सोयाबीन

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सोयाबीन दाल की तरह एक वस्तु है, परन्तु इससे उत्पन्न दूध और दही देखने में और खाने में दूध और दूध की वस्तुओं की तरह ही होते हैं परन्तु इसका मूल्य दूध के मूल्य का सोलवां भाग है। उपकारिता की दृष्टि से भी सोयाबीन का स्थान दूध से किसी तरह कम नहीं हैं। संसार में सोयाबीन के समान पुष्टिकारक कोई अन्य खाद्य मिलना कठिन है। यह विभिन्न विटामिन, धातव, लवण और उच्च श्रेणी के प्रोटीन, शर्करा तथा चर्बी जातीय खादयौं से सम्रिध्ह है। सोयाबीन गुणवत्ता कि दृष्टी से भी सभी खाद्यान्नों से बढ़कर है। इन्ही सब विशेषताओं के कारण सोयाबीन को जादुई बीज भी कहा जाता है।

सोयाबीन में प्रोटीन का अंश 43% रहता है। इसमें जितना प्रोटीन है मांस की तुलना में वह दुगना, अंडे की तुना में तिगुना और दूध की तुना में ग्याराह गुना अधिक है। इसके अन्दर अधिक मात्रा में लोह रहने के कारण रक्तालापता में यह विशेष रूप से हितकर है। सोयाबीन विभिन्न दुर्लभ विटामिनों से समृद्ध है, इसलिय यह स्मरण शक्ति बढ़ता है, स्नायुओं को शांत रखता है, चिड़चिड़े स्वभाव को दूर रखता है, देह स्वस्थ रखता है, यौवन दीर्घ और लम्बी आयु प्रदान करता है। यह कैल्सियम और फोस्फोरस का एक मूल्य प्राप्ति स्थान है।

हजारों वर्ष से चीन, जापान, मंचूरिया, मंगोलिया आदि में सोयाबीन का सेवन होता आ रहा है। लोगों का मानना है कि सोयाबीन खाने से वज़न और शरीर में शीग्रता से वृद्धि होती है, देह का रंग उज्जवल होता है, तथा बदन स्वस्थ और सुदोठित हो उठता है। जापान में ऐसा कोई ग्राम नहीं है जहाँ पर सोयाबीन के दूध, दही तथा पनीर की दूकान नहीं मिलती हों।

साधारणतः ऐसा सोचा जाता है कि सोयाबीन बहुत मुश्किल से पचने वाला खाद्य है परन्तु ऐसा सोचना व्यर्थ है। जब यह ठीक तरह से पकाया जाता है तब यह अन्य किसी भी खाद्य के समान सुपाच्य हो जाता है।

सोयाबीन कई प्रकार के होते हैं - लाल, पीले, बादामी, काले आदि रंगों के सोयाबीन बाज़ार में बिकते है। मनुष्य केवल हरे तथा सफ़ेद रंग के सोयाबीन खाद्य के रूप में ग्रहण करते हैं।

दुग्धोत्पादन के लिए यह ज़रूरी है कि सोयाबीन स्वस्थ पीली और ताजी हो अर्थात तीन माह से ज्यादा दिन की भंडारित न हो। सोयाबीन से दूध बनाने के लिए सर्वप्रथम सोयाबीन को 8 घंटे भिगोया जाता है और फिर हाथ से रगड़कर उसका छिलका उतार लिया जाता है। उसके बाद दाल को धोकर उसे सिलबट्टे पर या इलेक्ट्रिक ग्राइंडर में बारीक पीसा जाता है। इसमें पिसी हुई इलायची और शक्कर मिलाकर 15 मिनट तक उबालना चाहिये, जिससे उसमें हानिकारक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार सोयाबीन से दूध तैयार किया जाता है। इस दूध को फ्रीज में 15 दिन तक रखा जा सकता है। इसमें रंग मिलाकर इसे रंगीन भी बनाया जा सकता है। इस सोया दूध से दही, पनीर, आइसक्रीम और खीर आसानी से बनायी जा सकती है। सोया दूध गाय, भैंस के दूध के समतुल्य पौष्टिक होता है। मसलन - गाय के 100 ग्राम दूध में 3.2 प्रतिशत प्रोटीन, 4 प्रतिशत वसा, 4.6 प्रतिशत कारबोज, 0.11 प्रतिशत कैल्शियम, 0.07 प्रतिशत फास्फोरस पाया जाता है, वहीं सोया दूध में 4.2 प्रतिशत प्रोटीन, 2.4 प्रतिशत वसा, 3.2 प्रतिशत कारबोज, 0.08 प्रतिशत कैल्शियम, 0.10 प्रतिशत फास्फोरस पाया जाता है। इस प्रकार सोयादूध पौष्टिक होने के साथ-साथ संपूर्ण आहार भी है।

सोयादूध में लैक्टोज बिल्कुल नहीं होता, जबकि गाय-भैंस के दूध में लैक्टोज की मात्रा पायी जाती है। इस कारण से भी बच्चों और डायबिटीज के मरीजों के लिए सोयादूध वरदान है। बाज़ार में आमतौर पर सोयादूध 20 रुपये प्रति लीटर मिलता है। सोयाबीन के दाम भी लगभग 20 रुपये प्रति किलो हैं। इस प्रकार 1 किलोग्राम सोयाबीन में 2 लीटर से ज्यादा सोया दूध बनाया जा सकता है। हमारे देश में दूध महंगा होने के कारण निर्धन वर्ग इससे वंचित रहता है और कुपोषण के कारण अनेक बीमारियों का शिकार बनता है। ऐसी स्थिति में ग़रीब थोड़ा-सा परिश्रम करके घर में ही 10 रुपये प्रति किलो की दर से सोया दूध तैयार कर सकते हैं और कुपोषण से भी बच सकते हैं। व्यावसायिक स्तर पर भी सोया दुग्ध उत्पादन किया जा सकता है। सोयादूध ग़रीबों और बेरोज़गारों के लिए अलादीन के चिराग से कम नहीं है।



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