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गंगा नदी, उत्तर भारत के मैदानों की विशाल नदी है। हिमालय से निकलकर बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली गंगा भारत के लगभग एक-चौथाई भूक्षेत्र को अपवाहित करती है तथा अपने बेसिन में बसे विराट जनसमुदाय के जीवन का आधार बनती है। जिस गंगा के मैदान से होकर यह प्रवाहित होती है, वह इस क्षेत्र का हृदय स्थल है, जिसे हिन्दुस्तान कहते हैं। यहाँ तीसरी सदी में अशोक महान के साम्राज्य से लेकर 16वीं सदी में स्थापित मुग़ल साम्राज्य तक सारी सभ्यताएँ विकसित हुईं। गंगा नदी अपना अधिकांश सफ़र भारतीय इलाक़े में ही तय करती है, लेकिन उसके विशाल डेल्टा क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा बांग्लादेश में है। गंगा के प्रवाह की सामान्यत: दिशा उत्तर-पश्चिमोत्तर से दक्षिण-पूर्व की तरफ़ है और डेल्टा क्षेत्र में प्रवाह आमतौर से दक्षिण मुखी है।

भारतीय भाषाओं में तथा अधिकृत रूप से गंगा नदी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसके अंग्रेज़ीकृत नाम ‘द गैजिज़’ से ही जाना जाता है। गंगा सहस्राब्दियों से हिन्दुओं की पवित्र तथा पूजनीय नदी रही है। अपने अधिकांश मार्ग में गंगा एक चौड़ी व मंद धारा है और विश्व के सबसे ज़्यादा उपजाऊ और घनी आबादी वाले इलाक़ों से होकर बहती है। इतने महत्व के बावज़ूद इसकी लम्बाई 2,510 किलोमीटर है, जो एशिया या विश्व स्तर की तुलना में कोई बहुत ज़्यादा नहीं है।

पतितपावनी

भारत की पावन नदी, जिसकी जलधारा में स्नान से पापमुक्ति और जलपान से शुद्धि होती है। यह प्रसिद्ध नदी, हिमाचल प्रदेश में गंगोत्री से निकलकर मध्यदेश से होती हुई पश्चिम बंगाल के परे गंगासागर में मिलती है। गंगा की घाटी संसार की उर्वरतम घाटियों में से एक है और सरयू, यमुना, सोन आदि अनेक नदियाँ उससे आ मिलती हैं। उसकी घाटी भारतीय सभ्यता के विकास में अन्यतम रही हैं। गंगा को भारतीय संस्कृति में विशिष्ट योगदान के कारण ही उसे असाधारण महिमा मिली है, जिससे वह ‘पतितपावनी’ कहलाती है।

ऋग्वेद के नदीसूक्त में गंगा की स्तुति हुई है और पुराणों ने उसकी महिमा का अनन्त बखान किया है। गंगा की धारा, जो पहाड़ों में मंदाकिनी और अलकनन्दा की धाराओं के सम्मिलन से बनती है, हिमालय में अत्यन्त क्षीण है और हरिद्वार के ऊपर कनखल के समीप उत्तरी मैदान में प्रशस्त होकर बहती है और बरसात में उसके जल का वेग भयावह हो उठता है।

भौतिक विशेषताएँ

भू-आकृति

गंगा का उद्गम दक्षिणी हिमालय में तिब्बत सीमा के भारतीय हिस्से से होता है। इसकी पाँच आरम्भिक धाराओं भागीरथी, अलकनन्दा, मंदाकिनी, धौलीगंगा तथा पिंडर का उद्गम उत्तराखण्ड क्षेत्र, जो उत्तर प्रदेश का एक संभाग था (वर्तमान उत्तरांचल राज्य) में होता है। दो प्रमुख धाराओं में बड़ी अलकनन्दा का उद्गम हिमालय के नंदा देवी शिखर से 48 किलोमीटर दूर तथा दूसरी भागीरथी का उद्गम हिमालय की गंगोत्री नामक हिमनद के रूप में 3, 050 मीटर की ऊँचाई पर बर्फ़ की गुफ़ा में होता है। गंगोत्री हिन्दुओं का एक तीर्थ स्थान है। वैसे गंगोत्री से 21 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व स्थित गोमुख को गंगा का वास्तविक उद्गम स्थल माना जाता है।

देव प्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी का संगम होने के बाद यह गंगा के रूप में दक्षिण हिमालय से ऋषिकेश के निकट बाहर आती है और हरिद्वार के बाद मैदानी इलो में प्रवेश करती है। हरिद्वार भी हिन्दुओं का तीर्थ स्थान है। नदी के प्रवाह में मौसम के अनुसार आने वाले थोड़े-बहुत परिवर्तन के बावजूद इसके जल की मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि तब होती है, जब इसमें अन्य सहायक नदियाँ मिलती हैं तथा यह अधिक वर्षा वाले इलाक़े में प्रवेश करती है। एक तरफ़ अप्रैल से जून के बीच हिमालय में पिघलने वाली बर्फ़ से इसका पोषण होता है, वहीं दूसरी ओर जुलाई से सितम्बर के बीच का मानसून इसमें आने वाली बाढ़ों का कारण बनता है। उत्तर प्रदेश राज्य में इसके दाहिने दाहिने तट की सहायक नदियाँ, यमुना राजधानी दिल्ली होते हुए इलाहाबाद में गंगा में शामिल होती है तथा टोन्स नदी है, जो मध्य प्रदेश के विंध्याचल से निकलकर उत्तर की तरफ़ प्रवाहित होती हैं और शीघ्र ही गंगा में शामिल हो जाती हैं। उत्तर प्रदेश में बाईं तरफ़ की सहायक नदियाँ रामगंगा, गोमती तथा घाघरा हैं।

इसके बाद गंगा बिहार राज्य में प्रवेश करती है, जहाँ इसकी मुख्य सहायक नदियाँ हिमालय क्षेत्र की तरफ़ से गंडक, बूढ़ी गंडक, कोसी तथा घुघरी हैं। दक्षिण की तरफ़ से इसकी मुख्य सहायक नदी सोन है। यहाँ से यह नदी राजमहल पहाड़ियों का चक्कर लगाती हुई दक्षिण-पूर्व में फरक्का तक पहुँचती है, जो इस डेल्टा का सर्वोच्च बिन्दु है। यहाँ से गंगा भारत में अन्तिम राज्य पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती है, जहाँ उत्तर की तरफ़ से इसमें महानंदा मिलती है (समूचे पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में स्थानीय आबादी गंगा को पद्मा कहकर पुकारती है)। गंगा के डेल्टा की सुदूर पश्चिमी शाखा हुगली है, जिसके तट पर महानगर कोलकाता (भूतपूर्व कलकत्ता) बसा हुआ है। स्वयं हुगली में पश्चिम से आकर उसकी दो सहायक नदियाँ दामोदर व रूपनारायण शामिल होती हैं। बांग्लादेश में ग्वालुंदो घाट के निकट गंगा में विशाल ब्रह्मपुत्र शामिल होती है (इन दोनों के संगम के 241 किलोमीटर पहले तक इसे फिर यमुना के नाम से बुलाया जाता है)। गंगा और ब्रह्मपुत्र की संयुक्त धारा ही पद्मा कहलाने लगती है और चाँदपुर के निकट वह मेघना में शामिल हो जाती है। इसके बाद यह विराट जलराशि अनेक प्रवाहों में विभाजित होकर बंगाल की खाड़ी में समा जाती है। बांग्लादेश की राजधानी ढाका धालेश्वदी नदी की सहायक नदी बूढ़ी गंगा के तट पर स्थित है। जिन नदी शाखाओं से गंगा का डेल्टा बनता है, उसकी हुगली और मेघना के अलावा अन्य शाखाएँ पश्चिम बंगाल में जलांगी और बांग्लादेश में मातागंगा, भैरब, काबाडक, गराई-मधुमती तथा अरियल खान हैं।

  • डेल्टा क्षेत्र में स्थित गंगा की सभी सहायक नदियाँ और शाखाएँ मौसम में परिवर्तनों के कारण अक्सर अपना रास्ता बदल लेती हैं। ये परिवर्तन इधर, विशेषकर 1750 ई. के बाछ से ज़्यादा होने लगे हैं। ब्रह्मपुत्र 1785 ई. तक मैमनसिंह शहर के पास से बहती थी, अब यह वहाँ से 64 किलोमीटर पश्चिम में गंगा में मिलती है।
  • गंगा तथा ब्रह्मपुत्र की नदी घाटियों से बहकर आई हुई गाद से बने डेल्टा का क्षेत्रफल 60,000 वर्ग किमी. है तथा उसका निर्माण मिट्टी, रेत तथा खड़िया की क्रमिक परतों से हुआ है। यहाँ पर सड़ी-गली वनस्पति (पीट) लिग्नाइट (भूरे कोयले) की परतें भी उन इलाक़ों में मिलती हैं, जहाँ पहले घन वन हुए करते थे। डेल्टा में नहरों के आसपास बाद में प्राकृतिक रूप से बहुत-सा खादर भी जमा हुआ है।
  • गंगा डेल्टा की दक्षिणी सतह का निर्माण तेज़ गति से तथा तुलनात्मक रूप से हाल में बहकर आई गाद की भारी मात्रा से हुआ है। पूरब में समुद्र की तरफ़ इसी गाद के कारण बड़ी तेज़ी से नए-नए भूक्षेत्र (नदी द्वीप) बनते जा रहे हैं, जिन्हें ‘चार’ कहते हैं। वैसे डेल्टा का पश्चिमी समुद्री तट 18वीं सदी के बाद से लगभग अपरिवर्तित है।
  • पश्चिम बंगाल की नदियों का प्रवाह बहुत धीमा है और उनसे काफ़ी कम पानी समुद्र में प्रवाहित होता है। बांग्लादेशी डेल्टा क्षेत्र में नदियाँ चौड़ी तथा गतिमान हैं और उनमें पानी विपुल मात्रा में बहता है। ये नदियाँ अनेक संकरी पहाड़ियों से परस्पर जुड़ी हुई हैं।
  • वर्षा ऋतु (जून से अक्टूबर) में इस इलाक़े में कृत्रिम रूप से निर्मित उच्चभूमि पर बसाए गए गाँव कई फ़ीट पानी में डूब जाते हैं। इस मौसम में इन बस्तियों के बीच आवागमन का एकमात्र साधन नौकाएँ ही होती हैं।
  • समूचे डेल्टा क्षेत्र का समुद्रतटीय इलाक़ा दलदली है। यह पूरा क्षेत्र सुन्दरवन कहलाता है और भारत व बांग्लादेश, दोनों ने इसे संरक्षित क्षेत्र घोषित कर रखा है।
  • इस डेल्टा के कुछ हिस्सों में जंगली वनस्पतियों तथा धान से निर्मित पीट की परतें हैं। अनेक प्राकृतिक खाइयों (बिलों) में उस पीट के बनने की क्रिया जारी है। जिसका उपयोग स्थानीय किसान खाद तथा सुखाकर घरेलू तथा औद्योगिक ईधन के रूप में करते हैं।

जलवायु

गंगा के बेसिन में इस उपमहाद्वीप की विशालतम नदी प्रणाली स्थित है। यहाँ जल की आपूर्ति मुख्यत: जुलाई से अक्टूबर के बीच दक्षिण-पश्चिमी मानसून तथा अप्रैल से जून के बीच ग्रीष्म ऋतु के दौरान पिघलने वाली हिमालय की बर्फ़ से होती है। नदी के बेसिन में मानसून के उन कटिबंधीय तूफ़ानों से भी वर्षा होती है, जो जून से अक्टूबर के बीच बंगाल की खाड़ी में पैदा होते हैं। दिसम्बर और जनवरी में बहुत कम मात्रा में वर्षा होती है। औसत वार्षिक वर्षा बेसिन के पश्चिमी सिरे में 760 मिमी. से लेकर पूर्वी सिरे पर 2,286 मिमी. के बीच होती है (उत्तर प्रदेश में गंगा के ऊपरी कछार में जहाँ औसत वर्षा 762 से 1,016 मिमी. होती है, वहीं बिहार के मध्यवर्ती मैदान में यह औसत 1,016 से 1,524 मिमी. तथा डेल्टा क्षेत्र में 1,524 से 2,540 मिमी. के बीच है)। डेल्टा क्षेत्र में मानसून के प्रारम्भ (मार्च से मई) तथा मानसून के अन्त (सितम्बर से अक्टूबर) में ज़ोरदार चक्रवाती समुद्री तूफ़ान आते हैं। इनसे काफ़ी बड़ी मात्रा में मानव जीवन, सम्पत्ति, फ़सलों तथा पशुओं का नुक़सान होता है। ऐसा ही एक भीषण विनाशकारी तूफ़ान नवम्बर, 1970 में आया था, जिसमें कम से कम दो लाख और अधिक से अधिक पाँच लाख लोगों की मौत हुई थी।

चूँकि गंगा के मैदान में उतार-चढ़ाव लगभग न के बराबर है, अत: नदी प्रवाह की गति धीमी है। दिल्ली में यमुना नदी से लेकर बंगाल की खाड़ी के 1,609 किमी. के सम्पूर्ण फ़ासले में भूतल की ऊँचाई में मात्र 213 मीटर की कमी आती है। गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदान का कुल विस्तार 7,77,000 वर्ग किमी. है। इस मैदान में मिट्टी की सतह, जो कहीं-कहीं 1,829 मीटर से भी ज़्यादा है, सम्भवत: 10 हज़ार वर्ष से अधिक पुरानी नहीं है।

वनस्पति

गंगा-यमुना के इलाक़े में कभी घने जंगल हुआ करते थे। ऐतिहासिक ग्रन्थों से पता चलता है कि 16वीं और 17वीं सदी तक यहाँ जंगली हाथी, गौर, बारहसिंगा, गैंडा, बाघ तथा शेर का शिकार होता था। गंगा के सम्पूर्ण बेसिन से वहाँ की मूल प्राकृतिक वनस्पतियाँ लुप्त हो गई हैं और वहाँ अब लगातार बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए व्यापक रूप में खेती की जाती है। हिरन, जंगली सूअर, जंगली बिल्लियाँ तथा कुछ भेड़िए, भालू, सियार और लोमड़ी को छोड़कर जंगली जानवर बहुत कम हैं। डेल्टा के सुन्दरवन इलाक़े में बंगाल टाइगर (शेर), मगरमच्छ तथा दलदली हिरन अब भी मिल जाते हैं। नदियों में, ख़ासतौर से डेल्टा क्षेत्र में मछलियाँ विपुल मात्रा में पाई जाती हैं और स्थानीय निवासियों के भाजन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहाँ पर मैना, तोता, कौआ, चील, तीतर और मुर्ग़ाबी जैसे पक्षियों की भी कई क़िस्में पाई जाती हैं। जाड़े के मौसम में बत्तख़ और चाहा पक्षी ऊँचे हिमालय को पार करके दक्षिण में पानी से घिरे क्षेत्रों की तरफ़ प्रवास करते हैं। बंगाल के इलाक़े में आमतौर से पाई जाने वाली मछलियों में फ़ेदर बैक (नोटोप्टेरिडी), वॉकिंग कैटफ़िश, गोरामि (एनाबैंटिडी) तथा मिल्कफ़िश (चैनिडी), बार्ब (सिप्राइनिडी) आदि प्रमुख हैं।

जनजीवन

गंगा के बेसिन के निवासी नृजातीय रूप से मिश्रित मूल के हैं। पश्चिम और मध्य बेसिन में वे मूलत: आर्य पूर्वजों की सन्तान थे। बाद में तुर्क, मंगोल, अफ़आनी, फ़ारसी तथा अरब लोग पश्चिम से आय और अंतमिश्रित हो गए। पूरब और दक्षिण, ख़ासतौर से बंगाल के इलाक़े में तिब्बती, बर्मी तथा विविध नस्ल के पहाड़ी लोग भी मिलते हैं। इनसे भी बाद में आने वाले यूरोपीय लोग यहाँ न तो बसे और न ही स्थानीय लोगों के साथ विवाह सम्बन्ध बनाये। ऐतिहासिक रूप से गंगा के मैदान से ही हिन्दुस्तान का हृदय स्थल निर्मित है और वही बाद में आने वाली विभिन्न सभ्यताओं का पालना बना। अशोक के ई. पू. के साम्राज्य का केन्द्र पाटलिपुत्र (पटना), बिहार में गंगा के तट पर बसा हुआ था। महान मुग़ल साम्राज्य के केन्द्र दिल्ली और आगरा भी गंगा के बेसिन की पश्चिमी सीमाओं पर स्थित थे। सातवीं सदी के मध्य में कानपुर के उत्तर में गंगा तट पर स्थित कन्नौज, जिसमें अधिकांश उत्तरी भारत आता था, हर्ष के सामन्तकालीन साम्राज्य का केन्द्र था। मुस्लिम काल के दौरान, यानी 12वीं सदी से मुसलमानों का शासन न केवल मैदान, बल्कि बंगाल तक फैला हुआ था। डेल्टा क्षेत्र के ढाका और मुर्शिदाबाद मुस्लिम सत्ता के केन्द्र थे। अंग्रेज़ों ने 17वीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुगली के तट पर कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) की स्थापना करने के बाद धीरे-धीरे अपने पैर गंगा की घाटी में फैलाए और 19वीं सदी के मध्य में दिल्ली तक जा पहुँचे। गंगा के मैदान में अनेक नगर बसे, जिनमें मुख्य रूप से रूड़की, सहारनपुर, मेरठ, आगरा (मशहूर मक़बरे ताजमहल का शहर), मथुरा (भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली के रूप में पूजनीय), अलीगढ़, कानपुर, बरेली, लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी (पवित्र शहर बनारस), पटना, भागलपुर, राजशाही, मुर्शिदाबाद, बर्दवान (वर्द्धमान), कलकत्ता, हावड़ा, ढाका, खुलना और बारीसाल उल्लेखनीय हैं। डेल्टा क्षेत्र में कलकत्ता और उसके उपनगर हुगली के दोनों किनारों पर लगभग 80 किमी. क्षेत्र में फैले हैं व भारत के जनसंख्या, व्यापार तथा उद्योग को दृष्टि से सबसे घने बसे हुए इलाक़ों में गिने जाते हैं।

धार्मिक महत्व

गंगा नदी का धार्मिक महत्व सम्भवत: विश्व की किसी भी अन्य नदी से ज़्यादा है। आदिकाल से ही यह पूजी जाती रही है और आज भी हिन्दुओं के लिए यह सबसे पवित्र नदी है। इसे देवी स्वरूप माना जाता है। एक किंवदन्ती के अनुसार, महान तपस्वी भगीरथ की प्रार्थना पर देवी गंगा को स्वयं भगवान विष्णु ने इस धरती पर भेजा। लेकिन गंगा जिस वेग से धरती पर अवतरित हुईं, उससे उनके मार्ग में आने वाली हर वस्तु के जलप्लावित होने का ख़तरा था। इसीलिए भगवान शिव ने पहले ही उन्हें अपनी जटाओं में लपेटकर उनके वेग को नियंत्रित और शान्त किया। मुक्ति चाहने वाले उसके बाद ही उसमें स्नान कर पाए। हिन्दुओं के तीर्थस्थल वैसे तो समूचे उपमहाद्वीप में फैल हुए हैं, तथापि गंगा तट पर बसे तीर्थ हिन्दू धर्मावलम्बियों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। इनमें प्रमुख है, इलाहाबाद में गंगा और यमुना का संगम, जहाँ एक निश्चित अन्तराल पर जनवरी-फ़रवरी में कुम्भ का मेला आयोजित होता है। इस अनुष्ठान के समय लाखों तीर्थयात्री गंगा में स्नान करते हैं। पवित्र स्नान की दृष्टि से अन्य तीर्थ हैं, वाराणसी, काशी और हरिद्वार। कलकत्ता में हुगली नदी भी पवित्र मानी जाती है। तीर्थयात्रा की दृष्टि से गंगा तट पर गंगोत्री और अलकनन्दा और भागीरथी का संगम भी महत्वपूर्ण है। हिन्दू अपने मृतकों की भस्म एवं अस्थियाँ यह मानते हुए यहाँ विसर्जित करते हैं कि ऐसा करने से मृतक सीधे स्वर्ग में जाता है। इसीलिए गंगा के तट पर कई स्थानों पर शवदाह हेतु विशेष घाट बने हुए हैं।

अर्थव्यवस्था

सिंचाई

सिंचाई के लिए गंगा के पानी का उपयोग, चाहे बाढ़ का पानी हो या फिर नहरों का, पुरातन काल से ही प्रचलित है। इस तरह की सिंचाई का उल्लेख धर्मग्रन्थों तथा 2,000 से भी ज़्यादा वर्ष पहले लिखे पुराणों में मिलता है। चौथी सदी में यूनान से भारत आए राजदूत मेगस्थनीज़ ने यहाँ सिंचाई के उपयोग का उल्लेख किया है। 12वीं सदी से मुस्लिम काल में सिंचाई प्रणाली बहुत विकसित थी और मुग़ल बादशाहों ने बाद में बहुत सी नहरों का निर्माण किया। बाद में ब्रिटिश शासकों ने सिंचाई प्रणाली का और भी विस्तार किया।

उत्तर प्रदेश और बिहार स्थित गंगा घाटी के कृषि क्षेत्रों को सिंचाई नहरों की प्रणाली से बहुत लाभ हुआ है। ख़ासतौर से इस विकसित सिंचाई प्रणाली के कारण गन्ना, कपास और तिलहन जैसी नक़दी फ़सलों की पैदावार में वृद्धि सम्भव हुई। पुरानी नहरें मुख्यत: गंगा-यमुना के दौआब इलाक़े में हैं। ऊपरी गंगा नहर हरिद्वार से शुरू होती है और अपनी सहायक नहरों सहित 9,524 किमी. लम्बी है। निचली गंगा नहर की लम्बाई अपनी सहायक नहरों सहित 8,238 किमी. है और यह नरोरा से प्रारम्भ होती है। शारदा नहर से उत्तर प्रदेश में अयोध्या की भूमि सींची जाती है। गंगा के उत्तर में भूमि की ऊँचाई अधिक होने से नहरों के द्वारा सिंचाई करना कठिन होने के कारण भूमिगत जल पम्प द्वारा खींचकर सतह पर लाया जाता है। उत्तर प्रदेश और बिहार के काफ़ी बड़े इलाक़े में हाथ से खोदे हुए कुओं से निकली नहरों के द्वारा सिंचाई की जाती है। बांग्लादेश में गंगा-कबाडाक योजना मुख्यत: सिंचाई के लिए ही है और उसमें खुलना, जेशोर और कुश्तिया ज़िलों के वे हिस्से आते हैं, जो डेल्टा के कमज़ोर हिस्से हैं, जहाँ नदियों का मार्ग गाद और घनी झाड़ियों के कारण अवरुद्ध हो चुका है। इस इलाक़े में कुल वार्षिक वर्षा सामान्यत: 1,524 मिमी. से कम होती है तथा शीत ऋतु तुलनात्मक रूप से शुष्क रहती है। यहाँ की सिंचाई प्रणाली भी नहरों तथा भूमिगत जल खींचने वाले विद्युतचालित उपकरणों पर आधारित है।

नौकायन

प्राचीन काल में गंगा और इसकी कुछ सहायक नदियाँ, ख़ासतौर से पूरब में, नौकायन के उपयुक्त थीं। मेगस्थनीज़ के अनुसार, चौथी शताब्दी ई. पू. में गंगा और इसकी प्रमुख सहायक नदियों में नौकायन होता था। गंगा के बेसिन में अंतर्देशीय नदी नौकायन 14वीं शताब्दी तक भी फल-फूल रहा था। 19वीं सदी के आते-आते सिंचाई तथा नौकायन के लिए उपयुक्त नहरों की जल परिवहन प्रणाली के प्रमुख मार्ग बन चुके थे। पैंडल स्टीमरों के आगमन से अंतर्देशीय परिवहन में भी जो क्रान्ति आई, उससे बंगाल और बिहार के नील उद्योग को बहुत बढ़ावा मिला। गंगा में कलकत्ता से इलाहाबाद और उससे आगे यमुना में आगरा तक तथा उधर ब्रह्मपुत्र तक नियमित स्टीमर सेवाएँ चलने लगीं। 19वीं सदी के मध्य में रेलमार्गों के बनने से बड़े पैमाने पर जल परिवहन में गिरावट शुरू हो गई। सिंचाई हेतु पानी बहुत अधिक मात्रा में खींच लिए जाने से भी नौकायन विपरीत रूप से प्रभावित हुआ। अब तो नौकायन केवल इलाहाबाद के आसपास के मध्य गंगा बेसिन तक ही सीमित होकर रह गया है, जिसमें से अधिकांश देसी नौकाओं पर आधारित हैं।

वैसे पश्चिम बंगाल तथा बांग्लादेश अब भी जूट, घास, चाय, अनाज तथा अन्य कृषि और ग्रामीण उत्पादों के परिवहन के लिए जलमार्गों पर निर्भर हैं। बांग्लादेश में चालना, खुलना, बारीसाल, चाँदपुर, नारायणगंज, ग्वालुंदो घाट, सिरसागंज, भैरव बाज़ार तथा फेंचूगंज और भारत में कोलकाता, गोलपाड़ा, धुबुरी और डिब्रूगढ़ प्रमुख नदी बंदरगाह हैं। 1947 में भारत के विभाजन से बड़े दूरगामी परिवर्तन हुए। कलकत्ता से असम तक अंतर्देशीय जलमार्गों के द्वारा पहले बड़े पैमाने पर होने वाला व्यापार लगभग बन्द ही हो गया।

बांग्लादेश में अंतर्देशीय जल परिवहन की ज़िम्मेदारी अंतर्देशीय जल परिवहन प्राधिकरण की है। भारत में अंतर्देशीय जलमार्गों का नीति निर्धारण केन्द्रीय अंतर्देशीय जल परिवहन मण्डल (सेंट्रल वॉटर ट्रांसपोर्ट बोर्ड) करता है। लेकिन राष्ट्रीय जलमार्गों की व्यापक प्रणाली का विकास एवं रख-रखाव अंतर्देशीय जलमार्ग (इनलैंड वॉटरवेज़ अथॉरिटी) प्राधिकरण करता है। गंगा के बेसिन में इलाहाबाद से लेकर हल्दिया तक लगभग 1,607 किमी. लम्बा जलमार्ग इस प्रणाली में शामिल है। डेल्टा के मुख पर भारत की सीमा के ठीक भीतर फ़रक्का बाँध का निर्माण बांग्लादेश और भारत के बीच विवाद का कारण बन गया है। भारत का कहना है कि गाद के जमने तथा खारा पानी घुस आने की वजह से कोलकाता बंदरगाह का पतन हो गया है। कोलकाता की स्थिति में सुधार के लिए खारे पानी को निकालकर और जलस्तर को बढ़ाकर भारत ने फ़रक्का बैराज से गंगा को मोड़कर ताज़ा पानी हासिल करने की कोशिश की है। अब एक बड़ी नहर द्वारा पानी भागीरथी नदी में लाया जाता है, जो कोलकाता से परे हुगली नदी में समाहित होता है।

बांग्लादेश का कहना है कि नदियों के तटवर्ती देशों की परस्पर समृद्धि के लिए यह ज़रूरी है कि अंतर्देशीय नदियों के पानी पर उनका संयुक्त नियंत्रण होना चाहिए। सिंचाई, नौकायन तथा खारे पानी की रोकथाम के लिए गंगा का पानी बांग्लादेश में भी उतना ही आवश्यक है, जितना भारत के लिए। बांग्लादेश के अनुसार, फ़रक्का बाँध ने उसे पानी के एक ऐसे बहुमूल्य स्रोत से वंचित कर दिया है, जो कि उसकी समृद्धि के लिए आवश्यक है। दूसरी तरफ़ भारत गंगाजल की समस्या के बारे में द्विपक्षीय रवैया अपनाये जाने के पक्ष में है। दोनों देशों के बीच कई अंतरिम समझौते हुए हैं, लेकिन अभी तक इस विवाद का कोई स्थायी हल नहीं निकल पाया है। भारत के असम में ब्रह्मपुत्र के पानी को बांग्लादेश से होकर एक नहर द्वारा गंगा में मोड़ने के प्रस्ताव के जवाब में बांग्लादेश ने सुझाया है कि पूर्वी नेपाल, पश्चिम बंगाल होते हुए एक नहर बांग्लादेश तक बनाई जाए। किसी भी प्रस्ताव को सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली है। 1987 तथा 1988 में बांग्लादेश में आई प्रलयंकारी बाढ़ों, जिसमें 1988 की बाढ़ उस देश के इतिहास की सर्वाधिक विनाशकारी बाढ़ थी, को देखते हुए विश्व बैंक ने इस क्षेत्र के लिए अब बाढ़ नियंत्रण की एक दूरगामी योजना बनाई है।

पनबिजली योजना

गंगा की लगभग 130 लाख किलोवाट की अनुमानित जलविद्युत क्षमता का 2/5 हिस्सा भारत में तथा शेष नेपाल में है। इस क्षमता में से कुछ का दोहन भारत ने चंबल और रिहंद नदियों द्वारा किया है। गंगा का मैदान दुनिया की सबसे घनी आबादी वाला तथा उपजाऊ इलाक़ों में से एक है। चूँकि इस मैदानी क्षेत्र में अवरोध न के बराबर है, इसीलिए गंगा की धारा अधिकांश इलाक़े में चौड़ी व धीमी गति से प्रवाहित है। उसके कुल अपवाह बेसिन का 9,75,900 वर्ग किमी. क्षेत्रफल, यानी भारत के कुल क्षेत्र का लगभग चौथाई हिस्सा है और उस पर लगभग 50 करोड़ की आबादी निर्भर करती है। इस बेसिन की भूमि पर गहन खेती होती है। गंगा प्रणाली की जलापूर्ति आंशिक रूप से जुलाई से अक्टूबर के बीच होने वाली मानसून की वर्षा और अप्रैल से जून के बीच हिमालय पर गर्मी से पिघलने वाली बर्फ़ पर निर्भर करती हैं। भारतीय उपमहाद्वीप का यह विस्तृत उत्तर-मध्य खण्ड, जिसे उत्तर भारतीय मैदान भी कहा जाता है, पश्चिम में ब्रह्मपुत्र नदी घाटी और गंगा के डेल्टा से लेकर सिंधु नदी घाटी तक फैला हुआ है। इस इलाक़े में इस उपमहाद्वीप के सबसे समृद्ध और सघन जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं। इस मैदान का अधिकांश हिस्सा गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के द्वारा पूर्व में सिंध नदी द्वारा पश्चिम में बहकर लाई गई कछारी मिट्टी से बना हुआ है। मैदान के पूर्वी हिस्सों में कम बारिश या सर्दियाँ शुष्क होती हैं। किन्तु मानसून की वर्षा इतनी अधिक होती है कि बड़े-बड़े इलाक़ों में दलदल या उथली झीलें बन जाती हैं। ज्यों-ज्यों पश्चिम की ओर बढ़ते हैं, यह मैदान शुष्क होता चला जाता है और अन्त में थार के रेगिस्तान में बदल जाता है।

पौराणिक प्रसंग

पुराणों के अनुसार विवद्गंगा, आकाशगंगा अथवा स्वर्गगंगा विष्णु के अँगूठे से निकली है, जिसका पृथ्वी पर अवतरण भगीरथ के स्तवन से कपिल द्वारा भस्मीकृत राजा सगर के 60,000 पुत्रों की अस्थियों को पवित्र करने के लिए हुआ। भगीरथ के साथ इसी सयोग के कारण गंगा का दूसरा नाम भागीरथी पड़ा। पौराणिक परम्परा है कि स्वर्ग से उतरने के कारण गंगा अत्यन्त कुपित हो उठी थीं और उसके कोप के कारण पृथ्वी पर उसकी धारा पड़ते ही उसके बहकर नष्ट हो जाने के भय से शिव ने अपनी जटा में उसे समेट लिया, जिससे उनकी जटाओं में उलझ जाने के कारण धारा पृथ्वी पर सीधी नहीं पड़ी और गंगा की गति मन्द हो गई। इसी सम्बन्ध में शिव का एक नाम गंगाधर भी पड़ा। गंगा का अवतरण तपस्वी जह्नु के यज्ञ के लिए घातक हुआ, जिससे क्रुद्ध होकर उस तापस ने गंगा को पी डाला और प्रार्थना के बाद उसने कान से गंगा की धारा निकाल दी, जिससे वह जाह्नवी कहलाई हैं। एक दूसरे पौराणिक आख्यान के अनुसार गंगा हिमालय और मैना की पुत्री तथा उमा की भगिनी थीं। महाभारत की एक कथा उसे कुरुराज शान्तनु की पत्नी और भीष्म की माता बताती है। जिसमें भीष्म का दूसरा नाम गांगेय भी है। गंगा का सम्बन्ध कार्तिकेय के मातृत्व से भी है। हिन्दुओं के जितने तीर्थ इस नदी के तीर पर हैं, उतने कहीं पर नहीं और उसकी पवित्रता का प्रभाव तो भारतीयों पर इतना गहरा पड़ा कि उन्होंने अनेक दूसरी नदियों के नाम भी गंगा रख दिये। जहाँ-जहाँ भारतीय संस्कृति का विस्तार हुआ, वहाँ-वहाँ गंगा की पवित्रता का विविध रूप से उल्लेख हुआ। गंगा की मकर पर आरूढ़ चँवर अथवा कलश धारिणी मूर्तियाँ भी गुप्तकाल में बनने लगी थीं।(म. भा., वनपर्व, अध्याय 12, 42, 47, 83-88, 90, 93, 95, 99, 107-109 आदि।)

आठ वसुओं की माँ

गंगा-यमुना के मध्य का समस्त भूभाग ययाति ने पुरु को दिया था। गंगा आठ वसुओं की माँ हैं। वसुओं ने गंगा से कहा था कि शान्तनु से उनके गर्भ धारण करने के उपरान्त उनके जन्मते ही जल में प्रवाहित कर देना। गंगा ने शान्तनु से उत्पन्न सात वसु जल में प्रवाहित कर दिए। आठवें वसु (भीष्म) को शान्तनु ने बचा लिया। (म. भा., आदिपर्व, अध्याय 2, 3, 61, 63, 67, 70, 87, 95-10।)