अण्णा हज़ारे

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जीवन परिचय

अण्णा हज़ारे
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पूरा नाम किसन बापट बाबूराव हज़ारे
अन्य नाम अण्णा हज़ारे/अन्ना हज़ारे
जन्म 15 जनवरी, 1940
जन्म भूमि अहमदनगर के भिंगर क़स्बे में, महाराष्ट्र
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि *1998 में तत्कालीन सरकार के दो नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार करने के लिए आवाज़ उठाई थी।
  • 2005 में अन्ना हज़ारे ने तत्कालीन सरकार को उसके चार भ्रष्ट नेताओं के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने के लिए दबाव डाला था।
पद गांधीवादी समाजसेवक
शिक्षा मुंबई में सातवीं तक पढ़ाई की।
भाषा हिन्दी, अंग्रेज़ी
पुरस्कार-उपाधि 1990 में पद्मश्री से और 1992 में पद्मविभूषण से, 1986 में इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार, 1989 में महाराष्ट्र सरकार का कृषि भूषण पुरस्कार, 1986 में विश्व बैंक का 'जित गिल स्मारक पुरस्कार'

अण्णा हज़ारे/अन्ना हज़ारे (Anna Hazare) गांधीवादी विचारधारा पर चलने वाले एक समाजसेवक हैं, जो किसी राजनीतिक पार्टी की जगह स्वतंत्र रुप से काम करते हैं। अन्‍ना हज़ारे का वास्‍तविक नाम किसन बापट बाबूराव हज़ारे है।

जीवन परिचय

15 जनवरी, 1940 को महाराष्ट्र के अहमदनगर के भिंगर क़स्बे में जन्मे अन्ना हज़ारे का बचपन बहुत ग़रीबी और अभावों में गुज़रा। पिता मजदूर थे, दादा फौज में थे। दादा की पोस्टिंग भिंगनगर में थी। अन्ना का पुश्‍तैनी गाँव अहमदनगर ज़िले में स्थित रालेगन सिद्धि में था। दादा की मौत के सात साल बाद अन्ना का परिवार रालेगन आ गया। उनके परिवार की ग़रीबी और तंगी देखकर अन्ना हज़ारे की बुआ उन्हें अपने साथ मुंबई ले गईं। कुछ समय बाद उनका परिवार भी भिंगर से उनके पुरखों के गाँव रालेगन सिद्धि चला आया था। उनके अलावा उनके परिवार में उनके छः और भाई थे। मुंबई में बुआ के साथ रहते हुए उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। परिवार की आर्थिक स्थिति देखकर वह दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रुपये की पगार पर काम करना प्रारम्भ किया। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगन से बुला लिया।

सेना में भर्ती

1962 में चीन के आक्रमण करने पर सरकार ने जब देश के युवाओं का सेना में भर्ती होने के लिए आह्वान किया, तो अन्ना भी साठ के दशक में अपने दादा की तरह फौज में भर्ती हो गये। उनकी पहली पोस्टिंग बतौर ड्राइवर पंजाब में हुई। 1965 के भारत - पाक युद्ध भी उन्होंने खेमकरण सेक्टर पर लड़ा था। यहीं से उनका जीवन परिवर्तन का समय शुरू हुआ। सीमा पर लड़ते हुए उनकी यूनिट के सभी साथी शहीद हो गए और उनके सिर पर गोली लगने से वे भी घायल हो गए थे। इस पाकिस्तानी हमले में वह मौत को धता बता कर बाल-बाल बचे थे।

परिवर्तित सामाजिक दृष्टिकोण

इसी समय नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से उन्होंने विवेकानंद की पुस्‍तक ‘कॉल टू द यूथ फॉर नेशन‘ ख़रीदी और उसको पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी समाज को समर्पित कर दी। उन्होंने गांधीजी और विनोबा को भी पढ़ा और उनके विचारों को अपने जीवन में ढ़ाल लिया। उन्हें ज्ञान हुआ कि आम लोगो की बेहतरी के लिए किया गया प्रयास भगवान की पूजा-अर्चना के बराबर है। पारिवारिक दायित्वों को देखते हुए उन्होंने 1970 में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प किया।

सेना से रिटायरमेंट

मुंबई पोस्टिंग के दौरान वह अपने गाँव रालेगन आते-जाते रहे। जम्मू पोस्टिंग के दौरान 15 साल फौज में पूरे होने पर 1975 में उन्होंने फौज की नौकरी से वी.आर.एस. ले लिया और गाँव में आकर बस गए। उसके बाद उन्होंने गाँव की तस्वीर ही बदल डाली और साथ ही अन्ना भ्रष्ट्राचार के ख़िलाफ़ आंदोलन में प्रारम्भ किए।

समाजसुधारक कार्य

अन्ना हज़ारे का विचार है कि भारत की असली ताकत गाँवों में है और इसीलिए उन्होंने गाँवों में विकास की लहर लाने के लिए मोर्चा खोला। अन्ना हज़ारे ने सेना से रिटायरमेंट के तुरंत बाद 1975 से सूखा प्रभावित रालेगाँव सिद्धि में काम शुरू किया। जहाँ औसतन सालाना वर्षा 400 से 500 मि. मी. ही होती थी, गाँव में जल संचय के लिए कोई तालाब नहीं थे। उनका गाँव पानी के टैंकरों और पड़ोसी गाँवों से मिले खाद्यान्न पर निर्भर रहता था, उन्होंने अपने बलबूते वर्षा जल संग्रह, सौर ऊर्जा, बायोगैस का प्रयोग और पवन ऊर्जा के उपयोग से गाँव को स्वावलंबी और समृद्ध बना दिया। यह गाँव विश्व के अन्य समुदायों के लिए आदर्श बन गया है।

पुश्तैनी ज़मीन का दान

उन्होंने अपनी पुस्तैनी ज़मीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दान कर दी। आज उनकी पेंशन का सारा पैसा गाँव के विकास में ख़र्च होता है। संपत्ति के नाम पर उनके पास कपड़ों की कुछ जोड़ियाँ हैं। कोई बैंक बैलेंस नही हैं। वह गाँव के मंदिर में रहते हैं और हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए बनने वाला खाना ही खाते हैं। आज गाँव का हर शख़्स आत्मनिर्भर है। आस-पड़ोस के गाँवों के लिए भी यहाँ से चारा, दूध आदि जाता है। गाँव में एक तरह का रामराज है। गाँव में तो उन्होंने रामराज स्थापित कर दिया है।

भ्रष्टाचार के विरोधी

1998 में अन्ना हज़ारे उस समय चर्चा में आ गए थे, जब उन्होंने तत्कालीन सरकार के दो नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार करने के लिए आवाज़ उठाई थी। सरकार में मंत्री शशिकांत सुतार को अपनी कुर्सी छोडनी पड़ी। उसी समय के रोज़गार मंत्री महादेव शिवणकर को भी सरकार से बाहर होना पड़ा। युती के कार्यकाल में मंत्री रही शोभाताई फडणविस को भी भ्रष्ट्राचार के आरोप के चलते अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। 1998 में सामजिक न्यायमंत्री बबनराव घोलप को ज़मीन घोटाले के चलते इस्तीफ़ा देना पड़ा। वहीं एनसीपी के नबाब मलिक, सुरेश दादा जैन को भी आघाडी सरकार में भ्रष्ट्राचार के आरोपों के चलते ही अपना पद छोडना पड़ा। शराब बंदी अभियान, कॉऑपरेटिव घोटाला जैसे कई अहम भ्रष्टाचार के मुद्दे सामने लाने का श्रेय अन्ना हज़ारे को जाता है और इसी तरह 2005 में अन्ना हज़ारे ने तत्कालीन सरकार को उसके चार भ्रष्ट नेताओं के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने के लिए दबाव डाला था।

पुरस्कार

अन्ना हज़ारे की समाजसेवा और समाज कल्याण के कार्य को देखते हुए सरकार ने उन्हें समय-समय पर अनेक पुरस्कारों, जिनमे 1990 में पद्मश्री और 1992 में पदम् विभूषण शामिल है, दिये गये। उन्होंने अपने राज्य महाराष्ट्र में विषम परिस्थितियों में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अनेक लडाईयाँ लड़ीं और सफल भी हुए। इस 72 साल की उम्र में भी उनका एक ही सपना है - भ्रष्टाचार रहित भारत का निर्माण।

पद्मश्री अन्ना हज़ारे महाराष्ट्र के रालेगाँव में ग्राम स्वराज के अपने अनुभव बांटने B. H. U. में आमंत्रित थे। उन्होंने गांधीजी की इस सोच को पूरी मजबूती से उठाया कि 'बलशाली भारत के लिए गाँवों को अपने पैरों पर खड़ा करना होगा।' उनके अनुसार विकास का लाभ समान रूप से वितरित न हो पाने का कारण रहा, गाँवों को केन्द्र में न रखना। व्यक्ति निर्माण से ग्राम निर्माण और तब स्वाभाविक ही देश निर्माण के गांधीजी के मन्त्र को उन्होंने हकीकत में उतार कर दिखाया, और एक गाँव से आरम्भ उनका यह अभियान आज 85 गावों तक सफलतापूर्वक जारी है। व्यक्ति निर्माण के लिए मूल मन्त्र देते हुए उन्होंने युवाओं में उत्तम चरित्र, शुद्ध आचार-विचार, निष्कलंक जीवन व त्याग की भावना विकसित करने व निर्भयता को आत्मसात कर आम आदमी की सेवा को आदर्श के रूप में स्वीकार करने का आह्वान किया।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ