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{'प्रतिनिध्यात्मक शासन पर विचार' ग्रंथ के लेखक का नाम है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-201,प्रश्न-6
 
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+जे.एस. मिल
 
-लास्की
 
-कोल
 
-बेंथम
 
||'प्रतिनिध्यात्मक शासन पर विचार' (Considerations on Reprasen tetiva Govarnmrnt) नामक ग्रंथ के लेखक जॉन स्टुअर्ट मिल हैं जो वर्ष 1861 में प्रकाशित किया गया।
 
  
{"एक आधुनिक [[राज्य]] [[संविधान]] के बिना राज्य नहीं अपितु अराजकता का शासन है" यह किसका कथन है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-9,प्रश्न-28
 
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-लॉर्ड ब्राइस
 
-ए.वी. डायसी
 
+जैलीनेक
 
-जी.वी.शां
 
||"एक आधुनिक राज्य संविधान के बिना राज्य नहीं अपितु अराजकता का शासन है।" यह कथन जैलीनेक का है। वस्तुत: संविधान राजकीय आचरण का वह विधान होता है जिसके द्वारा व्यक्ति से व्यक्ति और व्यक्ति एवं राज्य के पारस्परिक संबंध को निश्चित किया जाता है तथा जिसके द्वारा सरकार के विविध अंगों को अनिश्चित किया जाता है तथा जिसके द्वारा सरकार के विविध अंगों का पारस्पतिक संबंध निश्चित किया जाता है। गिलक्राइस्ट संविधान को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि "संविधान उन लिखित या अलिखित नियमों अथवा कानूनों का समूह होता है जिसके द्वारा सरकार का संगठन सरकार की शक्तियों का विभिन्न अंगों में वितरण और इन शक्तियों के प्रयोग का सामान्य सिद्धांत निश्चित किया जाता है।"
 
 
{[[राज्य]] की उत्पत्ति का दैवीय सिद्धांत क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-21,प्रश्न-26
 
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+धर्म को राजनीति से मिलाता है।
 
-धर्म को राजनीति से अलग करता है।
 
-सामंतीय शासक की सर्वोच्चता में विश्वास करता है।
 
-लोकप्रिय संप्रभुता में विश्वास करता है।
 
||[[राज्य]] की उत्पत्ति का दैवीय सिद्धांत धर्म को राजनीति से मिलाता है। इस सिद्धांत की धार्मिक ग्रंथों में स्पष्ट रूप से अभिव्यक्ति मिलती है। [[ईसाई]], [[मुसलमान]], [[हिंदू]], [[यहूदी]] तथा विश्व के सभी [[धर्म]] के लोग इस मत को मानते हैं कि राजनीतिक सत्ता का मूल दैवीय वरदान है। इस प्रकार की धार्मिक मान्यता ने राजा के पद को पवित्र बना दिया जो एक प्रकार से ईश्वर का प्रतिनिधि बन गया, वह सर्वशक्ति-संपन्न हो गया और अपने जाने या अनजाने में किए सभी कृत्यों के लिए केवल ईश्वर के प्रति उत्तरदायी माना गया। ऐसा माना-जाने लगा कि राजा के प्रति विद्रोह, ईश्वर के प्रति विद्रोह है और जो ऐसा करेगा उसे मृत्यु मिलेगी। जेम्स प्रथम ने इसे और स्पष्टता प्रदान करते हुए कहा कि "राजा लोग पृथ्वी पर ईश्वर की जीवित प्रतिमाएं हैं"।
 
 
{उदार लोकतंत्र का सबसे विशिष्ट लक्षण है, कि- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-47,प्रश्न-18
 
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-यह गुण की जगह संख्या पर अधिक बल देता है।
 
+यह सभी व्यक्तियों के मतों को समान मानता है।
 
-यह शासनकर्ता कुलीनतंत्र द्वारा जनता के शोषण के खतरे को न्यूनतम बनाता है।
 
-यह बहुमत की राय पर निर्भर रहता है।
 
||वर्तमान उदार लोकतंत्र का एक विशिष्ट लक्षण यह है कि वह सभी व्यक्तियों के मतों को समान मानता है। उपयोगितावादी चिंतक बेंथम ने 'एक व्यक्ति एक मत' का सिद्धांत प्रतिपादित किया था। इसके अतिरिक्त उदार लोकतंत्र की विशेषताओं को 'एलेन बाल' ने निम्नलिखित बिंदुओं के रूप में बताया है- एक से अधिक राजनीतिक दल तथा उनके मध्य प्रतिस्पर्धा। उचित प्रक्रिया के आधार पर राजनीतिक पदों पर समान दावा। खुली राजनीतिक भर्ती। दबाव तथा स्वैच्छिक समूहों की उपस्थिति। नागरिक स्वतंत्रता। स्वतंत्र न्यायपालिका। स्वतंत्र प्रेस व मीडिया।
 
 
{"बाह्य संप्रभुता" की अवधारणा को किसने दिया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-23,प्रश्न-6
 
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+ग्रोशियस
 
-ओपेनहाइमर
 
-काण्ट
 
-रूसो
 
||बाह्य संप्रभुता की अवधारणा सत्रहवीं शताब्दी के विचारक ह्यूगो ग्रोशियस द्वारा दी गई थी। इस अवधारणा के अनुसार, कोई भी संप्रभु राज्य अपनी विदेश नीति के निर्धारण, अन्य राज्यों से मैत्री संबंध, लेन-देन या युद्ध हेतु पूर्णत: स्वतंत्र होता है। साथ ही वैश्विक व्यवस्था को बनाए रखने हेतु वैश्विक संस्थाओं (संयुक्त राष्ट्र संघ) द्वारा लागू किए गए नियम एवं प्रतिबंध राज्य की स्वीकृति पर निर्भर होते हैं।
 
 
{निम्नलिखित में से किसने 'फॉसीवाद के सिद्धांत' का वर्णन, इस रूप में किया है कि वह समाजवाद का राष्ट्रवादी रूप है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-42,प्रश्न-16
 
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-मार्टिन हैडेगर
 
-जॉर्जेज सोरेल
 
+एल्फ्रेडो रोक्को
 
‌-रूडोल्फ जेलेन
 
||एल्फ्रेडो रोक्को ने फॉसीवाद के सिद्धांत का वर्णन इस रूप में किया है कि वह "समाजवाद का राष्ट्रवादी रूप है।" रोक्को [[इटली]] में लंबे समय तक राष्ट्रवादियों का नेता था। वह इटली में नए गठबंधन सरकार में न्यायमंत्री था। उपरोक्त परिभाषा को उसने 1925 में चैम्बर ऑफ़ डिपुटीज के समक्ष भाषण देते हुए कहा था कि समाजवाद का राष्ट्रीय वर्जन प्रत्येक लोगों में खुशी लायेगा।
 
 
{"अधिकार कानूनों का तथा केवल कानूनों का फल है। बिना कानूनों के कोई अधिकार नहीं, कानूनों के खिलाफ कोई अधिकार नहीं तथा कानूनों से पहले कोई अधिकार नहीं।" यह कथन है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-68,प्रश्न-27
 
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+बेंथम का
 
-डायसी का
 
-लास्की का
 
-ऑस्टिन का
 
||19वीं शताब्दी में प्राकृतिक अधिकारों का स्थान कानूनी अधिकारों ने ले लिया। कानूनी अधिकारों के सिद्धांत का मानना है कि अधिकार प्राकृतिक न होकर राज्य की देन होते हैं। इस सिद्धांत का स्पष्टीकरण और व्याख्या हमें बेंथम तथा ऑस्टिन जैसे कानून शास्त्रियों के विचारों में मिलती है। बेंथम के अनुसार अधिकारों का आधार केवल कानून ही है। इसके अनुसार कानून और अधिकार अनिवार्यत: एक हैं- कानून उसका वस्तुपरक रूप है और अधिकार व्यक्तिपरक रूप। इसके अनुसार अधिकार के तीन विशेषताएं है- राज्य की अधिकारों का स्त्रोत है अर्थात अधिकार राज्य से पहले नहीं हो सकते। राज्य अधिकारों को संस्थात्मक तथा कानूनी ढांचा प्रदान करता है यही इन्हें लागू करता है। राज्य की अधिकारों की रचना करता है अर्थात जब कानूनों में परिवर्तन होता हैं तब अधिकारों में भी परिवर्तन आ जाता है।
 
 
{न्यायपालिका प्रशासन की निरंकुशता पर कैसे अंकुश लगा सकती है?(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-191,प्रश्न-8
 
|type="()"}
 
-सरकार के विरुद्ध अभियोग द्वारा
 
-मंत्रिमंडल में परिवर्तन द्वारा
 
-[[राष्ट्रपति]] को अपदस्थ कर
 
+लोकपाल के माध्यम से
 
||[[न्यायपालिका]] प्रशासन की निरंकुशता पर लोकपाल के माध्यम से अंकुश लगा सकती है। लोकपाल उच्च सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों द्वारा किए जा रहे राष्ट्रचार की शिकायतें सुनने एवं उस पर कार्यवाही करने के निमित्त पद है।
 
 
{[[ब्रिटेन]] में संविधान नहीं है, यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-200,प्रश्न-46
 
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+डी. टॉकविल
 
-हेमिल्टन
 
-हरमन फाइनर
 
-सी.एफ.स्ट्रांग
 
 
{"राजनीतिक दल न्यूनाधिक संगठित उन नागरिकों का समूह होता है जो राजनैतिक इकाई के रूप में कार्य करता है और जिसका उद्देश्य अपने मतदान बल के प्रयोग द्वारा सरकार पर नियंत्रण करना व अपनी सामान्य नीतियों को क्रियांवित करना होता है।" निम्नलिखित में से किस राजनीतिक विचारक ने दल की उपर्युक्त परिभाषा दी?
 
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-बर्फ
 
+गेटेल
 
-लॉर्ड ब्राइस
 
-मोरिस दुवर्जर
 
||राजनीतिक दल की उपरोक्त परिभाषा गेटेल द्वारा दी गई है। राजनीतिक दल लोकतंत्र के प्राण है। बिना राजनीतिक दल के लोकतंत्र सुचारू रूप से कार्य नहीं कर सकता। प्रो. मनुरो के अनुसार "लोकतंत्रात्मक शासन दलीय शासन का ही दूसरा नाम है।"
 
  
 
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11:42, 19 दिसम्बर 2017 का अवतरण