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-संसद एवं राज्य-विधान सभा | -संसद एवं राज्य-विधान सभा | ||
||भारत में राजनीतिक शक्ति का मुख्य स्त्रोत मतदाता या जनता है। डॉ. भीमराव अंबेडकर के अनुसार, "उद्देशिका स्पष्ट करती है कि भारतीय संविधान का आधार जनता है एवं इसमें निहित प्राधिकार और प्रभुसत्ता सब जनता से प्राप्त हुई हैं"। | ||भारत में राजनीतिक शक्ति का मुख्य स्त्रोत मतदाता या जनता है। डॉ. भीमराव अंबेडकर के अनुसार, "उद्देशिका स्पष्ट करती है कि भारतीय संविधान का आधार जनता है एवं इसमें निहित प्राधिकार और प्रभुसत्ता सब जनता से प्राप्त हुई हैं"। | ||
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+ | {इंग्लैंड में लॉर्ड बेवरिज प्रतिवेदन ने जिस राज्य की अवधारणा को प्रकट किया था, वह था- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-38, प्रश्न-13 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -उदारवादी राज्य | ||
+ | -पंथनिरपेक्ष राज्य | ||
+ | -समाजवादी राज्य | ||
+ | +कल्याणकारी राज्य | ||
+ | ||दिसंबर, 1942 में इंग्लैंड में आधुनिक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा 'लॉर्ड विलियम बेवरिज प्रतिवेदन' के मध्य से प्रस्तुत की गई। रिपोर्ट के माध्यम से पांच महा बुराइयों का अंत करने के लिए राज्य द्वारा कदम उठाने को कहा गया। ये पांच बुराइयां- कमी, बीमारी, अज्ञानता, गंदनी तथा आलस्य हैं। यह रिपोर्ड सरकार से नागरिकों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा, पर्याप्त शिक्षा, पर्याप्त आवास तथा पर्याप्त रोजगार उपलब्ध कराने की मांग करती है। | ||
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+ | {'अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत' का प्रतिपादन किया था: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-54,प्रश्न-23 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -एडम स्मिथ ने | ||
+ | -मार्शल ने | ||
+ | -रॉबिंस ने | ||
+ | +कार्ल मार्क्स ने | ||
+ | ||अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत का प्रतिपादन राजनीतिक क्षेत्र में कार्य मार्क्स द्वारा किया गया। 'अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत' (Theory of Surplus Value) मूलत: रिकार्डो के 'मूल्य का श्रम सिद्धांत' (Labour Theory of value) से प्रभावित है। मार्क्स का अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत रिकार्डो के सिद्धांत का ही व्यापक रूप है। इसलिए रिकार्डो को अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत का जनक माना जाता है। मार्क्स के अनुसार, "अतिरिक्त मूल्य उन दो मूल्यों का अंतर है जिसे एक मजदूर पैदा करता है और जो वह वास्तव में पाता है।" | ||
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+ | {यदि संविधान परम संप्रभु है, तो तात्कालिक संप्रभुता आरोपित है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-26,प्रश्न-22 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +राष्ट्र में | ||
+ | -निर्वाचक-गण में | ||
+ | -विधि निर्माता निकाय में | ||
+ | -शासक दल में | ||
+ | ||यदि संविधान परम संप्रभु है तो तात्कालिक संप्रभुता संविधान का निर्माण करने वाले विधि निर्माता निकाय में आरोपित होगी। | ||
+ | |||
+ | {प्रभाव की एक विशेषता नहीं है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-72,प्रश्न-45 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | +उसे देखा जा सकता है। | ||
+ | -उसे देखा नहीं जा सकता है। | ||
+ | -उसे महसूस किया जा सकता है। | ||
+ | -इसमें द्विसंबंध होता है। | ||
+ | ||प्रभाव (Influence) की यह विशेषता है कि उसे देखा नहीं जा सकता है, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। | ||
+ | |||
+ | {निम्न में कौन-सा कथन सही है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-84,प्रश्न-12 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -समानता का अर्थ है व्यवहार व पुरस्कारों की पहचान | ||
+ | -समानता का अर्थ है समान आय | ||
+ | -समानता का अर्थ है कि प्रकृति ने सब मनुष्यों को समान बनाता है | ||
+ | +समानता का अर्थ है कि अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए सबको समान अवसर देने का प्रावधान हो | ||
+ | ||समानता का अर्थ है कि 'अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए सबको समान अवसर देने का प्रावधान हो'। वास्तविक समानता उस स्थिति का नाम है जिसमें देश के संविधान और कानूनों द्वारा न केवल समानता की घोषणा की जाए, वरन व्यवहार में उन परिस्थितियों की भी व्यवस्था की जाए जिनके आधार पर नागरिकों के द्वारा वास्तव में समानता का उपभोग किया जा सके। यह कार्य राज्य द्वारा सभी व्यक्तियों को व्यक्तित्व के विकास के लिए समान अवसर दिए जाने से पूरा होता है। | ||
+ | |||
+ | {एक संसदीय सरकार में राज्य के प्रधान को है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-94,प्रश्न-4 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -पूर्व शक्ति | ||
+ | -सीमित शक्ति | ||
+ | +नाममात्र की शक्ति | ||
+ | -कोई शक्ति नहीं | ||
+ | ||संसदीय सरकार में राष्ट्रपति सांविधानिक अध्यक्ष होता है, लेकिन वास्तविक शक्ति मंत्रिपरिषद में निहित होती है, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होता है। मंत्रिपरिषद लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि संसदीय शासन प्रणाली में वास्तविक कार्यपालिका शक्ति शासनाध्यक्ष के पास होती है जबकि नाममात्र की कार्यपालिका शक्ति राज्याध्यक्ष के पास होती है। राज्याध्यक्ष देश का संवैधानिक प्रशासन होता है। | ||
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+ | {दबाव समूह की प्रमुख विशेषता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-107,प्रश्न-22 | ||
+ | |type="()"} | ||
+ | -अनिश्चित कार्यकाल | ||
+ | +प्रशासन में अरोक्ष भूमिका | ||
+ | -सर्वव्यापक प्रकृति | ||
+ | -संवैधानिक साधनों का आवश्यक रूप से प्रयोग | ||
+ | ||दबाव समूह की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह राजनीति एवं प्रशासन में परोक्ष भूमिका निभाता है। | ||
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</quiz> | </quiz> | ||
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12:26, 24 जनवरी 2018 का अवतरण
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