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भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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− | + | {[[भारत]] में विधायिका निम्न में से किस देश के नमूने पर निर्मित हुई है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-99,प्रश्न-1 | |
− | { | ||
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− | - | + | +[[ब्रिटेन]] |
− | - | + | -[[अमेरिका]] |
− | - | + | -[[फ्रांस]] |
− | + | -[[जर्मनी]] | |
− | || | + | ||[[भारत]] में विधायिका [[ब्रिटेन]] के नमूने पर निर्मित हुई है। विधायिका से आशय [[संसद]] से है। भारत की संसद [[राष्ट्रपति]] तथा दोनों सदनों (राज्य सभा तथा [[लोक सभा]]) से मिलकर बनी है। |
− | {राजनीतिक | + | {"राजनीतिक दल अपरिहार्य हैं, कोई भी स्वतंत्र देश उनके बिना नहीं रह सकता।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-104,प्रश्न-1 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | - | + | +ब्राइस |
− | + | -लास्की | |
− | - | + | -गार्नर |
− | - | + | -[[मैक्स वेबर]] |
− | || | + | ||ब्राइस के अनुसार, "राजनीतिक दल अपरिहार्य हैं, कोई भी स्वतंत्र देश उनके बिना नहीं रहा सकता।" इनके अतिरिक्त ब्राइस ने राजनीतिक दल के संबंध में कहा है कि "राजनीतिक दल उस संगठित समूह को कहते हैं जिसकी सदस्यता ऐच्छिक हो और जो राजनीतिक शक्ति को प्राप्त करने में अपनी सामूहिक शक्ति लगा दे।" |
− | + | {[[मैक्स वेबर]] का कार्य संकेंद्रित है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-109,प्रश्न-31 | |
− | { | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | + | -राज्यों के संविधान पर | |
− | - | + | -विधिक संरचना पर |
− | + | +सरकार की वैधता पर | |
− | - | + | -सरकार के प्रकार पर |
− | || | + | ||[[मैक्स वेबर]] का कार्य सरकार की वैधता पर संकेंद्रित है। वेबर के अनुसार, एक व्यक्ति अन्य पर अपना प्रभुक्त तीन प्रकार से स्थापित करता है- पारंपरिक प्रभुक्त, करिश्माई प्रभुक्त एवं वैधानिक प्रभुत्व। वैधानिक प्रभुत्व का आधार कानून या विधि होता है एवं इसका सर्वोत्तम उदाहरण नौकरशाही है। |
− | + | {एक्स (X) और वाई (Y) सिद्धांत का संबंध- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-132,प्रश्न-21 | |
− | { | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | + | -डगलस मैक्ग्रेगर के वित्तीय प्रबंध से है | |
− | - | + | -गुलिक के प्रशासन-शासन द्वैधवाद से है |
− | - | + | -अब्राहम मैस्लो के पुरस्कार दंड सिद्धांत से है |
− | - | + | +डगलस मैक्ग्रेगर के सामाजिक-मनोवैज्ञानिक उपागम से है |
− | || | + | ||एक्स (X) और वाइ (Y) सिद्धांत का संबंध डगलस मैक्ग्रेगर के सामाजिक-मनोवैज्ञानिक उपागम से है। यह सिद्धांत दि ह्यूमन साइड ऑफ इंटर प्राइज में 1960 में प्रतिपादित हुआ। |
− | + | {यदि सदन का सत्रावसान हो गया है, तो इसे आहूत करने के लिए कौन अधिकृत है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-138,प्रश्न-11 | |
− | { | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | -[[ | + | -अध्यक्ष |
− | -[[ | + | -[[उपराष्ट्रपति]] |
− | +[[ | + | -[[प्रधानमंत्री]] |
− | + | +[[राष्ट्रपति]] | |
− | || | + | ||यदि सदन का सत्रावसान हो गया है तो इसे आहूत करने हेतु केवल [[राष्ट्रपति]] ही अधिकृत है। अनुच्छेद 85 के अनुसार राष्ट्रपति को किसी सदन का अधिवेशन आहूत करने, सत्रावसान करने एवं [[लोक सभा]] का विघटन करने की शक्ति प्राप्त है। |
− | + | {[[संविधान]] के किस संशोधन के अंतर्गत 6 वर्ष से 14 वर्ष के बच्चों की शिक्षा मौलिक अधिकार बन गई है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-172,प्रश्न-201 | |
− | { | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | - | + | -93वां संविधान संशोधन |
− | + | + | +86वां संविधान संशोधन |
− | - | + | -91वां संविधान संशोधन |
− | - | + | -92वां संविधान संशोधन |
− | || | + | ||संविधान के 86वां संशोधन के द्वारा 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के बच्चों की शिक्षा मौलिक अधिकार बन गई है। |
− | { | + | {पंचायत राज्य सम्मिलित है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-186,प्रश्न-1 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | - | + | -संघीय सूची में |
− | + | + | +राज्य सूची में |
− | - | + | -समवर्ती सूची में |
− | - | + | -अवशिष्ट सूची में |
− | || | + | ||पंचायतों को संविधान की 7वीं अनुसूची में राज्य सूची की प्रविष्टि 5 का विषय माना गया है। इस प्रकार [[पंचायत]], राज्य सरकार का विषय है। इसके गठन तथा चुनाव कराने का अधिकार राज्यों को ही है। |
− | { | + | {जाति प्रथा का तत्त्व है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-189,प्रश्न-1 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | - | + | +चेतनाबोध |
− | - | + | -आधुनिकतावाद |
− | - | + | -राजनीतिकरण |
− | + | -संप्रदायवाद | |
− | || | + | ||जाति प्रथा का मूल तत्व चेतनाबोध है। इसी जातीय चेतनाबोध के कारण कई राज्यों में संख्या के आधिक्य कारण कुछ जातियां सत्ता पर वर्चस्व स्थापित करने में समर्थ हो जाती हैं। |
− | { | + | {शिक्षा और सेवायोजन के अधिकार- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-90,प्रश्न-12 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | + | -तटस्थ हैं, नकारात्मक और सकारात्मक दोनों हैं | |
− | - | + | -प्राय: नकारात्मक, कभी-कभी सकारात्मक हैं |
− | - | + | -नकारात्मक हैं |
− | - | + | +सकारात्मक हैं |
+ | ||शिक्षा एवं सेवायोजन के अधिकार सकारात्मक होते हैं। | ||
+ | अधिकार राज्य के अंतर्गत व्यक्ति को प्राप्त होने वाली ऐसी अनुकूल परिस्थितियां और अवसर हैं जिनसे उसे आत्म-विकास में सहायता मिलती है। (1) नकारात्मक अधिकार एवं 2. सकारात्मक अधिकार। | ||
− | { | + | {निम्नलिखित में से [[अमेरिका]] की संघ राज्य पद्धति की विशेषता नहीं है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-96,प्रश्न-2 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
− | - | + | -शक्ति का विभाजन |
− | + | + | -सर्वोच्च न्यायालय का अस्तित्व |
− | - | + | +न्यायिक संगठन के तीन समुच्चय |
− | + | -लिखित संविधान | |
− | + | ||अमेरिकी संविधान में शक्ति का विभाजन, [[सर्वोच्च न्यायालय]] का अस्तित्त्व तथा लिखित [[संविधान]] आदि विशेषताएँ हैं किंतु न्यायिक संगठन के तीन समुच्चय इसकी विशेषता नहीं है। | |
− | |||
</quiz> | </quiz> | ||
|} | |} | ||
|} | |} |
11:16, 18 नवम्बर 2017 का अवतरण
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