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'''प्रभात फ़िल्म कम्पनी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Prabhat Film Company'') की स्थापना [[वी. शांताराम]], विष्णुकांत दामले, बाबुराव पेंढारकर और फत्तेलाल द्वारा की गई थी। इस कम्पनी का मुख्यालय तत्कालीन [[कोल्हापुर]] ([[1933]]) में हुआ करता था। इस फ़िल्म कम्पनी के मंच अन्य स्टुडियो के मंचों से आकार में विशाल थे। कम्पनी के अपने तकनीकी संसाधन थे। इसी कम्पनी की [[1937]] में विष्णुकांत दामले और फत्तेलाल द्वारा निर्मित "संत तुकाराम" [[भारत]] की ऐसी पहली फ़िल्म थी, जिसे उस वर्ष वेनिस फ़िल्म समारोह में पुरस्कृत किया गया था।
 
'''प्रभात फ़िल्म कम्पनी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Prabhat Film Company'') की स्थापना [[वी. शांताराम]], विष्णुकांत दामले, बाबुराव पेंढारकर और फत्तेलाल द्वारा की गई थी। इस कम्पनी का मुख्यालय तत्कालीन [[कोल्हापुर]] ([[1933]]) में हुआ करता था। इस फ़िल्म कम्पनी के मंच अन्य स्टुडियो के मंचों से आकार में विशाल थे। कम्पनी के अपने तकनीकी संसाधन थे। इसी कम्पनी की [[1937]] में विष्णुकांत दामले और फत्तेलाल द्वारा निर्मित "संत तुकाराम" [[भारत]] की ऐसी पहली फ़िल्म थी, जिसे उस वर्ष वेनिस फ़िल्म समारोह में पुरस्कृत किया गया था।
 
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सन [[1929]] में कोल्हापुर के राजा के सहायोग से स्थापित "महाराष्ट्र फ़िल्म कम्पनी" के चार स्तम्भ [[वी. शांताराम]], विष्णुकांत दामले, बाबुराव पेंढारकर और फत्तेलाल ने इस कम्पनी से अलग होकर "प्रभात फ़िल्म कम्पनी" नामक एक नई फ़िल्म कम्पनी का आरंभ कोल्हापुर में किया। यह फ़िल्म कम्पनी [[1933]] में कोल्हापुर से [[पुणे]] स्थानांतरित की गई। कुछ ही समय में यह कम्पनी अन्य फ़िल्म निर्माण संस्थाओं से होड़ लेने लगी। [[पश्चिम भारत]] में यह एक प्रतिष्ठित फ़िल्म कम्पनी से रूप में स्थिर हो गई थी।
 
==मंच तथा तकनीकी संसाधन==
 
==मंच तथा तकनीकी संसाधन==
प्रभात फ़िल्म कम्पनी के फ्लोर (मंच) अन्य स्टूडियो के मंचों से आकार में विशाल थे। इस कम्पनी के अपने तकनीकी संसाधन थे, जैसे- संपादन, ध्वनि संयोजन और फ़िल्म प्रोसेसिंग आदि की सुविधाएँ इस कम्पनी में अतिरिक्त आकर्षण थे। ऐसी आधुनिक सुविधाओं के लिए उन दिनों सिर्फ़ [[कलकत्ता]] स्थित [[न्यू थियेटर]] ही एकमात्र स्टूडियो था। प्रभात फ़िल्म कम्पनी भी उन दिनों प्रचलित परंपरा के अनुसार मशहूर फ़िल्म निर्माताओं, कलाकारों और तकनीशियनों को मासिक वेतन पर नियुक्त करती थी। इस कम्पनी का कला विभाग फत्तेलाल की देखरेख में अपनी अलग पहचान रखता था।
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प्रभात फ़िल्म कम्पनी के फ्लोर (मंच) अन्य स्टूडियो के मंचों से आकार में विशाल थे। इस कम्पनी के अपने तकनीकी संसाधन थे, जैसे- संपादन, ध्वनि संयोजन और फ़िल्म प्रोसेसिंग आदि की सुविधाएँ इस कम्पनी में अतिरिक्त आकर्षण थे। ऐसी आधुनिक सुविधाओं के लिए उन दिनों सिर्फ़ [[कलकत्ता]] स्थित [[न्यू थियेटर फ़िल्म कम्पनी|न्यू थियेटर]] ही एकमात्र स्टूडियो था। प्रभात फ़िल्म कम्पनी भी उन दिनों प्रचलित परंपरा के अनुसार मशहूर फ़िल्म निर्माताओं, कलाकारों और तकनीशियनों को मासिक वेतन पर नियुक्त करती थी। इस कम्पनी का कला विभाग फत्तेलाल की देखरेख में अपनी अलग पहचान रखता था।
 
==फ़िल्म निर्माण==
 
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इस कम्पनी की सबसे महत्वपूर्ण फ़िल्म "अमृत मंथन" ([[1934]]) थी। धीरे-धीरे प्रभात फ़िल्म कम्पनी ने निर्माण के साथ-साथ फ़िल्म वितरण और थियेटर निर्माण के क्षेत्र में भी प्रवेश किया। इसके अलावा [[रंगमंच]] के क्षेत्र में भी इस संस्था ने अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज कराई। सुरुचिपूर्ण [[मराठी भाषा|मराठी]] नाटकों के मंचन के लिए यह संस्था प्रसिद्ध हुई। प्रारम्भ में प्रभात फ़िल्म कम्पनी में दामले और फत्तेलाल के नेतृत्व में धार्मिक फ़िल्मों का निर्माण अधिक हुआ। कालांतर में [[वी. शांताराम]] के निर्देशन में और गजानन जागीरदार, विश्राम बेडेकर, नारायण काले और केशवराव उल्लेखनीय हैं। मराठी फ़िल्मों के सुप्रसिद्ध निर्माता अनंत माने और दत्ता धर्माधिकारी भी इसी कम्पनी में सहायक के पदों पर काम कर चुके थे इस कम्पनी ने अपनी फ़िल्मों के उत्तम स्तर और मार्मिक कथा वस्तु के कारण न सिर्फ़ देश में बल्कि विदेशों में आयोजित फ़िल्म समारोहों में प्रतिष्ठा पाई। [[1934]] में निर्मित "अमृत मंथन" और [[1936]] में निर्मित "अमृत ज्योति" फ़िल्मों का प्रदर्शन उस वर्ष के वेनिस फ़िल्म समारोहों में हुआ था।<ref name="a"/>
 
इस कम्पनी की सबसे महत्वपूर्ण फ़िल्म "अमृत मंथन" ([[1934]]) थी। धीरे-धीरे प्रभात फ़िल्म कम्पनी ने निर्माण के साथ-साथ फ़िल्म वितरण और थियेटर निर्माण के क्षेत्र में भी प्रवेश किया। इसके अलावा [[रंगमंच]] के क्षेत्र में भी इस संस्था ने अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज कराई। सुरुचिपूर्ण [[मराठी भाषा|मराठी]] नाटकों के मंचन के लिए यह संस्था प्रसिद्ध हुई। प्रारम्भ में प्रभात फ़िल्म कम्पनी में दामले और फत्तेलाल के नेतृत्व में धार्मिक फ़िल्मों का निर्माण अधिक हुआ। कालांतर में [[वी. शांताराम]] के निर्देशन में और गजानन जागीरदार, विश्राम बेडेकर, नारायण काले और केशवराव उल्लेखनीय हैं। मराठी फ़िल्मों के सुप्रसिद्ध निर्माता अनंत माने और दत्ता धर्माधिकारी भी इसी कम्पनी में सहायक के पदों पर काम कर चुके थे इस कम्पनी ने अपनी फ़िल्मों के उत्तम स्तर और मार्मिक कथा वस्तु के कारण न सिर्फ़ देश में बल्कि विदेशों में आयोजित फ़िल्म समारोहों में प्रतिष्ठा पाई। [[1934]] में निर्मित "अमृत मंथन" और [[1936]] में निर्मित "अमृत ज्योति" फ़िल्मों का प्रदर्शन उस वर्ष के वेनिस फ़िल्म समारोहों में हुआ था।<ref name="a"/>
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इसी कम्पनी की सन [[1937]] में दामले और फत्तेलाल द्वारा निर्मित "संत तुकाराम" [[भारत]] की ऐसी पहली फ़िल्म थी, जिसे उस वर्ष वेनिस फ़िल्म समारोह में पुरस्कृत किया गया। इस कम्पनी की अन्य चर्चित और सफल फ़िल्मों में 'अयोध्या का राजा', 'जलती निशानी' और 'माया मछिंदर' ([[1932]]), 'सिंहगढ़ और सैरंध्री' ([[1933]]), 'चंद्रसेना और धर्मात्मा' ([[1935]]) और सन [[1940]] में निर्मित "संत ज्ञानेश्वर" उल्लेखनीय हैं।
 
इसी कम्पनी की सन [[1937]] में दामले और फत्तेलाल द्वारा निर्मित "संत तुकाराम" [[भारत]] की ऐसी पहली फ़िल्म थी, जिसे उस वर्ष वेनिस फ़िल्म समारोह में पुरस्कृत किया गया। इस कम्पनी की अन्य चर्चित और सफल फ़िल्मों में 'अयोध्या का राजा', 'जलती निशानी' और 'माया मछिंदर' ([[1932]]), 'सिंहगढ़ और सैरंध्री' ([[1933]]), 'चंद्रसेना और धर्मात्मा' ([[1935]]) और सन [[1940]] में निर्मित "संत ज्ञानेश्वर" उल्लेखनीय हैं।
  
प्रभात फ़िल्म कम्पनी ने अधिकतर फ़िल्में [[मराठी भाषा|मराठी]] और [[हिंदी]] दोनों मे एक साथ अलग-अलग शीर्षकों में भी बनाई। इनमें से कुछ चर्चित फ़िल्में हैं- 'माजा मुलगा' – 'मेरा लड़का' ([[1938]]), 'मानूस' – 'आदमी' ([[1939]], निर्देशक वी. शांताराम)। इन्हीं फ़िल्मों में से एक अतिविशिष्ट फ़िल्म भी थी, जो देश-विदेश में काफ़ी लोकप्रिय हुई थी और कई समारोहों में प्रदर्शित की गई थी। वह फ़िल्म थी "सुनिया न माने" जो हिंदी में थी और यही फ़िल्म "कंकु" नाम से मराठी भाषा में एक साथ बनाई गई। यह फ़िल्म भारतीय रूढ़िवादी समाज में नारी की स्थिति और समाज सुधार पर एक सशक्त अभिव्यक्ति थी, जिसे सभी ने सराहा।
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प्रभात फ़िल्म कम्पनी ने अधिकतर फ़िल्में [[मराठी भाषा|मराठी]] और [[हिंदी]] दोनों में एक साथ अलग-अलग शीर्षकों में भी बनाई। इनमें से कुछ चर्चित फ़िल्में हैं- 'माजा मुलगा' – 'मेरा लड़का' ([[1938]]), 'मानूस' – 'आदमी' ([[1939]], निर्देशक वी. शांताराम)। इन्हीं फ़िल्मों में से एक अतिविशिष्ट फ़िल्म भी थी, जो देश-विदेश में काफ़ी लोकप्रिय हुई थी और कई समारोहों में प्रदर्शित की गई थी। वह फ़िल्म थी "दुनिया न माने" जो हिंदी में थी और यही फ़िल्म "कंकु" नाम से मराठी भाषा में एक साथ बनाई गई। यह फ़िल्म भारतीय रूढ़िवादी समाज में नारी की स्थिति और समाज सुधार पर एक सशक्त अभिव्यक्ति थी, जिसे सभी ने सराहा।
 
==वी. शांताराम द्वारा त्याग==
 
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सन [[1942]] में आपसी मतभेदों के कारण [[वी. शांताराम]] ने प्रभात फ़िल्म कम्पनी को छोड़ दिया और [[मुंबई]] आ गए। यहाँ उन्होंने "[[राजकमल कला मंदिर]]" के नाम से अपनी स्वयं की एक फ़िल्म निर्माण संस्था खोल ली।<ref name="a"/> वी. शांताराम के 'प्रभात फ़िल्म कंपनी' से दूर हो जाने से इस कंपनी की फ़िल्म निर्माण की गति काफ़ी धीमी पड़ गई। फिर भी विष्णुकांत दामले और फत्तेलाल अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर फ़िल्मों का निर्माण करते रहे। सन [[1944]] में राजा नेने के निर्देशन में बनी [[मराठी भाषा|मराठी]] फ़िल्म "दहा बजे" [[हिंदी]] में "दस बजे" जो एक प्रेमकथा पर आधारित थी, बहुत चर्चित हुई। सन [[1946]] में पीआईआई एल संतोषी ने इस कंपनी के लिए "हम एक हैं" नामक फ़िल्म बनाई, जो [[देवानंद]] की पहली फ़िल्म थी। सन [[1953]] में प्रभात फ़िल्म कंपनी अंतत: बंद हो गई।
 
सन [[1942]] में आपसी मतभेदों के कारण [[वी. शांताराम]] ने प्रभात फ़िल्म कम्पनी को छोड़ दिया और [[मुंबई]] आ गए। यहाँ उन्होंने "[[राजकमल कला मंदिर]]" के नाम से अपनी स्वयं की एक फ़िल्म निर्माण संस्था खोल ली।<ref name="a"/> वी. शांताराम के 'प्रभात फ़िल्म कंपनी' से दूर हो जाने से इस कंपनी की फ़िल्म निर्माण की गति काफ़ी धीमी पड़ गई। फिर भी विष्णुकांत दामले और फत्तेलाल अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर फ़िल्मों का निर्माण करते रहे। सन [[1944]] में राजा नेने के निर्देशन में बनी [[मराठी भाषा|मराठी]] फ़िल्म "दहा बजे" [[हिंदी]] में "दस बजे" जो एक प्रेमकथा पर आधारित थी, बहुत चर्चित हुई। सन [[1946]] में पीआईआई एल संतोषी ने इस कंपनी के लिए "हम एक हैं" नामक फ़िल्म बनाई, जो [[देवानंद]] की पहली फ़िल्म थी। सन [[1953]] में प्रभात फ़िल्म कंपनी अंतत: बंद हो गई।

13:12, 7 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

प्रभात फ़िल्म कम्पनी
प्रभात फ़िल्म कम्पनी का प्रतीक चिह्न
विवरण 'प्रभात फ़िल्म कम्पनी' भारत की फ़िल्म निर्माण कम्पनी थी। इस कम्पनी ने अधिकतर फ़िल्में मराठी और हिंदी दोनों में एक साथ अलग-अलग शीर्षकों में बनाई।
उद्योग मनोरंजन
स्थापना 1929
मुख्यालय कोल्हापुर, पुणे
संस्थापक वी. शांताराम, विष्णुकांत दामले, बाबुराव पेंढारकर और फत्तेलाल
कार्य फ़िल्म निर्माण
प्रमुख फ़िल्में 'अमृत मंथन', 'अमृत ज्योति', 'संत तुकाराम', 'संत ज्ञानेश्वर', 'दुनिया न माने', 'गोपाल कृष्णा', 'सैरेंध्री', 'आदमी', 'पड़ोसी' आदि।
अन्य जानकारी प्रभात फ़िल्म कम्पनी की सन 1937 में दामले और फत्तेलाल द्वारा निर्मित "संत तुकाराम" भारत की ऐसी पहली फ़िल्म थी, जिसे उस वर्ष वेनिस फ़िल्म समारोह में पुरस्कृत किया गया।

प्रभात फ़िल्म कम्पनी (अंग्रेज़ी: Prabhat Film Company) की स्थापना वी. शांताराम, विष्णुकांत दामले, बाबुराव पेंढारकर और फत्तेलाल द्वारा की गई थी। इस कम्पनी का मुख्यालय तत्कालीन कोल्हापुर (1933) में हुआ करता था। इस फ़िल्म कम्पनी के मंच अन्य स्टुडियो के मंचों से आकार में विशाल थे। कम्पनी के अपने तकनीकी संसाधन थे। इसी कम्पनी की 1937 में विष्णुकांत दामले और फत्तेलाल द्वारा निर्मित "संत तुकाराम" भारत की ऐसी पहली फ़िल्म थी, जिसे उस वर्ष वेनिस फ़िल्म समारोह में पुरस्कृत किया गया था।

स्थापना

भारतीय सिनेमा को उद्देश्यमूलक कथावस्तुओं के साथ सामाजिक सरोकार को जोड़ने वाले अप्रतिम फ़िल्मकार वी. शांताराम का नाम सदैव अमर रहेगा। मूक फ़िल्मों में अपना अभिनय सफ़र शुरू करके फ़िल्मों के निर्माण तक के सफ़र में जो अमिट छाप वी. शांताराम ने भारतीय सिनेमा के इतिहास में दर्ज की है, वह अभूतपूर्व है। उन्होंने अपनी हर फ़िल्म, समाज की रूढ़ियों को तोड़कर एक नए समाज के निर्माण के लिए बनाई। भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों के अँधेरे को दूर कर एक नए प्रभात की आशा उन्होंने लोगों में जगाई। भारतीय सिनेमा में वे एक नए युग के आंदोलनकर्ता थे।[1]

सन 1929 में कोल्हापुर के राजा के सहायोग से स्थापित "महाराष्ट्र फ़िल्म कम्पनी" के चार स्तम्भ वी. शांताराम, विष्णुकांत दामले, बाबुराव पेंढारकर और फत्तेलाल ने इस कम्पनी से अलग होकर "प्रभात फ़िल्म कम्पनी" नामक एक नई फ़िल्म कम्पनी का आरंभ कोल्हापुर में किया। यह फ़िल्म कम्पनी 1933 में कोल्हापुर से पुणे स्थानांतरित की गई। कुछ ही समय में यह कम्पनी अन्य फ़िल्म निर्माण संस्थाओं से होड़ लेने लगी। पश्चिम भारत में यह एक प्रतिष्ठित फ़िल्म कम्पनी से रूप में स्थिर हो गई थी।

मंच तथा तकनीकी संसाधन

प्रभात फ़िल्म कम्पनी के फ्लोर (मंच) अन्य स्टूडियो के मंचों से आकार में विशाल थे। इस कम्पनी के अपने तकनीकी संसाधन थे, जैसे- संपादन, ध्वनि संयोजन और फ़िल्म प्रोसेसिंग आदि की सुविधाएँ इस कम्पनी में अतिरिक्त आकर्षण थे। ऐसी आधुनिक सुविधाओं के लिए उन दिनों सिर्फ़ कलकत्ता स्थित न्यू थियेटर ही एकमात्र स्टूडियो था। प्रभात फ़िल्म कम्पनी भी उन दिनों प्रचलित परंपरा के अनुसार मशहूर फ़िल्म निर्माताओं, कलाकारों और तकनीशियनों को मासिक वेतन पर नियुक्त करती थी। इस कम्पनी का कला विभाग फत्तेलाल की देखरेख में अपनी अलग पहचान रखता था।

फ़िल्म निर्माण

इस कम्पनी की सबसे महत्वपूर्ण फ़िल्म "अमृत मंथन" (1934) थी। धीरे-धीरे प्रभात फ़िल्म कम्पनी ने निर्माण के साथ-साथ फ़िल्म वितरण और थियेटर निर्माण के क्षेत्र में भी प्रवेश किया। इसके अलावा रंगमंच के क्षेत्र में भी इस संस्था ने अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज कराई। सुरुचिपूर्ण मराठी नाटकों के मंचन के लिए यह संस्था प्रसिद्ध हुई। प्रारम्भ में प्रभात फ़िल्म कम्पनी में दामले और फत्तेलाल के नेतृत्व में धार्मिक फ़िल्मों का निर्माण अधिक हुआ। कालांतर में वी. शांताराम के निर्देशन में और गजानन जागीरदार, विश्राम बेडेकर, नारायण काले और केशवराव उल्लेखनीय हैं। मराठी फ़िल्मों के सुप्रसिद्ध निर्माता अनंत माने और दत्ता धर्माधिकारी भी इसी कम्पनी में सहायक के पदों पर काम कर चुके थे इस कम्पनी ने अपनी फ़िल्मों के उत्तम स्तर और मार्मिक कथा वस्तु के कारण न सिर्फ़ देश में बल्कि विदेशों में आयोजित फ़िल्म समारोहों में प्रतिष्ठा पाई। 1934 में निर्मित "अमृत मंथन" और 1936 में निर्मित "अमृत ज्योति" फ़िल्मों का प्रदर्शन उस वर्ष के वेनिस फ़िल्म समारोहों में हुआ था।[1]

पुरस्कार

इसी कम्पनी की सन 1937 में दामले और फत्तेलाल द्वारा निर्मित "संत तुकाराम" भारत की ऐसी पहली फ़िल्म थी, जिसे उस वर्ष वेनिस फ़िल्म समारोह में पुरस्कृत किया गया। इस कम्पनी की अन्य चर्चित और सफल फ़िल्मों में 'अयोध्या का राजा', 'जलती निशानी' और 'माया मछिंदर' (1932), 'सिंहगढ़ और सैरंध्री' (1933), 'चंद्रसेना और धर्मात्मा' (1935) और सन 1940 में निर्मित "संत ज्ञानेश्वर" उल्लेखनीय हैं।

प्रभात फ़िल्म कम्पनी ने अधिकतर फ़िल्में मराठी और हिंदी दोनों में एक साथ अलग-अलग शीर्षकों में भी बनाई। इनमें से कुछ चर्चित फ़िल्में हैं- 'माजा मुलगा' – 'मेरा लड़का' (1938), 'मानूस' – 'आदमी' (1939, निर्देशक वी. शांताराम)। इन्हीं फ़िल्मों में से एक अतिविशिष्ट फ़िल्म भी थी, जो देश-विदेश में काफ़ी लोकप्रिय हुई थी और कई समारोहों में प्रदर्शित की गई थी। वह फ़िल्म थी "दुनिया न माने" जो हिंदी में थी और यही फ़िल्म "कंकु" नाम से मराठी भाषा में एक साथ बनाई गई। यह फ़िल्म भारतीय रूढ़िवादी समाज में नारी की स्थिति और समाज सुधार पर एक सशक्त अभिव्यक्ति थी, जिसे सभी ने सराहा।

वी. शांताराम द्वारा त्याग

सन 1942 में आपसी मतभेदों के कारण वी. शांताराम ने प्रभात फ़िल्म कम्पनी को छोड़ दिया और मुंबई आ गए। यहाँ उन्होंने "राजकमल कला मंदिर" के नाम से अपनी स्वयं की एक फ़िल्म निर्माण संस्था खोल ली।[1] वी. शांताराम के 'प्रभात फ़िल्म कंपनी' से दूर हो जाने से इस कंपनी की फ़िल्म निर्माण की गति काफ़ी धीमी पड़ गई। फिर भी विष्णुकांत दामले और फत्तेलाल अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर फ़िल्मों का निर्माण करते रहे। सन 1944 में राजा नेने के निर्देशन में बनी मराठी फ़िल्म "दहा बजे" हिंदी में "दस बजे" जो एक प्रेमकथा पर आधारित थी, बहुत चर्चित हुई। सन 1946 में पीआईआई एल संतोषी ने इस कंपनी के लिए "हम एक हैं" नामक फ़िल्म बनाई, जो देवानंद की पहली फ़िल्म थी। सन 1953 में प्रभात फ़िल्म कंपनी अंतत: बंद हो गई।


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