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अरिकमेडु एक ऐतिहासिक स्थल है। यह पुरा-स्थल [[पांडिचेरी]] से 3 कि.मी. [[दक्षिण]] में उष्णकटिबन्धीय तट पर स्थित है। पेरिप्लस में इसे '''पेडोक''' कहा गया है।  
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'''अरिकमेडु''' एक ऐतिहासिक स्थल है। यह पुरा-स्थल [[पांडिचेरी]] से 3 कि.मी. [[दक्षिण]] में उष्णकटिबन्धीय तट पर स्थित है। पेरिप्लस में इसे '''पेडोक''' कहा गया है।  
 
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अरिकमेडु के कुछ स्थानों पर 1945 ई. में [[भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग]] ने [[उत्खनन]] किया। अरिकमेडु में किये गये दो सेक्टर के उत्खननों में एक विशाल माल गोदाम के पुरावशेष उपलब्ध हुए हैं। अरिकमेडु का निर्माण 50 ई. में किया गया था। सेक्टर दो में चार क्रमबद्ध निर्माण स्तरों का पता चला है। अरिकमेडु से मृद्भाण्डों के अवशेष प्राप्त हुए हैं, जो प्रथम [[सदी]] ईसा पूर्व से लेकर 200 ई. के काल के हैं। अरिकमेडु से प्राप्त अवशेषों में कई रोमन वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं, जिनमें शराब के दो-हत्थे वाले कलश, रोमन लैम्प, रोमन ग्लास आदि हैं।  
 
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12:26, 3 मई 2018 का अवतरण

अरिकमेडु एक ऐतिहासिक स्थल है। यह पुरा-स्थल पांडिचेरी से 3 कि.मी. दक्षिण में उष्णकटिबन्धीय तट पर स्थित है। पेरिप्लस में इसे पेडोक कहा गया है।

उत्खनन

अरिकमेडु के कुछ स्थानों पर 1945 ई. में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग ने उत्खनन किया। अरिकमेडु में किये गये दो सेक्टर के उत्खननों में एक विशाल माल गोदाम के पुरावशेष उपलब्ध हुए हैं। अरिकमेडु का निर्माण 50 ई. में किया गया था। सेक्टर दो में चार क्रमबद्ध निर्माण स्तरों का पता चला है। अरिकमेडु से मृद्भाण्डों के अवशेष प्राप्त हुए हैं, जो प्रथम सदी ईसा पूर्व से लेकर 200 ई. के काल के हैं। अरिकमेडु से प्राप्त अवशेषों में कई रोमन वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं, जिनमें शराब के दो-हत्थे वाले कलश, रोमन लैम्प, रोमन ग्लास आदि हैं।

अरिकमेडु से प्राप्त अवशेषों से स्पष्ट होता है कि अरिकमेडु पूर्वी समुद्र तट पर एक समृद्ध व्यापारिक बन्दरगाह-नगर था, जिसके चीन, मलाया और रोम के साथ घनिष्ठ व्यापारिक सम्बन्ध थे। यहाँ से केवल भारतीय माल-मणियाँ, मोती, मलमल, सुगंधित पदार्थ, इत्र, मसाले और रेशम लादा जाता था, वरन् रोमवासियों की रुचि एवं नमूनों के अनुसार भी माल निर्माण कर रोम भेजा जाता था। रोम से इन वस्तुओं के बदले बड़ी मात्रा में सोना भारत आता था। विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि रोम निवासी अरिकमेडु का उपयोग पहली शताब्दी ई.पू. से ईसा की दूसरी शताब्दी तक करते रहे। रोमन लोग माल का मूल्य मुख्यतः स्वर्ण मुद्राओं में चुकाते थे।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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