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-जेनेवा | -जेनेवा | ||
− | -वाशिंगटन डी. | + | -वाशिंगटन डी.सी. |
− | + | + | +द हेग |
-मैड्रिड | -मैड्रिड | ||
||[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] के घोषणा-पत्र के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय विवादों को शांतिपूर्ण तरीके सुलझाने के उद्देश्य से एक अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना का प्रावधान रखा गया। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में 15 सदस्य होते हैं जो महासभा एवं सुरक्षा परिषद द्वारा निर्वाचित किए जाते हैं। इनका कार्यकाल 9 वर्षों का होता है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का मुख्यालय हेग (नीदरलैंड) में है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में गणपूर्ति (कोरम) के लिए कम से कम न्यायाधीशों की संख्या 9 होनी चाहिए। | ||[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] के घोषणा-पत्र के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय विवादों को शांतिपूर्ण तरीके सुलझाने के उद्देश्य से एक अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना का प्रावधान रखा गया। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में 15 सदस्य होते हैं जो महासभा एवं सुरक्षा परिषद द्वारा निर्वाचित किए जाते हैं। इनका कार्यकाल 9 वर्षों का होता है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का मुख्यालय हेग (नीदरलैंड) में है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में गणपूर्ति (कोरम) के लिए कम से कम न्यायाधीशों की संख्या 9 होनी चाहिए। | ||
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-पद-सोपान | -पद-सोपान | ||
-निष्पक्षता | -निष्पक्षता | ||
− | ||वेबर के नौकरशाही सूत्रीकरण से संरचनात्मक गुणों तथा व्यवहारगत गुणों का बनने वाला एक समूह है, जिसमें प्रथम में शामिल हैं-कार्य विभाजन, पदानुक्रम, नियमों की व्याख्या, भूमिका निर्धारण जबकि द्वितीय में शामिल हैं- तार्किकता, अवैयक्तिकता, नियम निर्देशिता, तटस्थता। इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रतिबद्धता मैक्स वेबर के अनुसार नौकरशाही की विशेषता नहीं है। | + | ||वेबर के नौकरशाही सूत्रीकरण से संरचनात्मक गुणों तथा व्यवहारगत गुणों का बनने वाला एक समूह है, जिसमें प्रथम में शामिल हैं- कार्य विभाजन, पदानुक्रम, नियमों की व्याख्या, भूमिका निर्धारण जबकि द्वितीय में शामिल हैं- तार्किकता, अवैयक्तिकता, नियम निर्देशिता, तटस्थता। इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रतिबद्धता मैक्स वेबर के अनुसार नौकरशाही की विशेषता नहीं है। |
{फ्रांसीसी क्रांति का नारा था- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-195,प्रश्न-17 | {फ्रांसीसी क्रांति का नारा था- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-195,प्रश्न-17 | ||
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||'ए थ्योरी ऑफ़ जस्टिस' के लेखक जॉन राल्स हैं। राजनीतिक दर्शन एवं नीतिशास्त्र की यह पुस्तक वर्ष 1971 में प्रकाशित हुई। | ||'ए थ्योरी ऑफ़ जस्टिस' के लेखक जॉन राल्स हैं। राजनीतिक दर्शन एवं नीतिशास्त्र की यह पुस्तक वर्ष 1971 में प्रकाशित हुई। | ||
− | {वुडरो विल्सन के अनुसार कौन कार्य राज्य का ऐच्छिक कार्य है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-10,प्रश्न-37 | + | {वुडरो विल्सन के अनुसार कौन सा कार्य राज्य का ऐच्छिक कार्य है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-10,प्रश्न-37 |
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− | -कानून | + | -कानून व्यवस्था बनाए रखना |
+श्रम कानून बनाना | +श्रम कानून बनाना | ||
-दीवानी मामलों को निपटाना | -दीवानी मामलों को निपटाना | ||
-मनुष्यों द्वारा किए गए समझौतों का पालन करना | -मनुष्यों द्वारा किए गए समझौतों का पालन करना | ||
− | ||जहां उदारवादी विचारक राज्य के न्यूनतम | + | ||जहां उदारवादी विचारक राज्य के न्यूनतम कार्यक्षेत्र का समर्थन करते हैं वहीं समाजवादी विचारक राज्य के अधिकतम कार्यक्षेत्र को महत्त्वपूर्ण मानते हैं। इसी संदर्भ में राज्य के उचित कार्य क्षेत्र के निर्धारण के लिए अनेक विद्वानों ने राज्य के कार्य को दो भागों- आवश्यक कार्य तथा ऐच्छिक कार्य में बांटा है। बुडरो विल्सन के अनुसार, राज्य के आवश्यक कार्य-व्यवस्था बनाये रखना, दीवानी मामलों का निपटारा, व्यक्तियों में आपसी संविदा से उत्पन्न अधिकारों को निश्चित करना तथा नागरिकों के राजनीतिक कर्त्तव्यों को निर्धारित करना है। वुडरो विल्सन के अनुसार राज्य के ऐच्छिक कार्य निम्न हैं- उद्योग व्यापार पर नियंत्रण, श्रम कानून बनाना, आवागमन की व्यवस्था आदि इस प्रकार श्रम कानून बनाना राज्य का ऐच्छिक कार्य है। |
{एकलवादी संप्रभुता सिद्धांत के प्रतिपादक थे- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-24,प्रश्न-14 | {एकलवादी संप्रभुता सिद्धांत के प्रतिपादक थे- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-24,प्रश्न-14 | ||
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||जॉन ऑस्टिन द्वारा प्रतिपादित प्रभुसत्ता सिद्धांत को 'एकलवादी सिद्धांत' कहा जाता है। ऑस्टिन ने सकारात्मक कानून (Positive Law) का सिद्धांत भी प्रस्तुत किया था जो राज्य की कानूनी प्रभुसत्ता से जुड़ा है। | ||जॉन ऑस्टिन द्वारा प्रतिपादित प्रभुसत्ता सिद्धांत को 'एकलवादी सिद्धांत' कहा जाता है। ऑस्टिन ने सकारात्मक कानून (Positive Law) का सिद्धांत भी प्रस्तुत किया था जो राज्य की कानूनी प्रभुसत्ता से जुड़ा है। | ||
− | { | + | {व्यवहारपरक राजनीति विज्ञान का जनक माना जाता है: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-34, प्रश्न-24 |
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-डेविड ईस्टन को | -डेविड ईस्टन को | ||
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-लास्की का | -लास्की का | ||
-ऑस्टिन का | -ऑस्टिन का | ||
− | ||19वीं शताब्दी में प्राकृतिक अधिकारों का स्थान कानूनी अधिकारी ने ले लिया। कानूनी अधिकारों के सिद्धांत का मानना है कि अधिकार प्राकृतिक न होकर राज्य की देन होते हैं। इस सिद्धांत का स्पष्टीकरण और व्याख्या हमें बेंथम तथा ऑस्टिन जैसे कानून शास्त्रियों के विचारों में मिलती है। बेंथम के अनुसार अधिकारों का आधार केवल कानून ही है। इसके | + | ||19वीं शताब्दी में प्राकृतिक अधिकारों का स्थान कानूनी अधिकारी ने ले लिया। कानूनी अधिकारों के सिद्धांत का मानना है कि अधिकार प्राकृतिक न होकर राज्य की देन होते हैं। इस सिद्धांत का स्पष्टीकरण और व्याख्या हमें बेंथम तथा ऑस्टिन जैसे कानून शास्त्रियों के विचारों में मिलती है। बेंथम के अनुसार अधिकारों का आधार केवल कानून ही है। इसके अनुसार कानून और अधिकार अनिवार्यत: एक हैं- कानून उसका वस्तुपरक रूप है और अधिकार व्यक्तिपरक रूप। इसके अनुसार अधिकार की तीन विशेषताएं है-राज्य ही अधिकारों का स्त्रोत है अर्थात अधिकार राज्य से पहले तीन हो सकते हैं। राज्य अधिकारों को संस्थात्मक तथा कानूनी ढांचा प्रदान करता है यही इन्हें लागू करता है। राज्य ही अधिकारों की रचना करता है अर्थात जब कानूनों में परिवर्तन होता है तब अधिकारों में भी परिवर्तन आ जाता है। |
{भूतपूर्व सोवियत संविधान ने अपनी संघीय इकाइयों को कुछ ऐसे अधिकार दिए थे जो भारतीय तथा अमेरिकी संघों ने अपनी इकाइयों को नहीं दिए हैं। (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-113,प्रश्न-15 | {भूतपूर्व सोवियत संविधान ने अपनी संघीय इकाइयों को कुछ ऐसे अधिकार दिए थे जो भारतीय तथा अमेरिकी संघों ने अपनी इकाइयों को नहीं दिए हैं। (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-113,प्रश्न-15 |
11:46, 6 जनवरी 2018 का अवतरण
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