छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-12

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  • इस खण्ड में शौव (शौवन) उद्गीथ का वर्णन है। शौवन का अर्थ श्वान (कुत्ता) से है, परन्तु यहाँ श्वान का अर्थ कुत्ते से नहीं, गतिशीलता से है।
  • यह गतिशीलता ही 'प्राण' है।
  • इस प्रसंग में ऋषिपुत्र स्वाध्याय प्रकृति के मध्य श्वेत (निर्मल) श्वान (प्राण-प्रवाह) से साक्षात्कार करते हैं शुद्ध श्वान (प्राण) को उद्गीथ मानकर की गयी साधना फलित होती है।
  • प्रसंग इस प्रकार है कि एक बार बकदालभ्य अथवा ग्लाब मैत्रेय स्वाध्याय के लिए जलाशय के निकट गये। वहां निर्मल श्वान का प्रकटीकरण हुआ।
  • उससे कुछ अन्य विकारग्रस्त श्वान कहने लगे कि वे भूखे हैं। उनके लिए वे ईश्वर से प्रार्थना करें। उसने सभी को प्रात:काल आने के लिए कहकर भेज दिया।
  • दूसरे दिन प्रात:काल उनके आने पर सभी मिलकर प्रार्थना करने लगे- ॐ हम भक्षण करें। ॐ हम पान करें। ॐ देव वरुण, प्रजापति, सूर्यदेव यहाँ अन्न लायें हे अन्नपते! यहाँ अन्न लायें, यहाँ अन्न लायें।


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