तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली अनुवाक-1

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रेणु (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:15, 7 सितम्बर 2011 का अवतरण ('*तैत्तिरीयोपनिषद के [[तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
  • इस अनुवाक में कहा गया है कि ब्रह्मवेत्ता साधक ही परब्रह्म के सान्निध्य को प्राप्त कर पाता है और विशिष्ट ज्ञान-स्वरूप उस ब्रह्म के साथ समस्त भोगों का आनन्द प्राप्त करता है।
  • सर्वप्रथम परमात्मा से आकाशतत्त्व प्रकट हुआ।
  • उसके बाद आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल, जल से पृथ्वी, पृथ्वी से औषधियां, औषधियों से अन्न तथा अन्न से पुरुष का विकास हुआ।
  • पुरुष में ही अन्न का रस विद्यमान है।
  • आत्मा उसके मध्य भाग, अर्थात हृदय में निवास करती है। ब्रह्मवेत साधक हृदय में स्थित इसी 'आत्मा' की उपासना करके 'परब्रह्म' तक पहुंचता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख