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इस उपन्यास की प्रमुख स्त्री पात्र है वसुमती। सती वसुमती को जैन साहित्य में चन्दनबाला के नाम से बड़ी साध्वी के रूप में माना गया है। उसका ऊँचा स्थान है। महावीर स्वामी ने स्त्री -घ के लिए उसे सबसे ऊँची जगह दी थी। हमारे समाज में उच्चवर्ग की जो स्त्रियाँ आज झूठी स्त्री-स्वतन्त्रता की बातें करती हैं, उनके लिए उपन्यास की पात्र वसुमती एक पाठ है। राज्य की जो समस्या तब थी, वही अपने मूल रूप में आज भी है। अपने इस उपन्यास में मैंने कुछेक मूलभूत समस्याओं को उठाया हैं... <ref>{{cite web |url=http://pustak.org/home.php?bookid=741|title=राह न रुकी|accessmonthday=24 जनवरी |accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी }}</ref>
 
इस उपन्यास की प्रमुख स्त्री पात्र है वसुमती। सती वसुमती को जैन साहित्य में चन्दनबाला के नाम से बड़ी साध्वी के रूप में माना गया है। उसका ऊँचा स्थान है। महावीर स्वामी ने स्त्री -घ के लिए उसे सबसे ऊँची जगह दी थी। हमारे समाज में उच्चवर्ग की जो स्त्रियाँ आज झूठी स्त्री-स्वतन्त्रता की बातें करती हैं, उनके लिए उपन्यास की पात्र वसुमती एक पाठ है। राज्य की जो समस्या तब थी, वही अपने मूल रूप में आज भी है। अपने इस उपन्यास में मैंने कुछेक मूलभूत समस्याओं को उठाया हैं... <ref>{{cite web |url=http://pustak.org/home.php?bookid=741|title=राह न रुकी|accessmonthday=24 जनवरी |accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी }}</ref>
 
 
  
 
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05:52, 25 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

राह न रुकी -रांगेय राघव
'राह न रुकी' उपन्यास का आवरण पृष्ठ
लेखक रांगेय राघव
प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ
ISBN 81-263-1134-7
देश भारत
भाषा हिन्दी
प्रकार उपन्यास
टिप्पणी पुस्तक क्रं = 741

रांगेय राघव विलक्षण मेधा के धनी थे। वे समकालीनता के ही प्रखर पारखी नहीं थे बल्कि इतिहास की धड़कनों को भी पूरी संवेदना से महसूस करते थे और उनकी बारीकियों को पाठकों तक पहुँचाने की कोशिश करते थे। ‘राह न रुकी में’ ‘चन्दना’ एक ऐसी ही पात्र है जिसके माध्यम से उन्होंने बुद्ध और महावीर युग के उस पुनर्जागरण को प्रस्तुत किया है, जिसमें पहली बार ब्राह्मण संस्कृति को तगड़ी चुनौती मिली थी और हजारों वर्षों के वैदिक युग की उपलब्धियों पर प्रश्नचिन्ह्र लग गया था।

‘राह न रुकी’ में साध्वी चन्दनबाला के रूप में जैन साहित्य में ख्यात एक प्रमुख नारी-पात्र 'वसुमती' के चरित्र को उभारा गया है। राजकुमारी वसुमती को साध्वी चन्दनबाला के रूप में श्रद्धा के दृष्टि से देखा जाता है। स्वंय भगवान महावीर ने चन्दनबाला को स्त्री-संघ में सर्वोच्च आसन प्रदान किया था। उन्हें केन्द्र में रखकर राज्य, समाज और धार्मिक चेतना का ताना-बाना लेखक ने इस उपन्यास बुना है। व्यक्ति-स्वातन्त्र्य और स्त्री-स्वातन्त्र्य का जो पाठ इसमें नजर आता है उससे यह उपन्यास और भी प्रांसगिक बन गया है।

रांगेय राघव के अनुसार

‘राह न रुकी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है। इसमें मैंने बुद्ध-महावीर-युग के उस पुनर्जागरण को प्रस्तुत किया है जो हजारों साल के वैदिक युग के अन्त में भारत में उपस्थिति हुआ था। यह बात कितनी महत्त्वपूर्ण है कि आज हम एक नये पुनर्जागरण युग में हैं। लोगों ने प्रायः बुद्धमत को अधिक देखा है; उन्हें जैनमत का भी व्यापक प्रभाव देखना चाहिए। जिनमार्ग को अपनाने वालों ने अपने समय में बड़े-बड़े प्रयोग किये थे, जो आज भी अपना महत्त्व रखते हैं। एक दृष्टि से महावीर का मत अधिक व्यापक था, क्योंकि उन्होंने गृहस्थ को अधिक महत्त्व दिया था और स्त्रियों को भी उन्होंने साधना के पथ में प्रायः बराबरी का दर्जा दे दिया था।

इस उपन्यास की प्रमुख स्त्री पात्र है वसुमती। सती वसुमती को जैन साहित्य में चन्दनबाला के नाम से बड़ी साध्वी के रूप में माना गया है। उसका ऊँचा स्थान है। महावीर स्वामी ने स्त्री -घ के लिए उसे सबसे ऊँची जगह दी थी। हमारे समाज में उच्चवर्ग की जो स्त्रियाँ आज झूठी स्त्री-स्वतन्त्रता की बातें करती हैं, उनके लिए उपन्यास की पात्र वसुमती एक पाठ है। राज्य की जो समस्या तब थी, वही अपने मूल रूप में आज भी है। अपने इस उपन्यास में मैंने कुछेक मूलभूत समस्याओं को उठाया हैं... [1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. राह न रुकी (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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