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'''वीर बाल दिवस''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Veer Bal Diwas'') प्रत्येक वर्ष [[भारत]] में [[26 दिसम्बर]] को मनाये जाने की घोषणा हुई है। [[प्रधानमंत्री]] [[नरेंद्र मोदी]] ने [[सिक्ख]] धार्मिक त्योहार 'प्रकाश पर्व' के मौके पर 10वें [[गुरु गोबिन्द सिंह|गुरु गोबिंद सिंह]] के दोनों छोटे बेटों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह के बलिदान को याद करने के लिए हर वर्ष 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया था।
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==इतिहास==
 
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06:18, 14 जनवरी 2022 के समय का अवतरण

वीर बाल दिवस
वीर बाल दिवस
देश भारत
तिथि 26 दिसम्बर
उद्देश्य गुरु गोबिंद सिंह के दोनों छोटे बेटों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह के बलिदान को याद करने के लिए।
संबंधित लेख सिक्ख धर्म, गुरु गोबिन्द सिंह, सिक्ख धार्मिक स्थल
अन्य जानकारी श्रद्धावान लोग आज भी हर वर्ष सिक्ख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार, 20 दिसंबर से लेकर 27 दिसंबर तक 'शहीदी सप्ताह' मनाते हैं।

वीर बाल दिवस (अंग्रेज़ी: Veer Bal Diwas) प्रत्येक वर्ष भारत में 26 दिसम्बर को मनाये जाने की घोषणा हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिक्ख धार्मिक त्योहार 'प्रकाश पर्व' के मौके पर 10वें गुरु गोबिंद सिंह के दोनों छोटे बेटों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह के बलिदान को याद करने के लिए हर वर्ष 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया था।

इतिहास

वर्ष 1704 का दिसंबर महीना था। मुग़ल सेना ने 20 दिसंबर को कड़कड़ाती ठंड में अचानक आनंदपुर साहिब किले पर धावा बोल दिया। गुरु गोबिंद सिंह उसे सबक सिखाना चाहते थे, लेकिन उनके दल में शामिल सिखों ने खतरे को भांपकर वहां से निकलने में ही भलाई समझी। गुरु गोबिंद सिंह भी जत्थे की बात मानकर पूरे परिवार के साथ आनंदपुर किला छोड़कर चल पड़े। सरसा नदी में पानी का बहाव बहुत तेज था। इस कारण नदी पार करते वक्त गुरु गोबिंद सिंह का परिवार बिछड़ गया। गुरु गोबिंद के साथ दो बड़े साहिबजादों- बाबा अजित सिंह और बाबा जुझार सिंह के साथ चमकौर पहुंच गए। वहीं, उनकी माता गुजरी, दोनों छोटे पोतों- बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह के साथ रह गईं। उनके साथ गुरु साहिब का सेवक रहा गंगू भी था।[1]

गंगू माता गुजरी को उनके दोनों पोतों समेत अपने घर ले आया। कहा जाता है कि माता गुजरी के पास सोने के सिक्कों को देखकर गंगू लालच में आ गया और उसने इनाम पाने की चाहत में कोतवाल को माता गुजरी की सूचना दे दी। माता गुजरी अपने दोनों छोटे पोतों के साथ गिरफ्तार हो गईं। उन्हें सरहंद के नवाब वजीर खान के सामने पेश किया गया। वजीर ने बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को इस्लाम स्वीकारने को कहा। दोनों ने धर्म बदलने से इनकार कर दिया तो नवाब ने 26 दिसंबर, 1704 को दोनों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया। वहीं, माता गुजरी को सरहिंद के किले से धक्का देकर मार दिया।

सबसे बड़ा बलिदान

गुरु गोबिंद सिंह जी के परिवार की इस महान शहादत को आज भी इतिहास की सबसे बड़ी शहादत माना जाता है। अत्याचारी के आगे तनकर खड़े रहने और धर्म की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने की यह घटना मिसाल बन गई। श्रद्धावान आज भी हर वर्ष सिक्ख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार, 20 दिसंबर से लेकर 27 दिसंबर तक शहीदी सप्ताह मनाते हैं। इन दिनों गुरुद्वारों से लेकर घरों तक में बड़े स्तर पर कीर्तन-पाठ किया जाता है। इस दौरान बच्चों को गुरु साहिब के परिवार की शहादत के बारे में बताया जाता है। साथ ही कई श्रद्धावान सिक्ख इस पूरे हफ्ते जमीन पर सोते हैं और माता गुजरी और साहिबजादों की शहादत को नमन करते हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 पीएम मोदी ने की 26 दिसंबर को 'वीर बाल दिवस' मनाने की घोषणा (हिंदी) navbharattimes.indiatimes.com। अभिगमन तिथि: 14 जनवरी, 2022।

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