभेद की पूर्ण अनुपस्थिति | ||
+ | -उत्पत्ति के साधनों की पूर्ण गतिशीलता | ||
+ | -परिवहन लागतों का अभाव | ||
+ | +विक्रय लागतों की उपस्थिति | ||
+ | ||पूर्ण प्रतियोगिता में विक्रय लागतों की अनुपस्थिति होती है। 'विक्रय लागतों' का विचार चैम्बरलीन ने एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता' के लिए दिया। | ||
+ | |||
+ | {पूर्ण प्रतियोगिता की वह कौन-सी विशेषता है, जो एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता पर लागू नहीं होती? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-68,प्रश्न-107 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -अधिक क्रेता व विक्रेता | ||
+ | -स्वतंत्र प्रवेश व निकास | ||
+ | +एकरूप उत्पादन | ||
+ | -उपर्युक्त सभी | ||
+ | ||पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता की सभी मान्यताएं समान होती हैं, सिर्फ 'एक रूप उत्पादन' की मान्यता को छोड़कर। पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता दोनों में 'समरूप' वस्तुएं उत्पादित होती हैं, लेकिन एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता में 'पैकेजिंग' आदि करके वस्तुओं को भिन्न कर दिया जाता है। | ||
+ | |||
+ | {दीर्घकालीन साम्य की अवस्था में सभी पूर्ण प्रतियोगी फर्में केवल- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-69,प्रश्न-109 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +सामान्य लाभ प्राप्त करती है। | ||
+ | -हानि सहन करती हैं। | ||
+ | -लाभ अर्जित करती हैं। | ||
+ | -उपरोक्त सभी। | ||
+ | ||दीर्घकालीन साम्य की अवस्था में सभी पूर्ण प्रतियोगी फर्में केवल सामान्य लाभ प्राप्त करती हैं, क्योंकि दीर्घकाल में फर्में इस प्रकार समायोगित होती हैं कि वे अपने औसत लागत वक्र के न्यूनतम बिंदु पर उत्पादन कर रही होती है और इस बिंदु पर औसत आय रेखा स्पर्श करती है, जिससे फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता है। | ||
+ | |||
+ | {अल्पकालीन साम्य की अवस्था में पूर्ण प्रतियोगी फर्म- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-69,प्रश्न-110 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -लाभ कमा सकती है। | ||
+ | -हानि सहन कर सकती है। | ||
+ | -न लाभ न हानि की दशा में हो सकती है। | ||
+ | +उपरोक्त सभी | ||
+ | ||अल्पकालीन वह समय होता है जिसमें फर्म के लिए परिवर्तन की संभावनाएं बहुत कम होती हैं। अत: अल्पकालीन साम्य की अवस्था में पूर्ण प्रतियोगी फर्म असामान्य लाभ, असामान्य हानि, सामान्य लाभ(न लाभ, न हाँइ) की दशा में अपने आप को बाजार में कायम रख सकती है। | ||
+ | |||
+ | {अपूर्ण प्रतियोगिता से यह संबंधित नहीं है- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-69,प्रश्न-111 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -फर्मों की अधिक संख्या | ||
+ | +समरूप पदार्थ | ||
+ | -मांग लोचपूर्ण | ||
+ | -कीमत पर कुछ नियंत्रण | ||
+ | ||अपूर्ण प्रतियोगिता में विक्रेता फर्मों के उत्पाद सहजातीय या समरूप नहीं होते हैं, बल्कि वे परस्पर नजदीकी स्थानापन्न होते हैं। | ||
+ | |||
+ | {एकाधिकारी- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-69,प्रश्न-113 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -अपनी बिक्री तथा उत्पादन को बढ़ाकर वस्तु की कीमत को घटा सकता है। | ||
+ | -अपनी बिक्री तथा उत्पादन को घटाकर कीमत को बढ़ा सकता है। | ||
+ | +उपरोक्त दोनों। | ||
+ | -उपरोक्त में कोई भी नहीं। | ||
+ | ||एकाधिकारी बाजार में फर्म उस स्थिति में होती है कि वह या तो पूर्ति पर नियंत्रण कर ले या फिर कीमत पर, अर्थात वह दोनों पर एक साथ नियंत्रण स्थापित नहीं कर सकती है, अत: एकाधिकारी चाहे तो अपने उत्पादन तथा बिक्री को बढ़ाकर वस्तु की कीमत घटा सकता है या फिर उत्पादन तथा बिक्री को घटाकर कीमत को बढ़ा सकता है। | ||
+ | |||
+ | {एकादिकारी प्रतियोगिता के अल्पकालीन साम्य की अवस्था में- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-68,प्रश्न-114 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -फर्म को लाभ प्राप्त हो सकते हैं। | ||
+ | -फर्म को हानि सहन करनी पड़ सकती है। | ||
+ | -फर्म को न लाभ न हाँइ की स्थिति से गुजरना पड़ सकता है। | ||
+ | +उपरोक्त सभी। | ||
+ | ||एकाधिकारी प्रतियोगिता के अंतर्गत कोई फर्म असामान्य लाभ, असामान्य हानि या सामान्य लाभ किसी भी स्थिति से गुजर सकती है, अत: अल्पकालीन साम्य की अवस्था में फर्म को प्रश्नगत तीनों स्थितियों से गुजरना पड़ सकता है। | ||
+ | |||
+ | |||
+ | |||
+ | |||
+ | {रिकार्डियन सिद्धांत के अनुसार निम्न में से कौन सही है? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-46 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -लगान, सीमांत भूमि पर उत्पादन की लागत के बराबर है | ||
+ | +लगान, उत्पादन लागत के ऊपर शुद्ध अतिरेक है | ||
+ | -लगान, एक उत्पादन कारक की अवसर लागत के बराबर है | ||
+ | -दोनों के मध्य विपरीत संबंध होता है | ||
+ | ||रिकार्डियन सिद्धांत के अनुसार लगान, उत्पादन लागत के ऊपर शुद्ध अतिरेक होता है। अत: | ||
+ | लगान=कुल अय (TR)-कुल लागत (TC) | ||
+ | लगान=औसत आय (AR)-औरत लागत (AC) | ||
+ | |||
+ | {लगान के प्रतिष्ठित सिद्धांत के अनुसार- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-47 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -भूमि भिन्न-भिन्न प्रकार की पाई जाती है। | ||
+ | -लगान सीमांत भूमि और उसके ऊपर प्राप्त किया जाता है। | ||
+ | -भूमि की अलग-अलग उर्वरता होती है। | ||
+ | +उपर्युक्त सभी। | ||
+ | ||लगान के प्रतिष्ठित सिद्धांत के अनुसार (रिकार्डो के अनुसार), लगान भूमि की मौलिक एवं अविनाशी शक्तियों के कारण उत्पन्न होता है। लगान की माप केवल सीमांत भूमि के आय के आधार पर भूमि की उर्वरता अलग-अलग होती है। भूमि भिन्न-भिन्न प्रकार की पाए जाती है। | ||
+ | |||
+ | {निम्न में से कौन-सा अर्थशास्त्री ब्याज के सिद्धांत से संबंधित नहीं है- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-48 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -ए. मार्शल | ||
+ | -के. विकसेल | ||
+ | -आई. फिशर | ||
+ | +एफ. लिस्ट | ||
+ | ||फफ. लिस्ट ब्याज के सिद्धांत से संबंधित नहीं हैं जबकि ब्याज के सिद्धांत से संबंधित अर्थशास्त्री अर्थशास्त्री हैं- ए. मार्शल (ब्याज का प्रतिष्ठिक सिद्धांत), सीनियर (ब्याज का उपभोग स्थगन सिद्धांत), बॉम वावर्क (ब्याज का बट्टा सिद्धांत), इरविंग फिशर (ब्याज का समय अधिमान्यता सिद्धांत), के. विकसेल (ब्याज का ऋण योग्य राशियों का सिद्धांत), हिक्स -हेंसन (IS-LM मॉडल), ओहलिन, हेवेलर, रॉबर्डसन, बाइनर, नाइट, जे.वी. क्लार्ड आदि। | ||
+ | |||
+ | {अपने लगान सिद्धांत में रिकार्डों ने भूमि की हस्तांतरण आय को माना है- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-49 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -बहुत अधिक | ||
+ | -बहुत कम | ||
+ | +शून्य | ||
+ | -इनमें से कोई नहीं | ||
+ | ||रिकार्डो ने अपने लगान सिद्धान्त में हस्तांतरण आय को शून्य माना है। रिकार्डों के अनुसार, भूमि का केवल एक ही प्रयोग संभव है या तो भूमि पर खेती की जाए या बेकार पड़ी रहे। इसलिए उसकी हस्तांतरण अय को शून्य माना। | ||
+ | |||
+ | {सही कथन क्या है? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-50 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -लगान में वृद्धि से भूमि की कीमत बढ़ती है। | ||
+ | +हस्तांतरण भुगतान का अर्थ न्यूनतम पूर्ति कीमत से है। | ||
+ | -एक विशिष्ट साधन लगान का उपार्जन नहीं करता। | ||
+ | -सीमांत भूमि सर्वाधिक लगान का उपार्जन करती है। | ||
+ | ||रिकार्डो के अनुसार, "लगान भूमि की उपज का वह भाग है जो भूमि के मालिक को भूमि की मौलिक एवं अविनाशी शक्तियों के उपयोग के लिए दिया जाता है। अत: स्पष्ट है कि लगान का कारण भूमि में उपलब्ध भूमि की मौलिक एवं अविनाशी शक्तियां हैं जिनके कारण भूमि पर निरंतर उत्पादन होता है। लगान में वृद्धि का भूमि की कीमत से कोई संबंध नहीं होता है बल्कि यदि भूमि पर उत्पादित उपक या अनाज का मूल्य बढ़ता है तो लगान में भी वृद्धि होगी। 'हस्तांतर्ण भुगतान' (Transfer Earning) या 'अवसर आय' वह मूल्य है जो किसी साधन की एक इकाई को किसी उद्योग में बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है। अत: कथन "हस्तांतरण भुगतान का अर्थ न्यूनतम पूर्ति कीमत है", सही है। | ||
+ | एक विशिष्ट साधन लगान का उपार्जन करता है जबकि अविशिष्ट साधन को लगान विशिष्ट साधन लगान प्राप्त नहीं होती है। रिकार्डो के अनुसार, 'लगान अधि-सीमांत तथा सीमांत भूमि के उत्पादनों का अंतर है। सीमांत भूमि से आशव भूमि के ऐसे टुकड़े से है जिस पर उत्पादित वस्तुओं से प्राप्त आय उत्पादन लागात के ठीक-ठीक बराबर होती है। इस प्रकार की भूमि पर कृषि करने वाले को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होगा। उसे कोई अतिरिक्त बचत नहीं प्राप्त होगी। इस प्रकार सीमांत भूमि से लगान प्राप्त नहीं होता है। अत: केवल विकल्प (b) ही सही है, शेष गलत हैं। | ||
+ | |||
+ | {मजदूरी के जीवन-निर्वाह सिद्धांत का प्रतिपादन किया था: (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-79,प्रश्न-51 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +जेक्स | ||
+ | -मार्क्स | ||
+ | -मार्शल | ||
+ | -सेम्युएल्सन | ||
+ | ||मजदूरी के जीवन-निर्वाह सिद्धांत का प्रतिपादन 18वीं सदी में जैक्स, रिकार्डों और टोरेन्स ने किया था। | ||
+ | |||
+ | {शब्द 'संभाव्य आश्चर्य' किस सिद्धांत से सम्बद्ध है? (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-79,प्रश्न-52 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -लगान सिद्धांत | ||
+ | +ब्याज सिद्धांत | ||
+ | -मजदूरी सिद्धांत | ||
+ | -लाभ सिद्धांत | ||
+ | ||शब्द 'संभाव आश्चर्य' लाभ के सिद्धांत से संबंधित है जिसका प्रतिपादन शाकिल ने किया था। 'सामान्यतया आभ' से तात्पर्य कुल आय के उस भाग से है जो कुल खर्चों को निकाल देने के बाद बच जाती है। पर वास्तव में यह कुल लाभ है, अर्थशास्त्र में प्रयोग किया गया शुद्ध लाभ नहीं। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .लाभ के दो रूप हैं- सामान्य लाभ तथा असामान्य लाभ। | ||
+ | .सामान्य लाभ, लाभ की न्यूनतम सीमा है जिससे कम मिलने पर साहसी जोखिम उठाना छोड़ देगा। | ||
+ | .जब औसत आय वक्र (AR) औसत लागत वक्र को स्पर्श करती है तो फर्म को सामान्य लाभ होता है तथा जब यह AR वक्र से नीचे होती है तो फर्म को असामान्य लाभ होगा। | ||
+ | .प्रो. नाइट ने सामान्य तथा असामान्य लाभ के बीच भेद जोखिम के विभिन्न प्रकारों के आधार पर किया है। | ||
+ | |||
+ | {जब किसी को क्षति पहुंचाए बिना किसी को अच्छा बनाना संभव न हो तो ऐसी स्थिति को कहते हैं- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-79,प्रश्न-53 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -संभाविता अनुकूलतम | ||
+ | +पैरेटो अनुकूलतम | ||
+ | -जनसंख्या अनुकूलतम | ||
+ | -प्रदूषण अनुकूलतम | ||
+ | ||जब किसी को क्षति पहुंचाएं बिना किसी को अच्छा बनाना संभव न हो तो ऐसी स्थिति को "पैरेटो अनुकूलतम" कहते हैं। पैरेटो मापदण्ड यह बताता है कि हम उस समय यह कहते हैं कि कल्याण बढ़ (या घट) गया है, जब दूसरों की स्थिति में परिवर्तन किए बिना कम से कम एक व्यक्ति को पहले से अच्छी या (बुरी) स्थिति में ले आया जाए। | ||
+ | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
+ | .कल्याण अर्थशास्त्र पर प्रथम मानक ग्रन्थ प्रो. ए.सी. पीगू का 'The Economics of Welfare' है। पीगू को 'कल्याण अर्थशास्त्र का पिता' माना जाता है। | ||
+ | .समाज कल्याण फलन सिद्धांत की धारणा का प्रतिपादन प्रो. वर्गसन ने किया। | ||
+ | .कालडर के अनुसार, समाज कल्याण में वृद्धि का परीक्षण यह है कि यदि कुछ व्यक्ति पहले से अच्छी और दूसरे पहले से बुरी स्थिति में आ जाते है, तो परिवर्तन से लाभ प्राप्त करने वाले हानि प्राप्त करने वालों की अप्रेक्षाकृत अधिक क्षतिपूर्ति कर सकते हैं और फिर भी स्वयं पहले से अच्छी स्थिति में हो सकते हैं। | ||
+ | |||
+ | {जब किसी को क्षति पहुंचाए बिना किसी को अच्छा बनाना संभव हो, तो ऐसी स्थिति को कहते है- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-79,प्रश्न-54 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -संभाविता अनुकूलतम | ||
+ | +पैरेटो अनुकूलतम | ||
+ | -जनसंख्या अनुकूलतम | ||
+ | -प्रदूषण अनुकूलतम | ||
+ | ||प्रश्नानुसार विकल्प (b) में 'पैरेटो अनुकूलतम' नहीं बल्कि 'पैरेटो मापदंड' होना चाहिए क्योंकि पैरेटो अनुकूलतम के अनुसार, समाज कल्याण उस समय इष्टतम होता है जन किसी दूसरे व्यक्ति को पहले से बुरी स्थिति में लाए बिना किसी भी व्यक्ति की स्थिति पहले से अच्छी बनाना संभव न हो। | ||
+ | |||
+ | {वालरस का 'सामान्य संतुलन का मॉडल' था- (अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान,पृ.सं-79,प्रश्न-55 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +एक स्थैतिक मॉडल | ||
+ | -एक गत्यात्मक मॉडल | ||
+ | -तुलनात्मक स्थैतिक मॉडल | ||
+ | -उपरोक्त में से कोई नहीं नहीं | ||
+ | ||वालरस का सामान्य संतुलन का मॉडल एक स्थैतिक या अगत्यात्मक मॉडल है। इस मॉडल में सभी उपभोक्ता व उत्पादक, समय के किसी भी प्रकार के विलम्ब के बिना, दिन-प्रतिदिन वस्तुओं की उतनी ही मात्रा का उपभोग तथा उत्पादन करते हैं। उनकी रुचितां, अधिमान, आदतें, उत्पादन फलन, पूर्ति फलन तथा उद्देश्य वे ही रहते हैं और उनके आर्थिक निर्णय पूरी तरह एक-दूसरे के अनुरूप होते हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि ये सभी तत्व निरंतर बदलते रहते हैं। इसलिए वालरस मॉडल के संतुलन बिंदु की प्राप्ति केवल एक अल्पित अभिलाषा मात्र बनी रहती है। | ||
</quiz> | </quiz> | ||
|} | |} | ||
|} | |} |
11:25, 9 दिसम्बर 2017 का अवतरण
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