"छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4" के अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) छो (Text replace - "Category:उपनिषद" to "Category:उपनिषदCategory:संस्कृत साहित्य") |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | '' | + | {{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय |
− | + | |चित्र=Chandogya-Upanishad.jpg | |
+ | |चित्र का नाम=छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ | ||
+ | |विवरण='छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस [[उपनिषद|उपनिषदों]] में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार [[छन्द]] है। | ||
+ | |शीर्षक 1=अध्याय | ||
+ | |पाठ 1=चौथा | ||
+ | |शीर्षक 2=कुल खण्ड | ||
+ | |पाठ 2=17 (सत्रह) | ||
+ | |शीर्षक 3=सम्बंधित वेद | ||
+ | |पाठ 3=[[सामवेद]] | ||
+ | |शीर्षक 4= | ||
+ | |पाठ 4= | ||
+ | |शीर्षक 5= | ||
+ | |पाठ 5= | ||
+ | |शीर्षक 6= | ||
+ | |पाठ 6= | ||
+ | |शीर्षक 7= | ||
+ | |पाठ 7= | ||
+ | |शीर्षक 8= | ||
+ | |पाठ 8= | ||
+ | |शीर्षक 9= | ||
+ | |पाठ 9= | ||
+ | |शीर्षक 10= | ||
+ | |पाठ 10= | ||
+ | |संबंधित लेख=[[उपनिषद]], [[वेद]], [[वेदांग]], [[वैदिक काल]], [[संस्कृत साहित्य]] | ||
+ | |अन्य जानकारी= [[सामवेद]] की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं। | ||
+ | |बाहरी कड़ियाँ= | ||
+ | |अद्यतन= | ||
+ | }} | ||
+ | '[[छान्दोग्य उपनिषद]]' का चौथा अध्याय है। इस अध्याय में 17 खण्ड हैं। | ||
+ | |||
*[[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4 खण्ड-1 से 3|प्रथम तीन खण्डों]] में राजा जनश्रुति और गाड़ीवान [[रैक्व]] का संवाद है। उन संवादों के माध्यम से रैक्व राजा जनश्रुति को 'वायु' और 'प्राण' की श्रेष्ठता के विषय में बताता है। | *[[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4 खण्ड-1 से 3|प्रथम तीन खण्डों]] में राजा जनश्रुति और गाड़ीवान [[रैक्व]] का संवाद है। उन संवादों के माध्यम से रैक्व राजा जनश्रुति को 'वायु' और 'प्राण' की श्रेष्ठता के विषय में बताता है। | ||
− | *[[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4 खण्ड-4 से 9|चतुर्थ से नवम खण्ड]] तक [[जाबाल]]-पुत्र [[सत्यकाम]] की कथा है, जिसमें वृषभ, अग्नि, हंस और जल पक्षी के माध्यम से 'ब्रह्म' का उपदेश दिया गया है और | + | *[[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4 खण्ड-4 से 9|चतुर्थ से नवम खण्ड]] तक [[जाबाल]]-पुत्र [[सत्यकाम]] की [[कथा]] है, जिसमें वृषभ, अग्नि, हंस और जल पक्षी के माध्यम से 'ब्रह्म' का उपदेश दिया गया है और |
− | *[[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4 खण्ड-10 से 17|दशम से सत्रहवें खण्ड]] तक सत्यकाम जाबाल के शिष्य उपकोसल को विभिन्न अग्नियों द्वारा तथा अन्त में आचार्य सत्यकाम द्वारा 'ब्रह्मज्ञान' दिया गया है तथा यज्ञ का ब्रह्मा कौन है, इस ओर संकेत किया है। | + | *[[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4 खण्ड-10 से 17|दशम से सत्रहवें खण्ड]] तक सत्यकाम जाबाल के शिष्य उपकोसल को विभिन्न अग्नियों द्वारा तथा अन्त में आचार्य सत्यकाम द्वारा 'ब्रह्मज्ञान' दिया गया है तथा [[यज्ञ]] का ब्रह्मा कौन है, इस ओर संकेत किया है। |
− | {{लेख प्रगति|आधार= | + | |
− | + | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | |
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
− | |||
− | |||
− | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{छान्दोग्य उपनिषद}} | {{छान्दोग्य उपनिषद}} | ||
− | [[Category:छान्दोग्य उपनिषद]] | + | [[Category:छान्दोग्य उपनिषद]][[Category:दर्शन कोश]][[Category:उपनिषद]][[Category:संस्कृत साहित्य]] |
− | [[Category:दर्शन कोश]] | ||
− | [[Category:उपनिषद]][[Category:संस्कृत साहित्य]] | ||
− | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
13:51, 17 अगस्त 2016 के समय का अवतरण
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4
| |
विवरण | 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है। |
अध्याय | चौथा |
कुल खण्ड | 17 (सत्रह) |
सम्बंधित वेद | सामवेद |
संबंधित लेख | उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य |
अन्य जानकारी | सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं। |
'छान्दोग्य उपनिषद' का चौथा अध्याय है। इस अध्याय में 17 खण्ड हैं।
- प्रथम तीन खण्डों में राजा जनश्रुति और गाड़ीवान रैक्व का संवाद है। उन संवादों के माध्यम से रैक्व राजा जनश्रुति को 'वायु' और 'प्राण' की श्रेष्ठता के विषय में बताता है।
- चतुर्थ से नवम खण्ड तक जाबाल-पुत्र सत्यकाम की कथा है, जिसमें वृषभ, अग्नि, हंस और जल पक्षी के माध्यम से 'ब्रह्म' का उपदेश दिया गया है और
- दशम से सत्रहवें खण्ड तक सत्यकाम जाबाल के शिष्य उपकोसल को विभिन्न अग्नियों द्वारा तथा अन्त में आचार्य सत्यकाम द्वारा 'ब्रह्मज्ञान' दिया गया है तथा यज्ञ का ब्रह्मा कौन है, इस ओर संकेत किया है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 |
खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2 |
खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 | खण्ड-14 | खण्ड-15 | खण्ड-16 | खण्ड-17 | खण्ड-18 | खण्ड-19 | खण्ड-20 | खण्ड-21 | खण्ड-22 | खण्ड-23 | खण्ड-24 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 |
खण्ड-1 से 5 | खण्ड-6 से 10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 से 19 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-5 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6 |
खण्ड-1 से 2 | खण्ड-3 से 4 | खण्ड-5 से 6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 से 13 | खण्ड-14 से 16 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-7 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-8 |