छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-9
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रेणु (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:49, 5 सितम्बर 2011 का अवतरण ('*छान्दोग्य उपनिषद के [[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1|अध...' के साथ नया पन्ना बनाया)
- छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय प्रथम का यह नौवा खण्ड है।
मुख्य लेख : छान्दोग्य उपनिषद
- इस खण्ड में प्रवाहण शिलक के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहता है-'इस लोक का आश्रय अथवा गति आकाश है; क्योंकि सम्पूर्ण प्राणी और पदार्थ अथवा तत्त्व इसी आकाश से उत्पन्न होते हैं और इसी में लीन हो जाते हैं। अत: आकाश ही इस लोक का आश्रय है।
- वही श्रेष्ठतम उद्गीथ है और वही अनन्त रूप है।
- जो विद्वान इस प्रकार जानकर इसकी उपासना करता है, उसे परम उत्कृष्ट जीवन प्राप्त होता है और परलोक में भी श्रेष्ठतर स्थान प्राप्त होता है।'
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख