"कुरु महाजनपद" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "Category:महाजनपद" to "")
छो (Text replace - "Category:इतिहास-कोश" to "")
पंक्ति 23: पंक्ति 23:
 
[[Category:भारत के महाजनपद]]
 
[[Category:भारत के महाजनपद]]
 
[[Category:इतिहास कोश]]
 
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:इतिहास-कोश]]
+
 
  
 
__INDEX__
 
__INDEX__

06:31, 20 मार्च 2010 का अवतरण


कुरु / Kuru / Kuru Desh

कुरु महाजनपद
Kuru Great Realm

कुरु, पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक । आधुनिक हरियाणा तथा दिल्ली का यमुना नदी के पश्चिम वाला अंश शामिल था । इसकी राजधानी आधुनिक दिल्ली (इन्द्रप्रस्थ) थी ।

तथ्य

  1. एक प्राचीन देश जिसका हिमालय के उत्तर का भाग 'उत्तर कुरू' और हिमालय के दक्षिण का भाग 'दक्षिण कुरू' के नाम से विख्यात था। भागवत के अनुसार युधिष्ठर का राजसूय यज्ञ और श्रीकृष्ण का रूक्मिणी के साथ विवाह यहीं हुआ था।
  2. अग्नीध के एक पुत्र का नाम 'कुरू' था जिनकी स्त्री मेरूकन्या प्रसिद्ध है।
  3. वैदिक साहित्य में उल्लिखित एक प्रसिद्ध चंद्रवंशी राजा था। कुरू के पिता का नाम संवरण तथा माता का नाम तपती था। शुभांगी तथा वाहिनी नामक इनकी दो स्त्रियाँ थीं। वाहिनी के पाँच पुत्र हुए जिनमें कनिष्ठ का नाम जनमेजय था जिसके वंशज धृतराष्ट्र और पांडु हुए। सामान्यत: धृतराष्ट्र की संतान को ही 'कौरव' संज्ञा दी जाती है, पर कुरू के वंशज कौरव-पांडवों दोनों ही थे।

कुरू-जनपद

  • प्राचीन भारत का प्रसिद्ध जनपद जिसकी स्थितिं वर्तमान दिल्ली-मेरठ प्रदेश में थी। महाभारतकाल में हस्तिनापुर कुरू-जनपद की राजधानी थी। महाभारत से ज्ञात होता है कि कुरू की प्राचीन राजधानी खांडवप्रस्थ थी। कुरू-श्रवण नामक व्यक्ति का उल्लेख ऋग्वेद में है <balloon title="कुरू श्रवणमावृणि राजानं त्रासदस्यवम्। मंहिष्ठंवाघता मृषि" style="color:blue">*</balloon>
  • अथर्ववेद संहिता 20,127,8 में कौरव्य या कुरू देश के राजा का उल्लेख है।<balloon title="कुलायन कृण्वन कौरव्य: पतिरवदति जायया ।" style="color:blue">*</balloon>
  • महाभारत के अनेक वर्णनों से विदित होता है कि कुरूजांगल, कुरू और कुरूक्षेत्र इस विशाल जनपद के तीन मुख्य भाग थे। कुरूजांगल इस प्रदेश के वन्यभाग का नाम था जिसका विस्तार सरस्वती तट पर स्थित काम्यकवन तक था। खांडव वन भी जिसे पांडवों ने जला कर उसके स्थान पर इन्द्रप्रस्थ नगर बसाया था इसी जंगली भाग में सम्मिलित था और यह वर्तमान नई दिल्ली के पुराने किले और कुतुब के आसपास रहा होगा।
  • मुख्य कुरू जनपद हस्तिनापुर (ज़िला मेरठ, उ0प्र0) के निकट था। कुरूक्षेत्र की सीमा तैत्तरीय आरण्यक में इस प्रकार है- इसके दक्षिण में खांडव, उत्तर में तूर्ध्न और पश्चिम में परिणाह स्थित था। संभव है ये सब विभिन्न वनों के नाम थे। कुरू जनपद में वर्तमान थानेसर, दिल्ली और उत्तरी गंगा द्वाबा (मेरठ-बिजनौर जिलों के भाग) शामिल थे।
  • पपंचसूदनी नामक ग्रंथ में वर्णित अनुश्रुति के अनुसार इलावंशीय कौरव, मूल रूप से हिमालय के उत्तर में स्थित प्रदेश (या उत्तरकुरू) के रहने वाले थें । कालांतर में उनके भारत में आकर बस जाने के कारण उनका नया निवासस्थान भी कुरू देश ही कहलाने लगा। इसे उनके मूल निवास से भिन्न नाम न देकर कुरू ही कहा गया। केवल उत्तर और दक्षिण शब्द कुरू के पहले जोड़ कर उनकी भिन्नता का निर्देश किया गया <balloon title="लॉ-ऐंशेंट मिडइंडियन क्षत्रिय ट्राइब्स, पृ0 16" style="color:blue">*</balloon>
  • महाभारत में भारतीय कुरू-जनपदों को दक्षिण कुरू कहा गया है और उत्तर-कुरूओं के साथ ही उनका उल्लेख भी है। <balloon title="'उत्तरै: कुरूभि: सार्ध दक्षिणा: कुरवस्तथा। विस्पर्धमाना व्यचरंस्तथा देवर्षिचारणै: आदि0 108,10" style="color:blue">*</balloon>
  • अंगुत्तर-निकाय में 'सोलह महाजनपदों की सूची में कुरू का भी नाम है जिससे इस जनपद की महत्ता का काल बुद्ध तथा उसके पूर्ववर्ती समय तक प्रमाणित होता है।
  • महासुत-सोम-जातक के अनुसार कुरू जनपद का विस्तार तीन सौ कोस था। जातकों में कुरू की राजधानी इन्द्रप्रस्थ में बताई गई है। हत्थिनापुर या हस्तिनापुर का उल्लेख भी जातकों में है। ऐसा जान पड़ता है कि इस काल के पश्चात और मगध की बढ़ती हुई शक्ति के फलस्वरूप जिसका पूर्ण विकास मौर्य साम्राज्य की स्थापना के साथ हुआ, कुरू, जिसकी राजधानी इस्तिनापुर राजा निचक्षु के समय में गंगा में बह गई थी और जिसे छोड़ कर इस राजा ने वत्स जनपद में जाकर अपनी राजधानी कौशांबी में बनाई थी, धीरे-धीरे विस्मृति के गर्त में विलीन हो गया। इस तथ्य का ज्ञान हमें जैन उत्तराध्यायन सूत्र से होता है जिससे बुद्धकाल में कुरूप्रदेश में कई छोटे-छोटे राज्यों का अस्तित्व ज्ञात होता है।