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लोकसभा में राज्यों के स्थानों के आबंटन तथा राज्यों को प्रादेशिक क्षेत्रों में विभाजित करने के लिए संसद द्वारा परिसीमन अधिनियम, [[1952]] पारित किया गया है। परिसीमन अधिनियम, 1952 में प्रावधान किया गया है कि संसद प्रत्येक जनगणना के सुसंगत आंकड़ों के प्रकाशन के बाद परिसीमन आयोग का गठन करेगी। इस परिसीमन अधिनियम के अधीन त्रिसदस्यीय परिसीमन आयोग का गठन किया जाता है, जिसे नवीनतम जनगणना के आँकड़ों के आधार पर लोकसभा में विभिन्न राज्यों को स्थानों के आबंटन को, प्रत्येक राज्य की विधानसभाओं के कुल स्थानों का तथा लोकसभा और राज्य की विधान सभा के निर्वाचनों के प्रयोजन के लिए प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन का पुन: समायोजन करने का कर्तव्य सौंपा जाता हैं इस प्रकार गठित आयोग ने [[1974]] में लोकसभा में राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों के स्थानों का आबंटन किया था, जिसके अनुसार 530 स्थान राज्यों के लिए तथा 13 स्थान संघ राज्यक्षेत्रों के लिए आबंटित किये गये थे। | लोकसभा में राज्यों के स्थानों के आबंटन तथा राज्यों को प्रादेशिक क्षेत्रों में विभाजित करने के लिए संसद द्वारा परिसीमन अधिनियम, [[1952]] पारित किया गया है। परिसीमन अधिनियम, 1952 में प्रावधान किया गया है कि संसद प्रत्येक जनगणना के सुसंगत आंकड़ों के प्रकाशन के बाद परिसीमन आयोग का गठन करेगी। इस परिसीमन अधिनियम के अधीन त्रिसदस्यीय परिसीमन आयोग का गठन किया जाता है, जिसे नवीनतम जनगणना के आँकड़ों के आधार पर लोकसभा में विभिन्न राज्यों को स्थानों के आबंटन को, प्रत्येक राज्य की विधानसभाओं के कुल स्थानों का तथा लोकसभा और राज्य की विधान सभा के निर्वाचनों के प्रयोजन के लिए प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन का पुन: समायोजन करने का कर्तव्य सौंपा जाता हैं इस प्रकार गठित आयोग ने [[1974]] में लोकसभा में राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों के स्थानों का आबंटन किया था, जिसके अनुसार 530 स्थान राज्यों के लिए तथा 13 स्थान संघ राज्यक्षेत्रों के लिए आबंटित किये गये थे। | ||
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लोकसभा व विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन करने के लिय न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में चौथा परिसीमन आयोग का गठन वर्ष [[2001]] में किया गया। आयोग ने अपना कार्य [[2004]] में प्रारम्भ किया। प्रारम्भ में परिसीमन का कार्य [[1991]] की जनगणना के आधार पर किया जाना था, परन्तु [[23 अप्रैल]], [[2002]] को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने इससे सम्बन्धित एक संशोधन विधेयक को अनुमोदित करते हुए यह निर्धारित किया कि निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन अब 2001 की जनगणना के आधार पर किया जाएगा। इसके लिए परिसीमन (87वां संशोधन) अधिनियम, [[2003]] को अधिनियंत्रित किया गया। निर्वाचन क्षेत्रों का यह परिसीमन 30 वर्षों के पश्चात् न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की अध्यक्षता वाले चौथे परिसीमन आयोग ने अपना कार्यकाल [[31 मई]], [[2008]] को समाप्त घोषित किया। हालांकि आयोग का कार्यकाल [[31 जुलाई]], [[2008]] तक निर्धारित था। आयोग ने अपने कार्यकाल में लोकसभा के 543 एवं 24 विधानसभाओं के 4120 निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया है। पाँच राज्यों [[असम]], [[अरुणाचल प्रदेश]], [[मणिपुर]], [[नागालैण्ड]] और [[झारखण्ड]] में परिसीमन नहीं किया जा सका है, जबकि [[जम्मू-कश्मीर]] के लिए इसे लागू नहीं किया गया था। इन छ: राज्यों को छोड़कर शेष सभी राज्यों में नये परिसीमन के आधार पर मतदाता सूचियाँ तैयार की गई हैं। | लोकसभा व विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन करने के लिय न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में चौथा परिसीमन आयोग का गठन वर्ष [[2001]] में किया गया। आयोग ने अपना कार्य [[2004]] में प्रारम्भ किया। प्रारम्भ में परिसीमन का कार्य [[1991]] की जनगणना के आधार पर किया जाना था, परन्तु [[23 अप्रैल]], [[2002]] को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने इससे सम्बन्धित एक संशोधन विधेयक को अनुमोदित करते हुए यह निर्धारित किया कि निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन अब 2001 की जनगणना के आधार पर किया जाएगा। इसके लिए परिसीमन (87वां संशोधन) अधिनियम, [[2003]] को अधिनियंत्रित किया गया। निर्वाचन क्षेत्रों का यह परिसीमन 30 वर्षों के पश्चात् न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की अध्यक्षता वाले चौथे परिसीमन आयोग ने अपना कार्यकाल [[31 मई]], [[2008]] को समाप्त घोषित किया। हालांकि आयोग का कार्यकाल [[31 जुलाई]], [[2008]] तक निर्धारित था। आयोग ने अपने कार्यकाल में लोकसभा के 543 एवं 24 विधानसभाओं के 4120 निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया है। पाँच राज्यों [[असम]], [[अरुणाचल प्रदेश]], [[मणिपुर]], [[नागालैण्ड]] और [[झारखण्ड]] में परिसीमन नहीं किया जा सका है, जबकि [[जम्मू-कश्मीर]] के लिए इसे लागू नहीं किया गया था। इन छ: राज्यों को छोड़कर शेष सभी राज्यों में नये परिसीमन के आधार पर मतदाता सूचियाँ तैयार की गई हैं। | ||
− | परिसीमन आयोग ने सरकार से यह संस्तुति की है कि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों के लिए रोटेशन लागू करना चाहिए। इसके लिए [[2002]] के परिसीमन अधिनियम के साथ-साथ संविधान में भी संशोधन करना होगा। इसके साथ ही आयोग ने अब प्रति 10 वर्ष बाद नई जनगणना के आधार पर परिसीमन कराने की सिफ़ारिश | + | परिसीमन आयोग ने सरकार से यह संस्तुति की है कि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों के लिए रोटेशन लागू करना चाहिए। इसके लिए [[2002]] के परिसीमन अधिनियम के साथ-साथ संविधान में भी संशोधन करना होगा। इसके साथ ही आयोग ने अब प्रति 10 वर्ष बाद नई जनगणना के आधार पर परिसीमन कराने की सिफ़ारिश की है। आयोग ने लोकतंत्र के तीनों चरणों [[पंचायत]], [[विधान सभा]] और लोकसभा के निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन सुगम बनाये रखने के लिए आगामी जनगणना पंचायत के आधार पर कराने की संस्तुति की है। आयोग की यह सिफ़ारिश उसकी रिपोर्ट का भाग नहीं है, अत: यह सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं है। देश में पहला परिसीमन आयोग [[1952]] में, दूसरा [[1962]] में और तीसरा ऐसा आयोग [[1973]] में गठित किया गया था। |
+ | ==सीटों की संख्या और प्रकार== | ||
+ | *सामान्य/आम निर्वाचन क्षेत्र - 423 | ||
+ | *अनुसूचित जाति हेतु आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र - 79 | ||
+ | *अनुसूचित जनजाति हेतु आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र - 41 | ||
+ | *आंग्ल भारतीय समुदाय के मनोनयन के लिए निर्धारित सीट - 2 | ||
+ | कुल सीटें = 545 (543+2) | ||
+ | ==स्थानों का आरक्षण== | ||
+ | अनुच्छेद 330 के तहत लोकसभा में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अनुच्छेद 331 के तहत आंग्ल भारतीय समुदाय के लोगों के लिए स्थानों के आरक्षण का प्रावधान है। किसी राज्य अथवा संघ शासित क्षेत्र में अनुसूचित जातियों या जनजातियों के लिए आरक्षित स्थानों की संख्या उप राज्य के लिए लोकसभा में आबंटित स्थानों की कुल संख्या और सम्बन्धित राज्य में अनुसूचित जातियों या जनजातियों की कुल संख्या के अनुपात के बराबर होगी। | ||
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+ | अनुसुचित जातियों, जनजातियों व आंग्ल भारतीयों के लिए लोकसभा में सीटों के आरक्षण सम्बन्धी प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 334 के अंतर्गत मूलत: 10 वर्षों के लिए किया गया था, जिसे [[1960]] के आठवें संविधान संशोधन, [[1969]] के 23वें संविधान संशोधन, [[1980]] के 45वें संविधान संशोधन, [[1989]] के 62वें संशोधन तथा [[1999]] के 79वें संविधान संशोधन अधिनयम के द्वारा क्रमश: 10-10 वर्ष के लिए बढ़ाये गये। 1999 के 79वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा बढ़ाई गई 10 वर्ष की अवधि [[25 जनवरी]], [[2010]] को समाप्त होने से पूर्व संसद द्वारा अगस्त, [[2009]] में 190वां संविधान संशोधन विधेयक पारित करते हुए लोकसभा में अनुसूचित जातियों, जनजातियों व आंग्ल भारतियों की सीटों का यह आरक्षण आगामी 10 वर्षों अर्थात् जनवरी [[2020]] तक उपलब्ध रहेगा। इस संशोधन के तहत अनुच्छेद 334 में 60 वर्षों के स्थान पर 70 वर्ष शामिल किया गया है। | ||
+ | ==निर्वाचन== | ||
+ | लोकसभा के सदस्य भारत के उन नागरिकों द्वारा चुने जाते हैं, जो कि वयस्क हो गये हैं। 61वें संविधान संशोधन अधिनियम, [[1989]] के पूर्व उन नागरिकों को वयस्क माना जाता था, जो कि 21 वर्ष की आयु पूरी कर लेते थे, लेकिन इस संशोधन के द्वारा यह व्यवस्था कर दी गई कि 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाला नागरिक लोकसभा या राज्य विधानसभा के सदस्यों को चुनने के लिए वयस्क माना जाएगा। लोकसभा के सदस्यों का चुनाव वयस्क मतदान के आधार पर होता है। भारत में [[1952]] से लेकर अब तक की अवधि में 15 लोकसभा चुनाव हुए हैं। | ||
+ | 15 लोकसभा चुनाव हुए हैं। | ||
+ | ==अवधि== | ||
+ | लोकसभा का गठन अपने प्रथम अधिवेशन की तिथि से पाँच वर्ष के लिए होता है, लेकिन [[प्रधानमंत्री]] की सलाह पर लोकसभा का विघटन राष्ट्रपति द्वारा 5 वर्ष के पहले भी किया जा सकता है। प्रधानमंत्री की सलाह पर लोकसभा का विघटन जब कर दिया जाता है, तब लोकसभा का मध्यावधि चुनाव होता है, क्योंकि संविधान के अनुसार लोकसभा विघटन की स्थिति में 6 मास से अधिक नहीं रह सकती। ऐसा इसीलिए भी आवश्यक है, क्योंकि लोकसभा के दो बैठकों के बीच का समयान्तराल 6 मास से अधिक नहीं होना चाहिए। अब तक लोकसभा का उसके गठन के बाद 5 वर्ष के भीतर चार बार अर्थात् [[1970]] में तत्कालीन प्रधानमंत्री [[इंदिरा गांधी]] की सलाह पर, [[1979]] में तत्कालीन प्रधानमंत्री [[चरण सिंह]] की सलाह पर, [[1991]] में तत्कालीन प्रधानमंत्री [[चन्द्रशेखर]] की सलाह पर, [[1998]] में तत्कालीन प्रधानमंत्री [[इन्द्रकुमार गुजराल]] की सलाह पर और [[1999]] में प्रधानमंत्री [[अटल बिहारी वाजपेयी]] की सलाह पर विघटन हुआ और इस प्रकार मध्यावधि चुनाव कराये गये। | ||
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+ | विशेष परिस्थिति में लोकसभा की अवधि 1 वर्ष के लिए बढ़ायी जा सकती है। परन्तु लोकसभा की अवधि एक बार में 1 वर्ष से अधिक नहीं बढ़ायी जा सकती और किसी भी स्थिति में आपातकाल की उदघोषणा की समाप्ति के बाद लोकसभा की अवधि 6 माह से अधिक नहीं बढ़ायी जा सकती है, अर्थात् आपात उदघोषणा की समाप्ति के बाद 6 माह के अन्दर लोकसभा का सामान्य चुनाव कराकर उसका गठन आवश्यक है। भारत में पाँचवीं लोकसभा की अवधि [[6 फरवरी]], [[1976]] को 1 वर्ष के लिए अर्थात् [[18 मार्च]], [[1976]] से 18 मार्च, [[1977]] तक तथा बाद में नवम्बर, [[1976]] में 18 मार्च, 1977 से 18 मार्च, [[1978]] तक के लिए बढ़ा दी गयी थी, लेकिन जनवरी, 1977 को ही प्रधानमंत्री की सलाह पर लोकसभा का विघटन कर दिया गया और मार्च, 1977 में छठवीं लोकसभा का चुनाव कराया गया। | ||
+ | ==अधिवेशन== | ||
+ | लोकसभा का अधिवेशन 1 वर्ष में कम से कम दो बार होना चाहिए लेकिन लोकसभा के पिछले अधिवेशन की अन्तिम बैठक की तिथि तथा आगामी अधिवेशन के प्रथम बैठक की तिथि के बीच 6 मास से अधिक का अन्तराल नहीं होना चाहिए, लेकिन यह अन्तराल 6 माह से अधिक का तब हो सकता है, जब आगामी अधिवेशन के पहले ही लोकसभा का विघटन कर दिया जाए। अनुच्छेद 85 के तहत राष्ट्रपति को समय-समय पर संसद के प्रत्येक सदन, राज्यसभा एवं लोकसभा को आहुत करने, उनका सत्रावसान करने तथा लोकसभा का विघटन करने का अधिकार प्राप्त है। | ||
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08:42, 16 सितम्बर 2010 का अवतरण
प्रथम लोकसभा का गठन 17 अप्रैल, 1952 को हुआ था। इसकी पहली बैठक 13 मई, 1952 को हुई थी। लोकसभा के गठन के सम्बन्ध में संविधान के दो अनुच्छेद, यथा 81 तथा 331 में प्रावधान किया गया है। मूल संविधान में लोकसभा की सदस्य संख्या 500 निर्धारित की गयी थी, किन्तु बाद में इसमें वृद्धि की गयी। 31वें संविधान संशोधन, 1974 के द्वारा लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 547 निश्चित की गयी। वर्तमान में गोवा, दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम, 1987 द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि लोकसभा अधिकतम सदस्य संख्या 552 हो सकती है। अनुच्छेद 81(1) (क) तथा (ख) के अनुसार लोकसभा का गठन राज्यों में प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुए 530 से अधिक न होने वाले सदस्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले 20 से अधिक न होने वाले सदस्यों के द्वारा किया जाएगा। इस प्रकार लोकसभा में भारत की जनसंख्या द्वारा निर्वाचित 550 सदस्य हो सकते हैं। अनुच्छेद 331 के अनुसार यदि राष्ट्रपति की राय में लोकसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व न मिला हो तो वह आंग्ल भारतीय समुदाय के दो व्यक्तियों को लोकसभा के लिए नामनिर्देशित कर सकता है। अत: लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 552 हो सकती है। यह संख्या लोकसभा के सदस्यों की सैद्धान्तिक गणना है और व्यहावहरत: वर्तमान समय में लोकसभा की प्रभावी संख्या 530 (राज्यों के प्रतिनिधि) + (संघ क्षेत्रों के प्रतिनिधि) + 2 राष्ट्रपति द्वारा नाम निर्देशित = 545 है।
स्थानों का आबंटन
लोकसभा में स्थानों को आबंटित करने के लिए दो प्रक्रिया अपनायी जाती हैं-
- पहला प्रत्येक राज्य को लोकसभा में स्थानों का आबंटन ऐसी रीति से किया जाता है कि स्थानों की संख्या से उस राज्य की जनसंख्या का अनुपात सभी राज्यों के लिए यथासाध्य एक ही हो, तथा
- दूसरा प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में ऐसी रीति से विभाजित किया जाता है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबंटित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही हो।
आंकड़ों का आधार
उक्त दोनों कार्य ऐसे प्राधिकारी द्वारा ऐसी रीति से, जिसे संसद विधि द्वारा सुनिश्चित करे, प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर प्रकाशित सुसंगत आंकड़ों के आधार पर किये जाते हैं। लेकिन 42वें संविधान संशोधन, 1976 के द्वारा यह प्रावधान कर दिया गया है कि जब तक 2001 की जनगणना के आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते, तब तक लोकसभा की सदस्य संख्या 545 ही रहेगी। 91वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 2001 के द्वारा अब यह व्यवस्था 2026 तक यथावत बनी रहेगी।
परिसीमन अधिनियम
लोकसभा में राज्यों के स्थानों के आबंटन तथा राज्यों को प्रादेशिक क्षेत्रों में विभाजित करने के लिए संसद द्वारा परिसीमन अधिनियम, 1952 पारित किया गया है। परिसीमन अधिनियम, 1952 में प्रावधान किया गया है कि संसद प्रत्येक जनगणना के सुसंगत आंकड़ों के प्रकाशन के बाद परिसीमन आयोग का गठन करेगी। इस परिसीमन अधिनियम के अधीन त्रिसदस्यीय परिसीमन आयोग का गठन किया जाता है, जिसे नवीनतम जनगणना के आँकड़ों के आधार पर लोकसभा में विभिन्न राज्यों को स्थानों के आबंटन को, प्रत्येक राज्य की विधानसभाओं के कुल स्थानों का तथा लोकसभा और राज्य की विधान सभा के निर्वाचनों के प्रयोजन के लिए प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन का पुन: समायोजन करने का कर्तव्य सौंपा जाता हैं इस प्रकार गठित आयोग ने 1974 में लोकसभा में राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों के स्थानों का आबंटन किया था, जिसके अनुसार 530 स्थान राज्यों के लिए तथा 13 स्थान संघ राज्यक्षेत्रों के लिए आबंटित किये गये थे।
चौथा परिसीमन आयोग
लोकसभा व विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन करने के लिय न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में चौथा परिसीमन आयोग का गठन वर्ष 2001 में किया गया। आयोग ने अपना कार्य 2004 में प्रारम्भ किया। प्रारम्भ में परिसीमन का कार्य 1991 की जनगणना के आधार पर किया जाना था, परन्तु 23 अप्रैल, 2002 को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने इससे सम्बन्धित एक संशोधन विधेयक को अनुमोदित करते हुए यह निर्धारित किया कि निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन अब 2001 की जनगणना के आधार पर किया जाएगा। इसके लिए परिसीमन (87वां संशोधन) अधिनियम, 2003 को अधिनियंत्रित किया गया। निर्वाचन क्षेत्रों का यह परिसीमन 30 वर्षों के पश्चात् न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की अध्यक्षता वाले चौथे परिसीमन आयोग ने अपना कार्यकाल 31 मई, 2008 को समाप्त घोषित किया। हालांकि आयोग का कार्यकाल 31 जुलाई, 2008 तक निर्धारित था। आयोग ने अपने कार्यकाल में लोकसभा के 543 एवं 24 विधानसभाओं के 4120 निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया है। पाँच राज्यों असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, नागालैण्ड और झारखण्ड में परिसीमन नहीं किया जा सका है, जबकि जम्मू-कश्मीर के लिए इसे लागू नहीं किया गया था। इन छ: राज्यों को छोड़कर शेष सभी राज्यों में नये परिसीमन के आधार पर मतदाता सूचियाँ तैयार की गई हैं।
परिसीमन आयोग ने सरकार से यह संस्तुति की है कि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों के लिए रोटेशन लागू करना चाहिए। इसके लिए 2002 के परिसीमन अधिनियम के साथ-साथ संविधान में भी संशोधन करना होगा। इसके साथ ही आयोग ने अब प्रति 10 वर्ष बाद नई जनगणना के आधार पर परिसीमन कराने की सिफ़ारिश की है। आयोग ने लोकतंत्र के तीनों चरणों पंचायत, विधान सभा और लोकसभा के निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन सुगम बनाये रखने के लिए आगामी जनगणना पंचायत के आधार पर कराने की संस्तुति की है। आयोग की यह सिफ़ारिश उसकी रिपोर्ट का भाग नहीं है, अत: यह सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं है। देश में पहला परिसीमन आयोग 1952 में, दूसरा 1962 में और तीसरा ऐसा आयोग 1973 में गठित किया गया था।
सीटों की संख्या और प्रकार
- सामान्य/आम निर्वाचन क्षेत्र - 423
- अनुसूचित जाति हेतु आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र - 79
- अनुसूचित जनजाति हेतु आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र - 41
- आंग्ल भारतीय समुदाय के मनोनयन के लिए निर्धारित सीट - 2
कुल सीटें = 545 (543+2)
स्थानों का आरक्षण
अनुच्छेद 330 के तहत लोकसभा में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अनुच्छेद 331 के तहत आंग्ल भारतीय समुदाय के लोगों के लिए स्थानों के आरक्षण का प्रावधान है। किसी राज्य अथवा संघ शासित क्षेत्र में अनुसूचित जातियों या जनजातियों के लिए आरक्षित स्थानों की संख्या उप राज्य के लिए लोकसभा में आबंटित स्थानों की कुल संख्या और सम्बन्धित राज्य में अनुसूचित जातियों या जनजातियों की कुल संख्या के अनुपात के बराबर होगी।
अनुसुचित जातियों, जनजातियों व आंग्ल भारतीयों के लिए लोकसभा में सीटों के आरक्षण सम्बन्धी प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 334 के अंतर्गत मूलत: 10 वर्षों के लिए किया गया था, जिसे 1960 के आठवें संविधान संशोधन, 1969 के 23वें संविधान संशोधन, 1980 के 45वें संविधान संशोधन, 1989 के 62वें संशोधन तथा 1999 के 79वें संविधान संशोधन अधिनयम के द्वारा क्रमश: 10-10 वर्ष के लिए बढ़ाये गये। 1999 के 79वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा बढ़ाई गई 10 वर्ष की अवधि 25 जनवरी, 2010 को समाप्त होने से पूर्व संसद द्वारा अगस्त, 2009 में 190वां संविधान संशोधन विधेयक पारित करते हुए लोकसभा में अनुसूचित जातियों, जनजातियों व आंग्ल भारतियों की सीटों का यह आरक्षण आगामी 10 वर्षों अर्थात् जनवरी 2020 तक उपलब्ध रहेगा। इस संशोधन के तहत अनुच्छेद 334 में 60 वर्षों के स्थान पर 70 वर्ष शामिल किया गया है।
निर्वाचन
लोकसभा के सदस्य भारत के उन नागरिकों द्वारा चुने जाते हैं, जो कि वयस्क हो गये हैं। 61वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1989 के पूर्व उन नागरिकों को वयस्क माना जाता था, जो कि 21 वर्ष की आयु पूरी कर लेते थे, लेकिन इस संशोधन के द्वारा यह व्यवस्था कर दी गई कि 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाला नागरिक लोकसभा या राज्य विधानसभा के सदस्यों को चुनने के लिए वयस्क माना जाएगा। लोकसभा के सदस्यों का चुनाव वयस्क मतदान के आधार पर होता है। भारत में 1952 से लेकर अब तक की अवधि में 15 लोकसभा चुनाव हुए हैं। 15 लोकसभा चुनाव हुए हैं।
अवधि
लोकसभा का गठन अपने प्रथम अधिवेशन की तिथि से पाँच वर्ष के लिए होता है, लेकिन प्रधानमंत्री की सलाह पर लोकसभा का विघटन राष्ट्रपति द्वारा 5 वर्ष के पहले भी किया जा सकता है। प्रधानमंत्री की सलाह पर लोकसभा का विघटन जब कर दिया जाता है, तब लोकसभा का मध्यावधि चुनाव होता है, क्योंकि संविधान के अनुसार लोकसभा विघटन की स्थिति में 6 मास से अधिक नहीं रह सकती। ऐसा इसीलिए भी आवश्यक है, क्योंकि लोकसभा के दो बैठकों के बीच का समयान्तराल 6 मास से अधिक नहीं होना चाहिए। अब तक लोकसभा का उसके गठन के बाद 5 वर्ष के भीतर चार बार अर्थात् 1970 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सलाह पर, 1979 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चरण सिंह की सलाह पर, 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर की सलाह पर, 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्द्रकुमार गुजराल की सलाह पर और 1999 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सलाह पर विघटन हुआ और इस प्रकार मध्यावधि चुनाव कराये गये।
विशेष परिस्थिति में लोकसभा की अवधि 1 वर्ष के लिए बढ़ायी जा सकती है। परन्तु लोकसभा की अवधि एक बार में 1 वर्ष से अधिक नहीं बढ़ायी जा सकती और किसी भी स्थिति में आपातकाल की उदघोषणा की समाप्ति के बाद लोकसभा की अवधि 6 माह से अधिक नहीं बढ़ायी जा सकती है, अर्थात् आपात उदघोषणा की समाप्ति के बाद 6 माह के अन्दर लोकसभा का सामान्य चुनाव कराकर उसका गठन आवश्यक है। भारत में पाँचवीं लोकसभा की अवधि 6 फरवरी, 1976 को 1 वर्ष के लिए अर्थात् 18 मार्च, 1976 से 18 मार्च, 1977 तक तथा बाद में नवम्बर, 1976 में 18 मार्च, 1977 से 18 मार्च, 1978 तक के लिए बढ़ा दी गयी थी, लेकिन जनवरी, 1977 को ही प्रधानमंत्री की सलाह पर लोकसभा का विघटन कर दिया गया और मार्च, 1977 में छठवीं लोकसभा का चुनाव कराया गया।
अधिवेशन
लोकसभा का अधिवेशन 1 वर्ष में कम से कम दो बार होना चाहिए लेकिन लोकसभा के पिछले अधिवेशन की अन्तिम बैठक की तिथि तथा आगामी अधिवेशन के प्रथम बैठक की तिथि के बीच 6 मास से अधिक का अन्तराल नहीं होना चाहिए, लेकिन यह अन्तराल 6 माह से अधिक का तब हो सकता है, जब आगामी अधिवेशन के पहले ही लोकसभा का विघटन कर दिया जाए। अनुच्छेद 85 के तहत राष्ट्रपति को समय-समय पर संसद के प्रत्येक सदन, राज्यसभा एवं लोकसभा को आहुत करने, उनका सत्रावसान करने तथा लोकसभा का विघटन करने का अधिकार प्राप्त है।