स्वामी रामदेव

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  • बाबा रामदेव स्वतंत्र भारत के उन गिने-चुने संन्यासियों में से एक हैं, जिनके लिए जनकल्याण धर्म से बड़ा है। वर्तमान भ्रष्ट सामाजिक व्यवस्था में ढोंगी और पाखंडी बाबाओं की बाढ़ सी आई हुई है जो लोगों को टोने-टोटकों और मिथ्या चमत्कारों से ठगने में लगे हैं। ऐसे में बाबा रामदेव के विचार और कार्य किंचित प्रभावित करते हैं। उनके विचार अंधविश्वासी रूप से धार्मिक न होकर आधुनिक, तार्किक, व्यावहारिक, वैज्ञानिक और वास्तविकता से जुड़े हुए हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि उनके लिए देश और समाज का कल्याण मज़हब से ज़्यादा ज़रूरी है। उनके सामाजिक सरोकारों की सीमा उन्हें वर्तमान के कई संन्यासियों से अलग पहचान देती है। अपनी सामजिक प्रतिबद्धता के लिए वे राजनैतिक शक्ति का प्रयोग करने तक को तैयार हैं। भारतीय मनीषा के लिए ये विचार न तो नए हैं और न अनुचित। यदि सत्ता इस हद तक भ्रष्ट हो जाए कि आम जनता का जीवन मुश्किल हो जाए तो उसे नैतिक हाथों द्वारा थाम लेना ही बेहतर है। प्रशंसा की बात यह है कि इसके लिए रामदेव संविधान के तहत कार्य करने में यक़ीन रखते हैं। संविधान के प्रति उनकी ये आस्था और सम्मान सराहनीय है। रामदेव का संन्यास समाज से पलायन कर निजी मोक्ष के लिए नहीं है, बल्कि वे समाज में रहकर उसे सही दिशा देना चाहते हैं। बाबा रामदेव के धर्म संबंधी विचारों से आपके मतभेद हो सकते हैं, किंतु अब तक के उनके कार्यों को देखते हुए उनकी मंशा पर शक नहीं किया जा सकता। सदियों पुराने योग के प्रचार-प्रसार में उनका प्रयास भी सराहनीय है। इसके पीछे उनका मक़सद धर्म से अधिक आम इंसान को शारीरिक और मानसिक से छुटकारा दिलाना है। इसी बात ने बड़ी संख्या में लोगों को उनकी ओर आकर्षित किया।

जीवन परिचय

  • योग को लोकप्रिय संस्करण के रूप में जनता के बीच लाने वाले बाबा रामदेव का हरियाणा की भूमि से बड़ा लगाव रहा है। रहे भी क्यों न, जिस भूमि पर उन्होंने जन्म लिया और जहां पढ़े-लिखे उसे भुलाया नहीं जा सकता। बाबा रामदेव का जन्म 25 दिसंबर, 1965 को हरियाणा के महेन्द्रगढ़ जनपद के अलीपुर गांव में एक कृषक परिवार में हुआ। उनका बचपन का नाम रामकिशन यादव था। योग की धुन जब लगी तो उन्होंने सदियों से चली आ रही योग संस्कृति को पुनर्जीवन दिया तो उनका नया नाम पड़ा - स्वामी रामदेव। महेंद्रगढ़ के ही गांव शाहबाज़पुर में उन्होंने कक्षा आठ तक औपचारिक शिक्षा प्राप्त की। बचपन में ही उन्हें लकवा मार गया। उनके माता-पिता एलोपैथिक इलाज का ख़र्चा उठाने योग्य नहीं थे। सौभाग्य से रामकिशन को योग और कपालभाति से लाभ हुआ और उनका सारा शरीर फिर से भलीभाँति काम करने लगा। इसके बाद उन्होंने योग और संस्कृत शिक्षा के लिए खानपुर गांव के गुरुकुल में दाखिला लिया। योग की पढ़ाई के दौरान ही उन्हें सन्यास शब्द के मायने मालूम हुए और यहीं से उन्होंने अपना नाम भी रामकिशन से बदलकर रामदेव रख लिया। उन्होंने संन्यास धारण कर लिया और स्वयं को योग को आम जनता तक पहुँचाने का प्रण लिया। तभी से उनका नाम बाबा रामदेव पड़ा। उन्होंने ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए ही 9 अप्रैल, 1995 को रामनवमी के दिन विधिवत संन्यास ले लिया और ग्रहस्थ जीवन से दूर ही रहे। योग गुरू भाई बालदेव ने उन्हें योग की शिक्षा दी थी। इसके बाद खानपुर से वे जिंद ज़िला आ गए और कल्ब गुरूकुल से जुड़ गए। यहां से उन्होंने गांव के लोगों को निशुल्क योग की ट्रेनिंग देने का अभियान छेड़ा। इस अभियान को वे अन्य जिलों तक भी लेकर गये। उन्होंने गाँव-गाँव जाकर योग का प्रशिक्षण देना आरंभ कर दिया। इसके लिए उन्होंने सन 1995 से अधिक प्रयास शुरू किए। इसी दौरान बाबा ने सेल्फ-डिसीप्लिन और मेडिटेशन पर फोकस किया।
  • रामदेव ने वर्ष 1995 में योग और प्राणायाम को लोकप्रिय बनाने तथा आम इंसान को आयुर्वेदिक चिकित्सा सुलभ कराने के उद्देश्य से उन्होंने आचार्य कर्मवीर के साथ हरिद्वार के कनखल स्थित कृपालुबाग आश्रम में दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट की स्थापना की। इस अभियान में आयुर्वेद मनीषी स्वामी बालकृष्ण महाराज भी उनके साथ हैं। इस ट्रस्ट के माध्यम से बाबा आरोग्य, आध्यात्मिक एवं शैक्षणिक सेवा प्रकल्पों का संचालन तो कर ही रहे हैं, साथ ही वैदिक संस्कारों एवं आधुनिक शिक्षा पर आधारित रेवाड़ी में चल रहे गुरुकुल किशनगढ़ घासेड़ा का संचालन भी कर रहे हैं। रामदेव ने महेन्द्रगढ़, किशनगढ़ और घसेरा में गुरूकुलों की स्थापना की और अनेक स्थानों पर योग-शिविरों का आयोजन किया। हज़ारों की तादाद में लोग उनके शिविरों में शामिल होने लगे। रामदेव सरल योग क्रियाओं के साथ सात प्राणायाम सिखाते हैं - अनुलोम-विलोम, बाह्य, कपालभाति, भस्त्रिका, भ्रामरी, उद्गीत और अग्निसार। बाबा ने योग और प्राणायाम के ज़रिए कैंसर, हैपेटाइटिस बी, ब्लड प्रेसर, शुगर सहित अनेक असाध्य बीमारियों के इलाज़ का दावा किया और अनेक पीड़ितों ने स्वीकार किया कि योग से उन्हें लाभ हुआ है और उनकी ऐसी बीमारियाँ भी जड़ से ख़त्म हो गईं, जिनके लिए डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए थे। योग के साथ बाबा संतुलित आहार पर भी ज़ोर देते हैं। टेलीविज़न पर आस्था, ज़ी, सहारा आदि चैनलों पर प्रसारित उनके कार्यक्रमों ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया। देश-विदेश में भारी संख्या में लोग उनके अनुयायी बनने लगे। उनके टेलीविज़न कार्यक्रम समूचे एशिया, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, अफ्रीका और अमेरिका में बेहद लोकप्रिय है। उनका योग और प्राणायाम धार्मिक या राष्ट्रवादी न होकर चिकित्सकीय था और इसमें आयुर्वेद भी साथ था। उनके लंदन जाने पर ब्रिटेन की महारानी ने उन्हें चाय के लिए विशेष अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया। बाबा ने भारत में राष्ट्रपति भवन में भी योग शिविर आयोजित किया। ये सिद्ध करने के लिए कि जनकल्याण के लिए सारे धर्म साथ हैं, वे और भारत के मुस्लिम धर्मगुरू एक ही मंच पर साथ नज़र आए। वे कहते हैं, उनका किसी धर्म से विरोध नहीं है। सभी धर्मावलम्बी अपनी आस्था और विश्वास के साथ एकजुट होकर रह सकते हैं।
  • स्वामी रामदेव की महत्वाकांक्षी परियोजना पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट का शुभारंभ हरिद्वार में 6 अगस्त, 2006 को हुआ। इसके ज़रिए वे विश्व का सबसे बड़ा योग, आयुर्वेद चिकित्सा और प्रयोग तथा प्रशिक्षण का केन्द्र बनाना चाहते हैं। यद्यपि यहाँ शुल्क लेकर चिकित्सा उपलब्ध कराई जाती है, किंतु ट्रस्ट का दावा है कि यहाँ ग़रीबों का निःशुल्क इलाज किया जाता है।
  • आर्यसमाज की विचारधारा में विश्वास रखने वाले रामदेव स्वामी विवेकानंद और नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अपना आदर्श मानते हैं। समाज को जागरूक करने और कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाने के स्वामी विवेकानंद के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए बाबा रामदेव पहले भी बहुत कुछ कर चुके हैं। बात अगर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की करें तो अब भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ बगावत का झंडा उठाकर बाबा ने नेताजी की राह पर चलने के संकेत दे डाले हैं।
  • भले ही राजनीति में सफल हों या न हों लेकिन उन्होंने स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक किया है। योग को कंदराओं और आश्रमों से निकाल कर आम आदमी से जोड़ा है, इसका श्रेय उन्हें दिया ही जाना चाहिए। वह भी ऐसे मौके पर जब बहुराष्ट्रिये कंपनियों के बढ़ते शिकंजे के चलते महंगी हुई आधुनिक चिकित्सा गरीब लोगों से दूर होती जा रही है। ऐसे में बाबा ने मुफ्त का योग देकर देश के करोड़ों लोगों का भला किया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जो काम तमाम सरकारी कोशिशें नहीं कर सकतीं, उस स्वास्थ्य चेतना का काम बाबा ने कर दिखाया।
  • देश के जाने-माने हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. नरेश त्रेहन जैसे लोग भी कहने लगे हैं कि योग जीवन का अभिन्न अंग है और जब मैं अस्पताल से अपने घर लौटता हूं तो कार में ही योग क्रियाएं कर लेता हूं। यह बाबा की ही बदौलत है कि आज छोटे-बड़े हर शहर में पार्कों में सुबह-शाम लोग कपालभाति व अनुलोम-विलोम करते नज़र आते हैं। यहां तक कि बॉलीवुड भी अब योग के ग्लैमर से अछूता नहीं है। शिल्पा शेट्टी सरीखी अनेक अदाकारा योग सिखाने की कोशिश में लगी हुई हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने बाजार में इसकी सीडी तक उतार डाली हैं।
  • हालांकि शुरुआती दिनों में बाबा रामदेव को इतनी पहचान नहीं मिल पाई। करीब एक दशक पूर्व जब स्वामी रामदेव योग को जन-जन तक पहुंचाने की जिद पर आये तो उन्होंने इस कार्य को बखूबी कर दिखाया। बदलाव की बयार जब बही तो लोगों को धीरे-धीरे इस बात का आभास हुआ कि योग उनकी अनेक तरह की बीमारियों का इलाज बन सकता है। बस फिर क्या था, जिस किसी के भी मन में यह बात घर कर गई, उसके बाद वह योग में लीन हो गया और एक-एक कर यह आंकड़ा आज करोड़ों में पहुंच गया। देश का शायद ही कोई ऐसा शहर या कस्बा होगा, जहां बाबा रामदेव योग की बुझी ज्योत को फिर से प्रज्ज्वलित करने न पहुंचे हों।

मुद्दे और विरोध

  • ताजा विवाद उस समय इनसे जुड़ा, जब बाबा रामदेव ने भ्रष्टाचार, केंद्र सरकार में हुए कथित घोटालों और काले धन को लेकर आवाज बुलंद की। पहले योग के लिए ट्रेनिंग कैम्प लगाने वाले बाबा ने जब सड़कों पर उतरना शुरू किया और उनके साथ दूसरे सामाजिक लोग भी जुड़े तो सत्ता में बैठे लोगों की नींद टूटी। राजनीति मे बाबा के ये तेवर भाजपा को भले ही भाते हों लेकिन कम से कम कांग्रेस को इससे बड़ा आघात लगा है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव एवं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का रामेदव के खिलाफ बोलना इसी तरह के संकेत देता दिख रहा है।
  • आज जिस मुद्दे को लेकर रामदेव सीधे-सीधे देश की सरकार से टकरा रहे हैं, इससे पहले वे स्वदेशी मुहिम और विदेशी वस्त्रों, कोल्ड ड्रिंक के खिलाफ बोलकर भी सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर चुके हैं। विदेशी कपड़ों की होली जलाने के अलावा उन्होंने कोल्ड ड्रिंक कंपनियों के खिलाफ भी लम्बे समय तक मोर्चा खोले रखा। उनके इन दोनों ही आंदोलनों ने रामदेव को अंतराष्ट्रिये सुर्खियों में ला दिया। माना तो यही जाता है कि उनकी आक्रामक शैली उन्हें सारे विवादों की आग में तपा कर कुंदन बना देती है।
  • बाबा रामदेव ने जब दावा किया कि वे प्राणायाम के ज़रिए कैंसर का इलाज कर सकते हैं तो इस पर खूब बवाल मचा लेकिन बाबा ने इसे प्रमाणों सहित सिद्ध करके दिखाया। बाबा रामदेव अपनी बात पूरे तर्कों और प्रमाणों सहित कहते हैं। उनका कहना है - स्वास्थ्य के नाम पर जो भी लोग खिलवाड़ करते हैं, मैं उनके ख़िलाफ़ बोलता हूँ। मेरा पहला निशाना बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ थीं, जब मैंने शराब और तंबाकू के ख़िलाफ़ बोला तो शराब की बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियाँ चलाने वाले हिल गए। इन फैक्ट्रियों को चलाने वाले कुछ सांसदों ने ऐतराज़ जताया और कहा कि बाबा को मर्यादा में रहकर बात करनी चाहिए। विश्व में हर साल 48 लाख लोग तंबाकू के सेवन से मरते हैं और क़रीब इतने ही लोगों की मौत का कारण शराब होती है। मेरा कहना है कि जब 151 लोगों की हत्या के इल्ज़ाम में सद्दाम हुसैन को फाँसी दी जा सकती है, तो फिर 48 लाख लोगों की मौत के ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए। इस तरह जब मैं अपनी बात को आँकड़ों और तर्क के साथ कहता हूँ तो इससे कुछ लोगों के अस्तित्व हिलने लगते हैं। महात्मा गाँधी ने सन 1928 में कराची अधिवेशन में कहा था कि आयुर्वेद को राष्ट्रीय चिकित्सा पद्धति घोषित किया जाएगा। आज हालत ये है कि हमारी परंपरागत उपचार की विधा को हाशिए पर रख दिया गया है। मेरी खरी बातों को सुनकर लोगों की सत्ताएँ हिलने लगती हैं।
  • बाबा रामदेव राष्ट्रवादी संन्यासी है। अपने देश और संस्कृति के प्रति उनका अगाध प्रेम है। वे देश को सांस्कृतिक और आर्थिक विश्वशक्ति बनाना चाहते हैं। बाबा रामदेव राष्ट्रीय और सांस्कृतिक मुद्दों पर अक्सर अपने विचार प्रकट करते रहते हैं। राष्ट्रहित और सामाजिक सरोकारों वाले विषयों पर वे खुलकर बोलते हैं। इस दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए। उन्होंने कृषि के दौरान कीटनाशक और रसायनिक उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल की निंदा करते हुए कहा कि इससे फल, सब्जियाँ और अनाज ज़हरीले हो जाते हैं और स्वास्थ्य को नुक़सान पहुँचाते हैं। उन्होंने वर्तमान में लोकप्रिय हो रहे शीतल पेय जैसे कोक और पेप्सी की भी आलोचना की और आम लोगों को इससे दूर रहने की सलाह दी। उनका एक कथन बहुत लोकप्रिय हुआ जिसमें उन्होंने कहा ठंडा मतलब टॉयलेट क्लीनर। उनका कहना है कि इन पेय पदार्थों में बड़ी मात्रा शरीर को नुक़सान पहुँचाने वाले तत्व शामिल होते हैं। उन्होंने फ़ास्ट फ़ूड और ज़ंक फ़ूड के बढ़ते प्रचलन की भी निंदा की। उन्होंने कहा कि ये खाद्य-पदार्थ बीमारियों को जन्म देते हैं।
  • रामदेव ने किसानों की दयनीय हालत के लिए सरकारी नीतियों और भ्रष्ट राजनीति को दोषी ठहराया। उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था में जिन किसानों का बहुत बड़ा योगदान है उनकी भलाई के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए। उन्होंने सरकार से देशी उद्योगों को बढ़ावा देने की भी अपील की। साथ ही उपभोक्ताओँ से भी विदेशी उत्पादों के बजाए देशी सामान ख़रीदने को कहा।
  • बाबा रामदेव ने हिन्दी भाषा की उपेक्षा का मुद्दा भी उठाया उन्होंने कहा कि हिन्दी विश्व की दूसरी सबसे अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। उसके बावजूद उसे अपने ही देश में अंग्रेज़ी के बाद दूसरा दर्जा दिया जाता है। उन्होंने हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओँ को शासकीय कार्यों में उनका उचित स्थान दिए जाने की वक़ालत की। उन्होंने कहा कि आधुनिक विश्व में शायद ही कोई ऐसा देश हो जो अपनी राष्ट्रीय भाषा पर अंग्रेज़ी को तरजीह देता हो।
  • शायद ही कोई ऐसा मुद्दा होगा, जो किसी भी सूरत में उनके लिए नुकसानदायक साबित हुआ हो। उन्होंने स्विस बैंक में जमा भारतीयों के काले धन का मुद्दा भी उठाया और उसे भारत लाकर देश के विकास में लगाने की माँग की। उन्होंने देश से बलात्कार, दहेज हत्या, गोहत्या, मिलावटख़ोरी, कालाबाज़ारी जैसे अपराध खत्म करने के लिए कानून में संशोधन कर ऐसे अपराधों के लिए मृत्युदंड की व्यवस्था करने की वकालत भी की। काले धन के मुद्दे पर रामदेव को घेरते हुए जब दिग्विजय सिंह ने उनसे संपत्ति का हिसाब मांगा तो स्वामी ने बिना देरी किये अपने ट्रस्ट की संपत्ति का खुलासा कर डाला। साथ ही, सीधे-सीधे गांधी परिवार पर हमला करते हुए उन्होंने कांग्रेसियों की संपत्ति सार्वजनिक करने की मांग करते हुए कांग्रेस को कठघरे में ला खड़ा किया हैं।
  • बाबा रामदेव ने समलैंगिकता का भी खुलकर विरोध किया। जुलाई, 2009 में जब दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया तो रामदेव ने कहा कि ये फ़ैसला देश में इस बीमार मानसिकता को बढ़ावा देगा और भारतीय सामाजिक व्यवस्था को क्षति पहुँचाएगा। उन्होंने इसे अप्राकृतिक कृत्य बताते हुए पश्चिम के अंधानुकरण का नतीजा बताया। उन्होंने कहा कि इन मानसिक रोगियों को इलाज के ज़रिए ठीक किया जा सकता है।
  • जैसा कि आरंभ में प्रत्येक सुधारक को झेलना पड़ना है बाबा रामदेव का भी विवादों से चोली-दामन का नाता रहा है। जनवरी, 2006 में सी.पी.आई.(एम.) / माकपा नेता बृंदा करात ने दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट फ़ार्मेसी पर आरोप लगाया कि यहाँ दवाओं में मानव और पशुओं की अस्थियाँ मिलाई जाती हैं। बाद में दिल्ली की श्रीराम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडस्ट्रीयल रिसर्च की जाँचों में ये आरोप ग़लत पाया गया। मार्च, 2005 में दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट के 113 कर्मचारियों ने अपनी माँगों को लेकर विरोध शुरू किया था। सी.पी.आई.(एम.) द्वारा नियंत्रित ट्रेड यूनियन उनमें से कुछ के केस लड़ रही हैं। दिसंबर, 2006 में इस बात को लेकर बवाल मचा कि बाबा रामदेव ने योग से एड्स के इलाज का दावा किया है। तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री रामदौस ने जब इसका विरोध किया तो बाबा ने स्पष्ट किया कि प्रेस ने उनकी बातों को ग़लत तरीक़े से पेश किया है। उन्होंने कभी योग से एड्स के इलाज का दावा नहीं किया। उनका कहना है कि योग और प्राणायाम से एड्स रोगियों के सी.डी.फ़ोर सेल्स की संख्या में कमी आती है और वे इसे प्रमाणित कर सकते हैं।
  • बाबा रामदेव सादा जीवन और सात्विक खान-पान में यक़ीन रखते हैं। कुछ वर्ष पहले बीबीसी को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा - मैं बहुत साधारण भोजन में विश्वास करता हूँ। ज़मीन पर दरी पर सोने में यक़ीन रखता हूँ और दो वक़्त खाना खाता हूँ। पहला भोजन सुबह लगभग 11 बजे और दूसरा शाम को सात से आठ के बीच होता है। उबली हुई सब्जी और उसमें भी ज़्यादातर लौकी, तुरई, परवल, टिंडे, हरी सब्जियाँ और गाजर आदि। गाय का दूध पीता हूँ। अनाज खाए हुए मुझे लगभग दस साल हो गए हैं। बाबा अंधविश्वास, चमत्कार और टोने-टोटके के कड़े विरोधी हैं। वे कहते हैं - मैं राशिफल को भी नहीं मानता। आप ही देख लीजिए, भगवान राम और रावण, कंस और कृष्ण की राशि एक ही थी। वर्तमान युग में देखो तो बहन मायावती और मुलायम सिंहजी की राशि एक है। बहन सुषमा और सोनियाजी की राशि एक है। ज्योतिष और वास्तु को मैं उस रूप में नहीं मानता जिस तरह लोग इसे अंधविश्वास के रूप में मानते हैं। मंगल-शनि सब लोगों का अंधविश्वास है। हर घड़ी, हर मुहूर्त शुभ है। हर दिशा में परमात्मा है। कौन सी दिशा ऐसी है जहाँ शैतान रहता है। धर्म और अध्यात्म को मैं विज्ञान की आँख से देखता हूँ, इसलिए मैं धर्म, संस्कृति और परंपराओँ का प्रखर संवाहक होने के साथ-साथ धर्म के नाम पर भ्रम, अज्ञान और पाखंड का आलोचक भी हूँ।

सम्मान

  • बाबा रामदेव को जनवरी, 2007 में कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडस्ट्रीयल टेक्नोलोजी, भुवनेश्वर, उड़ीसा ने योग को लोकप्रिय बनाने के लिए डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की। मार्च, 2010 में एमिटी विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट ऑफ़ साइंस की डिग्री से सम्मानित किया ।

भारत स्वाभिमान पार्टी

  • बाबा रामदेव ने समाज और राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार का मुखर विरोध किया। जिसके लिए उन्हें कई राजनैतिक दलों के आक्रोश का भी सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि देश की कई समस्याओं का समाधान महज़ इसलिए नहीं हो पा रहा कि राजनैतिक दलों में भयानक भ्रष्टाचार व्याप्त है और इनसे निपटने के लिए पर्याप्त इच्छाशक्ति का अभाव है। देश की राजनीति और समाज से इसी भ्रष्टाचार, अपराध, ग़रीबी इत्यादि बुराइयों को ख़त्म करने के उद्देश्य से उन्होंने भारत स्वाभिमान अभियान की शुरुआत की और राजनैतिक प्रणाली को स्वच्छ बनाने के लिए ‘भारत स्वाभिमान पार्टी’ नामक राजनीतिक दल की स्थापना की। ये उनका अब तक का सबसे महत्वाकांक्षी प्रयास है। रामदेव सारे देश में बड़ी संख्या में इस पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता बना कर लोकसभा चुनावों में सभी 545 सीटों पर उम्मीदवार खड़े करना चाहते हैं। अपने अभियान शंका की दृष्टि से देखे जाने से बचाने के लिए उन्होंने घोषणा की कि वे स्वयं न तो कोई चुनाव लड़ेंगे और न ही कोई राजनैतिक पद स्वीकार करेंगे। वे भारत की राजनैतिक व्यवस्था को भारतीय परंपरा और आदर्शों के अनुरूप बनाना चाहते हैं।
  • साथ ही उनका कहना है कि भारत स्वभिमान दल का उद्देश्य स्विस बैंक सहित विभिन्न विदेशी बैंकों में जमा भारतीयों का 258 लाख करोड़ रुपए वापस लाना और उसे देश के विकास में लगाकर भारत से अशिक्षा, भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी, नक्सलवाद और आतंकवाद को समाप्त करना है। उन्होंने ‘भारत स्वाभिमान पार्टी’ के लिए जिन आदर्शों की स्थापना की उनमें सबसे पहले देश के उन चौरासी करोड़ लोगों के उत्थान के लिए कार्य करना है जो भुखमरी की हालत में जी रहे हैं। उसके बाद पाँच लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। इनमें सौ प्रतिशत मतदान, सौ प्रतिशत राष्ट्रीय विचार, विदेशी कंपनियों का सौ प्रतिशत बहिष्कार और स्वदेशी को अपनाना, देश की जनता का सौ प्रतिशत एकीकरण और देश को सौ प्रतिशत योगोन्मुखी बनाना शामिल हैं।
  • भारत स्वाभिमान आंदोलनकारियों के लिए उन्होंने पाँच संकल्प घोषित किए हैं। इनमें देशभक्त, ईमानदार, दूरदर्शी, साहसी और योग्य व्यक्तियों को वोट देना तथा देश को सौ प्रतिशत मतदान के लिए प्रेरित करना, देशभक्त, ईमानदार, संवेदनशील, जागरूक और ज़िम्मेदार लोगों को एकजुट करके देश में नई स्वाधीनता, नई व्यवस्था और नई क्रांति लाकर देश को विश्वशक्ति बनाना, विदेशी उत्पादों का सौ प्रतिशत बहिष्कार और देशी वस्तुओं का इस्तेमाल, सभी धर्मों के बावजूद एक सच्चा हिंदुस्तानी रहना और सौ प्रतिशत राष्ट्रवादी विचारों को अपनाना तथा देश को सौ प्रतिशत योगोन्मुखी बनाकर धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार, अविश्वास और निराशा से मुक्त करना शामिल हैं।
  • मानव शरीर को सेवा का मंदिर बताने वाले बाबा कहते हैं कि उनका भगवान और नारायण नर में ही रहता है। चूंकि इंसान रूपी मंदिर की रचना स्वयं भगवान ने की है। आत्मसाधना एवं ब्रह्मसाधना के साथ मानव मात्र की सेवा को वे पूजा व आराधना मानते हैं। वसुंधरा को अपना घर व इसमें रहने वाले प्राणी मात्र को अपने परिवार का सदस्य मानकर चल रहे बाबा ने वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा को तो चरितार्थ कर दिया। अब देखना यह है कि वे राजनीति के इस हमाम से कैसे गंदगी को बाहर निकाल कर फेंकते हैं।
  • स्वामी रामदेव के विचार नए नहीं हैं, किन्तु उन्होंने जिस प्रभावी तरीक़े से इन्हें साकार किया है, वह तारीफ़ के क़ाबिल है। उनकी तरक़्क़ी बहुत से लोगों की आँख की किरकिरी है, किन्तु जब तक उनके कार्य और लक्ष्य पवित्र और लोककल्याणकारी है, किसी को भी उन पर उंगली उठाने का हक़ नहीं है। वर्षों से स्वार्थी तत्व देश और समाज को लूट रहे हैं। अगर बाबा अपनी लोकप्रियता के ज़रिए देश के ग़रीबों, वंचितों और उपेक्षितों को उनका हक़ दिलवाकर एक आदर्श समाज और स्वच्छ राजनीति की स्थापना कर पाते हैं, तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है। हर देशभक्त और सबका कल्याण चाहने वाले इंसान को इससे ख़ुशी होगी। प्रकृति करे, वे अपने उद्देश्य में कामयाब हों।



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