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     छद्मवेषी मनुष्य ने कहा कि-
 
     छद्मवेषी मनुष्य ने कहा कि-
 
                 राजन् ! आप मेरे साथ चलिये , मैं आपको इन फलों के पेड़ अवश्य दिलवा दूँगा ।
 
                 राजन् ! आप मेरे साथ चलिये , मैं आपको इन फलों के पेड़ अवश्य दिलवा दूँगा ।
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           राजा सुभौम बिना कुछ सोचे- समझे उसके अज्ञात व्यक्ति के साथ चल पड़े ।मंत्रियों ने बहुत रोका, किन्तु फल के लालच में राजा ने किसी की न सुनी और उस व्यक्ति के साथ चला गया ।
 
           राजा सुभौम बिना कुछ सोचे- समझे उसके अज्ञात व्यक्ति के साथ चल पड़े ।मंत्रियों ने बहुत रोका, किन्तु फल के लालच में राजा ने किसी की न सुनी और उस व्यक्ति के साथ चला गया ।
 
     वह व्यक्ति राजा को एक समुद्र के बीच में ले गया और अपना रूप प्रकट करके बोला-
 
     वह व्यक्ति राजा को एक समुद्र के बीच में ले गया और अपना रूप प्रकट करके बोला-
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             बंधुओं ! देखो , णमोकार महामंत्र के अपमान के कारण राजा को नर्क के दुःख भोगने पड़े ।अत इस महामंत्र का कभी भी अपमान नहीं करना चाहिए ।और इसे सदैव जपने से स्वर्ग- मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
 
             बंधुओं ! देखो , णमोकार महामंत्र के अपमान के कारण राजा को नर्क के दुःख भोगने पड़े ।अत इस महामंत्र का कभी भी अपमान नहीं करना चाहिए ।और इसे सदैव जपने से स्वर्ग- मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
 
                                                     द्वारा- रवीन्द्र कीर्ति स्वामी (पीठाधीश - जम्बूद्वीप , हस्तिनापुर  - मेरठ, उत्तर प्रदेश- भारत )
 
                                                     द्वारा- रवीन्द्र कीर्ति स्वामी (पीठाधीश - जम्बूद्वीप , हस्तिनापुर  - मेरठ, उत्तर प्रदेश- भारत )
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                                            (भजन )
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                        दिगम्बर प्राकृतिक मुद्रा, विरागी की निशानी है ।
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                        कमण्डलु पिच्छिधारी नग्न- मुनिवर की कहानी  है ।।टेक०।।
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                        दिशाएँ ही बनी अंबर, न तन पर वस्त्र ये डालें ।
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                        महाव्रत पाँच समिति और, गुप्ती तीन ये पालें ।।
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                        त्रयोदश विधि चरित पालन, करें जिनवर की वाणी है ।।कमण्डलु --।।१।।
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                          बिना बोले ही इनकी शान्त मुद्रा यह बताती है ।
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                        मुक्ति कन्या वरण में यह, ही मुद्रा काम आती है ।।
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                        मोक्ष पथ के पथिक जन को, यही वाणी सुनानी है ।।कमंडलु०।।२ ।।
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                        यदि मुनिव्रत न पल सकता, तो श्रावक धर्म मत भूलो ।
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                        देव-गुरु-शास्त्र की श्रद्धा, परम कर्तव्य मत भूलो ।।
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                        बने मति " चन्दना" ऐसी, यही रृषियों की वाणी है ।।कमण्डलु ० ।।३ ।।

16:44, 14 फ़रवरी 2013 का अवतरण

जीवंधर कुमार नामके एक राजकुमार ने एक बार मरते हए कुत्ते को महामंत्र णमोकार मंत्र सुनाया़ जिससे उसकी आत्मा को बहुत शान्ति मिली और वह मरकर सुंदर देवता - यक्षेन्द्र हो गया । वहाँ जन्म लेते ही उसे याद आ गया कि मुझे एक राजकुमार ने महा मंत्र सुनाकर इस देवयोनि को दिलाया है, तब वह तुरंंत अपने उपकारी राजकुमार के पास आया और उन्हें नमस्कार किया ।

              राजकुमार तब तक उस कुत्ते को लिये बैठे हुए थे , देव ने उनसे कहे- राजन् ! मैं आपका बहुत अहसान मानता हूँ कि आपने मुझे इस योनि में पहुँचा दिया । जीवंधर कुमार यह दृश्य देखकर बड़े प्रसन्न हुए और उसे सदैव उस महामंत्र को पढ़ने की प्रेरणा दी । देव ने उनसे कहा -  स्वामिन् ! जब भी आपको कभी मेरी ज़रूरत लगे तो मुझे अवश्य याद करना और मुझे कुछ सेवा का अवसर अवश्य प्रदान करना । मैं आपका उपकार हमेशा स्मरण करूँगा ।
                 प्यारे साथियों ! वह महामंत्र इस प्रकार है -
                                   णमोकार अरिहंताणं ।
                                   णमो सिद्धाणं ।
                                   णमो आइरियाणं ।
                                   णमो उवज्झायाणं ।
                                   णमो लोए सव्व साहूणं ।
       आप सब भी इस मंत्र को प्रतिदिन नौ बार, सत्ताइस बार अथवा एक सौ आठ बार यदि पढ़कर अपना कार्य शुरू करेंगे तो आपको बहुत सफलता मिलेगी ।


    णमोकार महामंत्र के अपमान का कुफल-
             एक बार की बात है कि सुभौम चक्रवर्ती नामके एक राजा के पास एक व्यंतर देव मनुष्य का रूप धारण करके एक टोकरे में बहुत सुंदर- सुंदर फल लेकर आया । राजा को उसने वे फल भेंट किये । राजा उन्हें खाकर बड़ा प्रसन्न हुआ , उसने उस मनुष्य वेषधारी देव से पूछा- 
               ये फल तुम कहाँ से लाये हो ? ये तो बहुत मीठे और स्वादिष्ट फल हैं । मैं इन्हें अपने राज्य में प्रतिदिन चाहता हूँ ।मुझे इनके पेड़ों के विषय में बताइये कि कैसे मेरे यहाँ ये लग सकते हैं ?
   छद्मवेषी मनुष्य ने कहा कि-
               राजन् ! आप मेरे साथ चलिये , मैं आपको इन फलों के पेड़ अवश्य दिलवा दूँगा ।


          राजा सुभौम बिना कुछ सोचे- समझे उसके अज्ञात व्यक्ति के साथ चल पड़े ।मंत्रियों ने बहुत रोका, किन्तु फल के लालच में राजा ने किसी की न सुनी और उस व्यक्ति के साथ चला गया ।
   वह व्यक्ति राजा को एक समुद्र के बीच में ले गया और अपना रूप प्रकट करके बोला-
            राजन् ! मैं तुमसे अपने पूर्व जन्म का बदला लेने आया हूँ । पूर्व जन्म में मैं तुम्हारा रसोइया था, तब तुमने खीर गरम- गरम परोस देने के कारण मुझे जान से मार डाला था । मैं मरकर व्यंतर देव हुआ हूँ । अत मैं अब तुमसे बदला लेने आया हूँ । उसने राजा से कहा-
               अब मैं तुम्हें जान से मारूँगा । राजा बेचाराडर के मारे काँपने लगा , किन्तु अब यहाँ उसे कोई बचाने वाला नहीं था ।वह असहाय होकर अपने मन में णमोकार महामंत्र पढ़ने लगा , तो देव की शक्ति कुंठित हो गई और वह उसे मार न सकने के कारण झुंझला गया । पुनः उसने छलपूर्वक राजा से कहा-
         राजन् ! आप अपने जो मंत्र पढ़ रहे हो , उसे पानी में लिख कर पैर से मिटा दो ,तबक़ों मैं तुम्हें छोड़ दूँगा ,अन्यथा इसी समुद्र में डुबो कर मार डालूँगा । 
                 राजा सुभौम को अपने जीवन का मोह आ गया और वह देव के छल को नहीं समझ सका । उसने सोचा कि - चलो, बाद में मैं मंत्र को अच्छी प्रकार से पढ़ लूँगा । अभी मैं इसके कहे अनुसार मंत्र को पानी में लिख कर उस पर पैर रख दिया । किन्तु यह क्या ? उसके द्वारा ऐसा करते ही देव की शक्ति जागृत हो गई और देवता ने राजा को गहरे समुद्र में डुबा दिया , जिससे राजा मरकर नर्क में चला गया ।
           बंधुओं ! देखो , णमोकार महामंत्र के अपमान के कारण राजा को नर्क के दुःख भोगने पड़े ।अत इस महामंत्र का कभी भी अपमान नहीं करना चाहिए ।और इसे सदैव जपने से स्वर्ग- मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
                                                    द्वारा- रवीन्द्र कीर्ति स्वामी (पीठाधीश - जम्बूद्वीप , हस्तिनापुर  - मेरठ, उत्तर प्रदेश- भारत )


                                           (भजन )
                       दिगम्बर प्राकृतिक मुद्रा, विरागी की निशानी है ।
                       कमण्डलु पिच्छिधारी नग्न- मुनिवर की कहानी  है ।।टेक०।।
                        दिशाएँ ही बनी अंबर, न तन पर वस्त्र ये डालें ।
                        महाव्रत पाँच समिति और, गुप्ती तीन ये पालें ।।
                        त्रयोदश विधि चरित पालन, करें जिनवर की वाणी है ।।कमण्डलु --।।१।।
                         बिना बोले ही इनकी शान्त मुद्रा यह बताती है ।
                        मुक्ति कन्या वरण में यह, ही मुद्रा काम आती है ।।
                        मोक्ष पथ के पथिक जन को, यही वाणी सुनानी है ।।कमंडलु०।।२ ।।
                       यदि मुनिव्रत न पल सकता, तो श्रावक धर्म मत भूलो ।
                       देव-गुरु-शास्त्र की श्रद्धा, परम कर्तव्य मत भूलो ।।
                       बने मति " चन्दना" ऐसी, यही रृषियों की वाणी है ।।कमण्डलु ० ।।३ ।।