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छोटे आकार के बावजूद पश्चिम बंगाल से भारत के सकल घरेलू उत्पादन का लगभग छठा हिस्सा आता है।

कृषि

भू-परिदृश्य और अर्थव्यवस्था, दोनों में कृषि की प्रधानता है। राज्य के प्रत्येक चार में से तीन व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि में संलग्न हैं, सापेक्षिक कृषि योग्य भूमि के कुल क्षेत्र (65 प्रतिशत) के मामले में पश्चिम बंगाल अन्य राज्यों से आगे है। दार्जिलिंग को छोड़कर अन्य सभी ज़िलों में धान की, जिसे विस्तृत सिंचाई की आवश्यकता होती है। फ़सल प्रमुख है। अपने छोटे के बावजूद देश के कुल चावल-उत्पादन क्षेत्र का 14 प्रतिशत भाग पश्चिम बंगाल बोता है और देश की कुल उपज का 16 प्रतिशत काटता है। इस अत्यधिक उपज का श्रेय सघन फ़सल पद्धति व अपेक्षाकृत भारी मात्रा में उर्वरक का प्रयोग, दोनों जो जाता है। जूट जो दूसरी प्रमुख फ़सल है, ख़ासकर बांग्लादेश के सीमांत व गंगा नदी के दक्षिणी ज़िलों में प्रमुखता से उपजाया जाता है। सभी दक्षिणी ज़िलों में गेहूँआलू को शीतकालीन फ़सल के रूप में उगाया जाता है। एक अरसे से दार्जिलिंग व जलपाईगुड़ी अपनी उच्च गुणवत्ता वाली चाय के लिए जाने जाते हैं। दार्जिलिंग में संतरा, सेब, अन्नानास, इलायची और अदरक भी होता है। राज्य के दक्षिणी और मध्य क्षेत्र में आम, तरबूजकेले का व्यापक रूप से उत्पादन होता है।

कोलकाता की अर्थव्यवस्था

भारत के एक मुख्य आर्थिक केन्द्र के रूप में कोलकाता की जड़ें उसके उद्योग, आर्थिक एवं व्यापारिक गतिविधियों और मुख्य बंदरगाह के रूप में उसकी भूमिका में निहित है; यह मुद्रण, प्रकाशन और समाचार पत्र वितरण के साथ-साथ मनोरंजनक का केन्द्र है। कोलकाता के भीतरी प्रदेश के उत्पादों में कोयला, लोहा, मैंगनीज, अभ्रक, पेट्रोल, चाय और जूट शामिल हैं। 1950 के दशक से बेरोज़गारी एक सतत व बढ़ती हुई समस्या है। कोलकाता में बेरोज़गारी बहुत हद तक महाविद्यालय शिक्षा प्राप्त और लिपिक व अन्य सफ़ेदपोश व्यवसायों के लिए प्रशिक्षित लोगों की समस्या है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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