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==परिचय==
 
==परिचय==

08:00, 24 अप्रैल 2018 का अवतरण

आई. के. कुमारन
आई. के. कुमारन
पूरा नाम आई. के. कुमारन
जन्म 17 सितम्बर, 1903
मृत्यु 27 जुलाई, 1999
नागरिकता भारतीय
जेल यात्रा 1938, 1940 और फिर 1942 में जेल यात्रा की।
अन्य जानकारी 1954 में आई. के. कुमारन ने विदेशी सत्ता पर अंतिम प्रहार के रूप में व्यापक सत्याग्रह आंदोलन आरंभ किया और अंततः फ़्राँसीसियों को माही क्षेत्र से अपनी सत्ता समेट कर जाना पड़ा।

आई. के. कुमारन (अंग्रेज़ी: I. K. Kumaran, जन्म- 17 सितम्बर, 1903; मृत्यु- 27 जुलाई, 1999) भारत की राष्ट्रीय धारा से जुड़े रहने वाले व्यक्ति थे। उन पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के विचारों का बड़ा प्रभाव था। आई. के. कुमारन ने माही क्षेत्र से फ़्राँसीसियों का शासन हटाने के लिए सफल प्रयास किया था। स्वतंत्रता के बाद वे सन 1969 में विधान सभा के सदस्य चुने गए थे।

परिचय

फ़्राँसीसियों के हाथ से माही क्षेत्र को आजाद कराने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले आई. के. कुमारन का जन्म 17 सितम्बर, 1903 को माही के एक व्यवसायी परिवार में हुआ था। फ़्राँसीसी शासन में रहते हुए भी आई. के. कुमारन आरंभ से ही देश की राष्ट्रीय धारा से जुड़े रहे। गांधीजी के विचारों का उन पर बड़ा प्रभाव था। वे सन 1930 में कांग्रेस में सम्मिलित हो गए थे।

जेल यात्रा

सन 1935 में आई. के. कुमारन ने ‘माही यूथ लीग’ की स्थापना की। वे 1938 में ‘माही महाजन सभा’ के अध्यक्ष बने। उन्होंने माही क्षेत्र से फ़्राँसीसी शासन हटाने के साथ-साथ भारत से ब्रिटिश सत्ता हटाने की भी मांग की। इस पर उन्हें 1938, 1940 और फिर 1942 में जेल यात्रा करनी पड़ी।[1]

यह आई. के. कुमारन के आंदोलन का ही परिणाम था कि 1948 में 'माही प्रशासनिक परिषद' बनी और वे 1950 तक उसके अध्यक्ष रहे। फ़्राँसीसी अधिकारियों ने उनकी अनुपस्थिति में कुमारन पर मुकदमा चलाया और उन्हें 20 वर्ष की कारावास की सजा सुनाई गई।

आंदोलन

सन 1954 में आई. के. कुमारन ने विदेशी सत्ता पर अंतिम प्रहार के रूप में व्यापक सत्याग्रह आंदोलन आरंभ कर दिया। अंततः फ़्राँसीसियों को माही क्षेत्र से अपनी सत्ता समेट कर जाना पड़ा। इस सत्याग्रह में आई. के. कुमारन ने एनसीसी अधिकारियों को बंधक बना लिया था और माही की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी।

विधान सभा सदस्य

देश की स्वतंत्रता के बाद 1969 में वह स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में विधान सभा के सदस्य चुने गए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 68 |

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