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*भगवान [[शिव]] के [[द्वादश ज्योतिर्लिंग|द्वादश ज्योतिलिंगों]] में से एक पुरली में स्थित है।
 
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*यहाँ का मुख्य मंदिर देवी [[अहल्याबाई]] ने 18वीं शती में बनवाया था, जैसा कि [[चांदी]] के किवाड़ पर उत्कीर्ण एक लेख से सूचित होता है।
 
*यहाँ का मुख्य मंदिर देवी [[अहल्याबाई]] ने 18वीं शती में बनवाया था, जैसा कि [[चांदी]] के किवाड़ पर उत्कीर्ण एक लेख से सूचित होता है।
*पुरली अपने प्राचीन समय में विद्या का विख्यात केन्द्र था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=564|url=}}</ref>
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*पुरली अपने प्राचीन समय में विद्या का विख्यात केन्द्र था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=564|url=}}</ref>
  
 
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09:05, 16 जून 2013 के समय का अवतरण

पुरली बीड़ ज़िला, महाराष्ट्र का एक ऐतिहासिक स्थान है। इस स्थान से प्रागैतिहासिक काल के कुछ अवशेष प्राप्त हुए हैं।

  • भगवान शिव के द्वादश ज्योतिलिंगों में से एक पुरली में स्थित है।
  • यहाँ का मुख्य मंदिर देवी अहल्याबाई ने 18वीं शती में बनवाया था, जैसा कि चांदी के किवाड़ पर उत्कीर्ण एक लेख से सूचित होता है।
  • पुरली अपने प्राचीन समय में विद्या का विख्यात केन्द्र था।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार |पृष्ठ संख्या: 564 |

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