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आपातकाल के दौरान मोहन भागवत ने भूमिगत रहकर अपने सभी कार्यों को पूरा किया। जिसके बाद वर्ष [[1977]] में उन्हें [[अकोला]], महाराष्ट्र का प्रचारक नियुक्त किया गया था। इसके बाद वह [[नागपुर]] और विदर्भ क्षेत्र के भी प्रचारक बनाए गए। [[1991]] में मोहन भागवत आरएसएस कार्यकर्ताओं को दिए जाने वाले शारीरिक प्रशिक्षण के प्रभारी बनाए गए। इस पद पर वह [[1999]] तक रहे। [[1999]] में एक वर्ष के लिए मोहन भागवत आरएसएस स्वयंसेवकों के प्रभारी भी रहे। 2000 में जब राजेन्द्र सिंह और एच. वी. शेषाद्रि ने खराब स्वास्थ्य के चलते अपने-अपने पद से इस्तीफा दे दिया तब के. एस. सुदर्शन और मोहन भागवत संघ के सर संघचालक और महासचिव नियुक्त किए गए। [[21 मार्च]], [[2009]] को मोहन भागवत ने सर संघचालक का पदभार ग्रहण किया।
 
आपातकाल के दौरान मोहन भागवत ने भूमिगत रहकर अपने सभी कार्यों को पूरा किया। जिसके बाद वर्ष [[1977]] में उन्हें [[अकोला]], महाराष्ट्र का प्रचारक नियुक्त किया गया था। इसके बाद वह [[नागपुर]] और विदर्भ क्षेत्र के भी प्रचारक बनाए गए। [[1991]] में मोहन भागवत आरएसएस कार्यकर्ताओं को दिए जाने वाले शारीरिक प्रशिक्षण के प्रभारी बनाए गए। इस पद पर वह [[1999]] तक रहे। [[1999]] में एक वर्ष के लिए मोहन भागवत आरएसएस स्वयंसेवकों के प्रभारी भी रहे। 2000 में जब राजेन्द्र सिंह और एच. वी. शेषाद्रि ने खराब स्वास्थ्य के चलते अपने-अपने पद से इस्तीफा दे दिया तब के. एस. सुदर्शन और मोहन भागवत संघ के सर संघचालक और महासचिव नियुक्त किए गए। [[21 मार्च]], [[2009]] को मोहन भागवत ने सर संघचालक का पदभार ग्रहण किया।
 
====मोहन भागवत का दृष्टिकोण====
 
====मोहन भागवत का दृष्टिकोण====
मोहन भागवत एक व्यवहारिक नेता हैं। वह आधुनिकता के साथ हिंदुत्व को अपनाने की पैरवी करते हैं। संघ की मूलभूत विशिष्टताओं को बरकरार रखते हुए मोहन भागवत समय के साथ बदलने में विश्वास रखते हैं। मोहन भागवत [[हिंदू धर्म]] और इसकी मान्यताओं का पूरा समर्थन करते हैं। लेकिन वह अस्पृश्यता के बड़े विरोधी हैं। उनका मानना है कि हिंदू धर्म अनेकता में एकता को अपने अंदर समाहित किए हुए है, यहां बिना किसी भेदभाव के सभी अनुयायियों को बराबर स्थान और सम्मान मिलना चाहिए।
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मोहन भागवत एक व्यावहारिक नेता हैं। वह आधुनिकता के साथ हिंदुत्व को अपनाने की पैरवी करते हैं। संघ की मूलभूत विशिष्टताओं को बरकरार रखते हुए मोहन भागवत समय के साथ बदलने में विश्वास रखते हैं। मोहन भागवत [[हिंदू धर्म]] और इसकी मान्यताओं का पूरा समर्थन करते हैं। लेकिन वह अस्पृश्यता के बड़े विरोधी हैं। उनका मानना है कि हिंदू धर्म अनेकता में एकता को अपने अंदर समाहित किए हुए है, यहां बिना किसी भेदभाव के सभी अनुयायियों को बराबर स्थान और सम्मान मिलना चाहिए।
  
  

13:59, 6 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

मोहन भागवत
मोहन भागवत
पूरा नाम मोहन मधुकर भागवत
जन्म 11 सितम्बर, 1950
जन्म भूमि चन्द्रपुर, महाराष्ट्र
प्रसिद्धि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के वर्तमान सरसंघचालक
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी 21 मार्च, 2009 को मोहन भागवत ने सर संघचालक का पदभार ग्रहण किया।
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मोहन भागवत (अंग्रेज़ी: Mohan Bhagwat, जन्म: 11 सितम्बर, 1950, चन्द्रपुर, महाराष्ट्र) एक पशु चिकित्सक और 2009 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक हैं। उन्हें एक व्यावहारिक नेता के रूप में देखा जाता है। के एस सुदर्शन ने अपनी सेवानिवृत्ति पर उन्हें अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुना था।

जीवन परिचय

पेशे से पशु चिकित्सक और वर्तमान समय में आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत का जन्म 11 सितम्बर, 1950 में महाराष्ट्र के छोटे से शहर चंद्रपुर में हुआ था। मोहन भागवत का वास्तविक नाम मोहनराव मधुकर राव भागवत है। इनका पूरा परिवार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा हुआ था। मोहन भागवत के पिता मधुकर राव भागवत चंद्रपुर क्षेत्र के अध्यक्ष और गुजरात के प्रांत प्रचारक थे। मधुकर राव ने ही लालकृष्ण आडवाणी का आरएसएस से परिचय करवाया था। मोहन भागवत अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। इनके छोटे भाई चंद्रपुर आरएसएस इकाई के अध्यक्ष भी हैं। आरएसएस के पूर्व सर संघचालक कुपहल्ली सीतारमैया सुदर्शन ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में मोहन भागवत को चयनित किया था।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ाव

आपातकाल के दौरान मोहन भागवत ने भूमिगत रहकर अपने सभी कार्यों को पूरा किया। जिसके बाद वर्ष 1977 में उन्हें अकोला, महाराष्ट्र का प्रचारक नियुक्त किया गया था। इसके बाद वह नागपुर और विदर्भ क्षेत्र के भी प्रचारक बनाए गए। 1991 में मोहन भागवत आरएसएस कार्यकर्ताओं को दिए जाने वाले शारीरिक प्रशिक्षण के प्रभारी बनाए गए। इस पद पर वह 1999 तक रहे। 1999 में एक वर्ष के लिए मोहन भागवत आरएसएस स्वयंसेवकों के प्रभारी भी रहे। 2000 में जब राजेन्द्र सिंह और एच. वी. शेषाद्रि ने खराब स्वास्थ्य के चलते अपने-अपने पद से इस्तीफा दे दिया तब के. एस. सुदर्शन और मोहन भागवत संघ के सर संघचालक और महासचिव नियुक्त किए गए। 21 मार्च, 2009 को मोहन भागवत ने सर संघचालक का पदभार ग्रहण किया।

मोहन भागवत का दृष्टिकोण

मोहन भागवत एक व्यावहारिक नेता हैं। वह आधुनिकता के साथ हिंदुत्व को अपनाने की पैरवी करते हैं। संघ की मूलभूत विशिष्टताओं को बरकरार रखते हुए मोहन भागवत समय के साथ बदलने में विश्वास रखते हैं। मोहन भागवत हिंदू धर्म और इसकी मान्यताओं का पूरा समर्थन करते हैं। लेकिन वह अस्पृश्यता के बड़े विरोधी हैं। उनका मानना है कि हिंदू धर्म अनेकता में एकता को अपने अंदर समाहित किए हुए है, यहां बिना किसी भेदभाव के सभी अनुयायियों को बराबर स्थान और सम्मान मिलना चाहिए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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