नीम

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नीम
Neem-tree.jpg
जगत पादप
संघ Magnoliophyta
गण Sapindales
कुल Meliaceae
जाति A. indica
द्विपद नाम आजा़दीराक्ता इन्डिका / Azadirachta indica

नीम एक चमत्कारी वृक्ष माना जाता है। नीम जो प्रायः सर्व सुलभ वृक्ष आसानी से मिल जाता है। नीम के पेड़ पूरे दक्षिण एशिया में फैले हैं और हमारे जीवन से जुड़े हुए हैं। भारत में इसके औषधीय गुणों की जानकारी हजारों सालों से रही है। भारत में एक कहावत प्रचलित है कि जिस धरती पर नीम के पेड़ होते हैं, वहाँ मृत्यु और बीमारी कैसे हो सकती है। लेकिन, अब अन्य देश भी इसके गुणों के प्रति जागरूक हो रहे हैं। इनके अनगिनत गुणों के वजह से अमेरिका ने हमारे नीम को अपने लिए पेटेन्ट करा दिया, निसंदेह यह हमारे लिए गर्व की बात है और भारतीय जीवनशैली व आयुर्वेद की विजय है। नीम हमारे लिए अति विशिष्ट व पूजनीय वृक्ष है। नीम को संस्कृत में निम्ब, वनस्पति विज्ञानं में 'आजादिरेक्ता- इण्डिका (Azadirecta-indica)' कहते है।

यह वृक्ष अपने औषधि गुण के कारण पारंपरिक इलाज में बहुपयोगी सिद्ध होता आ रहा है। नीम स्वाभाव से कड़वा जरुर होता है, परन्तु इसके औषधीय गुण बड़े ही मीठे होते है। तभी तो नीम के बारे में कहा जाता है की 'एक नीम और सौ हकीम दोनों बराबर है।' इसमें कई तरह के कड़वे परन्तु स्वास्थ्यवर्धक पदार्थ होते है, जिनमे मार्गोसिं, निम्बिडीन, निम्बेस्टेरोल प्रमुख है। नीम के सर्वरोगहारी गुणों से भरा पङा है। यह हर्बल ओरगेनिक पेस्टिसाइड साबुन, एंटीसेप्टिक क्रीम, दातुन, मधुमेह नाशक चूर्ण, कोस्मेटिक आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है। नीम की छाल में ऐसे गुण होते हैं, जो दाँतों और मसूढ़ों में लगने वाले तरह-तरह के बैक्टीरिया को पनपने नहीं देते हैं, जिससे दाँत स्वस्थ व मजबूत रहते हैं।

चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे प्राचीन चिकित्सा ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। इसे ग्रामीण औषधालय का नाम भी दिया गया है। यह पेड़ बीमारियों वगैरह से आजाद होता है और उस पर कोई कीड़ा-मकौड़ा नहीं लगता, इसलिए नीम को आजाद पेड़ कहा जाता है। भारत में नीम का पेड़ ग्रामीण जीवन का अभिन्न अंग रहा है। लोग इसकी छाया में बैठने का सुख तो उठाते ही हैं, साथ ही इसके पत्तों, निबौलियों, डंडियों और छाल को विभिन्न बीमारियाँ दूर करने के लिए प्रयोग करते हैं।

ग्रन्थ में नीम के गुण के बारे में चर्चा इस तरह है :- निम्ब शीतों लघुग्राही कतुर कोअग्नी वातनुत | अध्यः श्रमतुटकास ज्वरारुचिक्रिमी प्रणतु || अर्थात नीम शीतल, हल्का, ग्राही पाक में चरपरा, ह्रदय को प्रिय, अग्नि, वाट, परिश्रम, तृषा, अरुचि, क्रीमी, व्रण, काफ, वामन, कोढ़ और विभिन्न प्रमेह को नष्ट करता है।

चैत नवरात्री हमारे लिए नववर्ष का शुभारम्भ होता है। तब दादी माँ के नुस्खे यानि स्वास्थ्य रीती व परम्परानुसार नीम के रस का सेवन 9 दिनों तक प्रातः ही करना चाहिए ताकि हम पुरे वर्ष चुस्त व तंदुरुस्त रहें। वैसे किसी भी मौसम में नीम के पत्ते हमारे शरीर के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होता है। चैत नवरात्रि पर नीम के कोमल पत्ते होते है, इसलिए इसके कोमल पत्तों को पानी में घोलकर सील बट्टे या मिक्सी में पीसकर इसकी गोली तैयार कर ले, इसमें थोडा नमक और कुछ काली मिर्च डालकर उसे ग्राह्य योग्य बनाया जाता है। इस गोली को कपडे में छाना जाता है, छाना हुआ पानी गाढ़ा या पतला कर प्रातः खली पेट एक कप से एक गिलास तक सेवन करना चाहिए। लगातार 9 दिनों तक इसी अनुपात में लेने से पुरे साल की स्वास्थ्य गारंटी हो जाती है। सही मायने में चैत्र नवरात्री स्वास्थ्य नवरात्री है यह इन दिनों बच्चों के चेचक से बचाता है। यह रस एंटीसेप्टिक, एंटी बेक्टेरियल, एंटीवायरल, एंटीवर्म, एंटीएलर्जिक, एंटीट्यूमर आदि गुणों से भरपूर है। ऐसे सर्वगुण संपन्न अनमोल नीम रूपी स्वास्थ्य रस का उपयोग प्रत्येक व्यक्ति को चैत्र नवरात्री में करना चाहिए। जिन लोगों को बार बार-बुखार और मलेरिया का संक्रमण होता है, उनके लिए यह रामवाण औषधि है। वैसे तो आप प्रतिदिन पांच ताज़ा नीम की पत्तियां चबा ले तो अच्छा है, प्रतिदिन इसका प्रयोग करने पर मधुमेह रोगियों के रक्त शर्करा का स्तर कम हो जाता है।

नीम के तेल से मालिश करने से विभिन्न प्रकार के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं। नीम की पत्तियों को उबालकर और पानी ठंडा करके नहाया जाए तो उससे भी बहुत फायदा होता है। अब भी गाँवों और बहुत से शहरों में काफी लोग नीम की दातून का इस्तेमाल करते हैं, जो दाँतों को स्वस्थ और मजबूत रखने में बहुत मदद करती है। विदेशों में नीम को एक ऐसे पेड़ के रूप में पेश किया जा रहा है, जो डायबिटीज से लेकर एड्स, कैंसर और न जाने किस-किस तरह की बीमारियों का इलाज कर सकता है।



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