साँचा:साप्ताहिक सम्पादकीय

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी
किसी देश का गणतंत्र दिवस
Bhikhari-ka-katora.jpg

         हमने नदियों का भी पूरा ख़याल रखा है। लोग कुछ समय पहले तक नदियों का पानी पी पीकर उनको सुखाए दे रहे थे। उसमें नहाते भी थे और उसके पानी को बर्तनों में भरकर भी ले जाते थे। इस ग़लत परम्परा के चलते नदियाँ सूखने लगीं। हमने छोटे-बड़े शहरों के पूरे मलबे-कचरे को इन नदियों में डलवाया जिससे इनका पानी पीने तो क्या नहाने लायक़ भी नहीं रहा। नदियों की रक्षा के लिए हमने करोड़ों-अरबों रुपया ख़र्च करके यह योजना बनाई जो आज सुचारू रूप से चल रही है। ...पूरा पढ़ें

पिछले सभी लेख ताऊ का इलाज · कभी ख़ुशी कभी ग़म · समाज का ऑपरेटिंग सिस्टम