"काम की खुन्दक -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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बीस जूते खाकर छोटे बोला "पंडिज्जी रुक जाओ, जूतों से अच्छी तो प्याज़ पड़ रही थी। मैं प्याज़ ही खाऊँगा।" प्याज़ खाने और जूते खाने का सिलसिला काफी देर चलता रहा। कुल-मिलाकर हुआ ये कि छोटे ने अस्सी प्याज़ खाली और जूते पूरे सौ पड़े और एक रुपया भी इनाम मिलने का तो सवाल ही नहीं उठता था। | बीस जूते खाकर छोटे बोला "पंडिज्जी रुक जाओ, जूतों से अच्छी तो प्याज़ पड़ रही थी। मैं प्याज़ ही खाऊँगा।" प्याज़ खाने और जूते खाने का सिलसिला काफी देर चलता रहा। कुल-मिलाकर हुआ ये कि छोटे ने अस्सी प्याज़ खाली और जूते पूरे सौ पड़े और एक रुपया भी इनाम मिलने का तो सवाल ही नहीं उठता था। | ||
− | दरअसल छोटे पहलवान की असमंजस वाली मन: स्थिति हम में से बहुतों के साथ घटती रहती है। अपनी वर्तमान स्थिति, नौकरी, पढ़ाई, स्थान, गृहस्थी, जीवन साथी आदि जैसे कई मुद्दे हैं, जिन पर हम असंतुष्ट रहते हैं और जिनका विश्लेषण और मूल्यांकन भी नहीं करना चाहते। परिवर्तन,शीलता मनुष्य का सहज स्वभाव है, इसलिए किसी भी स्थान, व्यक्ति या कार्य से ऊब हो जाना एक सामान्य प्रक्रिया है और यही प्रक्रिया हमारी असंतुष्टि का कारण बनती है। मनुष्य के इस स्वभाव पर शोध होते रहते हैं जैसे लगातार इक्कीस मिनट तक कोई एक ही चीज़ को सुनते या देखते रहने से हमारा ध्यान उसकी ओर से हटने लगता है। | + | दरअसल छोटे पहलवान की असमंजस वाली मन: स्थिति हम में से बहुतों के साथ घटती रहती है। अपनी वर्तमान स्थिति, नौकरी, पढ़ाई, स्थान, गृहस्थी, जीवन साथी आदि जैसे कई मुद्दे हैं, जिन पर हम असंतुष्ट रहते हैं और जिनका विश्लेषण और मूल्यांकन भी नहीं करना चाहते। परिवर्तन,शीलता मनुष्य का सहज स्वभाव है, इसलिए किसी भी स्थान, व्यक्ति या कार्य से ऊब हो जाना एक सामान्य प्रक्रिया है और यही प्रक्रिया हमारी असंतुष्टि का कारण बनती है। |
− | + | मनुष्य के इस स्वभाव पर शोध होते रहते हैं, जैसे कि लगातार इक्कीस मिनट तक कोई एक ही चीज़ को सुनते या देखते रहने से हमारा ध्यान उसकी ओर से हटने लगता है। | |
+ | इसी बात को ध्यान में रखकर टेलीविज़न धारावाहिक इक्कीस मिनट के ही बनाये जाते हैं। स्कूल, कॉलजों में एक विषय के लिए जो समय सामान्यत: रखा जाता है वो 45 मिनट का होता है। पुराने वक्त में इस 45 मिनट के 'पीरियड' को लगभग 20 मिनट बाद रुककर 5 मिनट का एक अंतराल रखा जाता था। इस तरह 45 मिनट के एक पीरीयड में 3 से 5 मिनट का मंध्यातर भी होता था जिसका चलन अब नहीं है। फीचर फ़िल्मों में भी बीच-बीच में गाने डाले जाने का कारण बीस मिनट से अधिक चलने वाली समरसता को भंग करने के लिए होता था और आज भी इन्हीं आँकड़ों का ध्यान रखकर व्याख्यान, धारावाहिक, फ़िल्म, नाटक आदि तैयार किये जाते हैं। | ||
महान दार्शनिक [[जे. कृष्णमूर्ति]] से किसी ने सुख से जीवन बिताने का तरीक़ा पूछा तो उन्होंने बताया कि जो भी काम हम करें उसे पूरे मन से करें तो हम पूरे जीवन सुखी और आनंदित रह सकते हैं। कृष्णमूर्ति के कथन में भी एक 'लेकिन' लगाया जा सकता है... लेकिन ये होगा कैसे ?। ऐसा कैसे हो कि जो भी हम कर रहे हैं उसे हम पूरे मन से करें ? एक तरीक़ा है इसका भी, वो ये कि आप काम करते हुए ख़ुद पर 'निगाह' रखें... अपने आप को अपनी ही निगरानी में रखें... यह निगरानी आपके काम का मूल्याँकन भी करती चलेगी। इससे अपने काम से ऊब होने की संभावना कम हो जाती है। अपने कार्य को लगन के साथ करने की बात तो सब कहते हैं लेकिन इसका तरीक़ा क्या है ? कैसे पैदा होती है ये लगन ? | महान दार्शनिक [[जे. कृष्णमूर्ति]] से किसी ने सुख से जीवन बिताने का तरीक़ा पूछा तो उन्होंने बताया कि जो भी काम हम करें उसे पूरे मन से करें तो हम पूरे जीवन सुखी और आनंदित रह सकते हैं। कृष्णमूर्ति के कथन में भी एक 'लेकिन' लगाया जा सकता है... लेकिन ये होगा कैसे ?। ऐसा कैसे हो कि जो भी हम कर रहे हैं उसे हम पूरे मन से करें ? एक तरीक़ा है इसका भी, वो ये कि आप काम करते हुए ख़ुद पर 'निगाह' रखें... अपने आप को अपनी ही निगरानी में रखें... यह निगरानी आपके काम का मूल्याँकन भी करती चलेगी। इससे अपने काम से ऊब होने की संभावना कम हो जाती है। अपने कार्य को लगन के साथ करने की बात तो सब कहते हैं लेकिन इसका तरीक़ा क्या है ? कैसे पैदा होती है ये लगन ? | ||
दिल्ली में एक लड़का मेरे बाल काटता था। मैं अक़्सर उसी से बाल कटवाता था। बाल काटने की प्रक्रिया में वो मुझसे कुछ न कुछ पूछता भी रहता था। एक बार उसने पूछा कि मैं कैसे बड़ा आदमी बन सकता हूँ ? मैंने कहा कि जो भी तुमसे बाल कटवाने आए तुम उसे [[अमिताभ बच्चन]] या [[सचिन तेन्दुलकर]] समझो और बाल काटो, बस और कुछ करने की ज़रूरत नहीं है। | दिल्ली में एक लड़का मेरे बाल काटता था। मैं अक़्सर उसी से बाल कटवाता था। बाल काटने की प्रक्रिया में वो मुझसे कुछ न कुछ पूछता भी रहता था। एक बार उसने पूछा कि मैं कैसे बड़ा आदमी बन सकता हूँ ? मैंने कहा कि जो भी तुमसे बाल कटवाने आए तुम उसे [[अमिताभ बच्चन]] या [[सचिन तेन्दुलकर]] समझो और बाल काटो, बस और कुछ करने की ज़रूरत नहीं है। |
12:58, 12 मई 2012 का अवतरण
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टीका टिप्पणी और संदर्भ