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*वह भी अपने पिता राव नरा की तरह ही वीर और प्रजापालक था। उसे "बीकानेर के करण" के नाम से भी जाना जाता है।
 
*वह भी अपने पिता राव नरा की तरह ही वीर और प्रजापालक था। उसे "बीकानेर के करण" के नाम से भी जाना जाता है।
 
*बीठू सुजा ने अपने ग्रन्थ 'राव जेतसी रो छन्द' में लुणकरण की दानशीलता का उल्लेख किया है।
 
*बीठू सुजा ने अपने ग्रन्थ 'राव जेतसी रो छन्द' में लुणकरण की दानशीलता का उल्लेख किया है।
*लुणकरण की मृत्यु के बाद उसका पुत्र राव जैतसिह [[बीकानेर]] का शासक बना, जिसने गंगाणी के युद्ध में [[जोधपुर]] के शासक राव गागासिंह की मदद की।
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*लुणकरण की मृत्यु के बाद उसका पुत्र राव जैतसिंह [[बीकानेर]] का शासक बना, जिसने गंगाणी के युद्ध में [[जोधपुर]] के शासक राव गागासिंह की मदद की।
 
*जोधपुर के शासक [[राव मालदेव]] ने 1541 ई. में अपनी विस्तारवादी व महत्त्वकांक्षी नीति के तहत बीकानेर पर आक्रमण कर दिया। राव जैतसी पाहिबा-सौहुए के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ व मालदेव ने यहाँ का प्रशासन सेनापति कूंपा को सौंप दिया। यह पहला अवसर था, जब दोनों रियासतों के मध्य युद्ध हुआ। इससे पहले ये सामूहिक रूप से प्रतिकार करते थे।<ref>{{cite web |url=http://historicalsaga.com/%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A0%E0%A5%8C%E0%A4%A1/ |title= बीकानेर के राठौड़|accessmonthday=03 फ़रवरी |accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=historicalsaga.com |language= हिन्दी}}</ref>
 
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11:24, 4 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

राव लुणकरण (1505-1526 ई.) बीकानेर, राजस्थान का राठौड़ शासक था। वह राव नरा की मृत्यु के बाद बीकानेर का शासक बना। उसने डीडवाणा, सिघांणा व बांगड़ प्रदेश को अपने प्रदेश में मिला लिया था।

  • वह भी अपने पिता राव नरा की तरह ही वीर और प्रजापालक था। उसे "बीकानेर के करण" के नाम से भी जाना जाता है।
  • बीठू सुजा ने अपने ग्रन्थ 'राव जेतसी रो छन्द' में लुणकरण की दानशीलता का उल्लेख किया है।
  • लुणकरण की मृत्यु के बाद उसका पुत्र राव जैतसिंह बीकानेर का शासक बना, जिसने गंगाणी के युद्ध में जोधपुर के शासक राव गागासिंह की मदद की।
  • जोधपुर के शासक राव मालदेव ने 1541 ई. में अपनी विस्तारवादी व महत्त्वकांक्षी नीति के तहत बीकानेर पर आक्रमण कर दिया। राव जैतसी पाहिबा-सौहुए के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ व मालदेव ने यहाँ का प्रशासन सेनापति कूंपा को सौंप दिया। यह पहला अवसर था, जब दोनों रियासतों के मध्य युद्ध हुआ। इससे पहले ये सामूहिक रूप से प्रतिकार करते थे।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बीकानेर के राठौड़ (हिन्दी) historicalsaga.com। अभिगमन तिथि: 03 फ़रवरी, 2017।

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