छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-9

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  • इस खण्ड में प्रवाहण शिलक के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहता है-'इस लोक का आश्रय अथवा गति आकाश है; क्योंकि सम्पूर्ण प्राणी और पदार्थ अथवा तत्त्व इसी आकाश से उत्पन्न होते हैं और इसी में लीन हो जाते हैं। अत: आकाश ही इस लोक का आश्रय है।
  • वही श्रेष्ठतम उद्गीथ है और वही अनन्त रूप है।
  • जो विद्वान इस प्रकार जानकर इसकी उपासना करता है, उसे परम उत्कृष्ट जीवन प्राप्त होता है और परलोक में भी श्रेष्ठतर स्थान प्राप्त होता है।'


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