"लक्ष्य और साधना -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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[[महाभारत]] के एक प्रसंग से हम सभी परिचित हैं, जिसमें [[द्रोणाचार्य]] ने एक चिड़िया, एक पक्षी की आँख भेदने के लिए सब पाण्डवों और कौरवों को बुलाया था। दूसरे राजकुमारों से भिन्न, [[अर्जुन]] ने कहा- | [[महाभारत]] के एक प्रसंग से हम सभी परिचित हैं, जिसमें [[द्रोणाचार्य]] ने एक चिड़िया, एक पक्षी की आँख भेदने के लिए सब पाण्डवों और कौरवों को बुलाया था। दूसरे राजकुमारों से भिन्न, [[अर्जुन]] ने कहा- | ||
"मेरा ध्यान तो सिर्फ़ चिड़िया की आँख पर है और मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा।" | "मेरा ध्यान तो सिर्फ़ चिड़िया की आँख पर है और मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा।" | ||
− | उस समय भी राजकुमारों को किसी परीक्षा में खरा उतरने | + | उस समय भी राजकुमारों को किसी परीक्षा में खरा उतरने के लिए पुरस्कृत किया जाता होगा। अर्जुन का ध्यान यदि परीक्षा की सफलता या उस पुरस्कार पर होता तो क्या निशाना सही लगता ? कोई आवश्यक नहीं है कि निशाना सही ही लगता। |
अर्जुन का लक्ष्य था सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनना, इसलिए उसे चिड़िया की आँख ही दिखाई दे रही थी। यह सब घटा किस तरह होगा ? अर्जुन ने पूरी प्रक्रिया की... उसने अपने धनुष को उठाया होगा, फिर तूणीर में से एक बाण निकाला होगा, फिर धनुष पर रखा होगा, प्रत्यंचा खींची होगी, फिर लक्ष्य की ओर ध्यान दिया होगा, और तब बाण चलाया होगा। और उसके साथ ही यह भी ध्यान देने योग्य है कि उसने यह सब करने के लिए कितना अधिक अभ्यास किया होगा। इसके पीछे कितनी साधना छिपी हुई थी। केवल चिड़िया की आँख देखने से ही निशाना नहीं लग जाता बल्कि सही बात यह है कि अर्जुन ने बाण से लक्ष्य-भेद का इतना अधिक अभ्यास कर लिया था कि वह निशाना लगाते समय केवल लक्ष्य को ही देखता था। | अर्जुन का लक्ष्य था सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनना, इसलिए उसे चिड़िया की आँख ही दिखाई दे रही थी। यह सब घटा किस तरह होगा ? अर्जुन ने पूरी प्रक्रिया की... उसने अपने धनुष को उठाया होगा, फिर तूणीर में से एक बाण निकाला होगा, फिर धनुष पर रखा होगा, प्रत्यंचा खींची होगी, फिर लक्ष्य की ओर ध्यान दिया होगा, और तब बाण चलाया होगा। और उसके साथ ही यह भी ध्यान देने योग्य है कि उसने यह सब करने के लिए कितना अधिक अभ्यास किया होगा। इसके पीछे कितनी साधना छिपी हुई थी। केवल चिड़िया की आँख देखने से ही निशाना नहीं लग जाता बल्कि सही बात यह है कि अर्जुन ने बाण से लक्ष्य-भेद का इतना अधिक अभ्यास कर लिया था कि वह निशाना लगाते समय केवल लक्ष्य को ही देखता था। | ||
इसी में एक प्रसंग और आता है कि अर्जुन ने एक बार रात में खाना खाते हुए ये सोचा- | इसी में एक प्रसंग और आता है कि अर्जुन ने एक बार रात में खाना खाते हुए ये सोचा- | ||
− | "अभ्यासवश जब मैं बिना देखे रात में खाना खा रहा हूँ। खाना खाना मेरे अभ्यास में है, इसलिए मैं बिना देखे ही थाली में से भोजन को हाथ से उठाता हूँ और मुँह तक ले जाता हूँ। कभी ऐसा नहीं होता कि भोजन आँख में, कान में या नाक में चला जाए, तो उसने सोचा कि रात में तीर चलाने का अभ्यास भी किया जा सकता है। इसलिए धनुष पर तीर रखने तक की प्रक्रिया के लिए अर्जुन को लक्ष्य से ध्यान हटाकर धनुष और बाण की ओर देखने | + | "अभ्यासवश जब मैं बिना देखे रात में खाना खा रहा हूँ। खाना खाना मेरे अभ्यास में है, इसलिए मैं बिना देखे ही थाली में से भोजन को हाथ से उठाता हूँ और मुँह तक ले जाता हूँ। कभी ऐसा नहीं होता कि भोजन आँख में, कान में या नाक में चला जाए, तो उसने सोचा कि रात में तीर चलाने का अभ्यास भी किया जा सकता है। इसलिए धनुष पर तीर रखने तक की प्रक्रिया के लिए अर्जुन को लक्ष्य से ध्यान हटाकर धनुष और बाण की ओर देखने की भी आवश्यकता नहीं थी। |
आपका लक्ष्य क्या है, यह सबसे महत्वपूर्ण है। यदि आप युद्ध में हैं, तो लक्ष्य दूसरे को हराना नहीं बल्कि ख़ुद जीतना होना चाहिए। यदि आपका लक्ष्य दूसरे को हारते हुए देखना है, तो आप योद्धा नहीं, एक साधारण से व्यक्ति हैं जो कि बदला लेना चाहता है। यदि ख़ुद को जीतते हुए देखना, आपका लक्ष्य है तो आप सचमुच योद्धा हैं और इतिहास आपको याद रखेगा। अब इसे ऐसे देखें- | आपका लक्ष्य क्या है, यह सबसे महत्वपूर्ण है। यदि आप युद्ध में हैं, तो लक्ष्य दूसरे को हराना नहीं बल्कि ख़ुद जीतना होना चाहिए। यदि आपका लक्ष्य दूसरे को हारते हुए देखना है, तो आप योद्धा नहीं, एक साधारण से व्यक्ति हैं जो कि बदला लेना चाहता है। यदि ख़ुद को जीतते हुए देखना, आपका लक्ष्य है तो आप सचमुच योद्धा हैं और इतिहास आपको याद रखेगा। अब इसे ऐसे देखें- | ||
[[महात्मा गांधी]] और [[भगत सिंह|सरदार भगत सिंह]] का एक ही लक्ष्य था, लेकिन तरीक़े अलग थे। क्या था ये लक्ष्य ? अंग्रेज़ों को [[भारत]] से भगाना ? नहीं ऐसा नहीं था। उनका लक्ष्य था, भारत को आज़ाद कराना... स्वतंत्रता। इन दोनों बातों में बड़ा फ़र्क़ है। एक सकारात्मक है और एक नकारात्मक। अंग्रेज़ों को भगाना नकारात्मक है और स्वतंत्रता पाना सकारात्मक। लक्ष्य वही है जो सकारात्मक हो। छात्र जीवन में इस प्रकार की बातें अक्सर हमारे सामने आती हैं। कुछ छात्र लक्ष्य बनाते हैं पास होने का, कुछ बनाते हैं बहुत अच्छे अंक लाने का और जो सर्वश्रेष्ठ होते हैं उनका लक्ष्य होता है 'ज्ञानार्जन'। | [[महात्मा गांधी]] और [[भगत सिंह|सरदार भगत सिंह]] का एक ही लक्ष्य था, लेकिन तरीक़े अलग थे। क्या था ये लक्ष्य ? अंग्रेज़ों को [[भारत]] से भगाना ? नहीं ऐसा नहीं था। उनका लक्ष्य था, भारत को आज़ाद कराना... स्वतंत्रता। इन दोनों बातों में बड़ा फ़र्क़ है। एक सकारात्मक है और एक नकारात्मक। अंग्रेज़ों को भगाना नकारात्मक है और स्वतंत्रता पाना सकारात्मक। लक्ष्य वही है जो सकारात्मक हो। छात्र जीवन में इस प्रकार की बातें अक्सर हमारे सामने आती हैं। कुछ छात्र लक्ष्य बनाते हैं पास होने का, कुछ बनाते हैं बहुत अच्छे अंक लाने का और जो सर्वश्रेष्ठ होते हैं उनका लक्ष्य होता है 'ज्ञानार्जन'। |
12:53, 10 जून 2012 का अवतरण
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